सदन से गायब होते विधायक
नवोदित सामाजिक कार्यकर्ता कर रहीं हैं शोध
कुलदीप सारस्वत
भोपाल। मप्र विधानसभा में प्रश्र पूछकर गायब होना विधायकों ने अपना अधिकार मान लिया है। विधायकों की ऐसी हरकतों के बारे में कुछ भी लिखने वालों को संरक्षण देने के बजाय विशेषाधिकार डंडा दिखाकर डराने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन नवोदित सामाजिक कार्यकर्ता रोली शिवहरे ने इस मुद्दे पर शोध करने की ठान ली है और वे लगातार ऐसे विघायकों की हरकतों को नोट कर रहीं हैं,जो प्रश्र पूछकर सदन से गायब रहने के आदी हो गए हैं। रोली ने सूचना के अधिकार के तहतपिछले छह साल के जो आंकड़े तैयार किए हैं उसमें कई चौंकाने वाली जानकारियां हैं।
मप्र विधानसभा में विधायक तारांकित व अतारांकित प्रश्र पूछ सकते हैं। तारांकित प्रश्नों में से प्रतिदिन 25 प्रश्रों पर सदन में चर्चा कराई जाती है जबकि अतारांकित प्रश्रों के जबाव लिखित में दिए जाते हैं। जिन तारांकित प्रश्रों को चर्चा में शामिल नहीं कर पाते उन्हें अतारांकित प्रश्र में परिवर्तित कर दिया जाता है। जिन प्रश्रों पर सदन में चर्चा होती है उन्हें महत्वपूर्ण माना जाता है। क्योंकि इन प्रश्रों के बारे में कई बार जांच आदि की घोषणाएं होती हैं और इन प्रश्रों को मीडिया में भी अच्छा स्थान मिलता है। उम्मीद की जाती है कि विधायकों ने जिन प्रश्रों को तारांकित के रुप में पूछा है, वे उन पर चर्चा के लिए जरूर उपस्थित रहेंगे, क्योंकि इन प्रश्रों के जवाब के लिए मंत्री तैयारी करके सदन में आते हैं।
रोली शिवहरे ने सूचना के अधिकार के तहत विधानसभा सचिवालय से पिछले छह साल में विधायकों द्वारा पूछे गए प्रश्रों एवं उन प्रश्नों पर चर्चा के समय उनके गायब होने के बारे में जानकारी निकाली और फिर इस जानकारी के आधार विश£ेषण किया कि प्रश्र पूछकर गायब होने वाले विधायक कौन कौन से थे और उन्होंने किस विभाग संबंधित प्रश्र किए थे।
आंकड़ों के आयने में : रोली के अनुसार वर्ष 2004 से 2009 तक में हुए 16 विधानसभा सत्रों में विधायकों द्वारा करीब 4090 प्रश्र पूछे गए, जिनमें से करीब 171 विधायकों ने 784 तारांकित प्रश्र पूछे, इनमें 409 तारांकित प्रश्र पर चर्चा के समय सौ से अधिक विधायक गायब हो रहे। यहां बता दें कि इन प्रश्रों के जवाब तैयार कराने में राज्य सरकार लाखों रुपए व्यय किए हैं।
ये विधायक रहे सबसे ज्यादा गायब
- रसाल सिंह द्वारा 25 प्रश्र पूछे गए, जिनमें से वे करीब 18 प्रश्रों पर चर्चा के दौरान अनुपस्थित रहे
- सोबरन सिंह द्वारा 21 प्रश्र पूछे गए , जिनमें से वे करीब 8 प्रश्रों पर चर्चा के दौरान अनुपस्थित रहे।
- रवीन्द्र महाजन द्वारा 19 प्रश्र पूछे गए, जिनमें से वे करीब 13 प्रश्रों पर चर्चा के दौरान अनुपस्थित रहे
- अंचल सोनकर द्वारा 16 प्रश्र पूछे गए, जिनमें से वे करीब 9 प्रश्रों पर चर्चा के दौरान अनुपस्थित रहे
- महेन्द्र प्रताप सिंह द्वारा 13 प्रश्र पूछे गए, जिनमें से वे करीब 8 पर चर्चा के दौरान अनुपस्थित रहे
- अखण्ड प्रताप सिंह द्वारा 13 प्रश्र पूछे गए, जिनमें से वे करीब 7 प्रश्रों पर चर्चा के दौरान अनुपस्थित रहे
- लक्ष्मण सिंह गौड़ द्वारा 10 प्रश्र पूछे गए, जिनमें से करीब 8 प्रश्रों पर चर्चा के दौरान अनुपस्थित रहे
