Thursday, May 6, 2010

जेलखाने हैं या कत्लखाने





















मप्र की जेलों में 6 साल में 532 बंदियों की मौत



भ्रष्टाचार में डूबे हैं जेल अफसर


कैदियों को न भोजन मिलता है और न ही दवाएं

रवीन्द्र जैन

भोपाल। मध्यप्रदेश के लिए यह चौंकाने वाली जानकारी है कि पिछले छह वर्षों में राज्य की 121 जेलों में 532 से अधिक कैदियों की मौत हो चुकी है। मौत के इतने बड़े आंकड़े का एकमात्र कारण मप्र की जेलों में व्याप्त भ्रष्टाचार, डाक्टरों की कमी और उपचार का अभाव है। पिछले कई वर्षों में मप्र में एक भी कैदी को सजाएं मौत नहीं हुई, लेकिन जेल विभाग की लापरवाही के चलते छह वर्षों में इतनी बड़ी संख्या में कैदी मारे गए हैं। इंदौर,जबलपुर और भोपाल की जेलें तो कैदियों के लिए कत्लगाह साबित हो रहीं हैं। यहीं कारण है कि इस दौरान 135 बार कैदियों के जेल तोड़कर भागने का प्रयास किया और सौ से अधिक कैदी अभी फरार हैं। मप्र में जेलों की हकीकत को सामने लाने के लिए राज एक्सप्रेस ने सूचना के अधिकार के तहत बमुश्किल यह जानकरी जुटाई है।

मौतों का वर्षवार आंकड़ा

वर्ष 2004 - 67

वर्ष 2005 - 98

वर्ष 2006 - 65

वर्ष 2007 - 92

वर्ष 2008 - 110

वर्ष 2009 - 83

वर्ष 2010 फरवरी तक - 17

स्वास्थ के नाम पर मजाक : मप्र की जेलों में कैदियों के स्वास्थ के नाम पर मजाक बना रखा है। प्रदेश की 121 जेलों में कैद 33 हजार से अधिक कैदियों के स्वास्थ के लिए केवल 24 नियमित चिकित्सक रखे गए हैं। इनमें 17 मेडीकल ऑफिसर में से 15 ही पद भरे हैं और 7 असिस्टेंड सर्जन पदस्थ हैं। इनके अलावा अधिकांश जेलों में पार्टटाइम डाक्टरों की नियुक्तियां की गईं है जो किसी न किसी के प्रभाव व सिफारिश रखे जाते हैं। इन चिकित्सकों की कैदियों के उपचार को लेकर कोई जिम्मेदारी नहीं है। जेलों में महिला कैदियों के लिए एकमात्र स्त्री रोग विशेषज्ञ का पद स्वीकृत है, लेकिन वह भी रिक्त पड़ा है। जेलों में पार्टटाइम चिकित्सकों की लंबी चौड़ी फौज बताई है, लेकिन इसके बाद भी इतनी बड़ी संख्या में कैदियों की मौत के लिए कौन जिम्मेदार है? जेलों में 74 कंपाउन्डरों में से मात्र 28 पदस्थ हैं और 24 मेल नर्स में से केवल 14 ही कार्यरत हैं।

पैसे से मिलता है इलाज : जेलों में बिना पैसे के कुछ नहीं होता। परिजनों से मुलाकात करना हो अथवा अपना उपचार करना हो घर से पैसे मंगवाने पड़ते हैं। यहां कि जेल में भरपेट भोजन के लिए कैदियों को घर से पैसे मंगवाकर देने पड़ते हैं। पैसे के लाजल में जेल अधिकारी अच्छे खासे कैदी को उपचार के लिए जेल से बाहर भेज देते हैं, लेकिन यदि रिश्वत न मिले तो गंभीर बीमार कैदी भी जेल की सलाखों के पीछे ही घुट-घुट कर दम तोड़ देता है।

जेल अफसरों के दावे : जेल विभाग की वेबसाइड पर दावा किया गया है कि मप्र की जेलों में कैदियों को सुबह नाश्ता, दोपहर व शाम को भोजन एवं चाय दी जाती है। इसके अलावा रविवार को सभी कैदियों को भोजन के साथ हलुआ दिया जाता है। लेकिन वास्तविकता से इससे कोसों दूर है।

जेल अफसरों पर आरोप : मप्र जेलों के अफसरों पर कई गंभीर आरोप होने के बाद भी उनके विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं होती। सूत्रों के अनुसार पिछले दिनों मंत्रालय के अधिकारी ने भारी रिश्वत लेकर एक जेल अधीक्षक के खिलाफ चल रहीं 7 विभागीय जांचों को एकसाथ समाप्त करके उन्हें डीआईजी के पद पर पदस्थ कराया है। जेल में अतिरिक्त महानिरीक्षक का पद आज तक लोक सेवा आयोग से स्वीकृत नहीं है। लेकिन फिर भी इस पद पर एके खरे को पदोन्नति दी गई है।

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