मध्यप्रदेश में अंकल जजों को लेकर महाभारत
गुटों में बंटे वकील व जज
रवीन्द्र जैन
भोपाल। मप्र में पिछले तीन दिन से अंकल जजों को हटाने की मांग जोर पकड़ती जा रही है। यदि मप्र बार कौंसिल की ग्वालियर शाखा की इस मांग पर कार्रवाई की गई तो देश भर में लगभग सौ हाईकोर्ट जजों को अपना बोरिया बिस्तर बांधना पड़ सकता है। दरअसल अंकल जज ऐसे जजों को नाम दिया गया है जो जिस कोर्ट में वर्षों वकालत करने के बाद उसी कोर्ट में जज बन जाते हैं। इन अदालतों में इन जजों के पुत्र, भाई व अन्य रिश्तेदार भी वकालत करते हैं। भारत के विधि आयोग ने देश के कानून मंत्री को सौंपी अपनी रिपोर्ट में ऐसे जजों को अंकल जज कहा है और इन्हें इन अदालतों से हटाने की सिफारिश भी की है।
आगे बढऩे से पहले भारत के विधि आयोग की 230 वीं रिपोर्ट पर नजर डाल लेते हैं। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एआर लक्ष्मनन की अध्यक्षता में तैयार यह रिपोर्ट 5 अगस्त 2009 को विधि मंत्री को सौंपी गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि - राज्यों के हाईकोटों में ऐसे जजों की नियुक्ति न की जाए जिन्होंने उसी कोर्ट में वर्षों तक वकालत की है और वर्तमान में उसी कोर्ट में उनके पुत्र व अन्य रिश्तेदार पे्रक्टिस कर रहे हैं। इनसे निष्पक्ष न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती। रिपोर्ट में कहा गया है कि - जहां वषो्रं तक काम करते हैं वहां मित्र व दुश्मन बनना स्वभाविक हैं। ऐसे में इन जजों को संबंधित कोर्ट से हटा देना चाहिए।
इस मुद्दे पर सबसे पहले मप्र हाईकोर्ट की ग्वालियर बैंच की बार एसोसिएशन ने पहल की और शुक्रवार को इसके अध्यक्ष प्रेमसिंह भदौरिया ने जबलपुर पहुंचकर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रफत आलम से मुलाकत मप्र हाईकोर्ट के ऐसे नौ जजों को हटाने की मांग कर डाली। भदौरिया ने अपने इस ज्ञापन की प्रति राष्ट्रपति एवं देश के काननू मंत्री व सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेजेत हुए विधि आयोग की रिपोर्ट को तत्काल लागू करने की मांग की है। भदौरिया ने अपने ज्ञापन में इन जजों के बारे में कई चौंकाने वाली जानकारियां भी दी हैं। उन्होंने ग्वालियर में पदस्थ हाईकोर्ट के एक जज के बारे में लिखा है कि - वे शाम को दफतर से फ्री होकर अपने पुत्र के उस कार्यालय में बैठते हैं, जो वह वकील के रुप में सुबह शाम अपने क्लाइंटों से मुलाकात करता है। भदौरिया ने अपने ज्ञापन में ज्ञापन में इन सभी नौ जजों के उन रिश्तेदारों के नामों को भी उल्लेख किया है, जो उसी कोर्ट में वकालत करते हैं और उन्हें प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रुप से जज का रिश्तेदार होने का लाभ भी मिलता है। ,
खास बात यह है कि भदौरिया की इस मुहिम को पूरे प्रदेश में वकीलों एवं मीडिया का जबरदस्त समर्थन मिल रहा है। पिछले तीन से जबलपुर, ग्वालियर एवं इंदौर हाईकोर्ट में इस मुद्दे पर जबरदस्त बहस छिड़ गई है। इस मुद्दे जजों व वकीलों के गुट भी बन गए हैंञ जो जज गृह नगर में पदस्थ नहीं हैं, वे न केवल इस मुहिम को समर्थन कर रहे हैं, बल्कि पर्दे के पीछे से इस मुहिम को हवा भी दे रहे हैं। वहीं दूसरी ओर इस मुहिम से जो जज प्रभावित हो सकते हैं, वे अपने समर्थक वकीलों के जरिए इस मुहिम को ठण्डा करने एवं मुहिम की हवा निकालने में लग गए हैं। सबकी नजर मप्र के मुख्य न्यायाधीश के निर्णय पर टिकी हुई है। ऐसा माना जा रहा है कि बेशक सभी जजों को एक साथ नहीं बदला जा सकता, लेकिन कुछ विवादस्पद जजों को कुछ दिनों में गृह नगर से हटाया जा सकता है।
अपनी मुहिम के पक्ष में भदौरिया का कहना है कि - पूरे प्रदेश के किसी भी थाने में पुलिस के एक अदने से आरक्षक को भी गृह नगर के थाने में इसलिए नहीं रखा जाता, क्योंकि गृहनगर में रहकर वह अपने कत्र्तव्य के साथ न्याय नहीं कर सकता। तो फिर यही नियम जजों पर लागू क्यों नहीं किया जा सकता?
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Friday, September 10, 2010
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