संदेह के दायरे में : मप्र विधानसभा में प्रश्रों को लेकर कई आरोप लगते रहे हैं। आरोप है कि जिस प्रकार लोकसभा में सांसद रिश्वत लेकर प्रश्र पूछते हैं, उसी प्रकार मप्र के विधायक भी किसी ने किसी उपकृत होकर प्रश्र के समय सदन से गायब हो जाते हैं।
भ्रष्टाचार से जुड़े हैं प्रश : विधानसभा सत्रों के दौरान जिन 409 प्रश्रों पर चर्चा नहीं की गई है, उनमें से अधिकांश प्रश्र अधिकारियों द्वारा विभागीय कार्यों में बरती गई भ्रष्टाचार से संबंधित है। जिनमें अधिकांश प्रश्र कृषि, राजस्व, पंचायत, लोक निर्माण एवं स्वास्थ्य विभाग से संबंधित हैं।
Friday, June 18, 2010
Saturday, June 5, 2010
खनिज सचिव एसके मिश्रा परेशान
रवीन्द्र जैन
भोपाल। मप्र के खनिज सचिव एसके मिश्रा राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त के आदेश से परेशान हैं। सूचना आयोग उन्हें मप्र की सभी चल रहीं, निरस्त की गईं और बंद हो चुकी खदानों की सूची आवेदनकर्ता को पन्द्रह दिन में देने के निर्देश दिए हैं। सूचनाकर्ता का कहना है कि - इस सूची से वे खनिज विभाग द्वारा पिछले दिनों हाईकोर्ट में दिए गए शपथ पत्र से मिलान करना चाहते हैं, यदि विभाग ने हाईकोर्ट से जानकारी छिपाई है तो खनिज विभाग के अफसरों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही करेंगे।
सामाजिक कार्यकर्ता अजय दुबे ने लगभग दो साल पहले मप्र खनिज विभाग से आठ बिन्दुओं पर जानकारी मांगी थी, लेकिन विभाग ने उन्हें यह जानकारी नहीं दी। निर्धारित समय अवधि व्यतीत होने के बाद दुबे ने विभाग के अपीलीय अधिकारी एसके मिश्रा के समक्ष अपील की, लेकिन मिश्रा ने उनकी अलीप को रद्द कर दिया। दुबे ने मुख्य सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। मुख्य सूचना आयुक्त पीपी तिवारी ने इस संबंध में 4 जून 2010 को दोनों पक्षों को सुनवाई का अवसर दिया और सुनवाई के बाद एसके मिश्रा के आदेश को पलटते हुए खनिज विभाग को निर्देश दिए हैं कि वह पन्द्रह दिन में उक्त जानकारी दुबे को उपलब्ध कराएं।
क्या जानकारी मांगी है : एक जुलाई 2008 की स्थिति में संचालित सभी गौण व मेजर खदानों की सूची, पर्यावरण अनुमति के बिना संचालित खदानों की सूची, जिन खदानों के लायसंस की अवधि समाप्त हो गई अथवा विभाग ने लायसंस निरस्त किया हो उसकी सूची, जिन खदानों को प्रतिबंधित किया गया हो, उनकी सूची, जिन खदानों के लायसंस नियम 13 के तहत निरस्त किए गए हैं, उनकी सूची, जो खदानें बंद हो गईं हैं, उनकी सूची, जिन खदानों को स्थाई बंद कर दिया है, लेकिन फिर भी वहां खनन की शिकायतें मिल रहीं हो उनकी सूची।
भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम : इस संबंध में दुबे का कहना है कि वे पिछले दो वर्षों से मप्र के खनिज विभाग में चल रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चला रहे हैं और इस आदेश से उनके अभियान को ताकत मिलेगी।
शास्ति का भी नोटिस : मुख्य सूचना आयुक्त तिवारी ने इस प्रकरण में विभाग द्वारा समय पर जानकारी नहीं दिए जाने पर लोक सूचना अधिकारी से दण्ड वसूलने के लिए नोटिस जारी करने के निर्देश भी दिए हैं।
रवीन्द्र जैन
