Saturday, February 27, 2010

आईएएस अफसरों की गुटबाजी चरम पर

अश्लील पर्चे ने बिगाड़ा माहौल
कई अधिकारी शक के दायरे में




रवीन्द्र जैन

भोपाल। मध्यप्रदेश में कई आईएएस अधिकारियों की गुटबाजी चरम पर पंहुच गई है। दो दिन पहले निकले एक अश£ील और आपत्तिजनक पर्चे ने माहौल को और खराब कर दिया है। मंत्रालय में अधिकार ही एक दूसरे को शंका की नजर से देख रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अपील का अधिकारियों पर कोई असर नहीं हो रहा है। क्या वाकई प्रदेश की आईएएस लॉबी डिप्रेशन में है। स्थिति यह है कि

प्रदेश में पहली बार दस महिने में छह आईएएस अधिकारी निलंबित किए जा चुके हैं तथा पिछले छह साल में 17 आईएस अधिकारियों के खिलाफ लोकायुक्त संगठन भ्रष्टाचार के मामले में कोर्ट में चालान पेश कर चुका है। राज्य के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ।

मप्र में नए मुख्य सचिव का चयन व प्रमुख सचिव अरविन्द जोशी व टीनू जोशी के घर मिले तीन करोड़ से अधिक की राशि के बाद प्रदेश में आईएएस अधिकारियों की गुटबाजी सतह पर आ गई है। दो दिन पहले निकले एक बेनामी पर्चे ने गुटबाजी को बढ़ावा दे दिया है। इस पर्चे के जरिए 133 आईएएस अधिकारियों पर कीचड़ उछालने का प्रयास किया गया है। इन अफसरों को भ्रष्ट, महाभ्रष्ट, अय्याश जैसी श्रेणियों में बांटते हुए उनकी अवैध कमाई को कहां इंवेस्ट किया गया है, यह बताने का प्रयास किया गया है। पर्चे में ऐसे अधिकरियों के नाम दिए गए हैं जिन्हें मप्र में ईमानदार माना जाता है तथा उनकी छवि उज्जवल है। खास बात यह है कि पर्चे में ज्यादातर नाम सीधी भर्ती के आईएएस अधिकारियों के हैं। पर्चे में लगभग आधा दर्जन से अधिक महिला आईएएस अधिकारियों के चरित्र पर उंगली उठाई गई है।

बताया जाता है कि मुख्य सचिव अवनि वैश्य एवं पुलिस महानिदेशक एसके राउत के पास यह पर्चा पहुंच गया है, तथा उन्होंने अपने अपने स्तर पर इसे निकालने वाले के बारे में खोज शुरू कर दी है। बताया जाता है कि इस पर्चे के पीछे उन अधिकारियों का दिमाग बताया जा रहा है जो पिछले दिनों मीडिया के कुछ लोगों के साथ मिलकर अपनी पसंद का मुख्य सचिव बनवाना चाहते थे। सूत्रों के अनुसार पुलिस विभाग की फोन टेपिंग मशीन से कुछ संदिग्ध अधिकारियों के फोन एवं मोबाइल टेप किए जा रहे हैं ताकि इन पर्चों के पीछे किसका दिमाग काम कर रहा है, इसका पता लगाया जा सके।

सबसे बदनाम कैडर

आईएएस अधिकारियों के लिए इस वक्त मध्यप्रदेश सबसे बदनाम कैडर बन गया है। मप्र में पिछले दस महिनों में छह आईएएस अधिकारी निलंबित हो चुके हैं। प्रदेश के इतिहास में कितने अधिकारी कभी सस्पेंड नहीं हुए।

अब तक छह : -

ज्ञानेश्वर पाटिल : 18 जून 2009 को भोपाल के जिला पंचायत कार्यालय में युवा आईएएस अधिकारी ज्ञानेश्वर पाटिल को मीडिया एवं पुलिस ने एक युवक का दैहिक शोषण करते रंगे हाथ पकड़ा था। स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पाटिल के आपत्तिजनक फुटेज टीवी पर देख कर उन्हें निलंबति किया था, लेकिन इस अधिकारी को बिना सजा दिए बहाल कर दिया गया है।

केपी राही : टीकमगढ़ कलेक्टर केपी राही को नरेगा में भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित किया गया है। वे अभी भी निंलबित हैं। बताया जाता है कि भिण्ड एवं टीकमगढ़ कलेक्टरों पर एक जैसे आरोप थे, लेकिन तत्कालीन मुख्यसचिव ने भिण्ड कलेक्टर सुहेल अली को बचा लिया और केपी राही को निलंबित कर दिया। नए मुख्यसचिव ने सुहेल अली की फाइल बुलाई है उम्मीद की जा रही है कि सुहेल अली के खिलाफ कभी भी कार्रवाही हो सकती है।

अंजू सिंह बघेल : आईएएस अधिकारी अंजूसिंह बघेल को भूमि माफिया को मदद के आरोप में निलंबित किया गया है। वे अभी भी निलंबित हैं।

