Wednesday, April 14, 2010

   परिवहन आयुक्त के पद को लेकर रस्साकंसी


              आईएएस, आईपीएस अफसरों में खींचतान तेज
              कमाऊ पूतों की पीठ थप थपाएंगे परिवहन मंत्री

    प्रदीप जयसवाल
    भोपाल। मध्यप्रदेश में परिवहन आयुक्त के पद को लेकर आईएएस व आईपीएस अफसर एक बार फिर से आमने सामने हैं। राज्य में पहली बार परिवहन विभ्ळााग ने अपने लक्ष्य से 32 करोड़ की अधिक कमाई की है। इसका श्रेय लेने के लिए दोनों संवर्ग के अफसरों में खींचतान शुरू हो गई है। प्रदेश के परिवहन मंत्री बेशक राज्य के 40 चेकपोस्टों पर रही अवैध वसूली को रोकने में सफल नहीं हो पाए, लेकिन गुरूवार को वे पुलिस विभाग के सभाकक्ष में विभाग के अधिकारियों की पीठ जरूर थप थपाएंगे।
 यहां बता दें - मप्र में परिवहन विभाग, सरकार के संरक्षण में भ्रष्टाचार विभाग का पर्याय बन गया है। इस विभाग के अधिकारी कर्मचारी प्रतिवर्ष लगभग 220 करोड़ रुपए अवैध कमाई केवल चेकपोस्टों से करते हैं, इस राशि का एक बड़ा भाग मंत्री से लेकर संतरी तक वितरित किए जाते हैं। इस भ्रष्टाचार को रोकने की हिम्मत किसी में नहीं है।
    पहले इस बात को जान लें कि गुरूवार को अचानक ऐसा क्या हो गया कि - परिवहन मंत्री को अपने इन कमाऊ पूतों की पीठ थपथपाने की जरुरत पड़ गई। दरअसल बीते वर्ष राज्य सरकार ने परिवहन विभाग को 900 करोड़ रुपए की वसूली का लक्ष्य दिया था। इसके एवज में विभाग ने 932.37 करोड़ की वसूली की है। इस वसूली और मंत्री की बैठक के पीछे का खेल भी अलग है। राज्य के आईएएस अधिकारियों का कहना है कि मप्र में परिवहन विभाग ने लंबे समय बाद लक्ष्य प्राप्त किया है। उनके अनुसार इसका कारण परिवहन आयुक्त की कुर्सी पिछले पांच माह से खाली रहना है और परिवहन आयुक्त का काम विभाग के प्रमुख सचिव राजन कटोच संभाले हुए थे। यानि लक्ष्य पूर्ति का श्रेय आईएएस अधिकारी को जाता है। यदि ऐसा हुआ तो परिवहन आयुक्त का पद आईपीएस से छीनकर आईएएस के हाथ में जा सकता है। राज्य मंत्रालय में बैठे आईएएस अधिकारियों ने इसकी लॉबिंग भी शुरू कर दी थी। लेकिन इसकी भनक लगते ही नए परिवहन आयुक्त बने एसएस लाल ने परिवहन मंत्री की बैठक पुलिस विभाग के सभा कक्ष में आयोजित करा दी। लाल यह बताना चाहते हैं कि लक्ष्य पूर्ति का श्रेय पुलिस विभाग के ही उपायुक्त उपेन्द्र जैन को जाता है।
सच्चाई यह है : जबकि सच्चाई एकदम अलग है। लक्ष्यपूर्ति का श्रेय न तो आईएएस अधिकारी को जाता है और न ही उपायुक्त जैन को। जिस समय परिवहन विभाग को 900 करोड़ का लक्ष्य दिया गया था, तब मप्र में वाहन पंजीयन का लाइव टाइम टैक्स 5 प्रतिशत था, जो कि राज्य सरकार ने बीच में ही बढ़ाकर 7 प्रतिशत कर दिया, जिससे विभाग की आय में एकदम बढ़ोत्तरी हुई और लक्ष्य से मात्र 32 करोड़ ही ज्यादा वसूली हो सकी।
नहीं रोकी अवैध वसूली : मप्र के चालीस चेकपोस्टों पर आज भी जमकर अवैध वसूली चल रही है। राज्य सरकार ने वायदा किया था कि इस अवैध वसूली को रोकने के लिए सभी चेकपोस्टों पर इलेक्टॉनिक्स तौल कांटे लगाएं जाएंगे। लेकिन केवल सेंधवा बैरियर को छोड़कर कहीं भी तौल कांटे नहीं लगने दिए।
दुगनी अवैध कमाई : मप्र के सभी चालीस प्रवेश द्वारों पर परिवहन विभाग के चेकपोस्ट हैं। यूं तो राज्य सरकार मप्र को स्वर्णिम प्रदेश बनाने का प्रयास कर रही है, लेकिन प्रदेश के सभी प्रवेश द्वारों पर बारह महिने, चौबीस घंटे परिवहन विभाग के अधिकारी अवैध वसूली में लगे रहते हैं। सूत्रों के अनुसार प्रदेश के सभी चेकपोस्टों से विभाग को प्रतिवर्ष लगभग 90 करोड़ की आय होती है, जबकि इन चेकपोस्टों से प्रतिवर्ष लगभग 220 करोड़ की अवैध कमाई की जा रही है। सवाल यह उठता है कि एक ओर प्रदेश के सभी प्रवेश द्वारों पर अवैध कमाई चलती रहे और दूसरी ओर मुख्यमंत्री के सपनों का स्वर्णिम प्रदेश भी बन जाएं, यह कैसे संभव है? लेकिन इस सवाल का जबाव परिवहन मंत्री के पास भी नहीं है।
मछली घर टूटेगा, बनेगा होटल