भोपाल। मप्र के खनिज सचिव एसके मिश्रा राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त के आदेश से परेशान हैं। सूचना आयोग उन्हें मप्र की सभी चल रहीं, निरस्त की गईं और बंद हो चुकी खदानों की सूची आवेदनकर्ता को पन्द्रह दिन में देने के निर्देश दिए हैं। सूचनाकर्ता का कहना है कि - इस सूची से वे खनिज विभाग द्वारा पिछले दिनों हाईकोर्ट में दिए गए शपथ पत्र से मिलान करना चाहते हैं, यदि विभाग ने हाईकोर्ट से जानकारी छिपाई है तो खनिज विभाग के अफसरों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही करेंगे।
सामाजिक कार्यकर्ता अजय दुबे ने लगभग दो साल पहले मप्र खनिज विभाग से आठ बिन्दुओं पर जानकारी मांगी थी, लेकिन विभाग ने उन्हें यह जानकारी नहीं दी। निर्धारित समय अवधि व्यतीत होने के बाद दुबे ने विभाग के अपीलीय अधिकारी एसके मिश्रा के समक्ष अपील की, लेकिन मिश्रा ने उनकी अलीप को रद्द कर दिया। दुबे ने मुख्य सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। मुख्य सूचना आयुक्त पीपी तिवारी ने इस संबंध में 4 जून 2010 को दोनों पक्षों को सुनवाई का अवसर दिया और सुनवाई के बाद एसके मिश्रा के आदेश को पलटते हुए खनिज विभाग को निर्देश दिए हैं कि वह पन्द्रह दिन में उक्त जानकारी दुबे को उपलब्ध कराएं।
क्या जानकारी मांगी है : एक जुलाई 2008 की स्थिति में संचालित सभी गौण व मेजर खदानों की सूची, पर्यावरण अनुमति के बिना संचालित खदानों की सूची, जिन खदानों के लायसंस की अवधि समाप्त हो गई अथवा विभाग ने लायसंस निरस्त किया हो उसकी सूची, जिन खदानों को प्रतिबंधित किया गया हो, उनकी सूची, जिन खदानों के लायसंस नियम 13 के तहत निरस्त किए गए हैं, उनकी सूची, जो खदानें बंद हो गईं हैं, उनकी सूची, जिन खदानों को स्थाई बंद कर दिया है, लेकिन फिर भी वहां खनन की शिकायतें मिल रहीं हो उनकी सूची।
भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम : इस संबंध में दुबे का कहना है कि वे पिछले दो वर्षों से मप्र के खनिज विभाग में चल रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चला रहे हैं और इस आदेश से उनके अभियान को ताकत मिलेगी।
शास्ति का भी नोटिस : मुख्य सूचना आयुक्त तिवारी ने इस प्रकरण में विभाग द्वारा समय पर जानकारी नहीं दिए जाने पर लोक सूचना अधिकारी से दण्ड वसूलने के लिए नोटिस जारी करने के निर्देश भी दिए हैं।
मप्र में नई उद्योग नीति शीघ्र
मुम्बई अधिवेशन में छा गए शिवराज
राजनीतिक संवाददाता
भोपाल। मुम्बई में शनिवार से शुरू हुए भाजपा शासित राज्यों के मंत्रियों के प्रशिक्षण सम्मेलन में मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पूरी तरह छाए रहे। उन्होंने घोषणा की कि मप्र में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए नई उद्योग नीति शीघ्र लाई जाएगी। चौहान ने मप्र में चल रहीं योजनाओं को लेकर जो प्रस्तुति दी उसे काफी सराहा गया है।
मुख्यमंत्री ने दावा किया कि किसानों को गेहूं उपार्जन पर बोनस देने वाला मप्र देश का पहला राज्य बन गया है। राज्य में किसानों को मात्र तीन प्रतिशत ब्याज पर ऋण दिया जा रहा है। स्थानीय निकायों में महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण देने से राज्य में 55 प्रतिशत महिलाएं चुनकर आईं हैं। लाड़ली लक्ष्मी योजना में अभी तक साढ़े चार लाख बच्चियों को इसका लाभ मिल चुका है। कन्यादान योजना में सरकार के सहयोग से अभी तक सवा लाख कन्याओं के हाथ पीले हो गए हैं। इसके अलावा जननी सुरक्षा योजना के कारण 80 प्रतिशत संस्थागत प्रसव होने से माताओं को सुरक्षा मिली है। मुख्यमंत्री ने दावा किया कि उनकी इन योजनाओं से उनकी सरकार की छवि गरीबों एवं मजदूरों की हितैषी सरकार की बन गई है।
