Saturday, November 27, 2010

खाओ पीओ, गौरव बढ़ाओ

रवीन्द्र जैन

भोपाल। पांव पांव वाले भैया के मुख्यमंत्री बने पांच साल पूरे हो गए हैं। एक छोटे से गांव से उठकर मप्र की राजनीति के शीर्ष तक पंहुचने और राज्य में गैर कांग्रेस मुख्यमंत्री के रुप में पांच साल पूरे करने पर शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल में गौरव दिवस मनाने के बहाने बहाने अपने कार्यकर्ताओं के खाने पीने के बेहतर इंतजाम किए हैं। भोपाल के जम्बूरी मैदान में कई क्विंटल बालूशाही और नुकती तैयार है। अब इंतजार 29 नवम्बर को कार्यकर्ताओं के भोपाल आने का है।
 
 
                        बालूशाही : आ गया न मुंह में पानी




नुकती : यह पीला पहाड़ बेसन की नुकती का है, जिसके लड्डू बनने हैं।


झंड़ा उंचा रहे हमारा : जम्बूरी मैदान पर झंड़ा वंदन करते पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी

Thursday, November 25, 2010

सीबीआई के शिकंजे में प्रदीप बैजल


रवीन्द्र जैन

भोपाल। सीबीआई पिछले दो तीन दिन से देश के सबसे बड़े घोटाले 2जी स्पेक्ट्रम के सिलसिले में मप्र केडर के सेवानिवृत आईएएस अधिकारी प्रदीप बैजल से पूछताछ कर रही है। बैजल 1966 बैच के आईएएस अधिकारी थे और वे प्रतिनियुक्ति पर देरसंचार विभाग के सचिव के अलावा ट्राई के सचिव रह चुके हैं। लेकिन वे वर्तमान में इस घोटाले से जुडी देश की स बसे बड़ी दलाल नीरा राडिया की कंपनी नोएसिस के निदेशक हैं। यह कंपनी दूरसंचार कंपनियों को सलाह देने का काम करती है।

दिल्ली से आ रहीं खबरों के अनुसार सीबीआई ने नीरा राडिया पर सीधे शिकंजा कंसने के पहले उनकी कंपनी के निदेशक एवं मप्र केडर के आईएएस अधिकारी प्रदीप बैजल पर शिंकजा कंस दिया है। बताते हैं कि प्रदीप बैजल ने 2जी स्पेक्ट्रम का लायसंस पाने वाली कंपनी को सलाह दी थी। सीबीआई 2जी स्पेक्ट्रम के नाम पर हुए लगभग पौने दो लाख करोड़ के घोटाले की जांच कर रही है। वह यह पता लगाने का प्रयास कर रही है कि इस घोटो में नीरा राडिया व प्रदीप बैजल की कितनी भूमिका रही है? सीबीआई द्वारा प्रदीप बैजल से की जा रही पूछताछ मप्र के प्रशासनिक हलकों में चर्चा का विषय बनी हुई है, क्योंकि बैजल ने मप्र में लंबा समय व्यतीत किया है। मंत्रालय में यह भी चर्चा है कि सेवानिवृत्ति के बाद भी नौकरी का लालच बैजल को भारी पड़ सकता है।
मुनिश्री पुलकसागर जी महाराज पुष्पगिरी तीर्थ पहुंचे






जैनमुनि श्री पुलक सागर जी महाराज इंदौक्र से पद विहार करके 25 नवम्बर को देवास जिले के जैन तीर्थग् पुष्पगिरी पहुंचे जहां उनके गुरू आचार्यश्री पुष्पदंत सागर जी महाराज ने उन्हें गले लगाकर उनकी अगवानी की। पुष्पगिरी तीर्थ पर जनवरी 2011 में पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन किया गया है। मुनिश्री इस दौरान वहीं रहेंगे।

Wednesday, November 24, 2010

नीरा राडिया की नाक पर जांच एजंसियों की नकेल



2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच के सिलसिले में जांच एजेंसियों ने नीरा राडिया के खिलाफ शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। एक ओर जहां प्रवर्तन निदेशालय [ईडी] ने राडिया को नए सिरे से नोटिस जारी कर पूछताछ के लिए बुलाया है। नीरा राडिया से प्रवर्तन निदेशालय बुधवार को पूछताछ करेगा.



वहीं सीबीआइ ने सीधे राडिया पर हाथ डालने के बजाय उनके निकट सहयोगी प्रदीप बैजल से पूछताछ की है। दूरसंचार विभाग के सचिव और ट्राइ के अध्यक्ष रह चुके बैजल फिलहाल दूरसंचार कंपनियों को सलाह देने वाली राडिया की कंपनी नोएसिस में निदेशक हैं। राडिया की इसी कंपनी ने 2 जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस पाने वाली कंपनियों को सलाह दी थी।



सीबीआइ के प्रेस सूचना अधिकारी आरके गौड़ ने हालांकि बैजल से पूछताछ की पुष्टि या इसका खंडन करने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि जांच से संबंधित कोई भी जानकारी मीडिया को नहीं दी जा सकती। लेकिन मामले की जांच से जुड़े सीबीआइ के उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो सोमवार को सीबीआइ मुख्यालय में बैजल से लंबी पूछताछ की गई है। उन्होंने कहा कि बैजल से मुख्य तौर पर 2 जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस पाने वाली कंपनियों के साथ राडिया के रिश्तों और लाइसेंस आवंटन में तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा की भूमिका के बारे में पूछा गया। इसके साथ ही बैजल से इस घोटाले में दूरसंचार विभाग के अन्य आला अधिकारियों की भूमिका के बारे में भी पूछताछ की गई। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सीबीआइ जिन चार पूर्व नौकरशाहों की भूमिका संदिग्ध मान रही है, उनमें बैजल भी शामिल हैं।



सीबीआइ ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वह 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में नीरा राडिया की भूमिका की जांच कर रही है। इस सिलसिले में वह राडिया की राजा समेत तमाम लोगों के साथ हुई 5851 बार बातचीत के टेपों की जांच कर रही है। राडिया की इस बातचीत को आयकर विभाग ने गृह मंत्रालय की मंजूरी से टैप किया था। सीबीआइ ने यह भी स्वीकार किया है कि इन बातचीत में से कुछ 2 जी स्पेक्ट्रम के आवंटन से संबंधित हैं और उनकी जांच की जा रही है। सीबीआइ अब तक इनमें से करीब 3500 की जांच कर चुकी है। सीबीआइ ने सुप्रीम कोर्ट को यह भी भरोसा दिया था कि उचित समय आने पर राडिया से भी पूछताछ की जाएगी। (नीलू रंजन)

Thursday, November 18, 2010

पांच करोड़ का गौरव दिवस



सम्मान समारोह पर आयकर की वक्रदृष्टि

प्रदीप जायसवाल

भोपाल। भाजपा का 29 नवंबर को राजधानी के जंबूरी मैदान पर आयोजित किया जाने वाला कार्यकर्ता गौरव दिवस कम से कम पांच करोड़ रूपए का होगा।

सूत्रों के अनुसार इस आयोजन पर इतनी बड़ी रकम खर्च होने की भनक लगते ही आयकर विभाग चौकन्ना हो गया है। ऐसे में स्वाभाविक तौर पर उसकी इस सम्मेलन पर वक्रदृष्टिï है। खासतौर पर मालवांचल के उस बड़े कैटर्स पर निगाहें जमी हुई है, जिसने करीब 250 रूपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से लगभग डेढ़ लाख लोगों के नाश्ते और खाने का कांट्रेक्ट लिया है। भाजपा गैरकांग्रेसी सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान के पांच साल पूरे करने पर जो भव्य आयोजन पूरे जोश-खरोश से करने जा रही है, उसमें कार्यकर्ताओं की यह संख्या और भी बढ़ सकती है। इस लिहाज से नाश्ते और खाने पर ही तकरीबन पौने चार करोड़ रूपए खर्च होने का अनुमान है। इसके अलावा टेंट, लाउडस्पीकर, वाहनों एवं अन्य जरूरी संसाधनों पर सवा करोड़ रूपए से ज्यादा की राशि खर्च होगी।

पहली दफा बफे में लजीज व्यंजन

भाजपा पहली दफा कार्यकर्ताओं को उनके सम्मान में बफे सिस्टम के जरिए लजीज व्यंजन परोसेगी। इसका इंतजाम 8 लाख वर्गफीट के पांडाल में किया जा रहा है। फिलहाल इसके मीनू को अंतिम रूप दिया जा रहा है। भोजन व्यवस्था की कमान भोपाल नगर निगम के पूर्व अध्यक्ष रामदयाल प्रजापति को सौंपी गई है।

कद्दावर मंत्री ने दी खाने की रकम

अंदर की कहानी यह है कि भोजन व्यवस्था का जिम्मा एक बड़े मंत्री ने खुद लेते हुए उसकी बड़ी रकम की अदायगी भी कर दी है। इसी तरह अन्य कुछ मंत्री भी अपनी गाढ़ी कमाई का हिस्सा देने को तत्पर हैं। इधर निगम-मण्डलों के अध्यक्षों पर भी व्यवस्थाओं की महती जिम्मेदारी है। वे यथाशक्ति पार्टी के इस महायज्ञ में 'होमÓ करने को तैयार हैं।

तू डाल-डाल तो मैं पात-पात

सूत्र बताते हैं कि अंदरूनी तौर पर भाजपा और आयकर विभाग के बीच गौरव दिवस को लेकर आंखमिचौनी का खेल चल रहा है। यानी तू डाल-डाल तो मैं पात-पात। भाजपा ने भी आयकर के मंसूबों को भांप लिया है, इसलिए उसने इतने बड़े आयोजन में पहली बार 10 रूपए पंजीयन शुल्क रख दिया है। यह बात दीगर है कि कितने कार्यकर्ता 10 रूपए की पर्ची कटवाएंगे और कितने नि:शुल्क ही अपना सम्मान करा लेंगे। इस लिहाज से देखा जाए तो भाजपा 15 से 20 लाख रूपए का हिसाब तो आसानी से दे देगी, लेकिन बाकी खर्चे का गुणा-भाग क्या होगा, इस रणनीति का कोई खुलासा करने को तैयार नहीं है।

पार्टी के पास चंदे का फण्डा

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता की मानें तो यहां अस्थायी हाट-बाजार भी लगाया जाएगा, जिसका कोई शुल्क नहीं होगा। इस समारोह के लिए जहां एक स्थायी कार्यालय का निर्माण किया गया है, वहीं पांच हजार कार्यकर्ता पिछले दो महीने से अपने संसाधनों से आयोजन की तैयारियों में जुटे हुए हैं। इस नेता का दावा है कि भाजपा के लिए यह कोई पहला बड़ा आयोजन नहीं है और इससे पहले भी वह पांच-पांच लाख कार्यकर्ताओं का कार्यक्रम किया जा चुका है। रही बात राशि की तो पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता हर साल एक हजार से लेकर दस हजार रूपए तक चंदा देते हैं, जो सालाना तीन करोड़ रूपए से भी अधिक है।

इनका कहना है

इस आयोजन पर पार्टी को कोई खर्च नहीं आना है। यही एकमात्र ऐसा दल है जिसके समर्पित कार्यकर्ता खुद तन-मन-धन से कार्य करते हैं। पार्टी को अपने गाढ़े पसीने का पैसा देने वाले कार्यकर्ता ही चला रहे हैं।

- रामेश्वर शर्मा, भाजपा प्रदेश मंत्री
जू की जमीन पर मॉल की तैयारी



'' ग्वालियर का चिडिय़ाघर शहर से खत्म कर मेयर के परिवार समेत शहर के दिग्गज भाजपा नेता मिलकर बेशकीमती जमीन पर मॉल बनाने की तैयारी में, जू की कई एकड़ जमीन का लैंडयूज ग्रीन बेल्ट से बदलकर कमर्शियल किए जाने का प्रस्ताव राज्य शासन को भेजा।

