Tuesday, February 23, 2010









मुख्यमंत्री जी, यह अवसाद नहीं

शर्मिदगी है








रवीन्द्र जैन

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सोमवार को मप्र के नौकरशाहों को बुलाकर डिप्रेशन से बाहर निकलने का आव्हान किया है। यानि मुख्यमंत्री की नजर में प्रदेश के नौकरशाह जल संसाधन विभाग के प्रमुख सचिव अरविन्द जोशी के घर मिले करोड़ों रुपए के बाद डिप्रेशन में हैं। मुख्यमंत्री जी, यह हकीकत नहीं है। डिप्रेशन में तो प्रदेश की जनता है जिसकी जेबें लूटकर यह अफसर अपना घर भरने में लगे थे। सच्चाई यह है कि प्रदेश की नौकरशाही डिप्रेशन में नहीं, शर्मिंदगी का शिकार है। डिप्रेशन देर तक रहता है, लेकिन शर्मिदगी जल्दी ही दूर हो जाती है।

क्या प्रदेश के मुख्यमंत्री महोदय बताने का कष्ट करेंगे कि - पिछले छह सालों में एक दर्जन से अघिक आईएएस अधिकारियों के खिलाफ लोकायुक्त ने भ्रष्टाचार के तहत प्रकरण कायम किए तब राज्य की नौकरशाही डिप्रेशन में नहीं आई? क्यों नहीं आईएएस एसोसिएशन ने कोई मिटिंग करके अपने सदस्यों को भ्रष्टाचार से बचने की सलाह दी? आज स्थिति यह है कि नौकरशाही प्रदेश को अपना चारागाह समझ रही है। राजनेताओं व मंत्रियों के साथ लूट का खुला खेल चल रहा है और जब अधिकारी रंगे हाथ पकड़े जाते हैं जब मुख्यमंत्री कहते हैं कि अधिकारियों को डिप्रेशन से बाहर आना चाहिए।

मुख्यमंत्री को कैसे पता कि प्रदेश के नौकरशाह डिप्रेशन में हैं। कितने अधिकारी मानसिक चिकित्सक के यहां स्वयं को दिखाने पहुंच चुके हैं? मुख्यमंत्री जी, मैं आपकी जानकारी के लिए यहां कुछ आंकड़े दे रहा हूं ताकि इस बेशर्म नौकरशाही का असली चेहरा आप भी देख सकें। मप्र में 6 दिसम्बर 2003 को उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी थी। प्रदेश की जनता को उम्मीद थी कि - दिग्विजय सिंह के दस वर्ष के कार्यकाल के बाद भाजपा की सरकार उसे राहत देगी। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। सच्चाई आप भी जानते हैं कि किस तरह पहले दो वर्ष मुख्यमंत्री बदलने में बीत गए। जनवरी 2004 के बाद मप्र लोकायुक्त ने नौ मंत्रियों व पूर्व मंत्रियों, 3 आईएएस अधिकारियों, 1 आईपीएस अधिकारी तथा एक पार्षद के खिलाफ के खिलाफ भ्रष्टाचार के तहत प्रकरण कायम किए। इस दौरान 6 मंत्रियों व पूर्व मंत्रियों, 1 सांसद, 17 आईएएस अधिकारियों, 6 आईपीएस अधिकारियों, 3 आईएफएस, व एक पार्षद के खिलाफ चालान पेश किया गया है।

राज्य की नौकरशाही को भी समझना होगा कि उसे राजनेताओं का हुक्म का गुलाम बनकर धन कमाना है या इसी तरह शर्मिदगी से जीवन जीना है?

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