 साथ में विधानसभा का पुराना भवन फ्री
    रवीन्द्र जैन
    भोपाल। भोपाल का प्रसिद्ध मछली घर अब कुछ दिनों ही देखने मिलेगा। राज्य सरकार ने इसे बेचकर वहां सात सितारा होटल बनाने का अंतिम निर्णय ले लिया है। इसे खरीदने देश की चार बड़ी कंपनियां आगे आईं है। सरकार ने इस भूमि की कीमत 12 करोड़ रुपए एकड़ तय कर दी है, जो कंपनी ज्यादा बोली लगाएगी उसे यह भूमि मिल जाएगी। साथ में पुराना विधानसभा भवन फ्री मिलगा जहां कन्वेशन सेंटर बनाकर उक्त कंपनी ही उसका संचालन करगी। होटल के अलावा इस स्थान पर एक लाख वर्गफीट क्षेत्र में दुकानें, रिटेल मार्केट एवं तीन लाख वर्गफीट क्षेत्र में ऑफिस व गेस्ट हाउस बनाने की अनुमति दी जाएगी।
     मुख्य सचिव अवनि वैश्य ने इस योजना में आने वाली सभी रुकावटों को दूर करते हुए, उन सभी आपत्तियों को निराकरण कर दिया है जो गृह एवं वित्त विभाग ने लगाईं थीं। 30 मार्च मुख्यसचिव की अध्यक्षता में हुई साधिकार समिति की बैठक की कार्यवाही पर सोमवार को हस्ताक्षर कर दिए गए हैं। उक्त भूति के सामने राजभवन होने के कारण गृह विभाग ने यहां होटल बनाने के प्रस्ताव पर आपत्ति दर्ज कराई थी। मुख्यसचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में निर्णय लिया गया है कि राजभवन की ओर एक भी खिड़की दरवाजा नहीं होगा। इसके अलावा पहले 7.71 एकड़ भूमि की कीमत वसूलने का प्रस्ताव था, लेकिन अब 5.11 एकड़ भूमि की कीमत 12 करोड़ निर्धारित की गई है। अब किसी भी क्षण इस परियोजना के लिए कंपनी का चयन किया जा सकता है।
क्या है योजना : पुरानी विधानसभा भवन एवं उसके आसपास के 5.53 एकड़ भूमि पर सर्वसुविधा युक्त विशाल कन्वेशन सेंटर बनेगा। इस भवन में 700 लोगों के बैठने की व्यवस्था रहेगी। इस भवन के पास मछली घर की 5.11 एकड़ भृूमि पर सात सितारा होटल व रिटेल सेंटर, ऑफिस कॉम्पलेक्स, गेस्ट हाउस आदि बनाने की योजना है। राज्य सरकार ने इस योजना के मप्र लघु उद्योग निगम को अधिकृत एजेंसी नियुक्त किया है। होटल दो सौ कमरों का होगा।
यह कंपनियां हैं दौड़ में : देश की 11 कंपनियों ने इस परियोजना में रुचि दिखाई थी, लेकिन बाद में राज्य सरकार ने केवल चार कंपनियों का चयन किया है।
    1 - रेमकी इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड, हैदराबाद
    2 - पाग ग्रोव बीच होटल्स प्रा. लि. मुम्बई
    3 - सोमा इंटरप्राइजेस लिमिटेड, हैदराबाद
    4 - जयप्रकाश एसोसियेट़स लिमिटेड, नोयडा

    इस परियोजना की तीन वर्ष पहले लागत 350 करोड़ थी, जो कि अब बढ़कर लगभग साढ़े पांच सौ करोड़ तक पहुंचने की संभावना बताई जा रही है।
दस प्रतिशत लाभ सरकार का : मप्र लघु उद्योग निगम के अध्यक्ष विपिन दीक्षित का कहना है कि - इस पूरी परियोजना के लिए भूमि एवं भवन तीस वर्ष के लिए लीज पर दिया जा रहा है, बाद में राज्य सरकार इस लीज को तीस तीस साल के लिए दो बार बढ़ा भी सकती है। इस परियोजना के लाभ में दस प्रतिशत हिस्सा राज्य सरकार का होगा। राज्य सरकार इसमें से दो प्रतिशत मप्र लघु उद्योग निगम को देगी।
14 किश्तों में होगा भुगतान : इस परियोजना को लेने वाली कंपनी दस प्रतिशत ब्याज के साथ भूमि की कीमत 14 वर्ष में सरकार को देगी।

    मुख्य बिन्दु

   
    - पुराने विधानसभा भवन में बनेगा कन्वेशन सेंटर।
    - विभिन्न साईज के सर्व सुविधायुक्त सभा कक्ष बनेंगे।
    - मुख्य हॉल में सात सौ लोगों के बैठकें की व्यवस्था रहेगी।
    - मछली घर के स्थान पर बनेगा होटल, इसमें दो सौ कमरें होंगे
    - इसके पास की भूमि पर चार लाख वर्गफीट बिल्टअप एरिया की अनुमति।
    - इसमें एक लाख वर्गफीट में रिटेल सेंटर बनेगा।
    - शेष तीन लाख वर्गफीट में ऑफिस एवं गेस्ट हाउस बनेंगे।
    - सुरक्षा कारणों से राजभवन की ओर एक भी खिड़की दरवाजा नहीं होगा।
    - छोटी झील की ओर बनेगा मुख्य प्रवेश द्वार।
    - छोटी झील की सड़क होगी चौड़ी।
    - ओपन भूमि की कीमत 12 करोड़ के हिसाब से वसूली जाएगी।
    - यह कीमत 14 वर्षों में दस प्रतिशत ब्याज के साथ कुल 128 करोड़ 50 लाख होगी।
    - कन्वेशन सेंंटर का संचालन भी उक्त कंपनी करेगी।
    - पूरी परियोजना के लाभ में से दस प्रतिशत राशि पर राज्य सरकार का हक होगा।
    - राज्य सरकार दो प्रतिशत लाभ मप्र लघु उद्योग निगम को देगी।
  विधानसभा का चैनल शुरू होगा?