चिडिय़ाघर के बारे में

चिडिय़ाघर की स्थापना::: 1920-21

कितनी जमीन पर बना ::: 08 एकड़ से अधिक

कितने वन्य प्राणी ::: 05 सौ करीब

पिछले वर्ष हुई आय ::: 18 लाख 75 हजार 104 रुपए

इस वर्ष हुई आय ::: 21 लाख 99 हजार 8 सौ रुपए




कौशल मुदगल

ग्वालियर । सिंधिया रियासतकाल में बने ग्वालियर के गांधी वन्य प्राणी उद्यान (चिडिय़ाघर) की बेशकीमती जमीन पर अब कॉलोनाइजरों की नजरें गढ़ चुकी हैं और कॉलोनाइजरों के हाथों इस जमीन को खुद-बुर्द कराने के लिए शहर की मेयर समीक्षा गुप्ता व नगर निगम अधिकारी भी कदम ताल मिला रहे हैं। यही कारण हैं कि मेयर हाउस के इशारे पर चिडिय़ाघर की आठ एकड़ से अधिक जमीन का लैंडयूज (भूमि उपयोग) को ग्रीन बेल्ट से बदलकर कमर्शियल कराने का प्रस्ताव राज्य शासन के पास भेजा गया है। ऐसा होने के बाद इस जमीन पर विशाल मॉल बनाने की तैयारी की जा रही है जिसमें मेयर हाउस की व्यवसायिक पार्टनरशिप रहेगी।

फूलबाग परिसर स्थित चिडिय़ाघर की जमीन ग्रीन बेल्ट में शामिल है और इसका उपयोग दूसरे कार्य के लिए नहीं किया जा सकता, लेकिन मेयर समीक्षा गुप्ता के इशारे पर नगर निगम प्रशासन ने लैंड यूज बदले जाने का प्रस्ताव सितंबर में राज्य शासन के पास भेज दिया गया है। सूत्रों के मुताबिक मेयर के परिजन जमीन की खरीद-फरोख्त एवं बिल्डिंग बनाने का कारोबार करते हैं और जमीन के कारोबार में उनके साथ काम करने वाला एक ऐसा ग्रुप है जिसकी छवि शहर में भू-माफियाओं के रूप में जानी जाती है। निगम के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार लैंडयूज के प्रस्ताव के पीछे का मकसद चिडिय़ाघर की जमीन पर मॉल बनाना है। क्योंकि चिडिय़ाघर की जमीन शहर के बेस्ट लोकेशन पर होने के कारण पहले से ही काफी कीमती एवं डिंमाडफुल थी, लेकिन अब इसके सामने निजी कमर्शियल मॉल बनने के बाद यहां की कीमतों में और भी वृद्धि हुई है। माना जा रहा है कि मेयर की रुचि के कारण शासन से जू की जमीन का लैंडयूज बदल जाएगा और दूसरे भाजपा नेता भी इसके लिए भोपाल में बैठकर लॉबिंग कर रहे हैं।

दूसरी जगह मांगी जमीन:-

जू को शहर की जमीन से हटाने के लिए नगर निगम ने कुलैथ के पास दुगुनावली में करीब 22 हेक्टेयर जमीन तलाशी है और इस जमीन को जू के लिए आरक्षित करने का आवेदन कलेक्टर को दिया गया है उक्त आवेदन भी प्रदेश शासन के पास लंबित है। यह जमीन शहर से करीब 15 किलोमीटर से अधिक दूरी पर है और वहां चिडिय़ाघर देखने कौन जाएगा? यह सवाल अभी से खड़ा होने लगा है।

भ्रष्टाचार की सीमा नहीं:-

एक तरफ जहां निगम प्रशासन जू को ग्वालियर की इस जमीन से दूसरी जगह शिफ्ट करने पर आमदा है वहीं दूसरी ओर जू के नाम पर भ्रष्टाचार नहीं रुक रहा। अभी जू का प्रवेश द्वार गुरुद्धारे के पास से है और सौंदर्यीकरण व पार्किंग जगह के अभाव का हवाला देते हुए निगम प्रशासन गोपाल मंदिर के पास बारादरी के सामने नए प्रवेश द्वार का निर्माण करा रहा है। जिसकी लागत 23 लाख रुपए से अधिक बताई जा रही है इसके अलावा ऐसे और भी कई काम है जो बिना आवश्यकता के कराए जा रहे हैं।



इनका कहना है:-

कोई खास कारण नहीं...

'' चिडिय़ाघर की जमीन का लैंडयूज ग्रीनबेल्ट से कमर्शियल कराए जाने का प्रस्ताव नगर निगम परिषद की बैठक में 29 अक्टूबर को पारित हुआ था और उसके बाद इस प्रस्ताव को स्वीकृति के लिए प्रदेश शासन के पास भेजा गया है। जो अभी लंबित है। लैंडयूज बदले जाने के पीछे कोई खास कारण नहीं है।

- सतीश बौहरे, जनकार्य प्रभारी नगर निगम ग्वालियर



हमें जानकारी नहीं....

'' इस बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है और न ऐसा कोई निर्णय हुआ है। यदि ऐसा किया जा रहा है तो गलत है।

- देवेंद्र सिंह तोमर, कांग्रेस पार्षद नगर निगम ग्वालियर



पहले भी ग्रीन बेल्ट पर डाका:-

नगर निगम के पास ग्रीन बेल्ट की जितनी जमीन हैं उनमें से अधिकांश का उपयोग दूसरे कार्यों में किया जा चुका है।

0 नगर निगम ने फूलबाग के ग्रीन बेल्ट की जमीन का उपयोग कमर्शियल करते हुए हाट बाजार बनने दिया। यह जमीन मानस भवन के पास स्थित है।

0 सिटी सेंटर स्थित शिवाजी पार्क के पास स्थित ग्रीन बेल्ट की जमीन एक संस्था
को दे दी गई जिस कारण पार्क का कार्य प्रभावित हुआ है।

Monday, November 15, 2010

सोनिया गाँधी को आप कितना जानते हैं?
(भाग-२)

सोनिया गाँधी भारत की प्रधानमंत्री बनने के योग्य हैं या नहीं, इस प्रश्न का "धर्मनिरपेक्षता", या "हिन्दू राष्ट्रवाद" या "भारत की बहुलवादी संस्कृति" से कोई लेना-देना नहीं है। इसका पूरी तरह से नाता इस बात से है कि उनका जन्म इटली में हुआ, लेकिन यही एक बात नहीं है, सबसे पहली बात तो यह कि देश के सबसे महत्वपूर्ण पद पर आसीन कराने के लिये कैसे उन पर भरोसा किया जाये। सन १९९८ में एक रैली में उन्होंने कहा था कि "अपनी आखिरी साँस तक मैं भारतीय हूँ", बहुत ही उच्च विचार है, लेकिन तथ्यों के आधार पर यह बेहद खोखला ठहरता है। अब चूँकि वे देश के एक खास परिवार से हैं और प्रधानमंत्री पद के लिये बेहद आतुर हैं (जी हाँ) तब वे एक सामाजिक व्यक्तित्व बन जाती हैं और उनके बारे में जानने का हक सभी को है (१४ मई २००४ तक वे प्रधानमंत्री बनने के लिये जी-तोड़ कोशिश करती रहीं, यहाँ तक कि एक बार तो पूर्ण समर्थन ना होने के बावजूद वे दावा पेश करने चल पडी़ थीं, लेकिन १४ मई २००४ को राष्ट्रपति कलाम साहब द्वारा कुछ "असुविधाजनक" प्रश्न पूछ लिये जाने के बाद यकायक १७ मई आते-आते उनमे वैराग्य भावना जागृत हो गई और वे खामख्वाह "त्याग" और "बलिदान" (?) की प्रतिमूर्ति बना दी गईं - कलाम साहब को दूसरा कार्यकाल न मिलने के पीछे यह एक बडी़ वजह है, ठीक वैसे ही जैसे सोनिया ने प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति इसलिये नहीं बनवाया, क्योंकि इंदिरा गाँधी की मृत्यु के बाद राजीव के प्रधानमंत्री बनने का उन्होंने विरोध किया था... और अब एक तरफ़ कठपुतली प्रधानमंत्री और जी-हुजूर राष्ट्रपति दूसरी तरफ़ होने के बाद अगले चुनावों के पश्चात सोनिया को प्रधानमंत्री बनने से कौन रोक सकता है?)बहरहाल... सोनिया गाँधी उर्फ़ माइनो भले ही आखिरी साँस तक भारतीय होने का दावा करती रहें, भारत की भोली-भाली (?) जनता को इन्दिरा स्टाइल में,सिर पर पल्ला ओढ़ कर "नामास्खार" आदि दो चार हिन्दी शब्द बोल लें, लेकिन यह सच्चाई है कि सन १९८४ तक उन्होंने इटली की नागरिकता और पासपोर्ट नहीं छोडा़ था (शायद कभी जरूरत पड़ जाये) । राजीव और सोनिया का विवाह हुआ था सन १९६८ में,भारत के नागरिकता कानूनों के मुताबिक (जो कानून भाजपा या कम्युनिस्टों ने नहीं बल्कि कांग्रेसियों ने ही सन १९५० में बनाये) सोनिया को पाँच वर्ष के भीतर भारत की नागरिकता ग्रहण कर लेना चाहिये था अर्थात सन १९७४ तक, लेकिन यह काम उन्होंने किया दस साल बाद...यह कोई नजरअंदाज कर दिये जाने वाली बात नहीं है। इन पन्द्रह वर्षों में दो मौके ऐसे आये जब सोनिया अपने आप को भारतीय(!)साबित कर सकती थीं। पहला मौका आया था सन १९७१ में जब पाकिस्तान से युद्ध हुआ (बांग्लादेश को तभी मुक्त करवाया गया था), उस वक्त आपातकालीन आदेशों के तहत इंडियन एयरलाइंस के सभी पायलटों की छुट्टियाँ रद्द कर दी गईं थीं, ताकि आवश्यकता पड़ने पर सेना को किसी भी तरह की रसद आदि पहुँचाई जा सके । सिर्फ़ एक पायलट को इससे छूट दी गई थी, जी हाँ राजीव गाँधी, जो उस वक्त भी एक पूर्णकालिक पायलट थे । जब सारे भारतीय पायलट अपनी मातृभूमि की सेवा में लगे थे तब सोनिया अपने पति और दोनों बच्चों के साथ इटली की सुरम्य वादियों में थीं, वे वहाँ से तभी लौटीं, जब जनरल नियाजी ने समर्पण के कागजों पर दस्तखत कर दिये। दूसरा मौका आया सन १९७७ में जब यह खबर आई कि इंदिरा गाँधी चुनाव हार गईं हैं और शायद जनता पार्टी सरकार उनको गिरफ़्तार करे और उन्हें परेशान करे। "माईनो" मैडम ने तत्काल अपना सामान बाँधा और अपने दोनों बच्चों सहित दिल्ली के चाणक्यपुरी स्थित इटालियन दूतावास में जा छिपीं। इंदिरा गाँधी, संजय गाँधी और एक और बहू मेनका के संयुक्त प्रयासों और मान-मनौव्वल के बाद वे घर वापस लौटीं। १९८४ में भी भारतीय नागरिकता ग्रहण करना उनकी मजबूरी इसलिये थी कि राजीव गाँधी के लिये यह बडी़ शर्म और असुविधा की स्थिति होती कि एक भारतीय प्रधानमंत्री की पत्नी इटली की नागरिक है ? भारत की नागरिकता लेने की दिनांक भारतीय जनता से बडी़ ही सफ़ाई से छिपाई गई। भारत का कानून अमेरिका, जर्मनी, फ़िनलैंड, थाईलैंड या सिंगापुर आदि देशों जैसा नहीं है जिसमें वहाँ पैदा हुआ व्यक्ति ही उच्च पदों पर बैठ सकता है। भारत के संविधान में यह प्रावधान इसलिये नहीं है कि इसे बनाने वाले "धर्मनिरपेक्ष नेताओं" ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि आजादी के साठ वर्ष के भीतर ही कोई विदेशी मूल का व्यक्ति प्रधानमंत्री पद का दावेदार बन जायेगा। लेकिन कलाम साहब ने आसानी से धोखा नहीं खाया और उनसे सवाल कर लिये (प्रतिभा ताई कितने सवाल कर पाती हैं यह देखना बाकी है)। संविधान के मुताबिक सोनिया प्रधानमंत्री पद की दावेदार बन सकती हैं, जैसे कि मैं या कोई और। लेकिन भारत के नागरिकता कानून के मुताबिक व्यक्ति तीन तरीकों से भारत का नागरिक हो सकता है, पहला जन्म से, दूसरा रजिस्ट्रेशन से, और तीसरा प्राकृतिक कारणों (भारतीय से विवाह के बाद पाँच वर्ष तक लगातार भारत में रहने पर) । इस प्रकार मैं और सोनिया गाँधी,दोनों भारतीय नागरिक हैं, लेकिन मैं जन्म से भारत का नागरिक हूँ और मुझसे यह कोई नहीं छीन सकता, जबकि सोनिया के मामले में उनका रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा सकता है। वे भले ही लाख दावा करें कि वे भारतीय बहू हैं, लेकिन उनका नागरिकता रजिस्ट्रेशन भारत के नागरिकता कानून की धारा १० के तहत तीन उपधाराओं के कारण रद्द किया जा सकता है (अ) उन्होंने नागरिकता का रजिस्ट्रेशन धोखाधडी़ या कोई तथ्य छुपाकर हासिल किया हो, (ब) वह नागरिक भारत के संविधान के प्रति बेईमान हो, या (स) रजिस्टर्ड नागरिक युद्धकाल के दौरान दुश्मन देश के साथ किसी भी प्रकार के सम्पर्क में रहा हो । (इन मुद्दों पर डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी काफ़ी काम कर चुके हैं और अपनी पुस्तक में उन्होंने इसका उल्लेख भी किया है, जो आप पायेंगे इन अनुवादों के "तीसरे भाग" में)। राष्ट्रपति कलाम साहब के दिमाग में एक और बात निश्चित ही चल रही होगी, वह यह कि इटली के कानूनों के मुताबिक वहाँ का कोई भी नागरिक दोहरी नागरिकता रख सकता है, भारत के कानून में ऐसा नहीं है, और अब तक यह बात सार्वजनिक नहीं हुई है कि सोनिया ने अपना इटली वाला पासपोर्ट और नागरिकता कब छोडी़ ? ऐसे में वह भारत की प्रधानमंत्री बनने के साथ-साथ इटली की भी प्रधानमंत्री बनने की दावेदार हो सकती हैं। अन्त में एक और मुद्दा, अमेरिका के संविधान के अनुसार सर्वोच्च पद पर आसीन होने वाले व्यक्ति को अंग्रेजी आना चाहिये, अमेरिका के प्रति वफ़ादार हो तथा अमेरिकी संविधान और शासन व्यवस्था का जानकार हो। भारत का संविधान भी लगभग मिलता-जुलता ही है, लेकिन सोनिया किसी भी भारतीय भाषा में निपुण नहीं हैं (अंग्रेजी में भी), उनकी भारत के प्रति वफ़ादारी भी मात्र बाईस-तेईस साल पुरानी ही है, और उन्हें भारतीय संविधान और इतिहास की कितनी जानकारी है यह तो सभी जानते हैं। जब कोई नया प्रधानमंत्री बनता है तो भारत सरकार का पत्र सूचना ब्यूरो (पीआईबी) उनका बायो-डाटा और अन्य जानकारियाँ एक पैम्फ़लेट में जारी करता है। आज तक उस पैम्फ़लेट को किसी ने भी ध्यान से नहीं पढा़, क्योंकि जो भी प्रधानमंत्री बना उसके बारे में जनता, प्रेस और यहाँ तक कि छुटभैये नेता तक नख-शिख जानते हैं। यदि (भगवान न करे) सोनिया प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुईं तो पीआईबी के उस विस्तृत पैम्फ़लेट को पढ़ना बेहद दिलचस्प होगा। आखिर भारतीयों को यह जानना ही होगा कि सोनिया का जन्म दरअसल कहाँ हुआ? उनके माता-पिता का नाम क्या है और उनका इतिहास क्या है? वे किस स्कूल में पढीं? किस भाषा में वे अपने को सहज पाती हैं? उनका मनपसन्द खाना कौन सा है? हिन्दी फ़िल्मों का कौन सा गायक उन्हें अच्छा लगता है? किस भारतीय कवि की कवितायें उन्हें लुभाती हैं? क्या भारत के प्रधानमंत्री के बारे में इतना भी नहीं जानना चाहिये!



