मप्र में 5 साल में 6 लाख शिशुओं की अकाल मौत
भूख के मुंहाने पर मध्यप्रदेश, शिशु बचाने में रुचि नहीं
रवीन्द्र जैन
भोपाल। यह खबर कमजोर दिल वाले न पड़े क्योंकि कि यह खबर आपको हिलाकर रख सकती है। मध्यप्रदेश में पिछले पांच साल में लगभग छह लाख बच्चे कुपोषण और बीमारियों से मर गए, लेकिन राज्य सरकार पर इसका कोई असर नहीं हुआ है। सबसे दर्दनाक पहलु यह है कि इन शिशुओं को बचाने के लिए विधानसभा ने जो बजट सरकार को दिया था वह भी सरकार ने खर्च नहीं किया। मप्र में शिशु मृत्यु दर देश में सबसे अधिक है और इंटरनेशनल फूड रिसर्च इंस्टीटय़ूट की रिपोर्ट कहती है कि मध्यप्रदेश भूख के मुंहाने पर खड़ा है।
मप्र में बच्चे भूख व कुपोषण से मर रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में शिशु रोग विशेषज्ञों के आधे से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। गर्भवती महिलाओं के लिए आने वाले केन्द्र व राज्य के बजट पर अफसरों और दलालों की गिद्ध दृष्टि लगी हुई है। महिला एवं बाल विकास विभाग की प्रमुख सचिव के बिस्तरों से आयकर विभाग करोड़ों रुपए बरामद कर रहा है। कुपोषण एवं गंभीर बीमारियों से पीडि़त बच्चों के लिए आवंटित बजट को राज्य सरकार खर्च नहीं करना चाहती और नतीजे सामने हैं - पांच साल में लगभग छह लाख बच्चों की मौत। मौत का यह आंकड़ा केवल उन बच्चों का है जो अपना पहला जन्मदिन भी नहीं मना सके, यानि एक वर्ष से कम उम्र में ही मौत के शिकार हो गए। एक से चार वर्ष बच्चों की बात की जाए तो प्रति हजार बच्चों पर 94 बच्चे भी कुपोषण व बीमारियों के कारण मौत के शिकार हो रहे हैं। यह आंकड़े किसी को भी विचलित कर सकते हैं। लेकिन राज्य सरकार जबरन अपनी योजनाओं का ढोल पीटने में लगी हुई है।
विधानसभा में दो जबाव : मप्र के हेल्थ मिनिस्टर अनूप मिश्रा ने पिछले दिनों कांग्रेस के महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा के प्रश्र के जबाव में बताया कि 1 अप्रेल 2005 से 31 मार्च 2009 तक पिछले चार साल में मप्र में कुपोषण एवं उससे होने वाली बीमारियों के कारण 1 लाख 22 हजार 422 शिशुओं की मौत हुई है। स्वास्थ मंत्री ने इन मौतों का जिलेवार ब्यौरा भी दिया है। लेकिन क्या यह आंकड़े सही है? क्योंकि राज्य के स्वास्थ मंत्री ने स्वीकर किया है कि मप्र में प्रति एक हजार बच्चों के जन्म लेने पर 70 शिशुओं की मौत हो जाती है। यानि मप्र में शिशु मृत्यु दर 70 है, जो कि पूरे देश में सबसे अधिक है। स्वास्थ मंत्री के इस दावे को सही माना जाए तो मप्र में 1 मार्च 2005 से 1 जनवरी 2010 तक 5 लाख 91 हजार 204 बच्चों की मौत हो चुकी है। क्योंकि सरकारी आंकड़ों के अनुसार उक्त अवधि में 84 लाख 45 हजार 806 प्रसव हुए हैं।
बच्चों की मौत के कारण : मप्र में शिशु रोग विशेषज्ञों के कुल 437 पद स्वीकृत हैं, लेकिन वर्तमान में 278 पद रिक्त पड़े हैं। इसी प्रकार स्त्री रोग विशेषज्ञों के कुल 582 पद स्वीकृत हैं, लेकिन 437 पद खाली पड़े हैं। तय है कि डाक्टरों एवं उपचार के अभाव में शिशु बीमारियों व मौत के शिकार हो रहे हैं।
बजट व्यय नहीं : मप्र में शिशुओं बचाने के लिए राज्य विधानसभा ने वर्ष 2005-06 में 11.13 करोड़ रुपए का बजट दिया था, लेकिन राज्य सरकार केवल 27.65 लाख रुपए ही व्यय कर पाई। इसी प्रकार वर्ष 2006-07 में 14.26 करोड़ मंजूर किए थे, लेकिन 4.15 करोड़ ही खर्च हुए। वर्ष 2007-08 में 10.79 करोड़ का बजट स्वीकृत हुआ लेकिन सरकार ने केवल 4.45 करोड़ ही व्यय किए।
जबरदस्त भ्रष्टाचार : मप्र में महिला एवं बाल विकास विभाग को इन बच्चों को बचाने के लिए महिलाओं एवं बच्चों को पोषण आहार के लिए जो बजट 2001 में 22 करोड़ रुपए मिलता था, वह बढ़कर 348 करोड़ तक पहुंच गया है, लेकिन इस विभाग में भ्रष्टाचार किस कदर हावी है, यह पिछले दिनों आयकर विभाग के छापे के दौरान देखने मिला। इस विभाग की प्रमुख सचिव टीनू जोशी के घर से तीन करोड़ रुपए नगद बरामद किए गए। महिला एवं बच्चों के पोषण आहार के बजट पर दलालों की तीखी नजर रहती है। बेशक सरकार ने पोषण आहार का काम मप्र एग्रो इंडस्टी को सौंपा है ,लेकिन वहां भी दलाल पहुंच गए हैं और उन्होंने एग्रो से मिलकर यही राशि हड़पने की कवायद शुरू कर दी है।
Wednesday, March 17, 2010
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रवींद्र जी
ReplyDeleteआपने बहुत ही महत्त्वपूर्ण मुद्दे की और ध्यान आकर्षित कराया है | आज के दौर मैं मीडिया जनसरोकारों से दूर होता जा रहा है और एईसी स्तिथि मैं आपने बाल स्वास्थ्य के इस मसले पर ध्यान आकृष्ट कराया है | प्रदेश के ये हाल हैं और पूरी सरकार गाल बजाने पर लगी है | यहाँ के मंत्री और अफसर भ्रष्टाचार मैं लिप्त हैं | और इससे दुर्ग्भाग्यपूर्ण क्या होगा जब कि इस सबके बावजूद आज तक प्रदेश कि अपनी स्वास्थ्य नीति नहीं है | एक चौकाने वाली खबर के लिए धन्यवाद | अब देखना ये है कि विधानसभा चल रही है और एइसे मैं सरकार क्या करती है |
प्रशांत दुबे www.atmadarpan.blogspot.com