मुम्बई अधिवेशन में छा गए शिवराज
राजनीतिक संवाददाता
भोपाल। मुम्बई में शनिवार से शुरू हुए भाजपा शासित राज्यों के मंत्रियों के प्रशिक्षण सम्मेलन में मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पूरी तरह छाए रहे। उन्होंने घोषणा की कि मप्र में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए नई उद्योग नीति शीघ्र लाई जाएगी। चौहान ने मप्र में चल रहीं योजनाओं को लेकर जो प्रस्तुति दी उसे काफी सराहा गया है।
मुख्यमंत्री ने दावा किया कि किसानों को गेहूं उपार्जन पर बोनस देने वाला मप्र देश का पहला राज्य बन गया है। राज्य में किसानों को मात्र तीन प्रतिशत ब्याज पर ऋण दिया जा रहा है। स्थानीय निकायों में महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण देने से राज्य में 55 प्रतिशत महिलाएं चुनकर आईं हैं। लाड़ली लक्ष्मी योजना में अभी तक साढ़े चार लाख बच्चियों को इसका लाभ मिल चुका है। कन्यादान योजना में सरकार के सहयोग से अभी तक सवा लाख कन्याओं के हाथ पीले हो गए हैं। इसके अलावा जननी सुरक्षा योजना के कारण 80 प्रतिशत संस्थागत प्रसव होने से माताओं को सुरक्षा मिली है। मुख्यमंत्री ने दावा किया कि उनकी इन योजनाओं से उनकी सरकार की छवि गरीबों एवं मजदूरों की हितैषी सरकार की बन गई है।
त्वरित टिप्पणी
विरासत की निर्मम हत्या
रवीन्द्र जैन
ग्वालियर में नगर निगम एवं जिला प्रशासन की लापरवाही से शनिवार को एक सौ पांच साल पुरानी विरासत की निर्मम हत्या हो गई। इस अपराध के दोषी कौन है? यह तो जांच के बाद ही तय होगा, लेकिन यह तय है कि इस भवन पर मालिकाना हक को लेकर दुकानदार, नगर निगम और पुरातत्व विभाग के बीच लंबे समय से विवाद की स्थिति बनी हुई थी। सन् 1905 में तत्कालीन महाराजा माधवराव सिंधिया द्वितीय ने महारानी विक्टोरिया की याद में जब इस भवन की निर्माण कराया था, तब शायद उन्होंने यह सोचा भी नहीं होगा कि, इस भवन के पिछवाड़े शराबियों का अड्डा बन जाएगा।
इस भवन को लेकर जिला प्रशासन व नगर निगम की लापरवाही किस हद थी कि, मार्केट के अंदर इतनी दुकानें बना ली गईं थी कि आम आदमी का पैदल चलना भी मुश्किल हो गया था। मार्केट के पूर्वी गेट की ओर चाट वालों का कब्जा हो गया था और अंदर किताबों के अलावा दौने-पत्तल वालों ने दुकान से ज्यादा सामान दुकान के बाहर फैला रखा था। पश्चिमी गेट की ओर भोजनालय बन गए थे और दक्षिणी गेट और उसके पीछे शराबियों का अघोषित अड्डा बना हुआ था। जिला प्रशासन की कृपा से इस भवन के पिछवाड़े देशी शराब की कलारी लंबे समय से चल रही थी। मार्केट के उत्तर दिशा में बने मुख्य द्वार की दुकानें सबसे मंहगी मानी जाती हैं। इसके बाद भी जिला प्रशासन ने इस एतिहासिक भवन को आग से बचाने के बारे में शायद कभी विचार ही नहीं किया था, और न ही दुकानदारों को इस संबंध में चेतावनी दी गई। नगर निगम तो इस मामले में और भी ज्यादा लापरवाह साबित हुआ। डेढ़ साल पहले 23 जनवरी 2009 को नगर निगम के तत्कालीन महापौर विवेक नारायण शेजवलकर ने विक्टोरिया मार्केट का भ्रमण किया था, तब उन्होंने दुकानदारों और यहां खरीदी करने आने वालों की समस्याओं को सुलझाने के बजाय फरमान जारी कर दिया था कि मार्केट की पहली मंजिल पर दुकानें बनाने की तैयारी की जाए। यह बात अलग है कि नगर निगम अफसरों ने महापौर के इस आदेश का पालन नहीं किया।