(प्रस्तुत लेख सुश्री कंचन गुप्ता द्वारा दिनांक २३ अप्रैल १९९९ को रेडिफ़.कॉम पर लिखा गया है, बेहद मामूली फ़ेरबदल और कुछ भाषाई जरूरतों के मुताबिक इसे मैंने संकलित, संपादित और अनुवादित किया है। डॉ.सुब्रह्मण्यम स्वामी द्वारा लिखे गये कुछ लेखों का संकलन पूर्ण होते ही अनुवादों की इस कडी़ का तीसरा भाग पेश किया जायेगा।) मित्रों जनजागरण का यह महाअभियान जारी रहे, अंग्रेजी में लिखा हुआ अधिकतर आम लोगों ने नहीं पढा़ होगा इसलिये सभी का यह कर्तव्य बनता है कि महाजाल पर स्थित यह सामग्री हिन्दी पाठकों को भी सुलभ हो, इसलिये इस लेख की लिंक को अपने इष्टमित्रों तक अवश्य पहुँचायें, क्योंकि हो सकता है कि कल को हम एक विदेशी द्वारा शासित होने को अभिशप्त हो जायें !
सोनिया गाँधी को आप कितना जानते हैं ? (भाग-१)




जब इंटरनेट और ब्लॉग की दुनिया में आया तो सोनिया गाँधी के बारे में काफ़ी कुछ पढने को मिला । पहले तो मैंने भी इस पर विश्वास नहीं किया और इसे मात्र बकवास सोच कर खारिज कर दिया, लेकिन एक-दो नहीं कई साईटों पर कई लेखकों ने सोनिया के बारे में काफ़ी कुछ लिखा है जो कि अभी तक प्रिंट मीडिया में नहीं आया है (और भारत में इंटरनेट कितने और किस प्रकार के लोग उपयोग करते हैं, यह बताने की आवश्यकता नहीं है) । यह तमाम सामग्री हिन्दी में और विशेषकर "यूनिकोड" में भी पाठकों को सुलभ होनी चाहिये, यही सोचकर मैंने "नेहरू-गाँधी राजवंश" नामक पोस्ट लिखी थी जिस पर मुझे मिलीजुली प्रतिक्रिया मिली, कुछ ने इसकी तारीफ़ की, कुछ तटस्थ बने रहे और कुछ ने व्यक्तिगत मेल भेजकर गालियाँ भी दीं (मुंडे-मुंडे मतिर्भिन्नाः) । यह तो स्वाभाविक ही था, लेकिन सबसे आश्चर्यजनक बात यह रही कि कुछ विद्वानों ने मेरे लिखने को ही चुनौती दे डाली और अंग्रेजी से हिन्दी या मराठी से हिन्दी के अनुवाद को एक गैर-लेखकीय कर्म और "नॉन-क्रियेटिव" करार दिया । बहरहाल, कम से कम मैं तो अनुवाद को रचनात्मक कार्य मानता हूँ, और देश की एक प्रमुख हस्ती के बारे में लिखे हुए का हिन्दी पाठकों के लिये अनुवाद पेश करना एक कर्तव्य मानता हूँ (कम से कम मैं इतना तो ईमानदार हूँ ही, कि जहाँ से अनुवाद करूँ उसका उल्लेख, नाम उपलब्ध हो तो नाम और लिंक उपलब्ध हो तो लिंक देता हूँ) ।

पेश है "आप सोनिया गाँधी को कितना जानते हैं" की पहली कडी़, अंग्रेजी में इसके मूल लेखक हैं एस.गुरुमूर्ति और यह लेख दिनांक १७ अप्रैल २००४ को "द न्यू इंडियन एक्सप्रेस" में - अनमास्किंग सोनिया गाँधी- शीर्षक से प्रकाशित हुआ था ।

"अब भूमिका बाँधने की आवश्यकता नहीं है और समय भी नहीं है, हमें सीधे मुख्य मुद्दे पर आ जाना चाहिये । भारत की खुफ़िया एजेंसी "रॉ", जिसका गठन सन १९६८ में हुआ, ने विभिन्न देशों की गुप्तचर एजेंसियों जैसे अमेरिका की सीआईए, रूस की केजीबी, इसराईल की मोस्साद और फ़्रांस तथा जर्मनी में अपने पेशेगत संपर्क बढाये और एक नेटवर्क खडा़ किया । इन खुफ़िया एजेंसियों के अपने-अपने सूत्र थे और वे आतंकवाद, घुसपैठ और चीन के खतरे के बारे में सूचनायें आदान-प्रदान करने में सक्षम थीं । लेकिन "रॉ" ने इटली की खुफ़िया एजेंसियों से इस प्रकार का कोई सहयोग या गठजोड़ नहीं किया था, क्योंकि "रॉ" के वरिष्ठ जासूसों का मानना था कि इटालियन खुफ़िया एजेंसियाँ भरोसे के काबिल नहीं हैं और उनकी सूचनायें देने की क्षमता पर भी उन्हें संदेह था ।

सक्रिय राजनीति में राजीव गाँधी का प्रवेश हुआ १९८० में संजय की मौत के बाद । "रॉ" की नियमित "ब्रीफ़िंग" में राजीव गाँधी भी भाग लेने लगे थे ("ब्रीफ़िंग" कहते हैं उस संक्षिप्त बैठक को जिसमें रॉ या सीबीआई या पुलिस या कोई और सरकारी संस्था प्रधानमन्त्री या गृहमंत्री को अपनी रिपोर्ट देती है), जबकि राजीव गाँधी सरकार में किसी पद पर नहीं थे, तब वे सिर्फ़ काँग्रेस महासचिव थे । राजीव गाँधी चाहते थे कि अरुण नेहरू और अरुण सिंह भी रॉ की इन बैठकों में शामिल हों । रॉ के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने दबी जुबान में इस बात का विरोध किया था चूँकि राजीव गाँधी किसी अधिकृत पद पर नहीं थे, लेकिन इंदिरा गाँधी ने रॉ से उन्हें इसकी अनुमति देने को कह दिया था, फ़िर भी रॉ ने इंदिरा जी को स्पष्ट कर दिया था कि इन लोगों के नाम इस ब्रीफ़िंग के रिकॉर्ड में नहीं आएंगे । उन बैठकों के दौरान राजीव गाँधी सतत रॉ पर दबाव डालते रहते कि वे इटालियन खुफ़िया एजेंसियों से भी गठजोड़ करें, राजीव गाँधी ऐसा क्यों चाहते थे ? या क्या वे इतने अनुभवी थे कि उन्हें इटालियन एजेंसियों के महत्व का पता भी चल गया था ? ऐसा कुछ नहीं था, इसके पीछे एकमात्र कारण थी सोनिया गाँधी । राजीव गाँधी ने सोनिया से सन १९६८ में विवाह किया था, और हालांकि रॉ मानती थी कि इटली की एजेंसी से गठजोड़ सिवाय पैसे और समय की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है, राजीव लगातार दबाव बनाये रहे । अन्ततः दस वर्षों से भी अधिक समय के पश्चात रॉ ने इटली की खुफ़िया संस्था से गठजोड़ कर लिया । क्या आप जानते हैं कि रॉ और इटली के जासूसों की पहली आधिकारिक मीटिंग की व्यवस्था किसने की ? जी हाँ, सोनिया गाँधी ने । सीधी सी बात यह है कि वह इटली के जासूसों के निरन्तर सम्पर्क में थीं । एक मासूम गृहिणी, जो राजनैतिक और प्रशासनिक मामलों से अलिप्त हो और उसके इटालियन खुफ़िया एजेन्सियों के गहरे सम्बन्ध हों यह सोचने वाली बात है, वह भी तब जबकि उन्होंने भारत की नागरिकता नहीं ली थी (वह उन्होंने बहुत बाद में ली) । प्रधानमंत्री के घर में रहते हुए, जबकि राजीव खुद सरकार में नहीं थे । हो सकता है कि रॉ इसी कारण से इटली की खुफ़िया एजेंसी से गठजोड़ करने मे कतरा रहा हो, क्योंकि ऐसे किसी भी सहयोग के बाद उन जासूसों की पहुँच सिर्फ़ रॉ तक न रहकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक हो सकती थी ।

