Monday, September 27, 2010

हिन्दू अतिवादी सुधाकर राव मराठा गिरफ्तार


कांग्रेस नेता आरआर खान की हत्या करना स्वीकारा

रवीन्द्र जैन

भोपाल। मप्र व राजस्थान पुलिस के लिए सिरदर्द बने मालवा क्षेत्र के सबसे बड़े हिन्दु अतिवादी सुधाकर राव मराठा को मप्र पुलिस की एटीएस ने झांसी से गिरफ्तार कर लिया है। उसके एक अन्य साथी शिवम धाकड़ को उज्जैन पुलिस पहले ही गिरफ्तार कर चुकी है। यह दोनों संदिग्ध परिस्थितियों में मारे गए हिन्दु अतिवादी सुनील जोशी के निकट साथी रहे हैं। दोनों ने रतलाम के तत्कालीन जिला कांग्रेस अध्यक्ष आरआर खान की हत्या करना स्वीकार कर लिया है। मजेदार बात यह है कि खान की हत्या में पुलिस पहले ही चार लोगों को फर्जी तरीके से मुल्जिम बनाकर उन्हें कोर्ट से सजा दिला चुकी है।

अयोध्या के बारे में निर्णय आने के पहले मप्र पुलिस ने मालवा क्षेत्र के सबसे खूंखार अतिवादी सुधाकर राव मराठा को गिरफ्तार कर लिया है। गिरफ्तारी से पहले सुधाकर राव मराठा ने चितौडग़ढ़ में जाफर खान के नाम के उस युवक को गोली से उड़ा दिया है, जो कुछ साल उसकी बहन ज्योति मराठा को मंदसौर से भगाकर ले गया था। पुलिस ने अभी तक सुधाकर राव की गिरफ्तारी की औपचारिक घोषणा नहीं की है। सीबीआई सहित देश की कई सुरक्षा एजेंसियां सुधाकर राव को तलाश रहीं थीं। सुधाकर राव पर मालवा क्षेत्र के पांच बड़े मुस्लिम नेताओं की हत्या का आरोप है। पुलिस के पास इस बात के भी पर्याप्त सबूत हैं कि फरारी के दौरान सुधाकर राव के भाजपा के नेताओं के संपर्क में रहा है।

मुख्य दुश्मन को मार गिराया : दरअसल सुधाकर राव मराठा का मुख्य उद्देश्य जाफर खान नाम के उस युवक की हत्या करना था, जो उसकी बहन ज्योति को भगाकर ले गया और चितौडग़ढ़ ले जाकर उससे निकाहा कर लिया था। सवा माह पहले 15 अगस्त 2010 को सुधाकर ने सुबह सवा नौ बजे चितौडग़ढ़ कलेक्टरी चौराहे पर जाफर को उस समय गोली मार दी, जब जफर ऑटो से मजदूरी करने जा रहा था। चितौडग़ढ़ पुलिस ने सुधाकर राव एवं उसके एक साथी के खिलाफ हत्या का प्रकरण दर्ज करते हुए सुधाकर पर दो हजार रुपए का ईनाम घोषित किया था। इसके अलावा मप्र पुलिस सुधाकर पर पहले ही 25 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर चुकी है।

ऐसे हुई गिरफ्तारी : मप्र पुलिस ने सुधाकर को गिरफ्तार करने के कई प्रयास किए, लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं आया। बताते हैं कि पिछले सप्ताह झांसी में एक 13 साल के बच्चे की हत्या के मामले में उप्र पुलिस ने सुधाकर को इंदौर से उठाया था, लेकिन बाद में यह तय हो गया कि इस हत्या में सुधाकर का हाथ नहीं है तो झांसी पुलिस ने उसे मप्र एटीएस के हवाले कर दिया।

भाजपा नेताओं से संपर्क : पुलिस के पास इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि सुधाकर राव ने फरारी के दौरान प्रदेश भाजपा के मंत्री तपन भौमिक के संपर्क में था। इस संबंध में भौमिक का कहना है कि मैंने कभी सुधाकर को फोन नहीं लगाया।उसके ही एकाध बार फोन आए हैं। ऐसे में तो पूरे प्रदेश से कई लोगों के फोन आते रहते हैं।

आरआर खान हत्या में नया मोड़ : बताते हैं कि सुधाकर राव ने एटीएस के सामने स्वीकार कर लिया है कि - रतलाम के तत्कालीन जिला कांग्रेस अध्यक्ष आरआर खान की 14 अक्टूबर 2004 को उसने अपने साथी शिवम धाकड़ के साथ मिलकर हत्या की थी। मजेदार बात यह है कि - रतलाम पुलिस के तत्कालीन एसपी वरुण कपूर ने खान की हत्या के आरोप में नागदा के गुलफाम खान सहित छह लोगों को आरोपी बनाया था। न्यायालय ने भी इन सभी छह आरोपियों को हत्या के आरोप में सजा भी सुना दी है। मुख्य आरोपी गुलफाम पेशी के दौरान फरार हा गया था। गुलफाम पिछले दिनों पुलिस की गिरफ्त में आया तो उसने पुलिस के सामने पुन: बयान दिया कि खान की हत्या में उसे जबरन फंसाया गया है। इसी बीच एक महिने पहले देवास पुलिस ने सुधाकर राव के साथी शुभम को गिरफ्तार किया तो शुभम ने भी स्वीकार किया कि - खान की हत्या उसने और सुधाकर राव ने ही की है। इस संबंध में देवास पुलिस पूरा ब्यौरा पुलिस मुख्यालय को भेज चुकी है।

