Sunday, February 7, 2010

lokayukt

आरोपों के घेरे में लोकायुक्त संगठन

प्रदेश के तीन आईएएस को दी क्लीन चिट




                                                              ex lokayukt ripusudan dayal


रवीन्द्र जैन
भोपाल। मध्यप्रदेश के लोकायुक्त संगठन पर आरोप है कि उसने प्रदेश के तीन आईएएस अधिकारियों के खिलाफ पहले तो जांच की तथा आरोप सिद्ध होने के बाद उन्हें को गलत तरीके क्लीन चिट दी है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री ने प्रहलाद पटेल ने इसकी शिकायत राज्यपाल से की लेकिन अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का जिम्मा जिस लोकायुक्त संगठन पर है, वह भी विवादों से बचा नहीं है। इस संगठन में प्रतिनियुक्ति पर आए अधिकारी वर्षों से एक ही कुर्सी पर जमे बैठे हैं जिनके कार्यकाल में संगठन की छवि प्रभावित हुई है।

मप्र में भ्रष्टाचार अब चरम पर है लेकिन यह दुखद पहलू है कि भ्रष्टाचार रोकने का जिम्मा जिस लोकायुक्त संगठन पर है, वह भी बेदाग नहीं है। पिछले लोकायुक्त ने अपने पुत्र मोह व भोपाल में एक साथ तीन मकान खरीदने के लालच में इस संगठन की छवि को दागदार कर दिया था। अब भी इस संगठन की आज भी इस संगठन की छवि ऐसी नहीं है, जिससे भ्रष्टाचार रोकने की उम्मीद की जा सके। इस संगठन में अभी ऐसे अधिकारी बैठे हैं जो वर्षें से एक ही कुर्सी पर जमे हैं। जिन्होंने पिछले लोकायुक्त के सहीं गलत आदेशों को पालन किया था। पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल ने लोकायुक्त संगठन पर जिन आईएएस अधिकारियों को गलत तरीके से क्लीन चिट दी थी, उनके मामले में उन्होंने मप्र के आर्थिक अपराध ब्यूरो में नए सिरे से शिकायत भी की, लेकिन ब्यूरो ने भी इन ताकतवर अफसरों के खिलाफ जांच करना उचित नहीं समझा।

अधिकारी जिन्हें क्लीन चिट दी गई है :

1 - संजय बंधोपध्याय : तत्कालीन अपर कलेक्टर संजय बंधोपध्याय के खिलाफ लोकायुक्त विशेष पुलिस स्थापना ने अपराध क्रमांक 15/99 एवं 16/99 पंजीबंद्ध किया था। जांच के बाद संगठन के विधि सलाहकार ने अभियुक्त के खिलाफ भ्रष्टाचार अधिनियम की धारा 13/1 डी, 13/2डी एवं भारतीय दंड संहिता के धारा 420बी के तहत चालान पेश करने की अनुशंसा की थी। तत्कालीन लोकायुक्त के निर्देश पर संगठन के डीआईजी ने नियमों की परवाह किए बिना 5 अगस्त 2004 को जबलपुर विशेष स्थापना पुलिस को प्रकरण में खात्मा लगाने के आदेश दे दिए। इस मामले में विशेष स्थापना पुलिस ने फरवरी 2005 को कोर्ट में खात्मा प्रस्तुत कर दिया।









raghavchandea IAS

2 - राघवचंद्रा : यह मामला कटनी में मप्र गृह निर्माण मंडल के भूमि क्रय से संबंधित है। इस मामले में आवश्यकता से अधिक भूमि क्रय की गई तथा कई गुना राशि का भुगतान किया गया। इससे मंडल को 4 करोड़ 95 लाख 85 हजार 279 रूपए हानि हुई। लोकायुक्त ने इस मामले में भी जांच के बाद खात्मा लगा दिया, लेकिन कटनी विशेष न्यायालय ने 26 अप्रेल 2005 को खात्मा नामंजूर करते हुए अभियुक्त के विरूद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत प्रकरण कायम करने के निर्देश दिए। लोकायुक्त ने अपराध कायम करने के बजाय उच्च न्यायालय में रिवीजन लगाने के लिए राज्य के प्रमुख सचिव विधि को पत्र लिख दिया। इसी मामले में उच्च न्यायालय ने एक अन्य याचिका पर सुनवाई करने के बाद लोकायुक्त के बजाय ईओडब्ल्यु से जाचं कराने के निर्देश दिए। यह जांच अभी लंबित है।






vishwapati travedi IAS

3 - विश्वपति त्रिवेदी : मप्र के तत्कालीन वाणिज्यकर आयुक्त विश्वपति त्रिवेदी के खिलाफ लोकायुक्त को शिकायत प्राप्त हुई जिसमें 16 गंभीर आरोप थे। इन शिकायतों में अधिकतर आरोप गलत तरीके से विभिन्न ईकाइयों को टैक्स एग्जम्पशन करने के लाभ पहुंचाने के थे। लोकाुरूकत ने इन 16 में से 7 आरोपों की जांच की, इनमें से दो आरोपों को समाप्त कर पांच मामलों की पूरक जांच की गई, और अंत में सभी मामलों को समाप्त कर दिया गया। जबकि इन मामलों में राज्य सरकार को करोड़ों रूपए की हानि हुई थी।

कहां है लोकायुक्त की रिपोर्ट

मप्र के लोकायुक्त सांगठन का कहना है कि वह हर साल अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप देता है, लेकिन राज्य सरकार ने पिछले तीन साल से लोकायुक्त की रिपोर्ट को दबा रखा है। पिछले तीन साल से पहले तक मप्र में लोकायुक्त की रिपोर्ट हरहाल में मार्च माह में विधानसभा के पटल पर रख दी जाती थी, लेकिन पिछले तीन सालों से यह रिपोर्ट मंत्रालय के सामान्य प्रशासन विभाग में धूल खा रही है। पिछले दिनों में विधानसभा की एक कमेटी ने इस संबंध में सामान्य प्रशासन के अधिकारियों को बुलाकर रिपोर्ट पटल पर रखने के निर्देश भी दिए थे। यहां बता दें कि पिछले दिनों तत्कालीन लोकायुक्त रिपुसूदन दयाल ने मामूली विवाद के बाद राज्य सरकार को चेतावनी दी कि उस में दम है तो वह उनकी रिपोर्ट को सदन में पेश करके दिखाए।

जमे बैठे हैं अधिकारी

लोकायुक्त संगठन में पुलिस महानिदेशक से लेकर एसपी स्तर के अधिकारी वर्षों से जमे हैं, जबकि अभी तक की परंपरा रही है कि भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी तीन-तीन वर्ष के लिए प्रतिनियुक्ति पर संगठन में भेजे जाते थे। यहां अधिकारी सात साल से ज्यादा समय से जमे हुए हैं।

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