रवींद्र जैन की रिपोर्ट पर बवाल क्यों?
Monday, 29 March 2010 11:26
अरशद अली खान
भड़ास4मीडिया - विविध .
विशेषाधिकार हनन की आड़ में प्रेस का गला घोटने का प्रयास : मध्य प्रदेश विधानसभा द्वारा विशेषाधिकार कानून का उपयोग सच बोलने वालों की अवाज़ को दबाने के लिए किया जा रहा है। ऐसी ही एक कोशिश गत 24 मार्च को विधान सभा के बजट सत्र में की गयी। राजधानी भोपाल के धाकड़ पत्रकार रवींद्र जैन ने भोपाल से प्रकाशित एक दैनिक समाचार पत्र में जब विधायकों की करतूत को लेकर समाचार पत्र के मुख्य पृष्ठ पर खबर छापी तो पूरे प्रदेश में सनसनी फैल गयी। जनता के सामने नंगे हो चुके विधायक सदन में उक्त समाचार पत्र के विरूद्ध विशेषाधिकार ले आए।
वैसे ही मध्य प्रदेश में सच बोलने वाले पत्रकारो का आभाव है, यदाकदा कोई पत्रकार सच कहने का साहस या हिम्मत दिखाता है तो उसे कानून का डर दिखा कर इसी तराह से दबाने का प्रयास किया जाता है। ओर तो ओर इस मामले में चोर- चोर मौसेरे भाई की तर्ज पर पक्ष और विपक्ष एक साथ खड़े नजर आए, क्योंकि इस फर्जीवाड़े में वह भी शामिल हैं। इधर पत्रकार रवींद्र जैन का कहना है कि उनके द्वारा प्रकाशित समाचार अक्षरशः सही है, और उसके पर्याप्त प्रमाण उनके पास है फिर भी यदि विधायको को समाचार की सत्यता पर संदेह है तो वह न्यायालय जाऐं, सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाऐगा।
क्या लिखा था अखबार ने : 19 मार्च के अखबार के मुख्य पृष्ठ पर ''मिस्टर विधायक यह चोरी है'' शीर्षक से प्रकाशित समाचार में रवींद्र जैन ने लिखा था- ''प्रदेश के विधायक धड़ल्ले से विधानसभा सचिवालय में फर्जी यात्रा देयक लगाकर राज्य सरकार को करोड़ों रूपये का चूना लगा रहे हैं,लेकिन सब कुछ जानते हुए इस फर्जीवाड़े को रोकने की हिम्मत किसी में नहीं है। 100 से अधिक विधायक विधानसभा सत्र के दौरान भोपाल आने-जाने की यात्रा ट्रेन से करते हैं और उसी तिथि में अपने वाहन से आने-जाने का फर्जी देयक बनाकर विधानसभा सचिवालय से सड़क मार्ग से आने का भुगतान ले लेते हैं।'' अखबार ने विधानसभा सचिवालय की भूमिका को संदिग्ध बताते हुए लिखा है कि ”इस संबंध में विधानसभा सचिवालय की भूमिका भी संदिग्ध है। नियमों में स्पष्ट लिखा है कि विधायक के निजी वाहन पर ही यात्रा भत्ते की पात्रता है,ऐसे में सचिवालय बिना जांच किए कैसे यात्रा भत्ते का भुगतान कर रहा है?''
अखबार का दावा है कि उसने सूचना के अधिकार के तहत विधानसभा सचिवालय से यह जानकारी लेकर इस फर्जीवाड़े को उजागर किया है। अच्छा होता पवित्र सदन में खबर की सत्यता को परखने के लिए चर्चा करायी जाती एवं समिति गठित करके मामले की जांच कराने के आदेश दिए जाते, लेकिन एसा ना करके, खबर छापने वाले अखबार के विरूद्ध ही विशेषाधिकार हनन कें नाम पर प्रेस को दबाने का प्रयास किया गया है जो न्याय संगत नही है।
Monday, March 29, 2010
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