Friday, November 12, 2010

अजमेर चार्जशीट और संघी उछल-कूद

सीताराम येचुरी

बढ़ते पैमाने पर इसके साक्ष्य सामने आ रहे हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर एस एस) से जुड़े लोगों का आतंकवादी हमलों में हाथ रहा है। इन हालात में आर एस एस इस पुराने सूत्र पर चल रहा लगता है कि हमला ही सबसे अच्छा बचाव है। उसने 10 नवंबर को देशव्यापी विरोध कार्रवाइयों का आह्वान किया है। इन कार्रवाइयों में संघ के शीर्ष नेताओं के शामिल होने की बात कही जा रही है। बहरहाल, इसकी चर्चा हम जरा बाद में करेंगे।


मीडिया की रिपोर्टें बताती हैं कि 11 अक्टूबर 2007 को अजमेर शरीफ दरगाह में जो आतंकवादी बम विस्फोट हुआ था, उसके लिए जिम्मेदार लोगों में इंद्रेश कुमार अकेले ही नहीं हैं जो आर एस एस से जुड़े हुए हैं। वास्तव में इंद्रेश कुमार का नाम इस मामले में दायर की गयी चार्जशीट में तो आया है, लेकिन उन्हें अभियुक्त नहीं बनाया गया है। दूसरी ओर, राजस्थान आतंक-निरोधक दस्ते (ए टी एस) ने 22 अक्टूबर 2010 को जो चार्जशीट दायर की है उसमें जो पांच अभियुक्त नामजद किए गए हैं उनमें पूरे चार आर एस एस से जुड़े बताए जाते हैं। इनके अलावा एक छठा नाम और है, जिस इस षडयंत्र में केंद्रीय भूमिका के बावजूद, इस बीच मारे जाने के चलते अभियुक्त नहीं बनाया जा सका है। यह शख्श भी आर एस एस से ही जुड़ा हुआ था।

8 सितंबर 2008 के मालेगांव के आतंकवादी बम विस्फोट के कुछ ही सप्ताह बाद, महाराष्ट्र ए टी एस ने इस कांड के सिलसिले में एक साध्वी तथा एक सेवारत सैन्य अधिकारी समेत, ग्यारह लोगों को आरोपित किया था। हाल के दौर में यह पहला ही मौका था जब राष्ट्रविरोधी आतंकवादी गतिविधियों के लिए दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी संगठनों के इतने सारे लोगों को पकड़ा गया था। उसके बाद से अजमेर बमकांड की सी बी आइ तथा राजस्थान ए टी एस की जांच के आधार पर ही मौजूदा चार्जशीट दायर की गयी है। जांच के क्रम में अजमेर बम विस्फोट के सूत्र, 18 मई 2007 को हैदराबाद में मक्का मस्जिद में हुए आतंकवादी बम विस्फोट से भी जुड़ते नजर आए हैं। संदेह यह भी है कि इन आतंकवादी हमलों के सूत्र दिल्ली-लाहौर समझौता एक्सप्रैस में 18 फरवरी 2007 को हुए बम विस्फोट तक भी फैले हो सकते हैं।

उक्त मालेगांव बम विस्फोट के कुछ ही अर्सा बाद, 13 अक्टूबर 2008 को हुई राष्टï्रीय एकता परिषद की बैठक में अपने हस्तक्षेप में सी पी आइ (एम) ने सरकार का ध्यान इस तथ्य की ओर खींचा था कि, ''पिछले कुछ वर्षों में पुलिस की जांच में देश के विभिन्न हिस्सों में हुए बम विस्फोटों में बजरंग दल या आर एस एस के अन्य संगठनों की संलिप्तता दर्ज की गयी है--2003 में महाराष्ट्र में परभणी, जालना तथा जलगांव जिलों में; 2005 में उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में; 2006 में नांदेड़ में; 2008 की जनवरी में तिरुनेलवेली में तिनकाशी में आर एस एस के कार्यालय में बम विस्फोट में; 2008 के अगस्त में कानपुर में, आदि आदि।'' सी पी आइ (एम) ने सरकार से आग्रह किया था कि इन सभी घटनाओं की पूरी जांच करायी जाए और दोषियों को पकड़ा जाए।