विक्टोरिया मार्केट, पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की राजनीतिक यात्रा का मूकदर्शक भी रहा है। ग्वालियर में अटलजी की बड़ी सभाओं के लिए मंच का निर्माण इस इमारत के गेट पर ही होता था। शुक्रवार की रात लोगों ने इस एतिहासिक भवन को आखिरी बार देखा, क्योंकि शनिवार की सुबह भीषण अग्रिकांड से यह भवन पूरी तरह नष्ट हो चुका था। इस भवन में बनी लगभग सौ से ज्यादा दुकानें पूरी तरह स्वाहा हो चुकी थीं, और बर्वाद हुए दुकानदारों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। प्रशासन ने पूरी तरह बर्वाद हो चुके पीडि़त दुकानदारों के आंसू पोंछने के नाम पर उन्हें बीस-बीस हजार रूपए देने का प्रयास करके एक तरह से उनके जले पर नमक डालने का ही प्रयास किया है।
ग्वालियर की पहचान उसकी एतिहासिक इमारतों से है और इन इमारतों की सुरक्षा को लेकर प्रशासन की ऐसी लापरवाही अक्षम्य है। महाराज बाड़ा जहां यह इमारत बनी हुई थी, वह ग्वालियर की शान है, लेकिन बेतरतीब ढंग से बन रहीं दुकानों और आसपास हो रहे अवैध निर्माण ने इस शान को कमजोर किया है। प्रशासन को अब जागना होगा और ग्वालियर की इस शान को बचाने सबको विश्वास में लेकर काम करना होगा। वरना ग्वालियर की एतिहासिक विरासतें भगवान भरोसे ही रहेंगी....?
विरासत की निर्मम हत्या
रवीन्द्र जैन
ग्वालियर में नगर निगम एवं जिला प्रशासन की लापरवाही से शनिवार को एक सौ पांच साल पुरानी विरासत की निर्मम हत्या हो गई। इस अपराध के दोषी कौन है? यह तो जांच के बाद ही तय होगा, लेकिन यह तय है कि इस भवन पर मालिकाना हक को लेकर दुकानदार, नगर निगम और पुरातत्व विभाग के बीच लंबे समय से विवाद की स्थिति बनी हुई थी। सन् 1905 में तत्कालीन महाराजा माधवराव सिंधिया द्वितीय ने महारानी विक्टोरिया की याद में जब इस भवन की निर्माण कराया था, तब शायद उन्होंने यह सोचा भी नहीं होगा कि, इस भवन के पिछवाड़े शराबियों का अड्डा बन जाएगा।
इस भवन को लेकर जिला प्रशासन व नगर निगम की लापरवाही किस हद थी कि, मार्केट के अंदर इतनी दुकानें बना ली गईं थी कि आम आदमी का पैदल चलना भी मुश्किल हो गया था। मार्केट के पूर्वी गेट की ओर चाट वालों का कब्जा हो गया था और अंदर किताबों के अलावा दौने-पत्तल वालों ने दुकान से ज्यादा सामान दुकान के बाहर फैला रखा था। पश्चिमी गेट की ओर भोजनालय बन गए थे और दक्षिणी गेट और उसके पीछे शराबियों का अघोषित अड्डा बना हुआ था। जिला प्रशासन की कृपा से इस भवन के पिछवाड़े देशी शराब की कलारी लंबे समय से चल रही थी। मार्केट के उत्तर दिशा में बने मुख्य द्वार की दुकानें सबसे मंहगी मानी जाती हैं। इसके बाद भी जिला प्रशासन ने इस एतिहासिक भवन को आग से बचाने के बारे में शायद कभी विचार ही नहीं किया था, और न ही दुकानदारों को इस संबंध में चेतावनी दी गई। नगर निगम तो इस मामले में और भी ज्यादा लापरवाह साबित हुआ। डेढ़ साल पहले 23 जनवरी 2009 को नगर निगम के तत्कालीन महापौर विवेक नारायण शेजवलकर ने विक्टोरिया मार्केट का भ्रमण किया था, तब उन्होंने दुकानदारों और यहां खरीदी करने आने वालों की समस्याओं को सुलझाने के बजाय फरमान जारी कर दिया था कि मार्केट की पहली मंजिल पर दुकानें बनाने की तैयारी की जाए। यह बात अलग है कि नगर निगम अफसरों ने महापौर के इस आदेश का पालन नहीं किया।