जब पंजाब में आतंकवाद चरम पर था तब सुरक्षा अधिकारियों ने इंदिरा गाँधी को बुलेटप्रूफ़ कार में चलने की सलाह दी, इंदिरा गाँधी ने अम्बेसेडर कारों को बुलेटप्रूफ़ बनवाने के लिये कहा, उस वक्त भारत में बुलेटप्रूफ़ कारें नहीं बनती थीं इसलिये एक जर्मन कम्पनी को कारों को बुलेटप्रूफ़ बनाने का ठेका दिया गया । जानना चाहते हैं उस ठेके का बिचौलिया कौन था, वाल्टर विंसी, सोनिया गाँधी की बहन अनुष्का का पति ! रॉ को हमेशा यह शक था कि उसे इसमें कमीशन मिला था, लेकिन कमीशन से भी गंभीर बात यह थी कि इतना महत्वपूर्ण सुरक्षा सम्बन्धी कार्य उसके मार्फ़त दिया गया । इटली का प्रभाव सोनिया दिल्ली तक लाने में कामयाब रही थीं, जबकि इंदिरा गाँधी जीवित थीं । दो साल बाद १९८६ में ये वही वाल्टर विंसी महाशय थे जिन्हें एसपीजी को इटालियन सुरक्षा एजेंसियों द्वारा प्रशिक्षण दिये जाने का ठेका मिला, और आश्चर्य की बात यह कि इस सौदे के लिये उन्होंने नगद भुगतान की मांग की और वह सरकारी तौर पर किया भी गया । यह नगद भुगतान पहले एक रॉ अधिकारी के हाथों जिनेवा (स्विटजरलैण्ड) पहुँचाया गया लेकिन वाल्टर विंसी ने जिनेवा में पैसा लेने से मना कर दिया और रॉ के अधिकारी से कहा कि वह ये पैसा मिलान (इटली) में चाहता है, विंसी ने उस अधिकारी को कहा कि वह स्विस और इटली के कस्टम से उन्हें आराम से निकलवा देगा और यह "कैश" चेक नहीं किया जायेगा । रॉ के उस अधिकारी ने उसकी बात नहीं मानी और अंततः वह भुगतान इटली में भारतीय दूतावास के जरिये किया गया । इस नगद भुगतान के बारे में तत्कालीन कैबिनेट सचिव बी.जी.देशमुख ने अपनी हालिया किताब में उल्लेख किया है, हालांकि वह तथाकथित ट्रेनिंग घोर असफ़ल रही और सारा पैसा लगभग व्यर्थ चला गया । इटली के जो सुरक्षा अधिकारी भारतीय एसपीजी कमांडो को प्रशिक्षण देने आये थे उनका रवैया जवानों के प्रति बेहद रूखा था, एक जवान को तो उस दौरान थप्पड़ भी मारा गया । रॉ अधिकारियों ने यह बात राजीव गाँधी को बताई और कहा कि इस व्यवहार से सुरक्षा बलों के मनोबल पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है और उनकी खुद की सुरक्षा व्यवस्था भी ऐसे में खतरे में पड़ सकती है, घबराये हुए राजीव ने तत्काल वह ट्रेनिंग रुकवा दी,लेकिन वह ट्रेनिंग का ठेका लेने वाले विंसी को तब तक भुगतान किया जा चुका था ।

राजीव गाँधी की हत्या के बाद तो सोनिया गाँधी पूरी तरह से इटालियन और पश्चिमी सुरक्षा अधिकारियों पर भरोसा करने लगीं, खासकर उस वक्त जब राहुल और प्रियंका यूरोप घूमने जाते थे । सन १९८५ में जब राजीव सपरिवार फ़्रांस गये थे तब रॉ का एक अधिकारी जो फ़्रेंच बोलना जानता था, उनके साथ भेजा गया था, ताकि फ़्रेंच सुरक्षा अधिकारियों से तालमेल बनाया जा सके । लियोन (फ़्रांस) में उस वक्त एसपीजी अधिकारियों में हड़कम्प मच गया जब पता चला कि राहुल और प्रियंका गुम हो गये हैं । भारतीय सुरक्षा अधिकारियों को विंसी ने बताया कि चिंता की कोई बात नहीं है, दोनों बच्चे जोस वाल्डेमारो के साथ हैं जो कि सोनिया की एक और बहन नादिया के पति हैं । विंसी ने उन्हें यह भी कहा कि वे वाल्डेमारो के साथ स्पेन चले जायेंगे जहाँ स्पेनिश अधिकारी उनकी सुरक्षा संभाल लेंगे । भारतीय सुरक्षा अधिकारी यह जानकर अचंभित रह गये कि न केवल स्पेनिश बल्कि इटालियन सुरक्षा अधिकारी उनके स्पेन जाने के कार्यक्रम के बारे में जानते थे । जाहिर है कि एक तो सोनिया गाँधी तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के अहसानों के तले दबना नहीं चाहती थीं, और वे भारतीय सुरक्षा एजेंसियों पर विश्वास नहीं करती थीं । इसका एक और सबूत इससे भी मिलता है कि एक बार सन १९८६ में जिनेवा स्थित रॉ के अधिकारी को वहाँ के पुलिस कमिश्नर जैक कुन्जी़ ने बताया कि जिनेवा से दो वीआईपी बच्चे इटली सुरक्षित पहुँच चुके हैं, खिसियाये हुए रॉ अधिकारी को तो इस बारे में कुछ मालूम ही नहीं था । जिनेवा का पुलिस कमिश्नर उस रॉ अधिकारी का मित्र था, लेकिन यह अलग से बताने की जरूरत नहीं थी कि वे वीआईपी बच्चे कौन थे । वे कार से वाल्टर विंसी के साथ जिनेवा आये थे और स्विस पुलिस तथा इटालियन अधिकारी निरन्तर सम्पर्क में थे जबकि रॉ अधिकारी को सिरे से कोई सूचना ही नहीं थी, है ना हास्यास्पद लेकिन चिंताजनक... उस स्विस पुलिस कमिश्नर ने ताना मारते हुए कहा कि "तुम्हारे प्रधानमंत्री की पत्नी तुम पर विश्वास नहीं करती और उनके बच्चों की सुरक्षा के लिये इटालियन एजेंसी से सहयोग करती है" । बुरी तरह से अपमानित रॉ के अधिकारी ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से इसकी शिकायत की, लेकिन कुछ नहीं हुआ । अंतरराष्ट्रीय खुफ़िया एजेंसियों के गुट में तेजी से यह बात फ़ैल गई थी कि सोनिया गाँधी भारतीय अधिकारियों, भारतीय सुरक्षा और भारतीय दूतावासों पर बिलकुल भरोसा नहीं करती हैं, और यह निश्चित ही भारत की छवि खराब करने वाली बात थी । राजीव की हत्या के बाद तो उनके विदेश प्रवास के बारे में विदेशी सुरक्षा एजेंसियाँ, एसपीजी से अधिक सूचनायें पा जाती थी और भारतीय पुलिस और रॉ उनका मुँह देखते रहते थे । (ओट्टावियो क्वात्रोची के बार-बार मक्खन की तरह हाथ से फ़िसल जाने का कारण समझ में आया ?) उनके निजी सचिव विंसेंट जॉर्ज सीधे पश्चिमी सुरक्षा अधिकारियों के सम्पर्क में रहते थे, रॉ अधिकारियों ने इसकी शिकायत नरसिम्हा राव से की थी, लेकिन जैसी की उनकी आदत (?) थी वे मौन साध कर बैठ गये ।

संक्षेप में तात्पर्य यह कि, जब एक गृहिणी होते हुए भी वे गंभीर सुरक्षा मामलों में अपने परिवार वालों को ठेका दिलवा सकती हैं, राजीव गाँधी और इंदिरा गाँधी के जीवित रहते रॉ को इटालियन जासूसों से सहयोग करने को कह सकती हैं, सत्ता में ना रहते हुए भी भारतीय सुरक्षा अधिकारियों पर अविश्वास दिखा सकती हैं, तो अब जबकि सारी सत्ता और ताकत उनके हाथों मे है, वे क्या-क्या कर सकती हैं, बल्कि क्या नहीं कर सकती । हालांकि "मैं भारत की बहू हूँ" और "मेरे खून की अंतिम बूँद भी भारत के काम आयेगी" आदि वे यदा-कदा बोलती रहती हैं, लेकिन यह असली सोनिया नहीं है । समूचा पश्चिमी जगत, जो कि जरूरी नहीं कि भारत का मित्र ही हो, उनके बारे में सब कुछ जानता है, लेकिन हम भारतीय लोग सोनिया के बारे में कितना जानते हैं ? (भारत भूमि पर जन्म लेने वाला व्यक्ति चाहे कितने ही वर्ष विदेश में रह ले, स्थाई तौर पर बस जाये लेकिन उसका दिल हमेशा भारत के लिये धड़कता है, और इटली में जन्म लेने वाले व्यक्ति का....)

(यदि आपको यह अनुवाद पसन्द आया हो तो कृपया अपने मित्रों को भी इस पोस्ट की लिंक प्रेषित करें, ताकि जनता को जागरूक बनाने का यह प्रयास जारी रहे)... समय मिलते ही इसकी अगली कडी़ शीघ्र ही पेश की जायेगी.... आमीन

Saturday, November 13, 2010

संत की शरण में सुदर्शन

जैनमुनि से बंधवाया रक्षासूत्र






रवीन्द्र जैन

इंदौर। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व सर संचालक केसी सुदर्शन शुक्रवार को इंदौर में अचानक जैन मुनि पुलकसागर जी की शरण में पहुंचे जहां उन्होंने मुनिश्री के हाथ से अपनी कलाई पर रक्षासूत्र बंधवाया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ बयान देने के बाद सुदर्शन आजकल चर्चाओं में हैं। वे पिछले दो दिन से इंदौर में ही हैं।

् इंदौर में सुरक्षा के कारण सुदर्शन के सभी कार्यक्रमों को गोपनीय रखा जा रहा है। सुदर्शन का काफिला दोपहर में अचानक मुनिश्री के पास पहुंचा, जहां सुदर्शन में मुनिश्री को बताया कि संघ ने उनकी प्रेरणा से चमड़े के जूते व बेल्ट की प्रथा समाप्त कर दी है। मुनिश्री ने संघ के प्रयास की प्रशंसा की। सुदर्शन ने मुनिश्री को बताया कि - गौमूत्र से लालटेन जलाने का प्रयोग सफल हो गया है। इसके अलावा कर्नाटक के मैसूर शहर में गोबर,भूसा एवं गोंद के मिश्रण से मात्र 70 रूपए में पटिया बनाया गया है। यह पटिया सस्ते व सुरक्षित मकान बनाने का काम आएगा। इन प्रयासों से गौपालन स्वयं ही गाय की रक्षा के लिए अग्रसर होंगे।

मुनिश्री से चर्चा में सोनिया गांधी वाले बयान पर तो चर्चा नहीं हुई, लेकिन मुनिश्री ने अपने हाथों स मंत्रोच्चारण के साथ लाल रंग का एक रक्षा सूत्र सुदर्शन की कलाई पर बांधा। बताते हैं कि यह रक्षा सूत्र सुदर्शन जी को हर प्रकार की बांध से बचाने के उद्देश्य से बंाध गया है।

Friday, November 12, 2010

सुदर्शन का (कु) दर्शन


 सलीम अख्तर सिद्दीक़ी

संघ के पूर्व सरसंघचालक (बीच में) जबसे आरएसएस के लोगों की आतंकवादी घटनाओं में संलिप्तता सामने आयी है, तब से आरएसएस के नेता बौखला गए हैं। इस बौखलाहट में ही शायद संघ के इतिहास में पहली बार हुआ है कि इसके स्वयंसेवक विरोध प्रदर्शन करने के लिए सड़कों पर उतरे। इसी बौखलाहट में आरएसएस के एक्स चीफ केएस सुदर्शन का मानसिक संतुलन बिगड़ गया और सोनिया गांधी के बारे में ऐसे शब्द बोल दिए, जिन्हें एक विकृत मानसिकता का आदमी ही बोल सकता है।

अब अगर कांग्रेस के कार्यकर्ता संघ कार्यालयों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं तो इसे गलत नहीं कहा जा सकता। सोनिया गांधी को इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या की साजिश में शामिल होने की बात कोई पागल ही कह सकता है। किसी को अवैध संतान बताने से बड़ी गाली कोई नहीं हो सकती। गलती केएस सुदर्शन की भी नहीं है। आरएसएस ने महात्मा गांधी की हत्या की। एक साजिश के तहत राममंदिर आंदोलन खड़ा करके देश के दो समुदायों के बची नफरत की दीवार खड़ी की। जो आदमी या संगठन दिन रात साजिशों में ही उलझा रहता हो, उसे दूसरे लोग भी ऐसे ही नजर आते हैं। कहते हैं कि 'चोरों को सब चोर नजर आते हैं।' आरएसएस की नीतियों की आलोचना की जाती है, लेकिन यह तो माना ही जाता रहा है कि आरएसएस के लोग अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं करते। सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करने के लिए उतरना और फिर राजनैतिक दलों की तरह अभद्र भाषा का प्रयोग करना इस बात का संकेत भी है कि शायद अब आरएसएस खुलकर राजनीति में आना चाहता है।