जोशी दम्पत्ति : प्रमुख सचिव अरविन्द जोशी एवं प्रमुख सचिव टीनू जोशी के घर पर आयकर छापे में तीन करोड़ रुपए से अधिक की राशि मिलने पर उन्हें निलंबित कर दिया गया है। आयकर विभाग उनका प्रकरण सीबीआई को सौंपने की तैयारी कर रहा है।

राजेश राजौरा : वरिष्ठ आईएएस अधिकारी राजेश राजौरा को भी राज्य सरकार ने आयकर विभाग की रिपोर्ट मिलने के बाद निलंबित कर दिया है। आयकर विभाग ने उनके घर दो साल पहले छापा मारा था। उन पर स्वास्थ विभाग के आयुक्त के रुप में भारी भ्रष्टाचार की शिकायतें हैं।



17 आईएएस के खिलाफ चालान

- मध्यप्रदेश लोकायुक्त संगठन में 1 जनवरी 2004 के बाद अभी तक 17 आईएएस अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप में कोर्ट में चालान पेश कर चुका है। यह अभी तक कि सबसे बड़ी संख्या है।

36 आईएएस लोकायुक्त जांच के दायरे में

मध्यप्रदेश लोकायुक्त वर्तमान में प्रदेश के लगभग 36 आईएएस अधिकारियों के खिलाफ जांच कर रहा है। इसे भी बड़ी संख्या माना जा रहा है।

25 आईएएस ईओडब्ल्यू जांच के दायरे में

मप्र के लगभग 25 आईएएस अधिकारियों की जांच मप्र आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो कर रहा है। वैसे इस संस्था से किसी आईएएस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाही कह उम्मीद कम ही है। अभी तक यह संस्था राजनतेाओं के हथियार के रुप में प्रयोग में लाई जाती है। क्योंकि इसकी जांच पर हमेशा ही उंगली उठती रही है।

प्रतिनियुक्ति पर जाने का प्रयास : ऐसी स्थिति में मप्र के कई आईएएस अधिकारी प्रतिनियुक्ति पर प्रदेश से बाहर जाने का मन बना रहे हैं। कई अधिकारियों ने नियमों का हवाला देकर फाइलों को लटकाना शुरू कर दिया है।

1 comment:

  1. मध्य प्रदेश विद्युत मंडल के फैमिली पेंशनरों का दुखड़ा कौन सुनेगा

    महोदय, मध्य प्रदेश विद्युत मंडल के फैमिली पेंशनरों को पेंशन के लिये जलालत झेलनी पड़ती है उतनी भारत में शायद किसी और विभाग से पेंशन लेते में नहीं होती होगी। जिन लोगों को फैमिली पेंशन भारतीय स्टेट बैंक के ज़रिये मिलती है उनका हाल तो बहुत ही बुरा है। महंगाई भत्ता बढ़ता-घटता है, किसी तरह की अंतरिम राहत मिलती है या वेतन बोर्ड लगता है तो पेंशनरों को अपनी पास बुक में रकम में कुछ अंतर तो नज़र आता है लेकिन उसके बारे में ब्यौरा नहीं मिलता। संबंधित शहर के विद्युत मंडल के लेखाधिकारी कार्यालय में संपर्क करने पर टका सा जवाब मिलता है बैंक से पता कीजिये। और बैंक का कहना होता है विद्युत मंडल से जितनी रकम आपके लिये आई हमने आपके खाते में डाल दी, बाकी हमको कुछ नहीं पता आप विद्युत मंडल से ही पता कीजिये। विद्युत मंडल में ज़्यादा कुछ पूछो तो कह देते हैं कि आप जबलपुर जाकर पता कीजिये। ऐसे में फैमिली पेशनर के सामने बड़ी मुश्किल हो जाती है। सबसे बुरा हाल ग्वालियर में है। फैमिली पेंशन पाने वाले लोगों में 90 फीसदी से ज़्यादा दिवंगत कर्मचारियों की पत्नियां हैं, जो बहुत ज़्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं। हिसाब-किताब में भी वो इतनी पक्की नहीं। देश के कई राज्यों में फैमिली पेंशनबुक देने की पंरपरा है जिसमें हर दो-तीन महीने में संबंधित विभाग या बैंक रकम का ब्योरा एंट्री करके देता है। लेकिन मध्य प्रदेश में ऐसा कुछ नहीं है। मध्य प्रदेश सरकार के पेंशन औप फैमिली पेंशन भोगियों के लिये तो अलग से पेशन संचालनालय है लेकिन मध्य प्रदेश विद्युत मंडल जैसे महकमों के लिये कुछ भी नहीं है, सिवाय कुछ परेशान करने वाले बाबुओं और अफसरों के। मध्य प्रदेश सरकार को इस तरफ ध्यान देना चाहिये।

    प्रेषक: कई परेशान फैमिली पेंशन भोगी, ग्वालियर और दतिया।

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