Wednesday, February 3, 2010

vidhansabha

विश्वास मत पहले या
राज्यपाल का
अभिभाषण ?

कई गंभीर विषयों पर चर्चा

रवीन्द्र जैन

भोपाल। आम चुनाव होने के बाद यदि किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता तो जोड़तोड़ से बनी सरकार के मामले में राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल का अभिभाषण पहले होना चाहिए या पहले सरकार को अपना बहुमत सिद्ध करना चाहिए? यदि किसी सदन के कई सदस्य सामूहिक त्यागपत्र देते हैं तब स्पीकर की क्या भूमिका होनी चाहिए? सदन की बैठकों में विधायकों की अरूचि व उपस्थिति में कमी के मामले में क्या करना चाहिए? सदन में प्रश्रकाल को प्रभावी कैसे बनाया जा सकता था? इन गंभीर विषयों पर मंगलवार को देश भर की संसदीय संस्थाओं के प्रमुख सचिव व सचिव विचार मंथन करेंगे।


मप्र की राजधानी भोपाल में बीस साल बाद हो रहे पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन मंगलवार को सुबह विधानसभा में शुरू होगा। सम्मेलन के पहले दिन सुबह दस बजे सभी संसदीय संस्थाओं के सचिवों के सम्मेलन में चर्चा के लिए सबसे पहला विषय राष्ट्रपति व राज्यपाल के अभिभाषण को लेकर है। दरअसल आम चुनावों में स्पष्ट बहुतम न मिलने के बाद भी जोड़तोड़ से सरकारें बन तो जाती हैं, लेकिन वे सदन में अपना बहुतम सिद्ध नहीं कर पातीं। बिना बहुमत सिद्ध किए राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल अपने अभिभाषण में सरकार की नीतियों के बारे में अभिभाषण करते हैं। लोकसभा सचिवालय ने इस विषय को सचिवों की बैठक में चर्चा के लिए रखा है। सभी राज्यों के सचिवों से राय लेने के बाद संसद इस बारे में सरकार को अपनी अनुशंसा भेजेगी।


इसके अलावा आंध्रप्रेदश में तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर विधायकों के सामूहिक त्यागपत्र के बारे में भी चर्चा होनी है। आंध्रप्रदेश विधानमंडल ने यह विषय चर्चा के लिए बैठक में रखा है। विधायकों के सामूहिक इस्तीफा तथा उसके प्रभाव व स्पीकर की भूमिका को लेकर गंभीर चर्चा होने की संभावना है। राज्यसभा सचिवालय ने प्रश्रकाल को अधिक कुशल एवं प्रभावी बनाने के उपायों के बारे में चर्चा का अनुरोध किया है। प्रश्रकाल में उठाए जाने वाले विषय, संबंधित विभाग के मंत्री का जबाव व सांसदों व विधायकों की उपस्थिति आदि को प्रभावी बनाने पर चर्चा होगी।


सदन से गायब रहते हैं सदस्य : इस बैठक में सबसे गंभीर मुद्दे के रूप में संसद व विधान मंडलों में गंभीर विषयों पर चर्चा, खासकर विधेयकों पर वाद विवाद के समय सदस्यों की भागीदारी व उपस्थिति में निरंतर कमी के बारे में चर्चा की जाएगी। यह विषय चर्चा के लिए उत्तरप्रदेश विधानसभा ने रखा है। बैठक में आंध्रप्रदेश विधानसभा के आग्रह पर विधायिका व निर्वाचन आयोग द्वारा बनाई गई आचार संहिता के पालन के बारे में चर्चा करने का निर्णय लिया गया है।


संसदीय संस्थाओं के अधिकार : संसदीय संस्थाओं के सचिवों का सम्मेलन हो और वे अपने अधिकारों को लेकर चर्चा न करें ऐसा नहीं हो सकता। इस बैठक में संसद व विधायिका सचिवालयों को वित्तीय स्वायत्तता देने के मुद्दे पर भी चर्चा होगी। यह विषय चर्चा के लिए लोकसभा सचिवालय ने एजेन्डे में शामिल कराया है। लोकसभा सचिवालय ने ही संसदीय समिति के समक्ष दिए साक्ष्य की तुलना में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत दिए जाने वाले खुलासों में गोपनीयता एवं समिति के सदस्यों के हितों में टकराव के विषय को चर्चा के लिए एजेंडे में शामिल कराया है।


बीस साल पहले और अब

बीस साल पहले 19 सितंबर 1989 को मप्र विधानसभा में ही संसदीय संस्थाओं के सचिवों के सम्मेलन में महत्वपूर्ण विषयें पर चर्चा की गई। भोपाल की चर्चा के बाद ही देश भर के कॉलेजों व स्कूलों में मॉक संसद व विधानसभा लगना शुरू हुई थीं। इसके अलावा उस सम्मेलन में ही संसदीय संस्थाओं में काम करने वालों के विशेष प्रशिक्षण देने का निर्णय हुआ था।




बीस साल पहले का एजेंडा :


- देश में दलबदल कानून लागू होने के बाद राजनीतिक दल की परिभाषा क्या होना चाहिए।
- भ्रष्टाचार को रोकने में मददगार सरकारी विभागों की वार्षिक रिपोट्स को समयसीमा में सदन के पटल पर रखने पर विचार।
- सदन की समितियों की भूमिका पर विचार।
- संसदीय संस्थाओं में काम करने वालों को प्रशिक्षण की व्यवस्था।
- मॉडल पार्लियामेंट के लिए स्कूल कॉलजों में प्रतियोगिताओं पर विचार।
- संसदीय संस्थाओं में फैक्स व


इस बार का एजेंडा :


- आम चुनाव के बाद बहुमत सिद्ध करने के लिए विश्वास मत: राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल का अभिभाषण इससे पहले होना चाहिए या बाद में ?
- सदस्यों द्वारा सामूहिक रूप से त्यागपत्र दिया जाना तथा उसका प्रभाव।
- प्रश्रकाल को और अधिक कुशल और प्रभावी बनाना।
- विधेयकों पर वाद विवाद और सदन की बैठक में सदस्यों की भगीदारी और उपस्थिति में कमी।
- विधायिका और निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित आदर्श आचार संहिता।
- संसद तथा विधायिका सचिवालयों को वित्तीय स्वायत्तता।
- संसदीय समिति के समक्ष दिए जाने वाले साक्ष्य की तुलना में सूचना का अधिकार 2005 के तहत दिए जाने वाले खुलासों में गोपनीयता।
- समितियों के सदस्यों के हितों में टकराव, निष्पक्ष और उचित दृष्टिकोण की आवश्यकता।

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