सुधाकर राव द्वारा की गई हत्याएं

1 - हनीफ शाह : सुधाकर मंदसौर के गायक कलाकार हनीफ शाह की हत्या केवल इसलिए कर दी थी कि हनीफ शाह ने हिन्दु लड़की हेमा भटनागर से प्रेम विवाह किया था।

2 - गबरू पठान : सुधाकर मंदसौर के गबरू पठान की हत्या इसलिए कर दी कि गबरू के कहने पर उसके भतीजे ने मंदसौर के एक हिन्दु ट्रेवर्स संचालक नीतेश दोषी की हत्या कर दी थी। सुधाकर राव ने उसका बदला लिया था।

3 - रमजानी शैरानी : सुधाकर रतलाम में रमजानी शैरानी की भी हत्या केवल कट्टर हिन्दुत्व की विचारधारा के चलते कर दी थी।

4 - आरआर खान : सुधाकर राव व उसके साथी शुभम ने स्वीकार किया है कि रतलाम के तत्कालीन जिला कांग्रेस अध्यक्ष आरआर खान की हत्या उन्होंने इसलिए कर दी कि आरआर खान का नाम झिरनिया के एक कुएं से बरामद हथियारों के मामले में आया था। यह हथियार आंतकवादियों तक पहुंचाने के लिए लाए गए थे।

5 - जाफर खान : सुधाकर ने 15 अगस्त 2010 को राजस्थान के चितौडग़ढ़ के कलेक्टर चौराहे के पास जाफर खान की हत्या इासलिए कर दी थी, क्योंकि जाफर खान सुधाकर राव की सगी बहन ज्योति को भगाकर ले गया था और उससे निकाहा कर लिया था।

सुधाकर के डर से भाग गए कई माफिया

मालवा में पिछले सात वर्षों से सक्रिय कट्टर हिन्दुवादी सुधाकर राव मराठा के डर से इंदौर व मंदसौर के कई माफियाओं की नींद हराम रहती थी। आरआर खान के भाई व इंदौर के शराब माफिया मेहमूद खान तो इंदौर छोड़कर कहीं और बस गया है। पुलिस रिकार्ड के अनुसार सुधाकर राव ने कुल पांच हत्याओं सहित कुल पन्द्रह अपराध किए हैं, लेकिन उसके सभी अपराध कथित रुप से कट्टर हिन्दुत्व के नाम पर किए हैं। सुधाकर राव को अपराध की दुनिया में धकेलने का काम उसकी सगी बहन ज्योति मराठा की उस हरकत ने किया जिसमें वह एक मुस्लिम युवक के साथ भाग गई थी। सुधाकर राव आंतकवाद से उसी की शैली में लडऩे का पक्षधर माना जाता है। यह भी सही है कि उसे हिन्दुवादी संगठनों का संरक्षण मिला हुआ था।

पिछले दो महिने में सुधाकर ने जिन तीन लोगों की हत्या की योजना बनाई, उसमें से दो लोगों की हत्या हो चुकी है। इसमें एक सुधाकर की बहन को भगाकर ले जाने वाला जाफर खान है और दूसरा जाना माना हिस्ट्रीशीटर युसुफ बडावदा का नाम शामिल है। जाफर की हत्या में तो राजस्थान पुलिस ने सुधाकर राव को नामजद किया है, लेकिन युसुफ वडावदा की हत्या के आरोपी अभी तक अज्ञात हैं। सुधाकर का तीसरा निशाना आरआर खान का भाई मेहमूद खान था। बताते हैं कि मेहमूद खान सुधाकर के डर के कारण ही इंदौर से गायब हो गया है। मेहमूद खान का इंदौर आना जाना रहता है, लेकिन वह सुधाकर राव से बेहद सतर्क रहता है।

