Friday, April 9, 2010

           
   चार किसान रोज करते हैं आत्महत्या
किसान आत्महत्या के मामले में मप्र देश में पांचवें स्थान पर
                                                      एनसीआरबी की रिपोर्ट :



महेन्द्र विश्वकर्मा

    भोपाल। कर्ज चुकाने, गरीबी, बैंक कर्ज, बिजली कर वसूली, आर्थिक तंगहाली के कारण बीते 9 सालों में मध्यप्रदेश में 14 हजार से अधिक किसान आत्महत्या कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर चुके हैं। वर्ष 2001 से वर्ष 2002 के बीच आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 2 हजार 712 रही तो वर्ष 2003 से वर्ष 2009 के बीच यह संख्या करीब 11 हजार रही। देश में किसानों के आत्महत्या करने के मामले में मध्यप्रदेश पांचवें पायदान पर है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2001 से अभी तक प्रदेश में किसानों के आत्महत्या से जुड़े करीब 14 हजार मामले सामने आए हैं। तात्कालिक रिपोर्ट को आधार मानें तो प्रदेश में प्रतिदिन 4 किसान गरीबी और भुखमरी के चलते आत्महत्या कर रहे हैं।
    नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट में यह स्पष्ट है कि देश में हर साल किसानों द्वारा खुदकुशी करने के जितने भी मामले सामने आए उनमें से 66 प्रतिशत मामले मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के रहे हैं। इनमें मप्र का स्थान भले ही पांचवां रहा हो, लेकिन यह प्रदेश में किसानों के हितों से जुड़ीं योजनाओं के जमीनी क्रियान्वयन पर सवाल खड़े करने के लिए काफी हैं। छत्तीसगढ़ गठन के बाद वर्ष 2001 में प्रदेश में सूखे की स्थिति बनी और अन्नदाता माने जाने वाले किसान कर्ज में डूब गए। नतीजा भुखमरी, गरीबी और तंगहाली ने किसानों को इस हद तक मानसिक पीड़ा पहुंचाई की उन्हें मजबूरन आत्महत्या का रास्ता अपनाना पड़ा। इस वर्ष प्रदेश में 1375 किसानों ने खुदकुशी की। वर्ष 2002 में यह आंकड़ा 1340 रहा, पर वर्ष 2003 में संख्या 1445 पार कर गई। वर्ष 2004 में स्थिति संभलने की बजाए और बिगड़ी तथा आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 1638 पहुंच गई। वर्ष 2005 में यह संख्या 1248 रही। वर्ष 2006 में 1375, वर्ष 2007 में 1263 और वर्ष 2008 में 1509 किसानों ने आत्महत्या की। वर्ष 2009 में डेढ़ हजार किसानों ने तंगी के चलते मौत का रास्ता चुना। इस तरह पिछले 9 सालों में मप्र में करीब 14 हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं।
32 लाख 11 हजार किसान कर्जदार
    मप्र का किसान कर्ज में डूबा हुआ है। प्रदेश में कर्जधारी किसानों की संख्या 32 लाख 11 हजार है और प्रत्येक किसान पर औसतन 14 हजार 218 रुपए कर्ज है। कर्जदार किसानों में 25 फीसदी किसान ऐसे हैं, जिनके पास 2 से 3 हेक्टेयर ही जमीन है। कुषि विशेषज्ञों की मानें तो प्रदेश के 50 फीसदी किसान संस्थागत कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं। इसके अलावा किसान स्थानीय स्तर पर साहूकारों और व्यापारियों से भी कर्ज लेते हैं। प्रदेश सरकार ने किसानों की कर्जमाफी का वायदा भले ही किया हो, पर अभी तक एक भी किसान का कर्ज माफ नहीं हो सका।
                 जमीन बेच रहे किसान
    खेती-किसानी फायदे का सौदा नहीं बन पाने के कारण किसान अपनी जमीनें सस्ते दामों पर बेच रहे हैं तो कई कर्जे के चलते जमीन खो चुके हैं। सूखे के कारण प्रदेश में अधिकांश किसानों को खेती करने पर्याप्त मात्रा में पानी की उपलब्धता नहीं है। जहां पानी की उपलब्धता है वहां किसानों को बिजली नहीं मिल रही है। बावजूद इसके किसानों को बिजली बोर्ड द्वारा हजारों के बिल थमाए जा रहे हैं। कुछ किसान ऐन-केन प्रकारेण फसलों का उत्पादन कर भी लेते हैं तो उन्हें सरकार द्वारा उपज का सही समर्थन मूल्य नहीं दिया जाता। भारत सरकार की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में यह हवाला दिया गया कि किसानों को सही समर्थन मूल्य नहीं दिया जा रहा है और मप्र में भी यही हाल हैं। प्रदेश सरकार भले ही एग्रीबिजनेस मीट करे पर जमीनी हकीकत यही है कि बिजली के बिगड़ते हाल, खाद और बीज की उपलब्धता न होना, लगातार सूखे के हाल और किसानों को समर्थन मूल्य नहीं मिलने से किसानी घाटे का सौदा हो गई है। 