     सांसद प्रभात झा के सुझाव पर कार्यवाही    
    रवीन्द्र जैन
    भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा की कार्यवाही के सीधे प्रसारण के लिए विधानसभा का स्वयं का चैनल शुरू करने की योजना पर विचार शुरू हो गया है। विधानसभा स्पीकर ईश्वरदास रोहाणी ने इस संबंध में प्रमुख सचिव एके पयासी को बजट बनाने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा राज्य के संसदीय कार्य विभाग ने भी विधानसभा को एक पत्र लिख है।
    दरअसल इसकी शुरूआत राज्यसभा सदस्य प्रभात झा के 3 मार्च को मुख्यमंत्री एवं विधानसभा अध्यक्ष को लिखे गए पत्र के बाद हुई है। झा ने मुख्यमंत्री व स्पीकर को पत्र लिखकर संसंद की तरह मप्र विधानसभा का अलग से टीवी चैनल शुरू करने का सुझाव दिया है। झा का दावा है कि इसके जरिए राज्य के आम आदमी को उसके बारे में सदन में होने वाली चर्चा की जानकारी आसानी से मिल सकेगी। राज्य सरकार विकास की क्या क्या योजनाएं तैयार कर रही है, इसकी जानकारी भी आम आदमी को मिल सकेगी। मुख्यमंत्री ने झा का यह पत्र संसदीय कार्य विभाग को भेज दिया। संसदीय कार्य विभाग ने यह पत्र विधानसभा सचिवालय को भेजा है।
    स्पीकर रोहाणी ने प्रमुख सचिव को निर्देश दिए हैं कि - विधानसभा का चैनल कैसे प्रारंभ किया जा सकता है? इस पर कितनी राशि व्यय होगी? इसे शुरू करने से क्या क्या लाभ होंगे? पर अपनी टीप दें। इस संबंध में प्रमुख सचिव ने प्रस्ताव बनाना शुरू कर दिया है। उम्मीद है कि भोपाल दूरदर्शन से इस संबंध में चर्चा की जाएगी। वैसे कई निजी चैनल भी सशुल्क अपनी सेवाएं उपलब्ध कराने को तैयार हो जाएं। प्रयोग के तौर पर भोपाल दूरदर्शन अथवा किसी निजी चैनल की सेवाएं लेकर कुछ दिनों सदन की कार्यवाही का सीधा प्रसारण किया जा सकता है, यदि इसके सकारात्मक परिणाम रहे तो विधानसभा सचिवालय अपना निजी चैनल प्रारंभ करने पर विचार कर सकता है।
   
 आचार्यश्री की पे्ररणा से बचेंगी दस हजार गाय


    सागर में लगेगा चार सौ करोड़ का दूध प्लांट लगाने की तैयारी
    रवीन्द्र जैन
    भोपाल। जैनसंत आचार्यश्री विद्यागसागर जी महाराज की प्ररेणा से मप्र के सागर जिले में दस हजार गाय बचाने के लिए जैन समाज ने अमूल की तर्ज पर चार सौ करोड़ की लागत से शांतिधारा दुग्ध योजना शुरू करने का निर्णय लिया है। जैन समाज बुंदेलखण्ड के गरीब किसानों को आधी कीमत पर गाय देगा और उसका दूध खरीदकर किसान को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जाएगा। इस योजना के प्रथम चरण में पचास करोड़ रुपए व्यय किए जा रहे हैं। इसके लिए सागर जिले के बीना बाराह क्षेत्र में 94 एकड़ भूमि क्रय की जा चुकी है।
    आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज इस समय संघ सहित बीना बाराह क्षेत्र में विराजमान हैं। उन्होंने महावीर जयंती के अवसर पर जैन समाज को अहिंसा का संदेश देते हुए गाय को बचाने का आव्हान किया था। उसी दिन जैन समाज के चार युवाओं संजय जैन मैक्स इंदौर, अशोक जैन चावल व आनंद सिंघई जबलपुर, मनीष नायक दमोह ने आचार्यश्री के चरणों में बैठकर बुंदेलखण्ड में समाज के सहयोग से दस हजार गायों को बचाने का संकल्प लिया। आचार्यश्री ने इस योजना को शांतिधारा दुग्ध योजना नाम दिया है। इस योजना के लिए समाज ने बीना बारहा में 94 एकड़ भूमि क्रय कर ली है। योजना के तहत सागर, दमोह, जबलपुर, छतरपुर, टीकमगढ़, आदि जिलों के ऐसे गरीब किसनों, जो गाय पालना चाहते हैं उन्हें जैन समाज लगभग आधी कीमत पर दुधारू गाय खरीदकर देगा। जो किसान गाय लेगा व उसे पालने की जिम्मेदारी लेगा उसे दुग्ध योजना के लाभांश का हिस्सेदार बनाया जाएगा। इन किसानों से दूध एकत्रित कर बीना बाराहा में लगने वाले प्लांट में लाया जाएगा, जहां से शंतिधारा के नाम से पैकेट तैयार कर बाजार में बेचने भेजा जाएगा।
    जैन समाज ने आपस में प्रति गाय दान के रुप में 21 हजार रुपए की राशि तय की है और अभी तक इस योजना के लिए 3 करोड़ से अधिक की राशि एकत्रित हो चुकी है। जैन समाज के लोगों ने 15 सौ गायों के वितरण के लिए राशि भी जमा कर दी है। बीना बाराहा में दूध का प्लांट लगाने के लिए जैन समाज के युवाओं ने दो बार गुजरात में अमूल उद्योग का दौरा कर लिया है। 15 अप्रेल को इस संबंध में विशेषज्ञों की टीम बीना बाराहा पहुंच रही है। संजय मैक्स के अनुसार अगले साल अप्रेल तक यह प्लांट  तैयार होकर उत्पादन प्रारंभ होना है। आचार्यश्री की इस योजना में जैन समाज के ऐसे लोगों ने भी रुचि दिखाई है जो पहले से ही दूध के व्यवसाय में हैं। उनके अनुभवों का भी लाभ लिया जा रहा है। इस योजना की बचत राशि को पूरी तरह गाय पालने वाले किसानों में वितरित किया जाएगा, ताकि उनमें गाय पालने के प्रति रुचि बढ़ सके।
गौशाला भी : इसके अलावा बीना बाराहा में ऐसी गायों के लिए गौशाला भी बनेगी जो दूध नहीं देती। गायों को कंसाई से बचाने एवं उसे किसानों के लिए लाभ दायक बनाने का प्रयास है।
   

