Wednesday, April 14, 2010

   परिवहन आयुक्त के पद को लेकर रस्साकंसी


              आईएएस, आईपीएस अफसरों में खींचतान तेज
              कमाऊ पूतों की पीठ थप थपाएंगे परिवहन मंत्री

    प्रदीप जयसवाल
    भोपाल। मध्यप्रदेश में परिवहन आयुक्त के पद को लेकर आईएएस व आईपीएस अफसर एक बार फिर से आमने सामने हैं। राज्य में पहली बार परिवहन विभ्ळााग ने अपने लक्ष्य से 32 करोड़ की अधिक कमाई की है। इसका श्रेय लेने के लिए दोनों संवर्ग के अफसरों में खींचतान शुरू हो गई है। प्रदेश के परिवहन मंत्री बेशक राज्य के 40 चेकपोस्टों पर रही अवैध वसूली को रोकने में सफल नहीं हो पाए, लेकिन गुरूवार को वे पुलिस विभाग के सभाकक्ष में विभाग के अधिकारियों की पीठ जरूर थप थपाएंगे।
 यहां बता दें - मप्र में परिवहन विभाग, सरकार के संरक्षण में भ्रष्टाचार विभाग का पर्याय बन गया है। इस विभाग के अधिकारी कर्मचारी प्रतिवर्ष लगभग 220 करोड़ रुपए अवैध कमाई केवल चेकपोस्टों से करते हैं, इस राशि का एक बड़ा भाग मंत्री से लेकर संतरी तक वितरित किए जाते हैं। इस भ्रष्टाचार को रोकने की हिम्मत किसी में नहीं है।
    पहले इस बात को जान लें कि गुरूवार को अचानक ऐसा क्या हो गया कि - परिवहन मंत्री को अपने इन कमाऊ पूतों की पीठ थपथपाने की जरुरत पड़ गई। दरअसल बीते वर्ष राज्य सरकार ने परिवहन विभाग को 900 करोड़ रुपए की वसूली का लक्ष्य दिया था। इसके एवज में विभाग ने 932.37 करोड़ की वसूली की है। इस वसूली और मंत्री की बैठक के पीछे का खेल भी अलग है। राज्य के आईएएस अधिकारियों का कहना है कि मप्र में परिवहन विभाग ने लंबे समय बाद लक्ष्य प्राप्त किया है। उनके अनुसार इसका कारण परिवहन आयुक्त की कुर्सी पिछले पांच माह से खाली रहना है और परिवहन आयुक्त का काम विभाग के प्रमुख सचिव राजन कटोच संभाले हुए थे। यानि लक्ष्य पूर्ति का श्रेय आईएएस अधिकारी को जाता है। यदि ऐसा हुआ तो परिवहन आयुक्त का पद आईपीएस से छीनकर आईएएस के हाथ में जा सकता है। राज्य मंत्रालय में बैठे आईएएस अधिकारियों ने इसकी लॉबिंग भी शुरू कर दी थी। लेकिन इसकी भनक लगते ही नए परिवहन आयुक्त बने एसएस लाल ने परिवहन मंत्री की बैठक पुलिस विभाग के सभा कक्ष में आयोजित करा दी। लाल यह बताना चाहते हैं कि लक्ष्य पूर्ति का श्रेय पुलिस विभाग के ही उपायुक्त उपेन्द्र जैन को जाता है।
सच्चाई यह है : जबकि सच्चाई एकदम अलग है। लक्ष्यपूर्ति का श्रेय न तो आईएएस अधिकारी को जाता है और न ही उपायुक्त जैन को। जिस समय परिवहन विभाग को 900 करोड़ का लक्ष्य दिया गया था, तब मप्र में वाहन पंजीयन का लाइव टाइम टैक्स 5 प्रतिशत था, जो कि राज्य सरकार ने बीच में ही बढ़ाकर 7 प्रतिशत कर दिया, जिससे विभाग की आय में एकदम बढ़ोत्तरी हुई और लक्ष्य से मात्र 32 करोड़ ही ज्यादा वसूली हो सकी।
नहीं रोकी अवैध वसूली : मप्र के चालीस चेकपोस्टों पर आज भी जमकर अवैध वसूली चल रही है। राज्य सरकार ने वायदा किया था कि इस अवैध वसूली को रोकने के लिए सभी चेकपोस्टों पर इलेक्टॉनिक्स तौल कांटे लगाएं जाएंगे। लेकिन केवल सेंधवा बैरियर को छोड़कर कहीं भी तौल कांटे नहीं लगने दिए।
दुगनी अवैध कमाई : मप्र के सभी चालीस प्रवेश द्वारों पर परिवहन विभाग के चेकपोस्ट हैं। यूं तो राज्य सरकार मप्र को स्वर्णिम प्रदेश बनाने का प्रयास कर रही है, लेकिन प्रदेश के सभी प्रवेश द्वारों पर बारह महिने, चौबीस घंटे परिवहन विभाग के अधिकारी अवैध वसूली में लगे रहते हैं। सूत्रों के अनुसार प्रदेश के सभी चेकपोस्टों से विभाग को प्रतिवर्ष लगभग 90 करोड़ की आय होती है, जबकि इन चेकपोस्टों से प्रतिवर्ष लगभग 220 करोड़ की अवैध कमाई की जा रही है। सवाल यह उठता है कि एक ओर प्रदेश के सभी प्रवेश द्वारों पर अवैध कमाई चलती रहे और दूसरी ओर मुख्यमंत्री के सपनों का स्वर्णिम प्रदेश भी बन जाएं, यह कैसे संभव है? लेकिन इस सवाल का जबाव परिवहन मंत्री के पास भी नहीं है।

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