सुधाकर राव मराठा के खिलाफ दर्ज प्रकरण

1 - कोतवाली मंदसौर अ क्र 29/03 धारा 294,323,506,34
2 - कोतवाली मंदसौर अ क्र 548/03 धारा 224,323,506,327,336,34
3 - कोतवाली मंदसौर अ क्र 695/04 धारा 307,34 एवं 25,27 आम्र्स एक्ट
4 - कोतवाली मंदसौर अ क्र 316/05 धारा 120 बी, 34 एवं 25,27 आम्र्स एक्ट
5 - कोतवाली मंदसौर अ क्र 54/07 धारा 25,27 आम्र्स एक्ट
6 - कोतवाली मंदसौर इस्त / 841 (2) 110 जाफो
7 - स्टेशन रोड रतलाम अ क्र 13/06 धारा 307,34 एवं 25,27 आम्र्स एक्ट
8 - स्टेशन रोड रतलाम अ क्र 49/02 धारा 307,120 बी, 34 एवं 25,27 आम्र्स एक्ट
9 - स्टेशन रोड रतलाम अ क्र 243/07 धारा 302, 34 एवं 25,27 आम्र्स एक्ट
10 - स्टेशन रोड रतलाम अ क्र 66/07 धारा 507
11 - मंदसौर कोतवाली अ क्र 204/08 धारा 302, 201 एवं 25,27 आम्र्स एक्ट
12 - मंदसौर कोतवाली अ क्र 93/09 धारा 307 एवं 25,27 आम्र्स एक्ट
13 - मंदसौर कोतवाली अ क्र 111/09 धारा 506,507
14 - चितौड़ राजस्थान 15 अगस्त 2010 धारा 302, 34 एवं 25,27 आम्र्स एक्ट

Sunday, September 26, 2010

सीएम हाउस में गंूजते मंत्र और अजान



रवीन्द्र जैन

भोपाल। पिछले एक महिने से मुख्यमंत्री निवास में किसी धरने प्रदर्शन अथवा नारेबाजी के बजाय मंत्र भजन और अजान गंूज रहे हंै। पिछले एक माह की चार घटनाओं पर गौर करें तो पाएंगे कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कभी अपने घर में रोजा अफ्तारी में व्यस्त रहे तो कभी तेज बुखार के बाद भी अपने निवास पर भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव पर प्रसिद्ध गायक रवीन्द्र जैन के भजन कराते नजर आए। इसके बाद वे अपनी पत्नी साधना सिंह के साथ भोपाल ताल में गणेश विसर्जन करते दिखाई दिए। इसके एक दिन बाद वे अपने ही घर में जैन समाज के साथ क्षमावाणी महोत्सव में डूबे दिखाई दिए।

यह सब कुछ अचानक नहीं हुआ है। दरअसल यह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। मुख्यमंत्री बेहद तरीके से अपनी सरकार को सभी धर्मों से जोडऩे के काम में लग गए हैं। आने वाले समय में ऐसी गतिविधियां और भी बढऩे की संभावना है। जिस प्रकार मुख्यमंत्री चौहान ने अपने पिछले कार्यकाल में अपने निवास पर पंचायतों का आयोजन करके आम आदमी का दिल जीता और मप्र में पुन: सरकार बनाई उसी प्रकार इस बार मुख्यमंत्री ने सभी धर्मों के मानने वालों के दिल जीतने की कोशिश शुरू कर दी है। इस काम के लिए मप्र में तीर्थ एवं मेला प्राधिकरण का गठन किया जा रहा है। इस प्राधिकारण को भारी भरकम बजट देने की भी तैयारी है, ताकि सभी धर्मों के मानने वालों तक सरकार अपनी पहुंच बना सके।

मुख्यमंत्री ने संस्कृति विभाग के संचालक श्रीराम तिवारी को तीर्थ व मेला प्राधिकारण के गठन का प्रारूप तैयार करने के निर्देश दिए हैं। इस प्राधिकरण के जरिए राज्य सरकार मप्र में भरने वाले लगभग 1400 मेलों व लगभग 150 बड़े तीर्थों पर यात्रियों को सुविधाएं देने का काम करना चाहती है। यानि सरकार ने मेलों के माध्यम से राज्य की संस्कृति और तीर्थों के माध्यम से धर्म से जुडऩे की तैयारी कर ली है। श्रीराम तिवारी इस बात को स्वीकार भी करते हैं कि मुख्यमंत्री चाहते हैं कि उनकी सरकार मेलों व तीर्थ स्थानों को हरसंभव सहयोग करें और इसके लिए सरकार के स्तर पर योजना बनाई जा रही है। तिवारी का कहना कि - राज्य सरकार मेलों के उद्देश्य और उसकी परंपरा के संबंध में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करना चाहती, इसी प्रकार तीर्थों पर होने वाली पूजन पद्धति से भी सरकार को कोई लेना देना नहीं है, लेकिन सरकार मेलों और तीर्थ पर पहुंचने वालों को बेहतर सुविधाएं देने के लिए प्राधिकारण का गठन कर रही है।