Friday, April 9, 2010

           
   चार किसान रोज करते हैं आत्महत्या
किसान आत्महत्या के मामले में मप्र देश में पांचवें स्थान पर
                                                      एनसीआरबी की रिपोर्ट :



महेन्द्र विश्वकर्मा

    भोपाल। कर्ज चुकाने, गरीबी, बैंक कर्ज, बिजली कर वसूली, आर्थिक तंगहाली के कारण बीते 9 सालों में मध्यप्रदेश में 14 हजार से अधिक किसान आत्महत्या कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर चुके हैं। वर्ष 2001 से वर्ष 2002 के बीच आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 2 हजार 712 रही तो वर्ष 2003 से वर्ष 2009 के बीच यह संख्या करीब 11 हजार रही। देश में किसानों के आत्महत्या करने के मामले में मध्यप्रदेश पांचवें पायदान पर है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2001 से अभी तक प्रदेश में किसानों के आत्महत्या से जुड़े करीब 14 हजार मामले सामने आए हैं। तात्कालिक रिपोर्ट को आधार मानें तो प्रदेश में प्रतिदिन 4 किसान गरीबी और भुखमरी के चलते आत्महत्या कर रहे हैं।
    नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट में यह स्पष्ट है कि देश में हर साल किसानों द्वारा खुदकुशी करने के जितने भी मामले सामने आए उनमें से 66 प्रतिशत मामले मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के रहे हैं। इनमें मप्र का स्थान भले ही पांचवां रहा हो, लेकिन यह प्रदेश में किसानों के हितों से जुड़ीं योजनाओं के जमीनी क्रियान्वयन पर सवाल खड़े करने के लिए काफी हैं। छत्तीसगढ़ गठन के बाद वर्ष 2001 में प्रदेश में सूखे की स्थिति बनी और अन्नदाता माने जाने वाले किसान कर्ज में डूब गए। नतीजा भुखमरी, गरीबी और तंगहाली ने किसानों को इस हद तक मानसिक पीड़ा पहुंचाई की उन्हें मजबूरन आत्महत्या का रास्ता अपनाना पड़ा। इस वर्ष प्रदेश में 1375 किसानों ने खुदकुशी की। वर्ष 2002 में यह आंकड़ा 1340 रहा, पर वर्ष 2003 में संख्या 1445 पार कर गई। वर्ष 2004 में स्थिति संभलने की बजाए और बिगड़ी तथा आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 1638 पहुंच गई। वर्ष 2005 में यह संख्या 1248 रही। वर्ष 2006 में 1375, वर्ष 2007 में 1263 और वर्ष 2008 में 1509 किसानों ने आत्महत्या की। वर्ष 2009 में डेढ़ हजार किसानों ने तंगी के चलते मौत का रास्ता चुना। इस तरह पिछले 9 सालों में मप्र में करीब 14 हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं।
32 लाख 11 हजार किसान कर्जदार
    मप्र का किसान कर्ज में डूबा हुआ है। प्रदेश में कर्जधारी किसानों की संख्या 32 लाख 11 हजार है और प्रत्येक किसान पर औसतन 14 हजार 218 रुपए कर्ज है। कर्जदार किसानों में 25 फीसदी किसान ऐसे हैं, जिनके पास 2 से 3 हेक्टेयर ही जमीन है। कुषि विशेषज्ञों की मानें तो प्रदेश के 50 फीसदी किसान संस्थागत कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं। इसके अलावा किसान स्थानीय स्तर पर साहूकारों और व्यापारियों से भी कर्ज लेते हैं। प्रदेश सरकार ने किसानों की कर्जमाफी का वायदा भले ही किया हो, पर अभी तक एक भी किसान का कर्ज माफ नहीं हो सका।
                 जमीन बेच रहे किसान
    खेती-किसानी फायदे का सौदा नहीं बन पाने के कारण किसान अपनी जमीनें सस्ते दामों पर बेच रहे हैं तो कई कर्जे के चलते जमीन खो चुके हैं। सूखे के कारण प्रदेश में अधिकांश किसानों को खेती करने पर्याप्त मात्रा में पानी की उपलब्धता नहीं है। जहां पानी की उपलब्धता है वहां किसानों को बिजली नहीं मिल रही है। बावजूद इसके किसानों को बिजली बोर्ड द्वारा हजारों के बिल थमाए जा रहे हैं। कुछ किसान ऐन-केन प्रकारेण फसलों का उत्पादन कर भी लेते हैं तो उन्हें सरकार द्वारा उपज का सही समर्थन मूल्य नहीं दिया जाता। भारत सरकार की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में यह हवाला दिया गया कि किसानों को सही समर्थन मूल्य नहीं दिया जा रहा है और मप्र में भी यही हाल हैं। प्रदेश सरकार भले ही एग्रीबिजनेस मीट करे पर जमीनी हकीकत यही है कि बिजली के बिगड़ते हाल, खाद और बीज की उपलब्धता न होना, लगातार सूखे के हाल और किसानों को समर्थन मूल्य नहीं मिलने से किसानी घाटे का सौदा हो गई है। 
                    सरकार ने भी माना गरीबी से की आत्महत्याएं
    मुरैना, भिंड, श्योपुर, दतिया जिलों में गरीबी केे चलते 13 मजदूर और किसानों ने आत्महत्या की है। इस बात की पुष्टि शासन ने भी की है। शासन ने पिछले दो सालों में इन जिलों में करीब एक हजार आत्महत्याओं के मामले होना बताया है। इनमें से करीब पांच सैकड़ा मामले कर्जधारी और तंगहाल किसानों से जुड़े हैं, लेकिन शासन ने इन आत्महत्याओं के कारणों को अज्ञात की श्रेणी में रखा है। बीते वर्षों में हुए आत्महत्या के कुछ मामलों पर गौर करें तो होशंगाबाद जिले में बनखेड़ी ब्लॉक के कुर्सीढाना गांव के किसान अमान सिंह ने अप्रैल 2010 के शुरुआत में ही जहरीली दवा पीकर आत्महत्या कर ली। अमान सिंह पर बैंक का करीब एक लाख रुपए कर्ज था, जो चुका पाने में वह अक्षम रहा। यहीं के एक और किसान मिथलेश ने भी कर्ज के कारण खुदकुशी का रास्ता अपनाया। रीवा जिले में घोपकरा गांव के किसान अमरनाथ मिश्रा को बिजली बोर्ड ने नवंबर 2004 को 35 हजार 840 रुपए का बिजली बिल थमाकर जेल भेजने की धमकी दी थी, इस बात से सहमे किसान ने आत्महत्या का रास्ता अख्तियार किया और अब उसका परिवार तंगहाली में जीवन-यापन करने को मजबूर है। इसी साल छतरपुर के दरगुवां गांव के किसान कल्लू खां ने बैंक कर्ज वसूली के डर से तो खरगौन जिले के सुरपाला गांव के किसान कैलाश सिर्वी ने 40 हजार कर्ज और 37 हजार बिजली बिल न चुका पाने और अधिकारियों द्वारा प्रताडि़त करने के कारण खुदकुशी कर ली। वर्ष 2005 में पन्ना जिले के नौनागर गांव के शिवप्रसाद ने बैंक वसूली के डर से मौत को गले लगाया। रायसेन जिले के जामुनडोंगा के किसान रतनसिंह, जोखेड़ा के किसान मनकू, बड़वानी के राधेश्याम, टीकमगढ़ जिले के पहारी तिलरावन के रमेश यादव ने दिसंबर 06 में कर्ज नहीं चुका पाने के डर से खुदकुशी की। इस तरह पिछले कई सालों से किसानों पर बिजली विभाग    और बैंकों के अधिकारियों द्वारा किए जा रहे अन्याय के चलते किसान यह रास्ता अपनाने को मजबूर हैं।
                             ज्यादा भी हो सकती है संख्या
    देश में किसान आत्महत्या पर विश्लेषण कर रहे प्रोफेसर नागराज का मानना है कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट विभिन्न राज्यों की पुलिस द्वारा भेजे गए आंकड़ों  के आधार पर तैयार की जाती है। जबकि पुलिस ऐसे व्यक्ति को किसान की श्रेणी में नहीं रखती, जो किसी अन्य की जमीन पर खेती उगाकर अपना जीवन-यापन कर रहा हो। यदि पिता के नाम दर्ज जमीन पर पुत्र खेती करता है तो पुलिस के नजरिए से वह पुत्र किसान की श्रेणी में नहीं आएगा। इस आधार पर नागराज का मानना है कि प्रदेश में किसानों की आत्महत्याओं की संख्या नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा दी गई संख्या से ज्यादा भी हो सकती है, क्योंकि आत्महत्या करने वालों में ऐसे भी अनेक लोग होंगे, जिनके नाम भले ही जमीन दर्ज नहीं होगी पर वे किसानी का काम तो करते रहे होंगे।
                        गलत जानकारी देकर किया गुमराह
  