जब से आरएसएस नेता इन्द्रेश कुमार का नाम अजमेर ब्लास्ट में आया है, तब से आरएसएस बैकफुट पर आ गया है। इन्द्रेश कुमार के अलावा भी अनेक संघी कार्यकर्ता आतंकवादी घटनाओं में लिप्त पाए गए है। कानपुर और नांदेड़ आदि में मारे गए छोटे कार्यकर्ताओं के बारे में तो संघ ने यह कहकर पीछा छुड़ा लिया था कि उनका संघ से कोई नाता नहीं है, लेकिन इन्द्रेश कुमार के बारे में यह नहीं कह सकते कि उनका नाता संघ से नहीं है। तीन-चार साल पहले देश में आयी बम धमाकों की बाढ़ के पीछे कभी लश्कर-ए-तोएबा का तो कभी इंडियन मुजाहिदीन का तो पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का नाम लिया जाता रहा। इंडियन मुजाहिदीन का ओर-छोर भी आज तक खुफिया एजेंसियां पता नहीं लगा सकी है। मालेगांव, समझौता एक्सपेस, हैदराबाद की मक्का मस्जिद और अजमेर की दरगाह पर हुए विस्फोट और कानपुर, नांदेड़ आदि में संघ के कई कार्यकताओं के बम बनाते हुए विस्फोट में मारे जाने के बाद खुफिया एजेंसियों को शक हुआ था कि इंडियन मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तोयबा की आड़ में कोई और भी बम धमाके करने में लिप्त हो सकता है। तब कुछ लोगों ने भी आशंका जाहिर की थी कि कहीं कोई और ही तो नहीं बम धमाके कर रहा है।

उधर आरएसएस के कार्यकर्ता बम धमाके करते थे, इधर आरएसएस हिटलर के प्रचार मंत्री गोयबल्स की तर्ज पर इस्लामिक आतंकवाद का ऐसा हौआ खड़ा कर देता था कि सभी का ध्यान सिर्फ मुसलमानों पर ही केन्द्रित हो जाता था। आरएसएस ने सुनियोजित तरीके से इस्लामिक आतंकवाद का ऐसा मिथक घढ़ा कि सभी को यह लगना कि आतंकवाद के पीछे मुसलमान ही हैं। हद यहां तक हो गयी कि देश के हर मुसलमान को शक की नजरों से देखा जाने लगा । हर मुसलमान आतंकवादी का पर्याय समझा जाने लगा। भारत का मुसलमान बचाव की मुद्रा में था। उसे यह नहीं सूझ रहा था कि वह क्या करे ? यहां तक हुआ कि दारुल उलूम देवबंद को आतंकवाद के खिलाफ फतवा तक देना पड़ा। जब मुसलमानों की तरफ से यह कहा गया कि सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं तो इसके जवाब में आरएसएस ने यह कहना शुरु किया कि यह सही है कि हर मुसलमान आतंकवादी नहीं है, लेकिन हर आतंकवादी मुसलमान ही क्यों है ? अब यह भी तो कहा जा सकता है कि जिन बम धमाकों में हिन्दुओं की संलिप्तता सामने आयी है, वे सभी संघी क्यों हैं? कुछ लोग तो यह आशंका भी व्यक्त करते रहे हैं कि इंडियन मुजाहिदीन के नाम से हिन्दुवादी संगठन ही बम धमाके कर रहे थे। यह संयोग नहीं हो सकता कि जब से बम धमाकों के पीछे हिन्दुवादी संगठनों का हाथ सामने आया है, तब से बम धमाके नहीं हो रहे हैं।

बम धमाकों में संघियों के नाम आने के बाद वे इस बात पर बहुत जोर दे रहे हैं कि हिन्दुओं को बदनाम करने की साजिश की जा रही है। हिन्दु धर्म और कर्म से आतंकवादी हो ही नहीं सकता। हम इससे भी आगे की बात कहते हैं, दुनिया के सभी धर्मों के भी सभी लोग आतंकवादी नहीं हो सकते। हां, कुछ लोग जरुर गुमराह हो सकते हैं। यही बात हिन्दुओं पर भी लागू होती है। और मुसलमानों पर भी। कुछ लोगों की गलत हरकतों की वजह से न तो पूरा समुदाय जिम्मेदार हो सकता है और न ही धर्म। हिन्दुओं में भी कुछ लोग ऐसे हैं, जो आतंकवादी घटनाओं में लिप्त पाए गए हैं। इसलिए यह तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता कि हिन्दु धर्म और कर्म से आतंकवादी होते हैं। जब आरएसएस बम धमाकों के आरोपियों के पक्ष में बोलकर यह कहता है कि हिन्दुओं को बदनाम किया जा रहा है तो वह देश के तमाम हिन्दुओं को इमोशनल ब्लैकमेल करके उन्हें अपनी ओर लाना चाहता है।

आरएसएस इस बात को भी समझ ले कि वह इस देश के 85 प्रतिशत हिन्दुओं का अकेला प्रतिनिधि नहीं है। इस देश का बहुसंख्यक हिन्दु सैक्यूलर है। हिन्दुओं ने ही बम धमाकों में शामिल हिन्दुओं के चेहरे बेनकाब किए। हिन्दुओं ने ही गुजरात दंगों पर नरेन्द्र मोदी को कठघरे में खड़ा कर रखा है। हिन्दुओं ने ही बाबरी मस्जिद विध्वंस पर अफसोस और गुस्सा जताया था। ये हिन्दु ही हैं, जो आज केएस सुदर्शन के वाहियात बयान पर आरएसएस के कार्यालयों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन आरएसएस को इस बात का अफसोस रहता है कि इस देश के सभी हिन्दु साम्प्रदायिक क्यों नहीं हैं ? क्यों वे इस देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने की उसकी योजना में शामिल नहीं होते? क्यों वे आरएसएस की हां में हां नहीं मिलाते ?
अजमेर चार्जशीट और संघी उछल-कूद

सीताराम येचुरी

बढ़ते पैमाने पर इसके साक्ष्य सामने आ रहे हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर एस एस) से जुड़े लोगों का आतंकवादी हमलों में हाथ रहा है। इन हालात में आर एस एस इस पुराने सूत्र पर चल रहा लगता है कि हमला ही सबसे अच्छा बचाव है। उसने 10 नवंबर को देशव्यापी विरोध कार्रवाइयों का आह्वान किया है। इन कार्रवाइयों में संघ के शीर्ष नेताओं के शामिल होने की बात कही जा रही है। बहरहाल, इसकी चर्चा हम जरा बाद में करेंगे।


मीडिया की रिपोर्टें बताती हैं कि 11 अक्टूबर 2007 को अजमेर शरीफ दरगाह में जो आतंकवादी बम विस्फोट हुआ था, उसके लिए जिम्मेदार लोगों में इंद्रेश कुमार अकेले ही नहीं हैं जो आर एस एस से जुड़े हुए हैं। वास्तव में इंद्रेश कुमार का नाम इस मामले में दायर की गयी चार्जशीट में तो आया है, लेकिन उन्हें अभियुक्त नहीं बनाया गया है। दूसरी ओर, राजस्थान आतंक-निरोधक दस्ते (ए टी एस) ने 22 अक्टूबर 2010 को जो चार्जशीट दायर की है उसमें जो पांच अभियुक्त नामजद किए गए हैं उनमें पूरे चार आर एस एस से जुड़े बताए जाते हैं। इनके अलावा एक छठा नाम और है, जिस इस षडयंत्र में केंद्रीय भूमिका के बावजूद, इस बीच मारे जाने के चलते अभियुक्त नहीं बनाया जा सका है। यह शख्श भी आर एस एस से ही जुड़ा हुआ था।

8 सितंबर 2008 के मालेगांव के आतंकवादी बम विस्फोट के कुछ ही सप्ताह बाद, महाराष्ट्र ए टी एस ने इस कांड के सिलसिले में एक साध्वी तथा एक सेवारत सैन्य अधिकारी समेत, ग्यारह लोगों को आरोपित किया था। हाल के दौर में यह पहला ही मौका था जब राष्ट्रविरोधी आतंकवादी गतिविधियों के लिए दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी संगठनों के इतने सारे लोगों को पकड़ा गया था। उसके बाद से अजमेर बमकांड की सी बी आइ तथा राजस्थान ए टी एस की जांच के आधार पर ही मौजूदा चार्जशीट दायर की गयी है। जांच के क्रम में अजमेर बम विस्फोट के सूत्र, 18 मई 2007 को हैदराबाद में मक्का मस्जिद में हुए आतंकवादी बम विस्फोट से भी जुड़ते नजर आए हैं। संदेह यह भी है कि इन आतंकवादी हमलों के सूत्र दिल्ली-लाहौर समझौता एक्सप्रैस में 18 फरवरी 2007 को हुए बम विस्फोट तक भी फैले हो सकते हैं।

उक्त मालेगांव बम विस्फोट के कुछ ही अर्सा बाद, 13 अक्टूबर 2008 को हुई राष्टï्रीय एकता परिषद की बैठक में अपने हस्तक्षेप में सी पी आइ (एम) ने सरकार का ध्यान इस तथ्य की ओर खींचा था कि, ''पिछले कुछ वर्षों में पुलिस की जांच में देश के विभिन्न हिस्सों में हुए बम विस्फोटों में बजरंग दल या आर एस एस के अन्य संगठनों की संलिप्तता दर्ज की गयी है--2003 में महाराष्ट्र में परभणी, जालना तथा जलगांव जिलों में; 2005 में उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में; 2006 में नांदेड़ में; 2008 की जनवरी में तिरुनेलवेली में तिनकाशी में आर एस एस के कार्यालय में बम विस्फोट में; 2008 के अगस्त में कानपुर में, आदि आदि।'' सी पी आइ (एम) ने सरकार से आग्रह किया था कि इन सभी घटनाओं की पूरी जांच करायी जाए और दोषियों को पकड़ा जाए।

मालेगांव बमकांड के सिलसिले में गिरफ्तारियां होने पर शुरू में आर एस एस ने अपनी जानी-पहचानी शैली में गिरफ्तार होने वालों से कोई भी संबंध होने से ही इंकार कर दिया था। आर एस एस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख, एम जी वैद्य ने उस समय मीडिया से कहा था: ''हो सकता है कि उन्होंने संघ की विचारधारा से प्रेरणा हासिल की हो, लेकिन वे संघ के सक्रिय सदस्य नहीं थे।" वैसे संघ के पकड़े जाने पर अपने लोगों से इस तरह पल्ला झाडऩे में नया कुछ नहीं है। महात्मा गांधी की हत्या के बाद, नाथूराम गोडसे के संबंध में भी तो उसने ठीक यही कहा था। यह दूसरी बात है कि गोडसे के भाई ने बाद में बाकायदा मीडिया के सामने एक सार्वजनिक बयान देकर यह दर्ज कराया था कि सारे के सारे गोडसे भाई आर एस एस के सदस्य थे। उस समय भी कुछ और लोग भी यह कहते थे कि हिंदू तत्ववाद के हाशिए के कुछ तत्व ही हैं जो, हिंदुत्व के मूल मुद्दों पर समझौता करने की राजनीतिक कार्यनीति से विक्षुब्ध होकर, इस तरह की आतंकवादी हरकतों का सहारा ले रहे हैं। उन्हीं के सुर में सुर मिलाकर आर एस एस के कुछ अन्य नेता भी मीडिया के सामने यह मानने के लिए तो तैयार हो गए हैं कि हो सकता है कि कुछ 'पथभ्रष्ट्र तत्व' हिंसा व आतंक के रास्ते पर चल पड़े हों। फिर भी वे इसका आग्रह करते हैं कि उनके पूरे संगठन को ऐसे तत्वों के रंग में रंगकर नहीं देखा जा सकता है। यह भी महात्मा गांधी की हत्या के मुकद्दमे के समय आर एस एस द्वारा अपनाए गए रुख की पुनरावृत्ति को ही दिखाता है। इसी तरह की दलील के सहारे आर एस एस ने उस समय यह मुद्रा अपनायी थी कि, ''आतंकवाद से सख्ती से निपटा जाना चाहिए।"

बहहरहाल, अब जबकि अजमेर विस्फोट के मामले में चार्जशीट तैयार कर पेश की जा चुकी है और आतंकी हमलों के साथ संघ से जुड़े लोगों के रिश्ते अच्छी तरह उजागर किए जा चुके हैं, आर एस एस ने सुर बदलकर इन आतंकवादी गतिविधियों के साथ अपने लोगों के जोड़े जाने के खिलाफ देशव्यापी विरोध कार्रवाइयों का आह्वान कर दिया है। 31 अक्टूबर को महाराष्ट्र में जलगांव में आर एस एस के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की जो तीन दिवसीय बैठक संपन्न हुई उसी में इन कार्रवाइयों का आह्वान किया गया है। आर एस एस के सरसंघचालक लखनऊ में इस कार्रवाई में हिस्सा लेंगे और महासचिव, हैदराबाद में। संघ के महासचिव ने धमकी के स्वर में इसी सिलसिले में यह भी कहा था कि आर एस एस के इस तरह आतंकवाद के साथ जोड़े जाने पर ''हिंदू समुदाय नाराज" है और ''राष्ट्रवादी" आर एस एस को बदनाम करने की कोई भी कोशिश बर्दाश्त नहीं की जाएगी! साफ है कि इन विरोध कार्रवाइयों का मकसद यही है कि सरकारों तथा जांच एजेंसियों पर इसके लिए दबाव डाला जाए कि जांच के अपने कदम आगे नहीं बढ़ाएं।

हमने बार-बार यह कहा है और एक बार फिर कहते हैं कि आतंकवाद शुद्घ रूप से राष्ट्रविरोधी होता है और इसलिए देश को उसे जरा भी बर्दाश्त नहीं करना चाहिए। आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता है। आतंकवाद के सभी रंग एक-दूसरे के लिए खाद-पानी जुटाने का ही काम करते हैं और इस तरह एक-दूसरे को मजबूत करते हैं तथा देश की एकता व अखंडता को कमजोर करने का ही काम करते हैं। इसलिए, देश के हित में यह बहुत ही जरूरी है कि मौजूदा छान-बीन को बिना किसी रोक-टोक के आगे बढ़ाया जाए और इस क्रम में जो भी व्यक्ति और संगठन दोषी पाए जाते हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए।

Friday, November 5, 2010

खुलेगा सुनील जोशी की हत्या का राज!