मालेगांव बमकांड के सिलसिले में गिरफ्तारियां होने पर शुरू में आर एस एस ने अपनी जानी-पहचानी शैली में गिरफ्तार होने वालों से कोई भी संबंध होने से ही इंकार कर दिया था। आर एस एस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख, एम जी वैद्य ने उस समय मीडिया से कहा था: ''हो सकता है कि उन्होंने संघ की विचारधारा से प्रेरणा हासिल की हो, लेकिन वे संघ के सक्रिय सदस्य नहीं थे।" वैसे संघ के पकड़े जाने पर अपने लोगों से इस तरह पल्ला झाडऩे में नया कुछ नहीं है। महात्मा गांधी की हत्या के बाद, नाथूराम गोडसे के संबंध में भी तो उसने ठीक यही कहा था। यह दूसरी बात है कि गोडसे के भाई ने बाद में बाकायदा मीडिया के सामने एक सार्वजनिक बयान देकर यह दर्ज कराया था कि सारे के सारे गोडसे भाई आर एस एस के सदस्य थे। उस समय भी कुछ और लोग भी यह कहते थे कि हिंदू तत्ववाद के हाशिए के कुछ तत्व ही हैं जो, हिंदुत्व के मूल मुद्दों पर समझौता करने की राजनीतिक कार्यनीति से विक्षुब्ध होकर, इस तरह की आतंकवादी हरकतों का सहारा ले रहे हैं। उन्हीं के सुर में सुर मिलाकर आर एस एस के कुछ अन्य नेता भी मीडिया के सामने यह मानने के लिए तो तैयार हो गए हैं कि हो सकता है कि कुछ 'पथभ्रष्ट्र तत्व' हिंसा व आतंक के रास्ते पर चल पड़े हों। फिर भी वे इसका आग्रह करते हैं कि उनके पूरे संगठन को ऐसे तत्वों के रंग में रंगकर नहीं देखा जा सकता है। यह भी महात्मा गांधी की हत्या के मुकद्दमे के समय आर एस एस द्वारा अपनाए गए रुख की पुनरावृत्ति को ही दिखाता है। इसी तरह की दलील के सहारे आर एस एस ने उस समय यह मुद्रा अपनायी थी कि, ''आतंकवाद से सख्ती से निपटा जाना चाहिए।"

बहहरहाल, अब जबकि अजमेर विस्फोट के मामले में चार्जशीट तैयार कर पेश की जा चुकी है और आतंकी हमलों के साथ संघ से जुड़े लोगों के रिश्ते अच्छी तरह उजागर किए जा चुके हैं, आर एस एस ने सुर बदलकर इन आतंकवादी गतिविधियों के साथ अपने लोगों के जोड़े जाने के खिलाफ देशव्यापी विरोध कार्रवाइयों का आह्वान कर दिया है। 31 अक्टूबर को महाराष्ट्र में जलगांव में आर एस एस के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की जो तीन दिवसीय बैठक संपन्न हुई उसी में इन कार्रवाइयों का आह्वान किया गया है। आर एस एस के सरसंघचालक लखनऊ में इस कार्रवाई में हिस्सा लेंगे और महासचिव, हैदराबाद में। संघ के महासचिव ने धमकी के स्वर में इसी सिलसिले में यह भी कहा था कि आर एस एस के इस तरह आतंकवाद के साथ जोड़े जाने पर ''हिंदू समुदाय नाराज" है और ''राष्ट्रवादी" आर एस एस को बदनाम करने की कोई भी कोशिश बर्दाश्त नहीं की जाएगी! साफ है कि इन विरोध कार्रवाइयों का मकसद यही है कि सरकारों तथा जांच एजेंसियों पर इसके लिए दबाव डाला जाए कि जांच के अपने कदम आगे नहीं बढ़ाएं।

हमने बार-बार यह कहा है और एक बार फिर कहते हैं कि आतंकवाद शुद्घ रूप से राष्ट्रविरोधी होता है और इसलिए देश को उसे जरा भी बर्दाश्त नहीं करना चाहिए। आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता है। आतंकवाद के सभी रंग एक-दूसरे के लिए खाद-पानी जुटाने का ही काम करते हैं और इस तरह एक-दूसरे को मजबूत करते हैं तथा देश की एकता व अखंडता को कमजोर करने का ही काम करते हैं। इसलिए, देश के हित में यह बहुत ही जरूरी है कि मौजूदा छान-बीन को बिना किसी रोक-टोक के आगे बढ़ाया जाए और इस क्रम में जो भी व्यक्ति और संगठन दोषी पाए जाते हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए।

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