सही आंकलन हो तो प्रदेश में किसान आत्महत्याओं से जुड़े मामलों की संख्या लाखों में पहुंच जाए। मैंने विधानसभा में पूरे प्रदेश में हुई आत्महत्याओं के संबंध में जानकारी मांगी थी, लेकिन मुझे ग्वालियर संभाग के चार जिलों की ही जानकारी दी गई। मैं इसकी शिकायत करूंगा। शासन ने जितनी जानकारी दी उससे ही गरीबी से तंग आकर आत्महत्या करने के डेढ़ दर्जन ममालों की पुष्टि हुई है। यदि पूरे प्रदेश के सही आंकड़े निकाले जाएं तो यह संख्या चार-पांच हजार पार कर जाएगी। किसानों की आत्महत्याओं से जुड़े आंकड़े ही भाजपा के स्वर्णिम प्रदेश को आईना दिखाने के लिए पर्याप्त हैं।
- रामनिवास रावत, विधायक कांग्रेस

  मुख्यमंत्री मंत्री घूमेंगे टैक्सियों में


    स्टेट गैरेज को बंद करने का सुझाव

    रवीन्द्र जैन
  
भोपाल। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री, मंत्री व अफसर प्राईवेट टैक्सियों में घूमते नजर आ सकते हैं। राज्य सरकार मुख्यमंत्री मंत्रियों व अफसरों को कारें उपलब्ध कराने वाले स्टेट गैरेज को बंद करने पर विचार कर रही है। इससे वाहनों पर सरकार का खर्चा आधे से भी कम होने की संभावना है। मप्र सरकार द्वारा गठित राज्य वेतन आयोग के अध्यक्ष एके अग्रवाल ने अपने चतुर्थ प्रतिवेदन में स्टेट गैरेज को पूरी तरह बंद करने एवं सरकारी विभागों में भी नए वाहन क्रय करने के बजाय आवश्यकता के अनुरूप टैक्सियों का उपयोग करने का सुझाव दिया है।
    आयोग की रिपोर्ट के अनुसार स्टेट गैरेज की कारों पर प्रति किलोमीटर व्यय लगभग 26 रुपए आता है जबकि प्राईवेट टैक्सियों पर प्रतिमीटर व्यय 11 से 13 रुपए आता है। कई तरह के अध्ययन के बाद आयोग ने स्टेट गैरेज को पूरी तरह बंद करने का सुझाव दिया हे। बताते हैं कुछ राज्यों में यह व्यवस्था प्रारंभ हो गई है।
स्टेट गैरेज - वर्ष 2008-09
    कुल वाहन                                          123
    वर्षभर का व्यय                                   रु. 5,61,02,000
    प्रति वाहन औसत वार्षिक व्यय            रु. 4,56,114
    प्रति वाहन मासिक औसत व्यय           रु. 38,010
    वाहनों द्वारा तय की गई दूरी                  21,80,677 किलोमीटर
    प्रति वाहन तय की गई दूरी                   17,729 किलोमीटर
    प्रति वाहन मासिक दूरी                        1,477 किलोमीटर
    प्रति किलोमीटर औसत व्यय                 रु. 25.73