जयपुर/गोधरा. अजमेर ब्लास्ट के मामले में बुधवार को जयपुर से एक आरोपी हर्षद भाई सोलंकी उर्फ मुन्ना उर्फ राज उर्फ दाढ़ी भाई (32) को गिरफ्तार किया गया है। वहीं गुजरात के गोधरा से मुकेश वसाणी नामक एक व्यक्ति को शंका के आधार पर हिरासत में लिया गया है। हर्षद की गिरफ्तारी से सुनील जोशी की हत्या का राज खुलने की उम्मीद है। बताया जा रहा है कि दरगाह ब्लास्ट मामले में सुनील का नाम आने से संगठन के बड़े नेताओं के संपर्क का खुलासा होने की आशंका थी। ऐसे में सुनील के साथ रहने वाले चार लोगों ने ही उसे मौत के घाट उतार दिया था। राजस्थान एटीएस ने वड़ोदरा के बेस्ट बेकरी कांड में शामिल हर्षद को जयपुर में गिरफ्तार किया। उसे गुजरात व महाराष्ट्र पुलिस छह साल से तलाश रही थी। हर्षद बेस्ट बेकरी मामले में फरारी के दौरान सुनील जोशी के साथ ‘राज’ के नाम से रह रहा था।


उसके तीन और साथी मेहुल, उस्ताद और मोहन के नाम से सुनील के साथ रहते थे। एटीएस के मुताबिक सुनील ने बताया था कि चारों गुजरात में खेती खराब होने की वजह से काम के सिलसिले में मध्यप्रदेश आ गए हैं। ये सभी सुनील की हर कार्रवाई में शामिल रहते थे। सुनील की 29 दिसंबर 07 को देवास में गोली मारकर हत्या की घटना के बाद से चारों गायब थे।

हर्षद ने पूछताछ में बताया कि बेस्ट बेकरी कांड के बाद अप्रैल 2004 में वह फरार हो गया था। वह 2006 में सुनील जोशी से मिला। अजमेर दरगाह में ब्लास्ट की साजिश को अंजाम देने में उसने सुनील जोशी के साथ सक्रिय भूमिका निभाई थी। दरगाह ब्लास्ट में इस्तेमाल हुए बमों को तैयार करने, विस्फोटक एवं अन्य जरूरी उपकरण एकत्र करने तथा तैयार बमों को परिवहन योग्य बनाने के लिए सटीक पैकिंग का काम भी उसी ने किया था।

गोधरा से एक पकड़ा, एक की तलाश जारी:

राजस्थान एटीएस ने अजमेर ब्लास्ट के सिलसिले में बुधवार शाम गोधरा से मुकेश वसाणी नामक व्यक्ति को हिरासत में लिया है। मुकेश आरएसएस का कार्यकर्ता बताया जा रहा है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) मोडासा और अजमेर ब्लॉस्ट के मामले में गुजरात के कुछ लोगों की तलाश कर रही है। राजस्थान एटीएस इस जांच में एनआईए की मदद कर रही है।
  अजमेर ब्लास्ट की कहनी
 अजमेर. दरगाह में 11 अक्टूबर 2007 को बम धमाका हुआ तो सांप्रदायिक सौहार्द की नगरी कहलाने वाले अजमेर में हाहाकार मच गया। सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में ऐसा हादसा पेश आ सकता है, यह कोई सोच भी नहीं सकता था। लंबे समय तक इस मामले में लोकल पुलिस व अन्य जांच एजेंसियां हाथ पैर मारती रहीं लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। बाद में जांच एटीएस के सुपुर्द कर दी गई। महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए विस्फोट और उसमें पकड़े गए अभियुक्त साध्वी प्रज्ञा सिंह व अन्य से हुई पूछताछ के आधार पर इस कांड का एटीएस ने खुलासा किया और तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया। लंबी सुनवाई के बाद शुक्रवार को आरोपियों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट पेश कर दी।

जिंदा बम से मिला सुराग
दरगाह बमकांड में एक बम फटने से रह गया था। इस बम को निष्क्रिय किया तो इसमें विस्फोटकों के अलावा टाइमर डिवाइस के रूप में मोबाइल फोन भी मिला था। मोबाइल स्क्रीन पर स्क्रीन सेवर के रूप में 'वंदे मातरमÓ लिखा था। जिस बम से विस्फोट किया गया था, उसका सिम कार्ड नंबर 8991522000005190837 था और मोबाइल नंबर 9931304642 पाया गया। क्षतिग्रस्त सिम के आधार पर जांच कार्रवाई में पता चला कि सिम बिहार व झारखंड के मोबाइल प्रदाता कंपनी की है। यह सिम रामफर यादव निवासी ग्राम कानगोई पोस्ट मिहिजाम, जिला दुमका के नाम जारी की गई थी।
सिम दुमका के बस स्टैंड पर स्थित मोबाइल केयर नामक दुकान से खरीदी गई थी। वहीं मौके से मिले जिंदा बम से मिले मोबाइल के आधार पर जानकारी मिली कि उसमें लगी सिम पश्चिम बंगाल के मोबाइल सेवा प्रदाता ने जारी की है। सिम का धारक बाबूलाल यादव पुत्र मनोहर यादव निवासी समधि रोड, रूपनारायणपुर, आसनसोल वर्धमान होना पाया गया। सिम पश्चिम बंगाल के चितरंजन से सरगम आडियो नामक दुकान से खरीदी गई थी। जांच में मालूम हुआ कि यह सिम फर्जी नाम व पते के पहचान पत्र हासिल कर खरीदी गई है। इसी तरह की 11 और सिम भी खरीदने का खुलासा हुआ।

मक्का-मालेगांव समान
एटीएस ने जांच में पाया कि 18 मई 2007 को हैदराबाद की मक्का मस्जिद में हुए ब्लास्ट में भी दो बमों का इस्तेमाल किया था। इसमें से एक बम फटा नहीं था व उसमें टाइमर डिवाइस के रूप में मोबाइल फिट था। एटीएस ने दोनों मामलों में कई समानताएं पाई। मक्का मस्जिद में जो सिम उपयोग हुए थे, उसमें वह सिम भी शामिल थी जो दरगाह बमकांड में जांच के दौरान सामने आई थीं। एटीएस ने जब मालेगांव विस्फोट के अभियुक्त कर्नल श्रीकांत पुरोहित एवं सुधाकर धर द्विवेदी उर्फ स्वामी दयानंद पांडे से पूछताछ की तो स्वामी असीमानंद के नाम का खुलासा हुआ। अभिनव भारत नामक संगठन का नाम भी सामने आया। एटीएस की जांच में सामने आया कि ख्वाजा साहब की दरगाह में सुनील जोशी ने ही बम ब्लास्ट किया था। उसके बाद सुनील जोशी की हत्या कर दी गई थी।

देवेंद्र और सुनील का संपर्क
एटीएस की जांच में सामने आया कि सुनील जोशी जब महू में आरएसएस के प्रचारक पद पर तैनात था तब अजमेर का मूल निवासी देवेंद्र उसके संपर्क में आया। दोनों के बीच 1998 से 2003 के बीच घनिष्ठ संबंध बन गए। गुप्ता धीरे धीरे जोशी का विश्वस्त बन गया और सुनील जोशी की प्रेरणा से वह आरएसएस के सहयोगी संगठन 'सेवा भारतीÓ में काम करने लगा था। बाद में देवेंद्र को जामताड़ा में प्रचारक के पद पर नियुक्त किया गया। इसी दौरान देवेन्द्र और सुनील में काफी गहरी दोस्ती हो गई और दोनों ने अपने काम को अंजाम देना शुरू कर दिया।

सिम कार्ड से हुआ खुलासा
24 मई 2006 से 26 नवंबर 2006 के बीच जब आसनसोल, जामताड़ा व मिहीजाम से दरगाह बम कांड में काम आए मोबाइल व सिम खरीदे गए थे, देवेन्द्र गुप्ता इसी इलाके में था। मक्का मस्जिद और दरगाह ब्लास्ट में सिम के अलावा उनसे जुड़े बाकी सिम की जानकारी भी एटीएस ने ली। इससे पता चला कि ये सिम मध्यप्रदेश के ग्राम छापरी और खरदौन कलां में प्रयोग किए जा रहे हैं। इन सिमधारकों के बारे में जानकारी एकत्रित की गई तो चंद्रशेखर लेवे, रविंद्र पाटीदार और संतोष पाटीदार के नाम सामने आए। आरोपी चंद्रशेखर ने यह मोबाइल फोन संदीप डांगे से लिए थे। उसने एक झूठी कहानी बनाकर यह मोबाइल विष्णु पाटीदार को यह कहकर दे दिए कि कोई पूछताछ करे तो कह देना कि उसे पंकज पाटीदार से मिले थे जिसकी दुर्घटना में कुछ समय पहले मौत हुई थी।

संदीप डांगे का नाम आया
विस्फोट में उपयोग किए गए मोबाइल व उससे जुड़े अन्य मोबाइल का खुलासा होने के साथ ही संदीप डांगे का नाम सामने आया। इस पर एटीएस ने अपनी जांच की दिशा संदाप की ओर मोड़ दी। जब जांच हुई तो पता चला कि संदीप शाजापुर में आरएसएस का प्रचारक रहा था। विस्फोट के लिए खरीदे गए मोबाइल में से बचे मोबाइल उसने ही चंद्रशेखर को दिए थे। मुंबई एटीएस ने जब 28 सितंबर 2008 को मालेगांव में हुए बमकांड में आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह व अन्य को गिरफ्तार किया तथा संदीप डांगे व रामजी कलसागरा की तलाश की जाने लगी तो संदीप और रामजी भूमिगत हो गए। एटीएस ने काफी तलाश भी की मगर कोई हाथ नहीं लगा। इसी दौरान एटीएस को पता चला कि चारों मोबाइल संदीप एक अटैची में रखकर चंद्रशेखर को दे गया था। चंद्रशेखर ने मोबाइल निकालकर अटैची नष्ट कर दी। एक फोन उसने रख लिया और बाकी तीन रिश्तेदारों को दे दिए, जिससे यह मामला पूरी तरह खुल गया।

