Thursday, May 6, 2010



रेत के मुद्दे पर हाईकोर्ट में सुनवाई आज

राज्य सरकार हुई सक्रिय, दिल्ली से वकील बुलाया

रवीन्द्र जैन

भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार भारी चिन्तित है कि कही मप्र की नदियों से अंधाधुंध रेत निकासी पर मप्र हाईकोर्ट का ग्रहण न लग जाए? मप्र खनिज विकास निगम के प्रबंध संचालक एसके मिश्रा इस मामले में एकदम सक्रिय हो गए हैं और दिल्ली से एक बड़े वकील को बुला लिया गया है। इस मामले की सुनवाई गुरुवार को मप्र के मुख्य न्यायाधीश करेंगे।

भोपाल के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अजय दुबे ने जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका दर्ज कर मध्यप्रदेश की नदियों से 50 हैक्टैयर तक के क्षेत्र में रेत निकासी से पहले पर्यावरण प्राधिकरण से अनुमति लेने का आग्रह किया है। अभी तक मप्र में ऐसी व्यवस्था नहीं है।

परेशानी का कारण : दरअसल सरकार इसलिए भी परेशान है कि दुबे की पिछली याचिका, जिसमें उन्होंने पर्यावरण विभाग की बिना अनुमति से चल रहीं खदानों पर रोकने की मांग की थी, को सरकार ने हल्के में लिया था और उनकी याचिका पर हाईकोर्ट ने ऐसी सभी खदानों पर रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट के उस निर्णय से मप्र में कई दिनों तक सड़क निर्माण के कार्य बंद हो गए थे जो खदानों से पत्थर लाकर सड़क बनाने में लगे थे। दुबे ने अब हाईकोर्ट से आग्रह किया है कि राज्य की नदियों से हो रही अंधाधुंध रेत निकासी पर रोक लगाने के लिए इस कार्य के लिए भी पर्यावरण प्राधिकरण की अनुमति आवश्यक की जाए।

वर्तमान व्यवस्था : मप्र हाईकोर्ट के आदेश दिनांक 2 जुलाई 2008 के बाद खनिज निगम ने रेत की खदानों पर भी रोक लगा दी थी। लेकिन बाद में परीक्षण के बाद खनिज निगम ने पाया कि रेत खदानों के लिए पर्यावरण निवारण मंडल की अनुमति की आवश्यकता नहीं है। इसके बाद निगम ने 18 जुलाई 2008 को रेत की खदानें फिर से प्रारंभ की दी थीं। लेकिन इसी बीच मप्र हाईकोर्ट ने एम अली की यािचका पर सुनवाई करते हुए 19 फरवरी 2009 को आदेश दिया कि - रेत की ऐसी खदानें जिनका रकबा 5 हैक्टेयर से अधिक है वहां बिना शासन की विशिष्ठ अनुमति के खनन कार्य नहीं हो सकेगा। इस आदेश के संबंध में खनिज निगम ने हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखा तो हाईकोर्ट ने 26 मार्च 2009 को आदेश दिया कि - उन्हीं रेत खदानों को शुरू किया जाए जो दो माह में संबंधित सक्षम प्राधिकारी के समक्ष पर्यावरण्रीय अनुमति के लिए आवेदन कर दें।

दिल्ली से वकील बुलाए : सूत्रों के अनुसार 6 मई को मप्र हाईकोर्ट में राज्य सरकार का पक्ष रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता विपलप शर्मा को बुलाया गया है। बताते हैं कि शर्मा खनिज निगम के एमडी एसके मिश्रा के रिश्तेदार भी हैं।

केन्द्र सरकार ने दिया शपथ पत्र : इधर इस संबंध्ण में केन्द्र सरकार ने भी स्पष्ट कर दिया है कि गौण खनिज जैसा कुछ नहीं होता। केन्द्र के अनुसार खनिज एक ही होता है और जहां भी खनन का कार्य हो रहा हो वहां पर्यावरण प्राधिकरण की अनुमति आवश्यक है।

प्राधिकरण का गठन : केन्द्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने सभी राज्यों में राज्य स्तरीय
पर्यावरण प्रभाव निर्धारण प्राधिकरण का गठन किया है। इस प्राधिकरण द्वारा राज्य में प्रस्तावित 50 हेक्टेयर तक के खनन प्रकरणों को पूर्व पर्यावरणीय अनुमति प्रदान की जाती है। प्राधिकरण के तत्तकालीन सदस्य सचिव मनोज गोविल ने 14 दिसम्बर 2009 को मप्र खनिज विकास निगम के प्रबंध संचालक एसके मिश्रा को पत्र लिखकर स्पष्ट कहा था कि - रेत की खदानों के मामले में लीज दो वर्ष के लिए दी जाती है व इस अवधि में से काफी समय पूर्व पर्यावरणीय अनुमति लेने में व्यतीत हो जाता है। ऐसे में रेत खदान की लीज देने से पहले ही कलेक्टर द्वारा पूर्व पर्यावरणीय अनुमति प्राप्त करने की कार्यवाही की जाए।

परेशान हैं एमडी : मप्र खनिज विकास निगम के प्रबंध संचालक एसके मिश्रा दुबे की याचिका से भारी परेशान हैं। वे कहते हैं कि - ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता ही राज्य के विकास में रोडा अटकाते हैं। मुख्यमंत्री के सचिव का भी कार्य देख रहे मिश्रा खनिज कानून की पुस्तकों को अपनी टेबिल पर रखे हुए और बताते हैं कि - रेत निकासी से भला पर्यावरण को नुक्सान कैसे हो सकता है?

नदी बचाने का सही अभियान है : दूसरी ओर इस लड़ाई को हाईकोर्ट में लडऩे वाले सामाजिक कार्यकर्ता अजय दुबे का कहना है कि - अजय दुबे का दावा है कि वे मप्र में नदियों के बचाने के नाम पर ढोंग के खिलाफ यह छोटी सी लड़ाई सरकार में बैइक लोग वास्तव में नदियों को बचाने के लिए चिन्तित है तो उन्हें मेरा साथ देना चाहिए। दुबे का कहना है कि नदियों से अंधाधुंध रेत निकासी पर रोक लगना जरूरी है।

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