प्राईवेट इंडिया की दर - वर्ष 2008-09
    मासिक किराया 1000 किलोमीटर तक     रु. 14,520
    1000 किलोमीटर से अधिक प्रति किमी    रु. 5.75
    477 किलोमीटर का अतिरिक्त व्यय        रु. 2,743
    प्रति वाहन औसत मासिक व्यय             रु. 17,263
    प्रति वाहन प्रति किलोमीटर व्यय            रु. 11.68

प्राईवेट बोलेरो,टाटा सूमो, मार्शल की दर - वर्ष 2008-09
    मासिक किराया 1000 किलोमीटर तक    रु. 18,250 
    1000 किलोमीटर से अधिक प्रति किमी    रु. 6.50
    477 किलोमीटर का अतिरिक्त व्यय        रु. 3,101
    प्रति वाहन औसत मासिक व्यय        रु. 21,351
    प्रति वाहन प्रति किलोमीटर व्यय         रु. 14.45

आयोग की अनुशंसा :
    आयोग ने इस संबंध में तीन सुझाव दिए हैं।
    1 - राज्य सरकार के अन्तर्गत मंत्रालय तथा विभागाध्यक्ष कार्यालयों में शासकीय कार्यों के लिए नए वाहन क्रय किए जाने के बजाय अशासकीय वाहन किराए पर लेने की व्यवस्था को प्रोत्साहित किया जाए।
    2 - राज्य शासन के विभिन्न विभागों में नवीन वाहनों का क्रय केवल अपवाद स्वरुप ही किया जाए। पुराने वाहनों को उनकी स्थिति के अनुरूप अनुपयोगी घोषित किया जाए एवं आवश्यकतानुसार वाहन किराए पर लिए जाएं।
    3 - स्टेट गैरेज को चरणबद्ध योजना के अनुसार बंद किया जाए तथा स्टेट गैरेज के वाहनों को विभिन्न विभागों में भेजा जाए। विभागाध्यक्ष कार्यालयों में भी शासकीय वाहन किराए पर लेने की व्यवस्था लागू की जाए।
   
   
   
   

  स्पीकर ने प्रमुख सचिव से
  मांगा जन्म का प्रमाणपत्र
 



  बिना मार्कशीट के नौकरी कर रहे हैं पयासी
    
सीताराम ठाकुर
 
  भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा के इतिहास में पहली बार स्पीकर को अपने ही प्रमुख सचिव से उनके जन्मदिन का प्रमाण मांगना पड़ रहा है। दरअसल यह कार्यवाही इसलिए हो रही है कि विधानसभा सचिवालय में अभी तक प्रमुख सचिव की जन्मतिथि से संबंधित कोई ऐसा दस्तावेज नहीं है जिसके आधार पर उनकी सेवानिवृति का निर्णय लिया जाए। फिलहाल प्रमुख सचिव ने इस संबंध में कोई जबाव नहीं दिया है।
    पयासी ने अपनी नौकरी की शुरूआत नगर पालिका में साधारण कर्मचारी के रुप में की थी। वे तरक्की पाते पाते भोपाल नगर निगम में उपायुक्त अधिकारी के रुप में आए और फिर उनकी सेवाएं भोपाल नगर निगम में मर्ज हो गईं। विधानसभा के तत्कालीन स्पीकर श्रीनिवास तिवारी की कृपा से वे विधानसभा की सेवा में पहले प्रतिनियुक्ति पर आए बाद में वे विधानसभा में ही मर्ज हो गए। तिवारी की कृपा से ही पयासी प्रमुख सचिव तक बन गए। पयासी तो विधानसभा में आ गए, लेकिन उनकी सर्विस बुक का प्रथम भाग आज तक विधानसभा सचिवालय में नहीं है। इस संबंध में सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने पर विधानसभा सचिवालय का कहना है कि - पयासी की सेवाएं नगर निगम से प्रतिनियुक्ति पर ली गईं, लेकिन उनकी सेवा पुस्तिका का प्रथम भाग उपलब्ध नहीं है।
    पयासी ने विधानसभा सचिवालय को अपनी जन्मतिथि 8 मई 1951 बताई है, लेकिन इसका कोई भी प्रमाण नहीं दिया है। उन्होंने विधानसभा सचिवालय में अपनी जो अंक सूचियां दी हैं उनकी सत्यता को लेकर भी भ्रम की स्थिति बना हुई है। बताते हैं कि पिछले दिनों स्वयं पयासी ने अपने सेवानिवृति के सवा साल पहले ही स्थापना शाखा से अपने पेंशन संबंधी नस्ती तैयार कराई। जैसे ही यह नस्ती विधानसभा में चली कई अधिकारियों के कान खड़े हो गए। एक अधिकारी ने नस्ती पर टीप लगाई कि - पयासी से उनके जन्म संबंधी प्रमाण के रुप में कक्षा 11 की मार्कशीट मांगी जाए। यह फाइल स्पीकर ईश्वरदास रोहाणी के पास पहुंचीं तो उन्होंने प्रमुख सचिव को इस संबंध में प्रमाण देने को लिखा। लेकिन पयासी ने इस फाइल को अपने पास रख लिया है।
क्या नकली है मार्कशीट? : विधानसभा सचिवालय में पयासी की कक्षा 11 की मार्कशीट न होने के कारण तरह तरह की अटकलें शुरू हो गई हैं। कुछ लोगों का कहना है कि पयासी की कक्षा 11 की मार्कशीट नकली है और उसी मार्कशीट के आधार पर उन्होंने नगर पालिका में नौकरी पाई थी। इस संबंध में पयासी स्वयं मुंह खोलने को तैयार नहीं है। वे कहते हैं कि उन्हें जो कहना है वे स्पीकर से कहेंगे।
पत्नी की जानकारी भी छुपाई : शासकीय नियमों के अनुसार प्रत्येक शासकीय सेवक को अपनी पत्नि के व्यवसाय एवं उनकी आय से संबंधित जानकारी देना अनिवार्य है। लेकिन पयासी ने अपनी पत्नि कमलेश पयासी से संबंधित जानकारी भी विधानसभा सचिवालय से छुपाई है। दरअसल पयासी की पत्नि कमलेश पयासी रमाकांत पब्लिकेशन प्रा. लि. की संचालक हैं। उनकी यह कंपनी उन साहित्यिक पुस्तकों का प्रकाशन एवं विक्रय करती है जो पुस्तकें पयासी स्वयं लिखते हैं। ग्वालियर के कंपनी रजिस्ट्रार की अधिकृत जानकारी के अनुसार इस कंपनी का कार्यालय निशात कॉलेानी भोपाल के उस मकान में है जहां इस कंपनी के सीए का निवास है। यह भी आरोप है कि जो सरकारी विभाग पयासी की पुस्तकों को थोक में क्रय करते हैं उनके खिलाफ विधानसभा में आने वाले प्रश्रों को अस्वीकृत कर दिया जाता है।