तैयारी शुरू : वर्ष 1961 की जनगण्ना के साथ भारत में मेलों की जनगण्ना भी हुई थी। उसके हिसाब से मप्र में लगभग 1400 मेले लगते थे। पिछले पचास वर्षों में मेलों के स्वरुप में भारी परिवर्तन आया है। बताते हैं कि इस संबंध में सभी जिला कलेक्टरों से उनके जिलों मतें होने वाले वाले मेलों व तीर्थों की सूची मांगी जा रही है। इसके अलावा लेखक अयोध्याप्रसाद गुप्त की पुस्तक मप्र के मेले और तीज त्यौहार से भी जानकारी जुटाई जा रही है।



इनका कहना है :

मुख्यमंत्री निवास पर धार्मिक कार्यक्रम होने से वहां की पवित्रता बढ़ती है।

शिवराज सिंह चौहान
मुख्यमंत्री

राज्य सरकार ने प्रदेश में लगने वाले लगभग 1400 मेलों व लगभग 150 तीर्थो के संरक्षण व संवद्र्धन के लिए तीर्थ व मेला प्राधिकरण के गठन का निर्णय लिया है। सरकार केवल सहयोगी की भूमिका में रहेगी। इनमें हस्तक्षेप कतई नहीं करेगी।

श्रीराम तिवारी
संचालक, संस्कृति विभाग मप्र

Saturday, September 18, 2010

6 दिसम्बर 1992 : कैसे घटी घटनाएँ




9 बजे सुबह : डॉ. मुरली मनोहर जोशी,

लालकृष्ण आडवाणी विजयाराजे सिंधिया, सुंदरसिंह भंडारी आदि नेता जानकी महल से विवादित परिसर के लिए रवाना। सरयू नदी की मिट्‌टी लेकर बड़ी संख्या में कारसेवक परिसर की ओर बढे़।

10 बजे : विवादित स्थल के आसपास लाखों कारसेवकों का सैलाब उमड़ा। उत्तेजक नारेबाजी शुरू।

10.15 बजे : आरएसएस नेता होवे शेषाद्रि, कुसी सुदर्शन, महंत अवैद्यनाथ, रामचंद्र दास परमहंस, स्वामी वामदेव, स्वामी चिन्मयानंद तथा स्वामी वासुदेवानंद आदि शिलान्यास स्थल पर पहुँचे। पूजा-पाठ की तैयारियाँ शुरू हुईं।

10.30 बजे : मानस भवन की ओर से युवा कारसेवकों को रेला हंगमा करने पर अड़ा। वे परिसर की ओर आना चाहते थे। व्यवस्था में लगे लोगों से उनकी झड़प के बाद स्थिति बेकाबू हुई।

11.30 बजे : विश्वेष तीर्थ उडुपी के आगमन के बाद युवा कारसेवकों ने काफी हंगामा मचाया और नारेबाजी के साथ कारसेवक आसपास के क्षेत्र में घेरा बनाने लगे।

11.45-11.50 बजे : 150 कारसेवकों ने अचानक घेरा तोड़ दिया और पुलिसकर्मियों पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया। इसी तरह करीब एक हजार कारसेवक भीतर घुस आए। करीब 80 कारसेवक मस्जिद के गुंबद पर चढ़ गए और उसे नुकसान पहुँचाना शुरू कर दिया। परिसर में अराजकता शुरू।

11.54 बजे : कारसेवकों का परिसर पर कब्जा। ढाँचे के आसपास करीब 75000 कारसेवकों का घेरा। दबाव और तनाव दोनों बढ़ा।

12 बजे : सैकड़ों कारसेवकों ने तीनों गुंबदों के शिखर पर चढ़कर भगवा झंडा फहराया और उत्तेजक नारेबाजी शुरू। शेषावतार मंदिर की ओर से कारसेवकों ने प्रवेश किया।

12.03 बजे : हालत नियंत्रण से बाहर। पूरे परिसर पर कारसेवकों ने कब्जा जमा लिया। सुरक्षा बल किनारे हट मौन दर्शक बने।

12.10 बजे : केंद्रीय गृहसचिव ने गृह मंत्रालय के अधिकारियों से वार्ता कर उत्तर प्रदेश सरकार से संपर्क किया कि हालत नियंत्रण से बाहर हो रहा है लिहाजा केंद्रीय अर्धसैन्य बलों का प्रयोग किया जाना चाहिए। पर प्रदेश के अधिकारियों ने कहा कि इस बाबत वे मुखयमंत्री से आदेश प्राप्त करना चाहेंगे। केंद्रीय गृहमंत्री ने भी मुख्यशमंत्री से बातचीत की।

12.10 बजे : ढाँचा तोड़ा जाने लगा। इसके बाद आसपास से काफी संख्या में हथौडे़ छैनी, छड़े, फावडे़, हथोडे़ आदि से ढाँचे को क्षतिग्रस्त किया जाने लगा। शेषाद्रि और अन्य नेताओं ने उनको शांत करने की अपील तो की पर इसे किसी ने नहीं सुना। देसी-विदेशी मीडिया और खास तौर पर फोटो पत्रकारों पर कारसेवकों का हमला। उनके साथ लूटपाट की गई और कैमरे आदि छीने गए।