बोली एटीएस: आरएसएस दफ्तर में बनी योजना
एटीएस ने चार्जशीट में बताया है कि देवेंद्र गुप्ता जब जामताड़ा में आरएसएस के प्रचारक के पद पर था तभी वह संदिग्ध गतिविधियों में शामिल हो गया था। एटीएस के मुताबिक दरगाह समेत देश के अन्य स्थानों पर विस्फोट की योजना जामताड़ा स्थित आरएएस के कार्यालय में बनाई गई थी। लोकेश शर्मा, सुनील जोशी के साथ आया था और गुप्ता ने बैठक में हिस्सा लिया था। बमों को तैयार करने के लिए विस्फोटकों की व्यवस्था लोकेश शर्मा ने सुनील जोशी के साथ मिलकर की थी। एटीएस की मानें तो, लोकेश ने भी जुर्म कबूल कर माना है कि वह बमकांड में शामिल था।
उसने रामजी कलसागरा के इंदौर स्थित मकान पर पहुंचकर वहां बम विस्फोट की योजनाएं बनाने व बमों के निर्माण स्थल के बारे में जानकारी दी। लोकेश ने एटीएस को बताया कि दरगाह और मक्का मस्जिद में किए गए ब्लास्ट में टाइमर के रूप में प्रयुक्त मोबाइल फोन उसने फरीदाबाद में इशांत चावला नामक व्यक्ति से खरीदे थे। जिसने बाद में लोकेश शर्मा की शिनाख्त भी की थी। यह भी खुलासा किया कि दरगाह विस्फोट में प्रयुक्त विस्फोटक सुनील जोशी और लोकेश शर्मा ने विनय पांडे के पिता कृष्णदत्त पांडे की देपालपुर रेशम केंद्र स्थित गौशाला से प्राप्त किए थे। विस्फोटक सुनील जोशी के निर्देशानुसार रामप्रसाद कलोदा उर्फ रामजी निवासी गिरोड़ा जिला इंदौर ने गौशाला में रखे थे, इस पर अभी भी जांच जारी है।

हिंदू धर्मस्थलों पर आतंकी हमलों की प्रतिक्रिया
एटीएस ने चार्जशीट में यह भी खुलासा किया है कि दरगाह में हुआ बमकांड एक समुदाय विशेष के लोगों द्वारा देश भर में हिंदुओं के धर्मस्थलों पर आतंकी हमलों और विस्फोटों की प्रतिक्रिया स्वरूप किया गया था। एटीएस के अनुसार वर्ष 2004 में उज्जैन में सिहंस्थ कुंभ का आयोजन किया गया था। कुंभ में गुजरात के डांग निवासी स्वामी असीमानंद के नेतृत्व में प्रज्ञा सिंह, सुनील जोशी, संदीप डांगे, रामजी कलसागरा, देवेंद्र गुप्ता, लोकेश शर्मा, शिवम धाकड़, समंदर वगैरह की गुप्त बैठक हुई थी।
इस बैठक में वर्ष 2001 में अमरनाथ यात्रा, वर्ष 2002 में अक्षरधाम मंदिर, रघुनाथ मंदिर और हिंदुओं के अन्य धार्मिक स्थलों पर समुदाय विशेष के आतंकियों द्वारा बम विस्फोट करने व क्षति पहुंचाने पर आक्रोश व्यक्त किया गया। बैठक में समुदाय विशेष के आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए विस्फोट का जवाब विस्फोट से देने के लिए योजना बनाई गई थी। विस्फोटों को अंजाम देने के लिए सुनील जोशी, संदीप डांगे, रामजी कलसागरा, प्रज्ञासिंह, लोकेश शर्मा, प्रसाद श्रीकांत पुरोहित, सुधाकर धर द्विवेदी उर्फ दयानंद पांडे उर्फ शंकराचार्य एवं समीर कुलकर्णी को असीमानंद द्वारा हर तरह का सहयोग व समर्थन दिया गया। यही नहीं दरगाह बमकांड के बाद असीमानंद ने ही सुनील जोशी व उसके साथियों को शरण दी थी।

देवेन्द्र ने एटीएस के सामने खोला राज
एटीएस की मानें तो, देवेंद्र गुप्ता ने जुर्म स्वीकार कर बताया है कि दरगाह में ब्लास्ट सुनील जोशी का काम है। उसने यह भी स्वीकार किया कि इस कांड में वह खुद और संदीप डांगे, रामजी कलसागरा तथा लोकेश शर्मा भी शामिल थे। गुप्ता ने यह भी बताया कि फर्जी आईडी के जरिये सिम खरीदे जाते थे जिनका उपयोग बम विस्फोट में किया गया।

डांगे और रामचंद्र हैं मक्का ब्लास्ट के अभियुक्त
दरगाह बम धमाके से जुड़े फरार संदिग्धों में से इंदौर निवासी संदीप डांगे उर्फ परमानंद और रामचंद्र कलसागरा उर्फ रामजी उर्फ विष्णु पटेल के सीबीआई ने फोटो जारी कर उन पर दस-दस लाख रुपए के इनाम की घोषणा की थी। दोनों मक्का मस्जिद ब्लास्ट में नामजद अभियुक्त हैं।

पूछताछ में खुला राज
सीबीआई के मुताबिक मक्का मस्जिद में 18 मई 2007 को बम ब्लास्ट हुआ था। यह मामला 9 जून 2007 को सीबीआई को सौंपा गया। जांच के दौरान अजमेर दरगाह बम धमाके के आरोपी देवेंद्र गुप्ता और लोकेश शर्मा का नाम उजागर हुआ। सीबीआई दोनों को प्रोडक्शन वारंट पर गिरफ्तार कर हैदराबाद ले गई। इनमें से एक आरोपी सीबीआई की हिरासत में है जबकि दूसरे को जेल भेजा जा चुका है। दरगाह बम ब्लास्ट के दोनों आरोपियों से हुई पूछताछ में संदीप डांगे और रामचंद्र कलसागरा के नाम उजागर हुए थे। दरगाह बम कांड के दोनों संदिग्धों को मक्का मजिस्द ब्लास्ट में सीबीआई ने अभियुक्त बनाया है।

इनके खिलाफ पेश हुई चार्जशीट
1- देवेंद्र गुप्ता (36) उर्फ बॉबी उर्फ रमेश पुत्र श्री सत्यनारायण गुप्ता निवासी बिहारीगंज पहली गली, अजमेर राजस्थान। देवेंद्र को एटीएस ने आरएसएस का विभाग प्रचारक बताया है।
2- चंद्रशेखर लेवे (37) पुत्र लक्ष्मीनारायण लेवे, निवासी छापरी, थाना कालापीपल, जिला शाजापुर मध्यप्रदेश। खेतीबाड़ी से जुड़े चंद्रशेखर को आरएसएस का जिला संपर्क प्रमुख बताया है।
3- लोकेश शर्मा (32) उर्फ कालू उर्फ अजय उर्फ अभय पुत्र गोपाल शर्मा, निवासी 180 सांघी स्ट्रीट, महू जिला इंदौर, मध्यप्रदेश। लोकेश का कारोबार प्रोपर्टी डीलिंग बताया गया है। यह भी आरएसएस का कार्यकर्ता है।
     संघ हुआ सावधान, वेबाइट से जानकारी हटाई



            देशभर में रामजी और संदीप की तलाश तेज


 रवीन्द्र जैन
 भोपाल। अजमेर बम ब्लास्ट के मामले में संघ से जुड़े लोगों की गिरफ्तारी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख नेता इंदे्रशकुमार का नाम इसमें आने के बाद संघ सावधान हो गया है। पिछले दो दिन से संघ की अधिकृत वेबसाइट बंद कर दी गई है। दूसरी ओर केन्द्रीय जांच एजेंसी और राजस्थान एटीएस ने रामजी कलसांगरा और संदीप डांगे की तलाश तेज कर दी है। मप्र पुलिस को उम्मीद है कि अजमेर ब्लास्ट में गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ से देवास के बहुचर्तित सुनील जोशी हत्याकांड से भी पर्दा उठ सकता है। देवास पुलिस आरोपियों से पूछताछ करने राजस्थान जाने की तैयारी कर रही है।
 अजमेर की दरगाह में बम ब्लास्ट करने के आरोप में राजस्थान एटीएस एक के बाद एक संघ से जुड़े स्वयं सेवकों को गिरफ्तार कर रही है। पुलिस अभी तक पांच स्वयं सेवकों को गिरफ्तार कर चुकी है। गुजरात में बेस्ट बैकरी कांड के प्रमुख आरोपी हर्षद सोलंकी की गिरफ्तारी के बाद केन्द्रीय जांच एजेंसी की आंखों में चमक आ गई है। जांच एजेंसियों को उम्मीद है कि हषछ व उसके साथी मुकेश वासानी की गिरफ्तारी के बाद अजमेर के अलावा हैदराबाद, मालेगांव व समझौता एक्सप्रेस में हुए ब्लास्ट के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है। अभी तक गिरफ्तार सभी आरोपी सुनील जोशी के नजदीक रहे हैं। सुनील जोशी के बारे में माना जाता है कि - अजमेर में 11 अक्टूबर 2007 को हुए ब्लास्ट की जिम्मेदारी उसी ने संभाली थी। इस ब्लास्ट के 89 दिन बाद देवास में सुनील जोशी की अज्ञात लोगों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
सुनील के खास थे हर्ष और मुकेश : मप्र पुलिस आजतक सुनील जोशी की हत्या के रहस्य से पर्दा नहीं उठा सकती है। यहां बता दें कि गुजरात से गिरफ्तार हर्षद सालंकी और मुकेश वासानी सुनील जोशी के नजदीकी लोगों में से थे। राजस्थान एटीएस का मानना है कि अजमेर की दरगाह में बम प्लांट करने का काम मुकेश वासानी ने किया था। गुजरात में बेस्ट बैकरी कांड दुबारा ओपन होने के बाद हर्षद सोलंकी फरार होकर देवास में सुनील जोशी के बाद रहने लगा था। हर्षद सोलंकी को सुनील जोशी के बारे में लगभग सभी जानकारी थी। हर्षद के अलावा उसके चार अन्य साथी भी सुनील के साथ रहते थे। दिसम्बर 2007 में सुनील की हत्या के बाद से ही उसके यह चारों साथी भी लापता हो गए थे। पुलिस को उम्मीद है कि सुनील जोशी को मालेगांव हैदराबाद व अजमेर ब्लास्ट के बारे में पूरी जानकारी थी, इसलिए इन घटनाओं के किसी बड़े मास्टर माइंड ने सुनील जोशी की हत्या करा दी थी।
संघ हुआ सावधान : बेशक इन घटनाओं में संघ का सीधा हाथ नहीं है, लेकिन इन घटनाओं में पकड़े जा रहे लगभग सभी आरोपी संघ से जुड़े रहे हैं। देशभर में हो रहीं गिरफ्तारी के बाद संघ सावधान हो गया है और संघ ने अपनी अधिकृत वेबसाइट बंद कर दी है। संघ को आशंका है केन्द्रीय जांच एजेंसी वेबसाइट की जानकारी के आधार पर संघ को बदनाम करने का काम कर सकती है। संघ ने फिलहाल अपनी साईट को बंद कर दिया है। संघ की साइट पर अंडर कन्सेक्टेशन लिखा आ रहा है।
पांचजन्य भी खामोश : संघ पर लगे गंभीर आरोप के बाद भी उसके अधिकृत समाचार पत्र पांचजन्य ने भी लगभग खामोशी ओढ़ ली है। उम्मीद की जा रही थी कि संघ पर लगे आरोपों का जबाव पांचजन्य में दिया जाएगा, लेकिन पांचजन्य के ताजा अंक में इस मुद्दे पर केवल संघ के सहकार्यवाह सुरेश जी जोशी का वह वक्तव्य प्रकाशित किया गया है जो उन्होंने संघ की जलगांव में हुई बैठक में दिया था। इसके अलावा पांचजन्य ने अजमेर ब्लास्ट के आरोपों के बारे में एक लाईन भी नहीं छापी है।
10 के बाद बनेगी रणनीति : संघ ने इन आरोपों के खिलाफ पूरे देश में 10 नवम्बर को धरने देने की योजना बनाई है। इन धरना प्रदर्शन की सफलता का मूल्यांकन करने के बाद ही संघ अपनी अगली रणनीति तय करेगा।
रामजी व संदीप की तलाश : अजमेर ब्लास्ट में मुख्य भूमिका निभाने वाले रामचंद कलसांगरा उर्फ रामजी व संदीप डांगे की तलाश तेज हो गई हे। केन्द्रीय जांच एजेंसी व राजस्थान एटीएस देशभर में इनकी तलाश कर रही है। सीबीआई को हैदराबादकी मक्का मस्जिद में हुए बम विस्फोट के सिलसिले में इनकी तलाश है। सीबीआई ने अपनी वेबसाईट पर इन दोनों के चित्र प्रकाशित करके हुए दोनों पर दस-दस लाख का ईनाम घोषित किया है।

Wednesday, November 3, 2010

बुंंदेलखंड में भाजपा बचाओ अभियान


-नितिन गडकरी को भेजा पत्र


-संगठन की दशा दिखाने बड़े नेताओं को बुलाया


प्रवीण श्रीवास्तव

भोपाल। दूसरे दलों से आए नेताओं को भाजपा में शामिल करने तक तो सब ठीक रहा, लेकिन जब उन्हीं को संगठन के दायित्व दिए जाने लगे तो पुराने कार्यकर्ता और नेताओं का असंतोष आक्रोश में तब्दील होने लगा है। आक्रोश भी इतना कि उन्हें बुंदेलखंड में भाजपा बचाओ अभियान चल पड़ रहा है।