                    सरकार ने भी माना गरीबी से की आत्महत्याएं
    मुरैना, भिंड, श्योपुर, दतिया जिलों में गरीबी केे चलते 13 मजदूर और किसानों ने आत्महत्या की है। इस बात की पुष्टि शासन ने भी की है। शासन ने पिछले दो सालों में इन जिलों में करीब एक हजार आत्महत्याओं के मामले होना बताया है। इनमें से करीब पांच सैकड़ा मामले कर्जधारी और तंगहाल किसानों से जुड़े हैं, लेकिन शासन ने इन आत्महत्याओं के कारणों को अज्ञात की श्रेणी में रखा है। बीते वर्षों में हुए आत्महत्या के कुछ मामलों पर गौर करें तो होशंगाबाद जिले में बनखेड़ी ब्लॉक के कुर्सीढाना गांव के किसान अमान सिंह ने अप्रैल 2010 के शुरुआत में ही जहरीली दवा पीकर आत्महत्या कर ली। अमान सिंह पर बैंक का करीब एक लाख रुपए कर्ज था, जो चुका पाने में वह अक्षम रहा। यहीं के एक और किसान मिथलेश ने भी कर्ज के कारण खुदकुशी का रास्ता अपनाया। रीवा जिले में घोपकरा गांव के किसान अमरनाथ मिश्रा को बिजली बोर्ड ने नवंबर 2004 को 35 हजार 840 रुपए का बिजली बिल थमाकर जेल भेजने की धमकी दी थी, इस बात से सहमे किसान ने आत्महत्या का रास्ता अख्तियार किया और अब उसका परिवार तंगहाली में जीवन-यापन करने को मजबूर है। इसी साल छतरपुर के दरगुवां गांव के किसान कल्लू खां ने बैंक कर्ज वसूली के डर से तो खरगौन जिले के सुरपाला गांव के किसान कैलाश सिर्वी ने 40 हजार कर्ज और 37 हजार बिजली बिल न चुका पाने और अधिकारियों द्वारा प्रताडि़त करने के कारण खुदकुशी कर ली। वर्ष 2005 में पन्ना जिले के नौनागर गांव के शिवप्रसाद ने बैंक वसूली के डर से मौत को गले लगाया। रायसेन जिले के जामुनडोंगा के किसान रतनसिंह, जोखेड़ा के किसान मनकू, बड़वानी के राधेश्याम, टीकमगढ़ जिले के पहारी तिलरावन के रमेश यादव ने दिसंबर 06 में कर्ज नहीं चुका पाने के डर से खुदकुशी की। इस तरह पिछले कई सालों से किसानों पर बिजली विभाग    और बैंकों के अधिकारियों द्वारा किए जा रहे अन्याय के चलते किसान यह रास्ता अपनाने को मजबूर हैं।
                             ज्यादा भी हो सकती है संख्या
    देश में किसान आत्महत्या पर विश्लेषण कर रहे प्रोफेसर नागराज का मानना है कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट विभिन्न राज्यों की पुलिस द्वारा भेजे गए आंकड़ों  के आधार पर तैयार की जाती है। जबकि पुलिस ऐसे व्यक्ति को किसान की श्रेणी में नहीं रखती, जो किसी अन्य की जमीन पर खेती उगाकर अपना जीवन-यापन कर रहा हो। यदि पिता के नाम दर्ज जमीन पर पुत्र खेती करता है तो पुलिस के नजरिए से वह पुत्र किसान की श्रेणी में नहीं आएगा। इस आधार पर नागराज का मानना है कि प्रदेश में किसानों की आत्महत्याओं की संख्या नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा दी गई संख्या से ज्यादा भी हो सकती है, क्योंकि आत्महत्या करने वालों में ऐसे भी अनेक लोग होंगे, जिनके नाम भले ही जमीन दर्ज नहीं होगी पर वे किसानी का काम तो करते रहे होंगे।
                        गलत जानकारी देकर किया गुमराह
  

सही आंकलन हो तो प्रदेश में किसान आत्महत्याओं से जुड़े मामलों की संख्या लाखों में पहुंच जाए। मैंने विधानसभा में पूरे प्रदेश में हुई आत्महत्याओं के संबंध में जानकारी मांगी थी, लेकिन मुझे ग्वालियर संभाग के चार जिलों की ही जानकारी दी गई। मैं इसकी शिकायत करूंगा। शासन ने जितनी जानकारी दी उससे ही गरीबी से तंग आकर आत्महत्या करने के डेढ़ दर्जन ममालों की पुष्टि हुई है। यदि पूरे प्रदेश के सही आंकड़े निकाले जाएं तो यह संख्या चार-पांच हजार पार कर जाएगी। किसानों की आत्महत्याओं से जुड़े आंकड़े ही भाजपा के स्वर्णिम प्रदेश को आईना दिखाने के लिए पर्याप्त हैं।
- रामनिवास रावत, विधायक कांग्रेस

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