12.11 बजे : ढाँचे के सामने लगी लोहे की छड़ों को रस्सी से बाँधकर तोड़ा गया।

12.37 बजे : मीर बाँकी के शिलालेख तोड़ा गया।

12.38 बजे : क्लोज सर्किट टीवी के टॉवर तोड़े गए। दक्षिण भारतीय महिलाएं भी ढांचा तोड़ने में जुटी।

12.45 बजे : राज्य सरकार ने कुल अर्ध सैन्य बल माँगा जो उनको उपलब्ध करा दिया गया, लेकिन जब वे फैजाबाद से अयोध्या की ओर जा रहे थे उनकी स्थानीय अधिकारियों ने रास्ते से लौटा दिया। कहा गया कि उनको आदेश मिला है कि बल प्रयोग नहीं किया जाना है। करीब 2.15 बजे तक केंद्रीय बल वापस लौटे।



विशाल ढाँचा पाँच घंटे में ध्वस्त। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याणसिंह का इस्तीफा। उत्तरप्रदेश सरकार बर्खास्त, राष्ट्रपति शासन लागू। रामलला की मूर्तियाँ फिर से स्थापित करने के साथ प्लेटफार्म का भी निर्माण। बाद में एक दीवार भी बनाई गई और मूर्तियों के ऊपर एक छतरी भी।
1528 : बाबर के


सेनापति मीर बाँकी द्वारा अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण। इसी जगह के बारे में कुछ वर्गों द्वारा दावा किया गया कि यहाँ भगवान राम का जन्म हुआ था और बाद में मंदिर बना था।

1853 : पहली बार हिंदू-मुस्लिम संघर्ष।

1855 : बाबरी मस्जिद के चारों ओर एक दीवार खड़ी की गई और समझौता हुआ कि पूजा-अजान अलग-अलग समय में संपन्न होंगे।

22/23 दिसंबर 1949 : कुछ लोगों ने बाबरी मस्जिद के भीतर रामलला की मूर्ति स्थापित की। फौजदारी प्रक्रिया संहिता की धारा 145 के तहत मजिस्ट्रेट के आदेश से ढाँचे पर ताला लगा दिया गया। पुलिस सब-इंस्पेक्टर राम दुबे द्वारा कांस्टेबल माता प्रसाद की रिपोर्ट पर 23 दिसंबर को प्राथमिकी दर्ज।

29 दिसंबर 1949 : फैजाबाद के जिलाधिकारी केके नायर ने विवादित संपत्ति अटैच की और नगर पालिका अध्यक्ष प्रियदत्त राम को वहाँ का रिसीवर नियुक्त किया। रिसीवर ने 5 जनवरी 1950 को कार्यभार संभाला। मुसलमानों को विवादित स्थल से 300 गज के दायरे में जाने पर रोक लगा दी गई, जबकि हिंदुओं को रामलला की पूजा की अनुमति दी गई।

16 जनवरी 1950 : गोपालसिंह विशारद द्वारा सिविल जज की अदालत में मुकदमा। मूर्तियाँ न हटाने तथा पूजा की अनुमति देने के बाबत जज द्वारा अंतरिम आदेश पारित करने के साथ फैसला कि इस संपत्ति में कोई परिवर्तन नहीं होगा।

21 फरवरी 1950 : मुसलमानों ने फिर से बाबरी मस्जिद के लिए दावा किया।

5 दिसम्बर 1950 : रामचंद्र दास परमहंस ने जन्मभूमि मुक्ति के लिए अदालत में मुकदमा संख्या -25, 1950 दायर किया।

26 अप्रैल 1955 : हाईकोर्ट ने सिविल जज के अंतरिम आदेश की पुष्टि की।

1959 : निर्मोही अखाड़ा द्वारा विवादित संपत्ति की देखरेख के लिए रिसीवर की नियुक्ति रद्‌द कर मंदिर का कब्जा अखाडे़ को देने के लिए मुकदमा दर्ज किया।

18 दिसम्बर 1961 : सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने हकदारी मुकदमा दायर कर माँग की कि विवादित ढाँचे से मूर्तियाँ हटाई जाएँ।

1964 : बंबई में सांदीपनी आश्रम में विश्व हिंदू परिषद की स्थापना।

1983 : काशीपुर में दाऊदयाल खन्ना ने राम जन्मभूमि मुक्ति का मुद्‌दा उठाया।

7-8 अप्रैल 1984 : दिल्ली में विहिप द्वारा आयोजित प्रथम धर्म संसद में राम जन्मभूमि मुक्त कराने का संकल्प लिया।

18 जून 1984 : दिगंबर अखाड़ा, अयोध्या में आयोजित संतों की सभा में दाऊदयाल खन्ना को जन्मभूमि मुक्ति अभियान समिति का संयोजक बनाया गया।

21 जुलाई 1984 : महंत अवैद्यनाथ राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष, रामचंद्र दास परमहंस उपाध्यक्ष और ओंकार भावे मंत्री बने।