Wednesday, April 7, 2010

 जैन समाज अहिंसक हैं, कायर नहीं...

    नरेन्द्र जैन वंदना

    सोनकच्छ में जैनसंत आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज के संघ के साथ हुए दुव्र्यवहार के चौबीस घंटे बाद भी राज्य सरकार ने अभी तक उस निकम्मे कलेक्टर एनबीएस राजपूत के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की है। मंगलवार को जिस समय इस कलेक्टर के गनमेन और ड्रायवर सोनकच्छ के पास जैन समाज के लोगों को बेरहमी से पीट रहे थे और जैनसंतों के लिए अशब्दों का उपयोग कर रहे थे, तब यह कलेक्टर अपनी इनोवा कार में बैठा मुस्करा रहा था। लेकिन जैसे ही वहां जैसे ही जैन समाज के लोग एकत्रित हुए कलेक्टर ने पिटाई के डर से कार में से दौड़ लगा दी और पास के ही एक घर में घुस गया। सवाल यह है कि - इस घटना को लेकर पिछले चौबीस घंटे से पूरे प्रदेश में जैन समाज आक्रोशित है, लेकिन राज्य सरकार पर इसका असर नहीं हुआ है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भले व्यक्ति हैं, इसलिए उन्होंने तत्काल जैन समाज से क्षमायाचना कर ली, लेकिन अपने इन घंमडी अफसरों की हरकतों के लिए आखिर मुख्यमंत्री कब तक मांफी मांगते रहेंगे? सवाल यह भी है कि - यदि यही घटना अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के संत के साथ होती तो क्या अभी तक कलेक्टर गिरफ्तार नहीं हो चुका होता?
    आचार्यश्री विशुद्धसागर जी महाराज अपने नाम के अनुरूप आचरण वाले संत हैं। देशभर में उनके त्याग व तपस्या की चर्चा होती है। यहीं कारण है कि जैनसंत ने इतनी बड़ी घटना के बाद भी समाज को शांत किया और अपने गंतव्य की ओर बढ़ गए, लेकिन देश व प्रदेश में जिसने भी इस घटना के बारे में सुना वह न केवल दुखी हुआ, बल्कि कुछ लोगों ने तो इसे उपसर्ग मानकर भोजन का भी त्याग कर दिया। इंदौर भोपाल सहित कई शहरों में प्रदर्शन व ज्ञापन दिए जाने लगे, लेकिन राज्य सरकार ने कलेक्टर के खिलाफ कार्यवाही करना उचित नहीं समझा। इससे जैन समाज में जबरदस्त रोष है। हम यह बता देना चाहते हैं कि जैन समाज अहिंसक समाज है, लेकिन कायर नहीं है, यदि राज्य सरकार ने अपने इस बिगड़े अफसर को सजा नहीं दी तो जैन समाज के युवक उससे अपने स्तर पर निबटने के लिए स्वतंत्र होंगे और इसकी जिम्मेदारी भी सरकार की होगी।

                                              - लेखन भोपाल श्री दिगम्बर जैन मुनिसंघ सेवा समिति के महांमत्री हैं
                   जैनसंत से दुव्र्यवहार पर

            जैन समाज हुआ आग बबूला
            कलेक्टर को निलंबित कर गिरफ्तार करने की माग
             मध्यप्रदेश के कई शहरों में हुए जबरदस्त प्रदर्शन


