अजमेर ब्लास्ट की कहनी
अजमेर. दरगाह में 11 अक्टूबर 2007 को बम धमाका हुआ तो सांप्रदायिक सौहार्द की नगरी कहलाने वाले अजमेर में हाहाकार मच गया। सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में ऐसा हादसा पेश आ सकता है, यह कोई सोच भी नहीं सकता था। लंबे समय तक इस मामले में लोकल पुलिस व अन्य जांच एजेंसियां हाथ पैर मारती रहीं लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। बाद में जांच एटीएस के सुपुर्द कर दी गई। महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए विस्फोट और उसमें पकड़े गए अभियुक्त साध्वी प्रज्ञा सिंह व अन्य से हुई पूछताछ के आधार पर इस कांड का एटीएस ने खुलासा किया और तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया। लंबी सुनवाई के बाद शुक्रवार को आरोपियों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट पेश कर दी।
जिंदा बम से मिला सुराग
दरगाह बमकांड में एक बम फटने से रह गया था। इस बम को निष्क्रिय किया तो इसमें विस्फोटकों के अलावा टाइमर डिवाइस के रूप में मोबाइल फोन भी मिला था। मोबाइल स्क्रीन पर स्क्रीन सेवर के रूप में 'वंदे मातरमÓ लिखा था। जिस बम से विस्फोट किया गया था, उसका सिम कार्ड नंबर 8991522000005190837 था और मोबाइल नंबर 9931304642 पाया गया। क्षतिग्रस्त सिम के आधार पर जांच कार्रवाई में पता चला कि सिम बिहार व झारखंड के मोबाइल प्रदाता कंपनी की है। यह सिम रामफर यादव निवासी ग्राम कानगोई पोस्ट मिहिजाम, जिला दुमका के नाम जारी की गई थी।
सिम दुमका के बस स्टैंड पर स्थित मोबाइल केयर नामक दुकान से खरीदी गई थी। वहीं मौके से मिले जिंदा बम से मिले मोबाइल के आधार पर जानकारी मिली कि उसमें लगी सिम पश्चिम बंगाल के मोबाइल सेवा प्रदाता ने जारी की है। सिम का धारक बाबूलाल यादव पुत्र मनोहर यादव निवासी समधि रोड, रूपनारायणपुर, आसनसोल वर्धमान होना पाया गया। सिम पश्चिम बंगाल के चितरंजन से सरगम आडियो नामक दुकान से खरीदी गई थी। जांच में मालूम हुआ कि यह सिम फर्जी नाम व पते के पहचान पत्र हासिल कर खरीदी गई है। इसी तरह की 11 और सिम भी खरीदने का खुलासा हुआ।
मक्का-मालेगांव समान
एटीएस ने जांच में पाया कि 18 मई 2007 को हैदराबाद की मक्का मस्जिद में हुए ब्लास्ट में भी दो बमों का इस्तेमाल किया था। इसमें से एक बम फटा नहीं था व उसमें टाइमर डिवाइस के रूप में मोबाइल फिट था। एटीएस ने दोनों मामलों में कई समानताएं पाई। मक्का मस्जिद में जो सिम उपयोग हुए थे, उसमें वह सिम भी शामिल थी जो दरगाह बमकांड में जांच के दौरान सामने आई थीं। एटीएस ने जब मालेगांव विस्फोट के अभियुक्त कर्नल श्रीकांत पुरोहित एवं सुधाकर धर द्विवेदी उर्फ स्वामी दयानंद पांडे से पूछताछ की तो स्वामी असीमानंद के नाम का खुलासा हुआ। अभिनव भारत नामक संगठन का नाम भी सामने आया। एटीएस की जांच में सामने आया कि ख्वाजा साहब की दरगाह में सुनील जोशी ने ही बम ब्लास्ट किया था। उसके बाद सुनील जोशी की हत्या कर दी गई थी।
देवेंद्र और सुनील का संपर्क
एटीएस की जांच में सामने आया कि सुनील जोशी जब महू में आरएसएस के प्रचारक पद पर तैनात था तब अजमेर का मूल निवासी देवेंद्र उसके संपर्क में आया। दोनों के बीच 1998 से 2003 के बीच घनिष्ठ संबंध बन गए। गुप्ता धीरे धीरे जोशी का विश्वस्त बन गया और सुनील जोशी की प्रेरणा से वह आरएसएस के सहयोगी संगठन 'सेवा भारतीÓ में काम करने लगा था। बाद में देवेंद्र को जामताड़ा में प्रचारक के पद पर नियुक्त किया गया। इसी दौरान देवेन्द्र और सुनील में काफी गहरी दोस्ती हो गई और दोनों ने अपने काम को अंजाम देना शुरू कर दिया।