25 दिसम्बर 1984 : सीतामढ़ी से अयोध्या को श्री राम-जानकी रथयात्रा शुरू।

7 अक्टूबर 1984 : अयोध्या में एक बड़ी सभा में ताला खोलने की माँग।

8 अक्टूबर 1984 : अयोध्या-लखनऊ के बीच राम-जानकी रथयात्रा निकली।

14 अक्टूबर 1984 : महंत अवैद्यनाथ, दाऊदयाल खन्ना, परमहंस और अशोक सिंघल का एक शिष्टमंडल उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुखयमंत्री नारायणदत्त तिवारी से मिला और ताला खोलने के साथ वहाँ मंदिर बनाने की माँग की।

16 अक्टूबर 1984 : दिल्ली के लिए राम-जानकी रथयात्रा चली। पर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या के कारण बीच में ही स्थगित करने की घोषणा।

18 अप्रैल 1985 : महंत रामचंद्र दास परमहंस ने घोषणा की कि यदि रामनवमी तक ताला न खुला तो वे आत्मदाह कर प्राण त्याग देंगे।

1 फरवरी 1986 : फैजाबाद के वकील यूसी पांडे की याचिका पर जिला न्यायाधीश केएम पांडे ने उन आदेशों को रद्‌द कर दिया, जिनके चलते विवादित ढाँचे पर ताला लगा था। मुख्य द्वार का ताला खोला गया। हिंदुओं को पूजा-अर्चना का अधिकार दिया गया। इसी माह मो. हाशिम ने अदालत में अपील दायर की।

15 फरवरी 1986 : बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन।

1987 : राम-जानकी रथयात्रा निकली और देश भर में राम जन्मभूमि मुक्ति समितियों का गठन। उ.प्र. सरकार ने रथ यात्राओं पर प्रतिबंध लगाया।

जुलाई 1988 से नवंबर 1988 : गृहमंत्री बूटा सिंह ने विभिन्न पक्षों के साथ वार्ता की।

4 अक्टूबर 1988 : बाबरी कमेटी द्वारा अयोध्या में मिनी मार्च और लांग मार्च के साथ विवादित स्थल पर नमाज पढ़ने की घोषणा की। पर सरकार के अनुरोध पर इन कार्यक्रमों को वापस ले लिया।

1 फरवरी 1989 : प्रयाग में कुंभ के मौके पर आयोजित संत सम्मेलन में 9 नवंबर 1989 को मंदिर शिलान्यास कार्यक्रम की घोषणा।

27-28 मई 1989 : हरिद्वार में 11 प्रांतों के साधुओं की बैठक, विहिप ने विवादित स्थल पर मंदिर बनाने के लिए 25 करोड़ रुपए एकत्र करने की घोषणा की।

जून 1989 : भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने विवादित ढाँचा हिंदुओं को सौंपने की माँग की।

10 जुलाई 1989 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सभी मामले तीन न्यायाधीशों को पूरी बेंच द्वारा निपटाने का निर्णय लिया। अयोध्या विवाद के सभी मामले लखनऊ खंडपीठ के हवाले।

13-14 जुलाई 1989 : अयोध्या में बजरंग दल का शक्ति दीक्षा समारोह अयोजित।

14 अगस्त 1989 : हाईकोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का अंतरिम आदेश दिया।

22 दिसंबर 1989 : बोट क्लब, नई दिल्ली की जनसभा में साधुओं ने शिलान्यास कार्यक्रम में बाधा डालने पर सरकार को संघर्ष की चेतावनी दी।

30 सितंबर 1989 : शिलापूजन कार्यक्रमों की शुरुआत।

9 नवंबर 1989 : विभिन्न पक्षों के बीच निर्विवाद माने गए स्थल में प्रस्तावित राम मंदिर का शिलान्यास। बाद में भड़के दंगों में देश भर में 500 लोग मरे। स्वामी स्वरूपानंद ने कहा कि शिलान्यास दक्षिणायन में किया गया, लिहाजा शुभ नहीं माना जा सकता।

10-11 नवंबर 1989 : कारसेवा की घोषणा सरयू तट से साधु संत और कार्यकर्ता कुदाल-फावड़ा लेकर चले पर जिलाधिकारी ने निर्माण कार्य नहीं होने दिया।

28 जनवरी 1990 : विहिप द्वारा आयोजित प्रयाग संत सम्मेलन में 14 फरवरी 1990 से कारसेवा करने की घोषणा।

6 फरवरी 1990 : प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने संतों से विवाद हल के लिए समिति गठन की घोषणा की। चार माह में समस्या समाधान का दावा।

24 जून 1990 : हरिद्वार में साधुओं की बैठक। 30 अक्टूबर 1990 में मंदिर निर्माण की घोषणा के साथ कारसेवा समितियों का गठन।

31 अगस्त 1990 : अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों की तराशी शुरू।