     राजनीतिक संवाददाता
    भोपाल। देवास जिले के सोनकच्छ में जैनसंत आचार्यश्री विशुद्धसागर जी महाराज के साथ बड़वानी कलेक्टर एनबीएस राजपूत द्वारा किए गए दुव्र्यवहार के बाद पूरे मध्यप्रदेश का जैन समाज आग बबूला है। बुधवार को पूरे प्रदेश में जैन समाज ने एक साथ प्रदर्शन व धरने देकर कलेक्टरों व संभागायुक्तों को ाापन देकर बडवानी कलेक्टर राजपूत को तत्काल निलंबित करने की मांग की। जैन समाज में इस बात को लेकर भी गुस्सा है कि चौबीस घंटे बीतते के बाद भी राज्य सरकार ने अभी तक कलेक्टर के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की है। गुरूवार को भी जैन समाज ने कई शहरों में प्रदर्शन की घोषणा की है। भोपाल जैन समाज के अध्यक्ष पंकज जैन ने साफ कहा है कि - हमें कलेक्टर के निलंबन से कम कुछ भी मंजूर नहीं है।
    मंगलवार को सुबह आचार्यश्री विशुद्धसागर जी महाराज संघ सहित आष्टा से सोनकच्छ की ओर पद विहार कर रहे थे। तभी भोपाल की ओर से आ रही बड़वानी कलेक्टर राजपूत की इनोवा कार ने मुनिसंघ के साथ चल रहे लोगों को टक्कर मार दी। इसके बाद कलेक्टर के निर्देश पर उनके ड्रायवर व गनमेन ने जैन समाज के लोगों पर हमला कर दिया तथा दो लोगों को गंभीर रुप से घायल कर दिया। जैन समाज के अनुसार शराब के नशे में धुत्त यह लोग स्टेनगन दिखाकर लोगों को डरा रहे थे तथा जैन मुनियों के लिए भी अशब्दों का उपयोग करते रहे थे। बाद में सूचना मिलने पर आष्टा व सोनकच्छ से जैन समाज के लोग वहां पहुंचे तब कलेक्टर राजपूत गाड़ी से उतरकर वहां एक एलआईसी एजेंट के घर में जाकर छुप गए, बाद में वे सोनकच्छ एसडीएम की मदद से एक बेलोरो गाड़ी बुलाकर वहां भाग गए। जैन समाज के आक्रोश को देखते हुए पुलिस ने कलेक्टर के गनमेन व ड्रायवर को गिरफतार कर लिया है।
प्रदेश भर में प्रदर्शन : इस घटना को लेकर बुधवार को मप्र के लगभग सभी शहरों में जैन समाज ने अलग अलग ढंग से प्रदर्शन किए एवं अपने अपने जिले के कलेक्टरों को ज्ञापन सौंपे। विदिशा में लगभग पांच सौ से अघिक ह्दयमोहन जैन के नेतृत्व में मौन जलूस लेकर कलेक्टर कार्यालय पहुंचे जहां एसडीएम को ज्ञापन सौंपा गया। ह्दयमोहन जैन का कहना है कि - मंगलवार की घटना से जैन समाज आग बबूला है क्योंकि एक अहिंसक समाज के साथ प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी के इस व्यवहार ने जैन समाज के अस्तित्व पर प्रश्र चिन्ह लगा दिया है। ह्दयमोहन जैन ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से बड़वानी कलेक्टर को तत्काल निलंबित करके जैन संत के साथ बदसलूकी के आरोप में गिरफ्तार करने की मांग की है।



   
   
मुनि संघ को टक्कर मारकर भागे कलेक्टर
     नशे में धुत्त गनमैन व ड्रायवर गिरफ्तार
       मुख्यमंत्री ने मांगी समाज से क्षमा


   सोनकच्छ। सोनकच्छ से दस किलोमीटर पहले अगेरा फाटे के पास मंगलवार की सुबह बडवानी के कलेक्अर के वाहन ने जैनसंत आचार्यश्री विशुद्धसागर जी महाराज के संघ के सदस्यों को टक्कर मार दी जिससे दो लोग घायल हो गए। इस घटना के बाद कलेक्टर के गनमैन व ड्रायवर ने मुनिसंघ के साथ विहार कर रहे लोगों के साथ मारपीट की एवं मुनियों को भी भलाबुरा कहा जिससे लोगों में आक्रोश भड़क गया। कलेक्टर ने एक अन्य वाहन से वहां से भग निकले, लेकिन गनमैन व ड्रायवर को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस घटना के लिए जैन समाज से क्षमायाचना की है।
    घटना मंगलवार सुबह की है। जैनमुनि आष्टा से सोनकच्छ की ओर विहार कर रहे थे। संघ के दो कार्यकर्ता नवीन जैन व गुलजारी लाल जैन व्यवस्था में लगे थे, तभी भेापाल की ओर से तेज गति से आ रही बडवानी कलेक्टर एनबीएस राजपूत की इनोवा गाड़ी ने उक्त दोनों को टक्कर मार दी। टक्कर मारने के बाद उन्होंने गाड़ी रोकी और उक्त दोनों को पिटने भी लगे। मुनि संघ के सामने ही कलेक्टर के ड्रायवर व गनमेन ने मुनियों के लिए भी आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया। इससे मुनिसंघ के साथ चले रहे लोगों का आक्रोश भड़क गया। भारी संख्या में जैन समाज के आष्टा व सोनकच्छ से घटना स्थल पर एकत्रित हो गए एवं कलेक्टर के खिलाफ कार्यवाही की मांग करने लगे। देखते देखते यह खबर आग की तरह पूरे प्रदेश में फेल गई और कई शहरों में कलेकअर के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे। इंदौर में लोग राजवाडे पर एकत्रित हुए तथा भोपाल में जैन समाज ने पुलिस महानिदेशक एसके राउत को ज्ञापन सौंपकर कलेक्टर के खिलाफ कार्यवाही की मांग की।
    देवास जिला प्रशासन एक अन्य वाहन से कलेक्टर राजपूत को वहां से रवाना किया। कलेक्टर के ड्रायवरन एवं गनमेन के खिलाफ गैर जमानती धाराओं के तहत प्रकरण कायम कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। सोनकच्छ जैन समाज के अध्यक्ष रवीन्द्र जैन ने बताया कि इस घटना की जानकारी मिलते ही स्वयं मुख्यमंत्री शिवीराज सिंह चौहान ने जैन समाज के लोगों से सम्पर्क किया एवं घटना के लिए खेद व्यक्त किया। बाद में कलेक्टर ने भी मुनिसंघ से क्षमा याचना की है। इसके बादी जैन समाज ने इस प्रकरण को समाप्त करने का निर्णय लिया है।
निजी गाडी पर लालबत्ती : कलेक्टर राजपूत एक निजी गाडी एमपी09 एफए 1814 पर लालबत्ती लगाकर यात्रा कर रहे थे। जैन समाज का आरोप है कि इस वाहन में शराब की बोतलें रखी थीं, जिन्हें कलेक्टर के कहने पर जिला प्रशासन के अधिकारियों ने हटवाया। जैन समाज का यह भीर आरोप है कि ड्रायवर व गनमेन नशे में धुत्त थे। उन्होंने पुलिस से इन दोनों को मेडीकल कराने की भी मांग की।
मैं होश में नहीं था : इस संबंध में कलेक्टर बडवानी राजपूत का कहना है कि एक्सीडेंट के बाद मैं बेहोश हो गया था। मुझे होश ही नहीं था, कि क्या घटना हुई है। मुझे देवास प्रशासन ने वहां सुरक्षित निकाला।