ठेठ बुंदेलखंड यानि टीकमगढ़ जिले में भाजपा में तेजी से उबाल आया है। पार्टी के राष्टï्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को पत्र भेजकर यहां किसी बड़े नेता को भेजने का आग्रह किया गया है ताकि संगठन की दशा देखी जा सके। यहां भाजपा बचाओ अभियान तक की शुरुआत हो चुकी है।

बामुश्किल छह माह पहले ही भाजपा की सदस्यता लेने वाली सीमा श्रीवास्तव को महिला मोर्चा का जिलाध्यक्ष बनाए जाने से तूफान उठ खड़ा हुआ है। इसकी झलक पिछले पखवाड़े भाजपा प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा को भी देखने को मिली थी, जब महिलाओं ने उन्हें घेर लिया था। उसी वक्त बल्देवगढ़ की एक महिला ने तो यहां तक कहा था कि महिला मोर्चा जिलाध्यक्ष बनाने मुझसे भी 50 हजार रुपए रुपए की डिमांड की गई थी। सूत्र बताते हैं महिला मोर्चा जिलाध्यक्ष सीमा श्रीवास्तव को बनवाने एक ही नाम पेनल में जिलाध्यक्ष नापित ने भेजा था।

भाजपा के पुराने नेताओं, कार्यकर्ताओं में उबाल इसलिए भी है कि भाजपा के जिला अध्यक्ष अशोक गोयल को नगर पालिका अध्यक्ष के चुनाव में हराने वाले जनशक्ति के युवा नेता राकेश गिरी को भाजपा में शामिल करके अब उन्हें युवा मोर्चा का जिलाध्यक्ष बनाने की जिलाध्यक्ष नंदकिशोर नापित और संभागीय संगठन मंत्री शैलेंद्र बरुआ की कोशिशें चल रही हैं। विरोध तो भाजपा के सभी पुराने नेता कर रहे हैं, लेकिन अनुशासनहीनता की गाज से सहमे हुए हैं, फिर भी भाजपा के जिला कार्यसमिति सदस्य एवं पूर्व पार्षद प्रत्येंद्र सिंघई के नेतृत्व में 'भाजपा बचाओ अभियानÓ शुरू हो गया है। एसएमएस करके अभियान की अलख तेज की जा रही है। तय हुआ है कि दीपावली बाद सबकी बैठक होगी और प्रदेश भाजपा को ज्ञापन दिया जाएगा।

जिलाध्यक्ष का रोचक तर्क

भाजपा जिलाध्यक्ष नंदकिशोर नापित का कहना है जब उमा भारती को 1985 में भाजपा में शामिल होने के तत्काल बाद लोकसभा चुनाव लडऩे टिकट दिया जा सकता है तो सीमा श्रीवास्तव को महिला मोर्चा जिलाध्यक्ष क्यों नहीं बनाया जा सकता।

ये भी संगठन की बागडोर थामे

टीकमगढ़ में बसपा से चुनाव लड़ चुके वीरेंद्र राय भाजपा के मंत्री और अनिल बड़कुल जिला महामंत्री बनाए गए हैं।

दो महिला जनप्रतिनिधियों में जंग

बुंदेलखंड के दूसरे बड़े जिले छतरपुर में नगर पालिका अध्यक्ष अर्चना सिंह और विधायक ललिता यादव में जंग छिड़ी है। पहले नपाध्यक्ष अर्चना सिंह ने हाईवे पर सीसी रोड के लिए भूमिपूजन समारोह किया, उसमें कलेक्टर को तो बुलाया, लेकिन विधायक ललिता यादव को नहीं बुलाया। अब ललिता यादव ने 8.39 करोड़ से शहर के 15 मार्गों में सीसी रोड बनाने भूमिपूजन कराया तो उसमें नपाध्यक्ष को नहीं बुलाया जो चर्चा का विषय बना हुआ है। हालांकि ललिता यादव का कहना है कि उस रोज कहां गया था संगठन जब नपा के कार्यक्रम में मुझे नहीं बुलाया गया था। वहां महिला मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष नीता पटैरिया द्वारा मोर्चा की जिलाध्यक्ष गीता पटैरिया को बनाया जाना भी चर्चा में है। दरअसल सिवनी विधायक नीता पटैरिया का मायका छतरपुर जिले के महाराजपुर में है। हालांकि इस मामले में छतरपुर भाजपा जिलाध्यक्ष डा. घासीराम पटेल कुछ भी कहने से इंकार कर रहे हैं। यह जरूर है कि उन्होंने युवा मोर्चा जिलाध्यक्ष के लिए पांच युवकों के नाम भेजे हैं।
भाजपा में लालबत्ती के लिए घमासान

दीपावली पर तोहफे की उम्मीद

प्रदीप जायसवाल

भोपाल। भाजपा में नवंबर के पहले सप्ताह में निगम-मंडलों के अध्यक्षों और उपाध्यक्षों की नियुक्तियों की सुगबुगहाट शुरू होते ही लालबत्ती के लिए घमासान तेज हो गया है। इधर भंग किए गए विकास प्राधिकरणों के लिए भी दावेदार सक्रिय हो गए हैं। उम्मीद है कि सरकार कुछ निगम-मंडलों और प्राधिकरणों में नियुक्तियों की घोषणा कर दीपावली का तोहफा दे सकती है।

सभी प्रमुख दावेदारों ने लालबत्ती के लिए दिल्ली से लेकर भोपाल तक जोड़तोड़ तेज कर दी है। राज्य में विंध्य विकास प्राधिकरण समेत अन्य कुछ प्राधिकरणों का गठन होना है। प्रस्तावित विंध्य विकास प्राधिकरण प्रमुख के लिए अजय प्रताप सिंह का नाम जहां चर्चा में है, वहीं अन्य प्राधिकरणों पर भी दावेदारों की नजर गढ़ी हुई है। महाकौशल और मालवा क्षेत्र के लिहाज से खुद दावेदार अपने-अपने प्रतिद्वंदियों की गतिविधियों पर खास नजर रखे हुए हैं। बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष के लिए बेबी राजा और उमेश शुक्ला के बीच म्यानें खींची हुई हैं। निगम-मंडल में लालबत्ती पाने की दौड़ में भोपाल के रामकिशोर वर्मा और इंदौर के कमालभाई भी शामिल माने जा रहे हैं। कमाल भाई अल्पसंख्यक आयोग के लिए तो वर्मा पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं। हालांकि अल्पसंख्यक आयोग के लिए अनवर मोहम्मद खान ने दोबारा लालबत्ती पाने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रखी है। मालवा अंचल से सत्यनारायण जटिया और गोपीकृष्ण नेमा भी लालबत्ती के लिए प्रयासरत हैं, जबकि मुख्यमंत्री के इलाके से राजेंद्र सिंह राजपूत और विजयपाल सिंह में से किसी एक को लालबत्ती मिलना लगभग तय माना जा रहा है। चर्चा है कि संगठन पहले ही सरकार को निगम-मंडलों और प्राधिकरणों में नियुक्तियों के लिए अपनी सूची सौंप चुका है। इधर महिला आयोग के लिए वर्तमान अध्यक्ष कृष्णकांता तोमर एक बार फिर सक्रिय हैं, जबकि अन्य महिला नेत्रियां भी पीछे नहीं हैं। महिला मोर्चा की पूर्व अध्यक्ष सीमा सिंह भी आयोग की दौड़ में शामिल बताई जा रही हैं। ऐसा माना जा रहा है कि राज्य सरकार ज्यादा नहीं तो करीब एक दर्जन निगम-मंडलों में नियुक्तियां कर पार्टी नेताओं को नवाज सकती है। प्रस्तावित सूची में क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने की भी चर्चा है। इस सूची के घोषित होने के बाद पनपने वाले असंतोष पर काबू पाने के लिए कुछ असंतुष्टïों को उपाध्यक्ष और सदस्य बनाकर मौन किया जा सकता है।

ये रहे खुशकिस्मत

राज्य सरकार 20 सितंबर को निगम और मंडलों के 9 अध्यक्षों और उपाध्यक्षों की नियुक्तियां कर चुका है। इनमें रमेश शर्मा गुट्टïू भैया भोपाल को राज्य नागरिक आपूर्ति निगम का अध्यक्ष और अनीता नायक टीकमगढ़ को इसी निगम का उपाध्यक्ष, सत्यनारायण सत्तन इंदौर को मप्र खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड का अध्यक्ष, मधुकर हर्णे होशंगाबाद को मप्र राज्य बीज एवं फार्म विकास निगम का अध्यक्ष तथा कमलेश्वर सिंह रीवा को इस निगम का उपाध्यक्ष बनाया गया है। रामकिशन चौहान रायसेन को स्टेट एग्रो इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट कारपोरेशन का अध्यक्ष, गोविंद मालू इंदौर को राज्य खनिज निगम का उपाध्यक्ष, बृजेंद्रसिंह सिसोदिया शाजापुर को मप्र ऊर्जा विकास निगम का अध्यक्ष तथा बाबूलाल मेवड़ा श्योपुर को मप्र वन विकास निगम का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। इनमें गोविंद मालू की नियुक्ति काफी चर्चा में रही। दरअसल उन्हें अध्यक्ष बनाए जाने की अटकलें जोरों पर थीं।
ढाई हजार से ज्यादा आश्वासन लटके


-1100 से अधिक लोक लेखा समिति की आपत्तियों का नहीं हुआ निराकरण

-सरकारी विभागों की कछुआ चाल, 4 हजार से ज्यादा प्रकरण अटके

भोपाल। आठ-दस साल पहले विधानसभा में मंत्रियों द्वारा दिए गए आश्वासनों पर आज तक कुछ नहीं हुआ। यहीं कारण है कि मंत्रियों के 2694 आश्वासन विभिन्न विभागों में चक्कर लगा रहे हैं। ऐसा नहीं अकेले आश्वासनों की यह हालत हो, बल्कि 1196 तो लोक लेखा समिति द्वारा उठाई गई आपत्तियों पर भी अफसरों ने तवज्जो नहीं दी। कुल मिलाकर विधानसभा से जुड़े 4 हजार 309 मामले सरकार के पास अटके पड़े हैं।

पिछले कुछ समय से अफसरों ने सरकार और मंत्रियों को तवज्जो देना बंद कर दिया है या फिर वह मंत्रियों द्वारा सदन में दिए गए आश्वासनों को पूरा कराने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। यहीं वजह है कि वर्तमान में 2 हजार 694 आश्वासन अधिकांश विभागों में अटके हुए हैं। इनकी मानिटरिंग ठीक ढंग से नहीं होने के कारण सालों से इन पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। हाल ही में मुख्य सचिव द्वारा की गई समीक्षा के बाद कुछ प्रकरणों में कमी आई है, लेकिन अभी भी स्थिति ठीक नहीं है। वर्तमान में विधानसभा से जुड़े 21 शून्यकाल, 402 अपूर्ण उत्तर, 48 ध्यानाकर्षण, 1196 लोक लेखा समिति की कंडिकाएं तथा 2 हजार 694 आश्वासन पर सरकार की निगाह नहीं पड़ी है।

अधिकृत सूत्रों ने बताया कि सदन में मंत्रियों द्वारा दिए गए आश्वासनों में राजस्व विभाग में 240, स्वास्थ्य विभाग में 294, जल संसाधन में 305, पंचायत एवं ग्रामीण विकास में 214, नगरीय प्रशासन के 319, लोक निर्माण के 181, स्कूल शिक्षा से जुड़े 99, कृषि विभाग के 127, सहकारिता के 139, गृह विभाग के 91, पीएचई के 105, वन विभाग के 89, आदिम जाति कल्याण के 98, महिला एवं बाल विकास के 73, चिकित्सा शिक्षा के 65, उच्च शिक्षा में 40, ऊर्जा में 39 आदि सभी विभागों में आश्वासनों की लंबी सूची लटकी हुई है।

विभागों की स्थिति

विभाग का नाम कुल प्रकरण

राजस्व - 486

स्वास्थ्य विभाग - 412

जल संसाधन - 409

ग्रामीण विकास - 392

नगरीय प्रशासन - 350

लोक निर्माण - 234

कृषि विभाग - 168

स्कूल शिक्षा - 171

सहकारिता - 153

गृह विभाग - 141

पीएचई विभाग - 137

वन विभाग - 126

आदिम जाति - 124

वाणिज्यिक कर - 111

कुल प्रकरण - 4309

-----------------------------------------------