23 अगस्त 1990 : महंत परमहंस ने 40 साल पहले दायर अपना मुकदमा वापस लिया।

25 सितम्बर 1990 : लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ अयोध्या तक 10 हजार किमी की यात्रा शुरू।

19 अक्टूबर 1990 : विवादित स्थल एवं समीपवर्ती क्षेत्र का अधिग्रहण करने के लिए राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद (क्षेत्र का अधिग्रहण) अध्यादेश, 1990 की घोषणा। यह अध्यादेश दिनांक 23 अक्टूबर 1990 को निरस्त कर दिया गया।

22 अक्टूबर 1990 : अयोध्या पहुँचने से कारसेवकों को रोकने के सरकारी प्रयास तेज। उ.प्र. सरकार ने रेलगाड़ियों व बसों की तलाशी लेकर कारसेवकों को उतारा और गिरफ्तार किया। अशोक सिंघल गोपनीय तरीके से अयोध्या पहुँचे।

23 अक्टूबर 1990 : समस्तीपुर (बिहार) में लालकृष्ण आडवाणी को बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने गिरफ्तार कराया। भाजपा ने वीपी सिंह सरकार के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय मोर्चा सरकार से अपना समर्थन वापस लिया।

30 अक्टूबर 1990 : विवादित ढाँचे पर कारसेवकों ने भगवा ध्वज फहराया। मस्जिद की चारदीवारी क्षतिग्रस्त। देश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक तनाव और दंगे भड़के।

2 नवम्बर 1990 : बेहद आक्रामक कारसेवकों पर अयोध्या में पुलिस ने गोली चलाई।

1 दिसम्बर 1990 : प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने दोनों पक्षों को वार्ता की मेज पर बैठाकर समाधान की सार्थक पहल की पर विहिप की जिद से मामला यथावत रहा।

6 दिसम्बर 1990 : अयोध्या में कारसेवा जारी रखने के लिए संघर्ष शुरू। विवादित ढाँचे को उड़ाने के प्रयास में शिवसेना कार्यकर्ता बंदी।

4 अप्रैल 1991 : वोट क्लब, दिल्ली पर विहिप और साधुओं की विशाल रैली।

जून 1991 : आम चुनाव में पहली बार उत्तरप्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। भाजपा ने मंदिर निर्माण का संकल्प दोहराया।

29 सितंबर 1991 : ऋषिकेश में विहिप मार्गदर्शक मंडल की बैठक में अयोध्या के अलावा काशी, मथुरा समितियों की भी घोषणा की गई।

7-10 अक्टूबर 1991 : उ.प्र. सरकार के पर्यटन विभाग ने विवादित स्थल से लगी 2.77 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया। इस भूमि पर बने कई पुराने मंदिर ध्वस्त। सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अदालत में चुनौती दी। अदालत ने स्थायी निर्माण न करने और जमीन का मालिकाना हक न बदलने का आदेश दिया।

31 अक्टूबर 1991 : कुछ लोगों ने ढाँचे पर हमला कर उसकी दीवारों को क्षति पहुँचाई।

2 नवमंबर 1991 : राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में मुख्यमंत्री कल्याणसिंह ने विवादित ढाँचे की सुरक्षा का आश्वासन दिया।

दिसम्बर 1991 : अयोध्या में विभिन्न सुरक्षा उपायों को हटाया गया।

फरवरी 1992 : अयोध्या में सीमा दीवार (राम दीवार) का निर्माण शुरू।

मार्च 1992 : 1988-1989 में अधिग्रहीत 42 एकड़ भूमि उप्र सरकार ने राम जन्मभूमि न्यास को रामकथा पार्क निर्माण के लिए प्रदान की।

मार्च-मई 1992 : अधिग्रहीत भूमि के सभी ढाँचे ध्वस्त। वृहद खुदाई और समतलीकरण का कार्य तेज। हाईकोर्ट ने इन कार्यों को रोकने से इनकार किया।

अप्रैल 1992 : राष्ट्रीय एकता परिषद के शिष्टमंडल का अयोध्या दौरा।

8 मई 1992 : विहिप समर्थक साधुओं ने प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव से मुलाकात की।

जुलाई 1992 : विहिप के तत्वावधान में 9 जुलाई को कंक्रीट चबूतरे का निर्माण शुरू। गृहमंत्री शंकर राव चव्हाण का अयोध्या दौरा। प्रधानमंत्री से वार्ता के बाद 26 जुलाई को चार बजे कारसेवा बंद करने की घोषणा।

23 जुलाई 1992 : सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बहाल रखने का फैसला सुनाया।

अगस्त-सितम्बर 1992 : प्रधानमंत्री कार्यालय में अयोध्या प्रकोष्ठ का गठन। कई धार्मिक नेताओं ने प्रधानमंत्री नरसिंह राव से मुलाकात की।