विक्टोरिया मार्केट, पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की राजनीतिक यात्रा का मूकदर्शक भी रहा है। ग्वालियर में अटलजी की बड़ी सभाओं के लिए मंच का निर्माण इस इमारत के गेट पर ही होता था। शुक्रवार की रात लोगों ने इस एतिहासिक भवन को आखिरी बार देखा, क्योंकि शनिवार की सुबह भीषण अग्रिकांड से यह भवन पूरी तरह नष्ट हो चुका था। इस भवन में बनी लगभग सौ से ज्यादा दुकानें पूरी तरह स्वाहा हो चुकी थीं, और बर्वाद हुए दुकानदारों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। प्रशासन ने पूरी तरह बर्वाद हो चुके पीडि़त दुकानदारों के आंसू पोंछने के नाम पर उन्हें बीस-बीस हजार रूपए देने का प्रयास करके एक तरह से उनके जले पर नमक डालने का ही प्रयास किया है।
ग्वालियर की पहचान उसकी एतिहासिक इमारतों से है और इन इमारतों की सुरक्षा को लेकर प्रशासन की ऐसी लापरवाही अक्षम्य है। महाराज बाड़ा जहां यह इमारत बनी हुई थी, वह ग्वालियर की शान है, लेकिन बेतरतीब ढंग से बन रहीं दुकानों और आसपास हो रहे अवैध निर्माण ने इस शान को कमजोर किया है। प्रशासन को अब जागना होगा और ग्वालियर की इस शान को बचाने सबको विश्वास में लेकर काम करना होगा। वरना ग्वालियर की एतिहासिक विरासतें भगवान भरोसे ही रहेंगी....?
खाक हुई विक्टोरिया मार्केट
सौ दूकानें स्वाहा, पच्चीस करोड़ का नुकसान
सात सिलेण्डर फटने से हुआ भारी नुक्सान
ग्वालियर के प्रसिद्ध महाराज बाड़ा स्थित विक्टोरिया मार्केट में रात दो बजकर दस मिनट पर भड़की आग ने करोड़ों का नुकसान कर दिया। आगजनी की घटना से एक सौ चार दुकानें स्वाहा हो गईं हैं। आग को काबू करने के लिए तीन सौ पचास से अधिक गाडिय़ों को लगाया गया। राहत कार्य में सेना और बीएसएफ की भी मदद की। इस अग्निकाण्ड में प्रभावित हुए दुकानदारों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। एक सौ पांच साल पुरानी इमारते के ढहने से पूरा ग्वालियर शहर शोक में डूबा हुआ है। जिला प्रशासन ने प्रभावित दूकानदारों को 21-21 हजार रुपए की मदद देने का प्रयास किया, लेकिन उन्होंने इसे बेहद कम बताते हुए ठुकरा दिया है। गृहराज्य मंत्री ने आगजनी की घटना की मजिस्ट्रीयल जांच के आदेश दिए हैं।
रवीन्द्र जैन
ग्वालियर। विक्टोरिया मार्केट में लगी आग को काबू में करने के लिए सेना और बीएसएफ की दमकल गडिय़ों काफी मशक्कत की। आग के लगने का कारण शार्ट सर्र्किट बताया जा रहा है। ऐतिहासिक इमारत के जिस हिस्से को आग से अपनी चपेट में लिया उस हिस्से में सात सिण्लेडर एक सात फटे जिससे इमारत धराशायी हो गई। इस इमारत का निर्माण 1905 में ग्वालियर के तत्कालीन महाराज माधवराव सिंधिया द्वितीय ने महारानी विक्टोरिया की याद में कराया था।
विक्टोरिया मार्केट में आग रात 2 बजकर 10 मिनट पर लगी। आग की लपटें जो शुरू हुई तो बढ़ती गई। धीरे-धीरे आग पूरे मार्केट में फैल चुकी थी। एक ओर जहां लपटें उठ रही थी तो दूसरी और मार्केट के भीतर स्थित चाट मार्केट में रखे सिलेंडरों से एक के बाद एक विस्फोट हो रहा था। लगभग आठ से दस सिलेंडर फट गए जिस कारण ऐतिहासिक इमारत का काफी हिस्सा ढह गया। इस भीषण आग पर शनिवार को दोपहर बारह बजे तक नियंत्रण पाया जा सका। हादसे में लगभग 25 करोड़ के नुक्सान का अनुमान लगाया गया है। आग की सूचना पाकर गृहराज्य मंत्री नारायण सिंह कुशवाह, महापौर समीक्षा गुप्ता, कलेक्टर आकाश त्रिपाठी, आईजी अरविंद कुमार, डीआईजी आलोक रंजन सहित अन्य प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंच गए थे।