सिम कार्ड से हुआ खुलासा
24 मई 2006 से 26 नवंबर 2006 के बीच जब आसनसोल, जामताड़ा व मिहीजाम से दरगाह बम कांड में काम आए मोबाइल व सिम खरीदे गए थे, देवेन्द्र गुप्ता इसी इलाके में था। मक्का मस्जिद और दरगाह ब्लास्ट में सिम के अलावा उनसे जुड़े बाकी सिम की जानकारी भी एटीएस ने ली। इससे पता चला कि ये सिम मध्यप्रदेश के ग्राम छापरी और खरदौन कलां में प्रयोग किए जा रहे हैं। इन सिमधारकों के बारे में जानकारी एकत्रित की गई तो चंद्रशेखर लेवे, रविंद्र पाटीदार और संतोष पाटीदार के नाम सामने आए। आरोपी चंद्रशेखर ने यह मोबाइल फोन संदीप डांगे से लिए थे। उसने एक झूठी कहानी बनाकर यह मोबाइल विष्णु पाटीदार को यह कहकर दे दिए कि कोई पूछताछ करे तो कह देना कि उसे पंकज पाटीदार से मिले थे जिसकी दुर्घटना में कुछ समय पहले मौत हुई थी।
संदीप डांगे का नाम आया
विस्फोट में उपयोग किए गए मोबाइल व उससे जुड़े अन्य मोबाइल का खुलासा होने के साथ ही संदीप डांगे का नाम सामने आया। इस पर एटीएस ने अपनी जांच की दिशा संदाप की ओर मोड़ दी। जब जांच हुई तो पता चला कि संदीप शाजापुर में आरएसएस का प्रचारक रहा था। विस्फोट के लिए खरीदे गए मोबाइल में से बचे मोबाइल उसने ही चंद्रशेखर को दिए थे। मुंबई एटीएस ने जब 28 सितंबर 2008 को मालेगांव में हुए बमकांड में आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह व अन्य को गिरफ्तार किया तथा संदीप डांगे व रामजी कलसागरा की तलाश की जाने लगी तो संदीप और रामजी भूमिगत हो गए। एटीएस ने काफी तलाश भी की मगर कोई हाथ नहीं लगा। इसी दौरान एटीएस को पता चला कि चारों मोबाइल संदीप एक अटैची में रखकर चंद्रशेखर को दे गया था। चंद्रशेखर ने मोबाइल निकालकर अटैची नष्ट कर दी। एक फोन उसने रख लिया और बाकी तीन रिश्तेदारों को दे दिए, जिससे यह मामला पूरी तरह खुल गया।
बोली एटीएस: आरएसएस दफ्तर में बनी योजना
एटीएस ने चार्जशीट में बताया है कि देवेंद्र गुप्ता जब जामताड़ा में आरएसएस के प्रचारक के पद पर था तभी वह संदिग्ध गतिविधियों में शामिल हो गया था। एटीएस के मुताबिक दरगाह समेत देश के अन्य स्थानों पर विस्फोट की योजना जामताड़ा स्थित आरएएस के कार्यालय में बनाई गई थी। लोकेश शर्मा, सुनील जोशी के साथ आया था और गुप्ता ने बैठक में हिस्सा लिया था। बमों को तैयार करने के लिए विस्फोटकों की व्यवस्था लोकेश शर्मा ने सुनील जोशी के साथ मिलकर की थी। एटीएस की मानें तो, लोकेश ने भी जुर्म कबूल कर माना है कि वह बमकांड में शामिल था।
उसने रामजी कलसागरा के इंदौर स्थित मकान पर पहुंचकर वहां बम विस्फोट की योजनाएं बनाने व बमों के निर्माण स्थल के बारे में जानकारी दी। लोकेश ने एटीएस को बताया कि दरगाह और मक्का मस्जिद में किए गए ब्लास्ट में टाइमर के रूप में प्रयुक्त मोबाइल फोन उसने फरीदाबाद में इशांत चावला नामक व्यक्ति से खरीदे थे। जिसने बाद में लोकेश शर्मा की शिनाख्त भी की थी। यह भी खुलासा किया कि दरगाह विस्फोट में प्रयुक्त विस्फोटक सुनील जोशी और लोकेश शर्मा ने विनय पांडे के पिता कृष्णदत्त पांडे की देपालपुर रेशम केंद्र स्थित गौशाला से प्राप्त किए थे। विस्फोटक सुनील जोशी के निर्देशानुसार रामप्रसाद कलोदा उर्फ रामजी निवासी गिरोड़ा जिला इंदौर ने गौशाला में रखे थे, इस पर अभी भी जांच जारी है।
हिंदू धर्मस्थलों पर आतंकी हमलों की प्रतिक्रिया