चौैकी पर पसरा था सन्नाटा
आग की लपटों को देखकर इमारत का चौकीदार व कुछ लोग जब महाराज बाड़ा चौकी पर पहुंचे तो चौकी के तीनों दरवाजे और खिड़किया अंदर से बंद थी। चौकी में मौजूद पुलिसकर्मी आराम की नींद सो रहा था। एकदम मार्केट के सामने बनी पुलिस चौकी पर तैनात पुलिसकर्मी चौकन्ना होता तो शायद इतना बड़ा हादसा होने से बच जाता।
बच गए पड़ोस के मकान
फायर ब्रिगेड की जो गाडिय़ा आग बुझाने के लिए बाद में पहुंचीं उनकी वजह से मार्केट के पड़ोस में बने कई मकान बच गए। हालांकि यह फायर ब्रिगेड गाडिय़ां मार्र्केट को खाक होने से नहीं बचा सकीं लेकिन मार्केट के आस-पास बने करोड़ों रुपए की लागत के मकान को बचाया जा सका। एक तरफ जिनकी संपत्तियां खाक होने से बच गईं उन्हें खुशी थी वहीं दूसरी और उन दुकानदारों के आंसू नहीं रूक रहे थे जिनकी मेहनत की कमाई खाक हो चुकी थी।
इमारत की विशेषता : विक्टोरिया मार्केट इंडो यूरोपियन स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना थी। इस भवन के चारों ओर बड़ी बड़ी घड़ी लगी हुई थीं। इस भवन में पहले केवल फल एवं मावे की दूकानें थीं जहां केवल कुलीन वर्ग के लोग ही खरीदारी करने आते थे। आजादी के बाद यहां किताबों की दूकानें खुल गई थीं। 1956 में मप्र बनने के बाद इस भवन पर नगर निगम का कब्जा हो गया था। इस भवन पर मालिकाना हक को लेकर दूकानदार, नगर निगम व पुरातत्व विभाग में विवाद चलता रहा है। बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने दूकानदारों के हक में फैसला दिया था।
विक्टोरिया मार्र्केट पर एक नजर
* 1905 में बनी विक्टोरिया मार्केट
* 1956 में नगर निगम को किया सुपुर्द
* 1960 में दुकाने हुई संचलित
* 147 दुकानें थी मार्केट में
* 104 दुकानें जलकर हुई खाक
* 92 दुकानें नगर निगम के मुताबिक क्षतिग्रस्त
आग पर एक नजर
* 4-5 जून की दरम्यानी रात को लगी आग
* 2 बजकर 10 मिनट पर लगी आग
* 20 घंटे तक आग नहीं हुई ठंडी
* 320 कर्मचारी लगे आग बुझाने में
* 350 गाडिय़ां लगी आग बुझाने में
सौ दूकानें स्वाहा, पच्चीस करोड़ का नुकसान
सात सिलेण्डर फटने से हुआ भारी नुक्सान
ग्वालियर के प्रसिद्ध महाराज बाड़ा स्थित विक्टोरिया मार्केट में रात दो बजकर दस मिनट पर भड़की आग ने करोड़ों का नुकसान कर दिया। आगजनी की घटना से एक सौ चार दुकानें स्वाहा हो गईं हैं। आग को काबू करने के लिए तीन सौ पचास से अधिक गाडिय़ों को लगाया गया। राहत कार्य में सेना और बीएसएफ की भी मदद की। इस अग्निकाण्ड में प्रभावित हुए दुकानदारों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। एक सौ पांच साल पुरानी इमारते के ढहने से पूरा ग्वालियर शहर शोक में डूबा हुआ है। जिला प्रशासन ने प्रभावित दूकानदारों को 21-21 हजार रुपए की मदद देने का प्रयास किया, लेकिन उन्होंने इसे बेहद कम बताते हुए ठुकरा दिया है। गृहराज्य मंत्री ने आगजनी की घटना की मजिस्ट्रीयल जांच के आदेश दिए हैं।
रवीन्द्र जैन
ग्वालियर। विक्टोरिया मार्केट में लगी आग को काबू में करने के लिए सेना और बीएसएफ की दमकल गडिय़ों काफी मशक्कत की। आग के लगने का कारण शार्ट सर्र्किट बताया जा रहा है। ऐतिहासिक इमारत के जिस हिस्से को आग से अपनी चपेट में लिया उस हिस्से में सात सिण्लेडर एक सात फटे जिससे इमारत धराशायी हो गई। इस इमारत का निर्माण 1905 में ग्वालियर के तत्कालीन महाराज माधवराव सिंधिया द्वितीय ने महारानी विक्टोरिया की याद में कराया था।
विक्टोरिया मार्केट में आग रात 2 बजकर 10 मिनट पर लगी। आग की लपटें जो शुरू हुई तो बढ़ती गई। धीरे-धीरे आग पूरे मार्केट में फैल चुकी थी। एक ओर जहां लपटें उठ रही थी तो दूसरी और मार्केट के भीतर स्थित चाट मार्केट में रखे सिलेंडरों से एक के बाद एक विस्फोट हो रहा था। लगभग आठ से दस सिलेंडर फट गए जिस कारण ऐतिहासिक इमारत का काफी हिस्सा ढह गया। इस भीषण आग पर शनिवार को दोपहर बारह बजे तक नियंत्रण पाया जा सका। हादसे में लगभग 25 करोड़ के नुक्सान का अनुमान लगाया गया है। आग की सूचना पाकर गृहराज्य मंत्री नारायण सिंह कुशवाह, महापौर समीक्षा गुप्ता, कलेक्टर आकाश त्रिपाठी, आईजी अरविंद कुमार, डीआईजी आलोक रंजन सहित अन्य प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंच गए थे।
चौैकी पर पसरा था सन्नाटा
आग की लपटों को देखकर इमारत का चौकीदार व कुछ लोग जब महाराज बाड़ा चौकी पर पहुंचे तो चौकी के तीनों दरवाजे और खिड़किया अंदर से बंद थी। चौकी में मौजूद पुलिसकर्मी आराम की नींद सो रहा था। एकदम मार्केट के सामने बनी पुलिस चौकी पर तैनात पुलिसकर्मी चौकन्ना होता तो शायद इतना बड़ा हादसा होने से बच जाता।
बच गए पड़ोस के मकान
फायर ब्रिगेड की जो गाडिय़ा आग बुझाने के लिए बाद में पहुंचीं उनकी वजह से मार्केट के पड़ोस में बने कई मकान बच गए। हालांकि यह फायर ब्रिगेड गाडिय़ां मार्र्केट को खाक होने से नहीं बचा सकीं लेकिन मार्केट के आस-पास बने करोड़ों रुपए की लागत के मकान को बचाया जा सका। एक तरफ जिनकी संपत्तियां खाक होने से बच गईं उन्हें खुशी थी वहीं दूसरी और उन दुकानदारों के आंसू नहीं रूक रहे थे जिनकी मेहनत की कमाई खाक हो चुकी थी।
इमारत की विशेषता : विक्टोरिया मार्केट इंडो यूरोपियन स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना थी। इस भवन के चारों ओर बड़ी बड़ी घड़ी लगी हुई थीं। इस भवन में पहले केवल फल एवं मावे की दूकानें थीं जहां केवल कुलीन वर्ग के लोग ही खरीदारी करने आते थे। आजादी के बाद यहां किताबों की दूकानें खुल गई थीं। 1956 में मप्र बनने के बाद इस भवन पर नगर निगम का कब्जा हो गया था। इस भवन पर मालिकाना हक को लेकर दूकानदार, नगर निगम व पुरातत्व विभाग में विवाद चलता रहा है। बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने दूकानदारों के हक में फैसला दिया था।
विक्टोरिया मार्र्केट पर एक नजर
* 1905 में बनी विक्टोरिया मार्केट
* 1956 में नगर निगम को किया सुपुर्द
* 1960 में दुकाने हुई संचलित
* 147 दुकानें थी मार्केट में
* 104 दुकानें जलकर हुई खाक
* 92 दुकानें नगर निगम के मुताबिक क्षतिग्रस्त
आग पर एक नजर
* 4-5 जून की दरम्यानी रात को लगी आग
* 2 बजकर 10 मिनट पर लगी आग
* 20 घंटे तक आग नहीं हुई ठंडी
* 320 कर्मचारी लगे आग बुझाने में
* 350 गाडिय़ां लगी आग बुझाने में
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