एटीएस ने चार्जशीट में यह भी खुलासा किया है कि दरगाह में हुआ बमकांड एक समुदाय विशेष के लोगों द्वारा देश भर में हिंदुओं के धर्मस्थलों पर आतंकी हमलों और विस्फोटों की प्रतिक्रिया स्वरूप किया गया था। एटीएस के अनुसार वर्ष 2004 में उज्जैन में सिहंस्थ कुंभ का आयोजन किया गया था। कुंभ में गुजरात के डांग निवासी स्वामी असीमानंद के नेतृत्व में प्रज्ञा सिंह, सुनील जोशी, संदीप डांगे, रामजी कलसागरा, देवेंद्र गुप्ता, लोकेश शर्मा, शिवम धाकड़, समंदर वगैरह की गुप्त बैठक हुई थी।
इस बैठक में वर्ष 2001 में अमरनाथ यात्रा, वर्ष 2002 में अक्षरधाम मंदिर, रघुनाथ मंदिर और हिंदुओं के अन्य धार्मिक स्थलों पर समुदाय विशेष के आतंकियों द्वारा बम विस्फोट करने व क्षति पहुंचाने पर आक्रोश व्यक्त किया गया। बैठक में समुदाय विशेष के आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए विस्फोट का जवाब विस्फोट से देने के लिए योजना बनाई गई थी। विस्फोटों को अंजाम देने के लिए सुनील जोशी, संदीप डांगे, रामजी कलसागरा, प्रज्ञासिंह, लोकेश शर्मा, प्रसाद श्रीकांत पुरोहित, सुधाकर धर द्विवेदी उर्फ दयानंद पांडे उर्फ शंकराचार्य एवं समीर कुलकर्णी को असीमानंद द्वारा हर तरह का सहयोग व समर्थन दिया गया। यही नहीं दरगाह बमकांड के बाद असीमानंद ने ही सुनील जोशी व उसके साथियों को शरण दी थी।
देवेन्द्र ने एटीएस के सामने खोला राज
एटीएस की मानें तो, देवेंद्र गुप्ता ने जुर्म स्वीकार कर बताया है कि दरगाह में ब्लास्ट सुनील जोशी का काम है। उसने यह भी स्वीकार किया कि इस कांड में वह खुद और संदीप डांगे, रामजी कलसागरा तथा लोकेश शर्मा भी शामिल थे। गुप्ता ने यह भी बताया कि फर्जी आईडी के जरिये सिम खरीदे जाते थे जिनका उपयोग बम विस्फोट में किया गया।
डांगे और रामचंद्र हैं मक्का ब्लास्ट के अभियुक्त
दरगाह बम धमाके से जुड़े फरार संदिग्धों में से इंदौर निवासी संदीप डांगे उर्फ परमानंद और रामचंद्र कलसागरा उर्फ रामजी उर्फ विष्णु पटेल के सीबीआई ने फोटो जारी कर उन पर दस-दस लाख रुपए के इनाम की घोषणा की थी। दोनों मक्का मस्जिद ब्लास्ट में नामजद अभियुक्त हैं।
पूछताछ में खुला राज
सीबीआई के मुताबिक मक्का मस्जिद में 18 मई 2007 को बम ब्लास्ट हुआ था। यह मामला 9 जून 2007 को सीबीआई को सौंपा गया। जांच के दौरान अजमेर दरगाह बम धमाके के आरोपी देवेंद्र गुप्ता और लोकेश शर्मा का नाम उजागर हुआ। सीबीआई दोनों को प्रोडक्शन वारंट पर गिरफ्तार कर हैदराबाद ले गई। इनमें से एक आरोपी सीबीआई की हिरासत में है जबकि दूसरे को जेल भेजा जा चुका है। दरगाह बम ब्लास्ट के दोनों आरोपियों से हुई पूछताछ में संदीप डांगे और रामचंद्र कलसागरा के नाम उजागर हुए थे। दरगाह बम कांड के दोनों संदिग्धों को मक्का मजिस्द ब्लास्ट में सीबीआई ने अभियुक्त बनाया है।
इनके खिलाफ पेश हुई चार्जशीट
1- देवेंद्र गुप्ता (36) उर्फ बॉबी उर्फ रमेश पुत्र श्री सत्यनारायण गुप्ता निवासी बिहारीगंज पहली गली, अजमेर राजस्थान। देवेंद्र को एटीएस ने आरएसएस का विभाग प्रचारक बताया है।
2- चंद्रशेखर लेवे (37) पुत्र लक्ष्मीनारायण लेवे, निवासी छापरी, थाना कालापीपल, जिला शाजापुर मध्यप्रदेश। खेतीबाड़ी से जुड़े चंद्रशेखर को आरएसएस का जिला संपर्क प्रमुख बताया है।
3- लोकेश शर्मा (32) उर्फ कालू उर्फ अजय उर्फ अभय पुत्र गोपाल शर्मा, निवासी 180 सांघी स्ट्रीट, महू जिला इंदौर, मध्यप्रदेश। लोकेश का कारोबार प्रोपर्टी डीलिंग बताया गया है। यह भी आरएसएस का कार्यकर्ता है।