16 अक्टूबर 1992 : प्रधानमंत्री के साथ विहिप नेताओं की दूसरी बैठक।

23 अक्टूबर 1992 : पुरातत्विक सामग्री के अध्ययन के लिए बैठक।

31 अक्टूबर 1992 : पाँचवीं धर्म संसद में 6 दिसंबर से कारसेवा शुरू करने की घोषणा।

8 नवम्बर 1992 : केंद्र सरकार के साथ विहिप की तीसरी और आखिरी बैठक।

10 नवम्बर 1992 : विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से प्रधानमंत्री राव की वार्ता। विवादित ढाँचे की रक्षा का संकल्प दोहराया गया।

23 नवम्बर 1992 : राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में भाजपा का बहिष्कार। ढाँचे की रक्षा के लिए सर्वसम्मत प्रस्ताव।

25 नवम्बर 1992 : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कारसेवा रोकने के लिए उचित कार्रवाई का अधिकार दिया।

26 नवम्बर 1992 : केंद्रीय अर्धसैन्य बलों की 90 कंपनियाँ अयोध्या पहुँचीं।

27 नवम्बर 1992 : उप्र की कल्याणसिंह सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा कि किसी भी हालत में अधिग्रहीत जमीन पर निर्माण कार्य नहीं होगा।

28 नवम्बर 1992 : उप्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिलाया कि केवल सांकेतिक कारसेवा होगी और स्थायी या अस्थायी निर्माण नहीं होगा।
29 नवम्बर 1992 : मुरादाबाद के जिला


जज तेजशंकर अयोध्या की हालत पर निगरानी रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा पर्यवेक्षक नियुक्त।

30 नवम्बर 1992 : अयोध्या की स्थिति पर नई दिल्ली में केंद्रीय मत्रिमंडल की बैठक।

2 दिसम्बर 1992 : प्रधानमंत्री ने उच्चस्तरीय बैठक कर हालत की समीक्षा की। वाराणसी में लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि उप्र सरकार किसी भी हालत में अयोध्या में कारसेवकों के विरुद्ध बल प्रयोग नहीं करेगी और कारसेवा हर हाल में होगी।

4 दिसम्बर 1992 : फैजाबाद में कांग्रेस का शांति मार्च पुलिस ने रोका, जितेंद्र प्रसाद, नवल किशोर शर्मा, शीला दीक्षित और जगदम्बिका पाल समेत कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेता गिरफ्तार।

5 दिसम्बर 1992 : 6 दिसम्बर को 12.30 बजे कारसेवा शुरू करने की घोषणा। कहा गया कि राम चबूतरे की सफाई के साथ भजन-कीर्तन जैसे कार्यक्रम होंगे।

6 दिसम्बर 1992 : कारसेवकों ने 5 घंटे 45 मिलट में बाबरी मस्जिद ध्वस्त की। पत्रकारों और छायाकारों पर हमला। अयोध्या के सारे मुसलमान बेघर, कई धर्मस्थलों को नुकसान पहुँचाया गया। अयोध्या में इस दिन करीब तीन लाख कारसेवक जमा थे।

7 दिसम्बर 1992 : कारसेवा दिन भर चलती रही। पाकिस्तान और बंगलादेश में कई मंदिर तोडे़ गए और देश में सांप्रदायिक उन्माद फैला। लालकृष्ण आडवाणी ने नैतिकता के आधार पर लोकसभा में विपक्ष के नेता पद से त्यागपत्र दिया।

7/8 दिसम्बर 1992 : रात में केंद्रीय अर्धसैन्य बलों ने विवादित परिसर पर अपना नियंत्रण कायम किया। विशेष बसें और रेलगाड़ियाँ चलाकर कारसेवकों को अयोध्या से बाहर निकाला गया।

8 दिसम्बर 1992 : लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, अशोक सिंघल, उमा भारती, विनय कटियार और विष्णु हरि डालमिया समेत कई नेता गिरफ्तार।

10 दिसम्बर 1992 : आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, जमायते इस्लामी तथा इस्लामी सेवक संघ पर केंद्र सरकार ने प्रतिबंध लगाने की घोषणा की।

16 दिसम्बर 1992 : पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस मनमोहनसिंह लिब्रहान के नेतृत्व में एक सदस्यीय आयोग का गठन। आयोग को ढाँचे के विध्वंस में उप्र के मुखयमंत्री, मंत्रियों, अधिकारियों, संगठनों की भूमिका, सुरक्षा प्रबंधन में खामियाँ और मीडिया पर हमलों की जाँच करने का दायित्व सौंपा गया। आयोग को तीन माह के भीतर और 16 मार्च 1993 को रिपोर्ट सौंपने को भी कहा गया।

16 दिसम्बर 1992 : राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा हिमाचल की भाजपा सरकारें बर्खास्त।

19 दिसम्बर 1992 : सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के सिलसिले में उप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याणसिंह, मुख्य सचिव प्रभात कुमार, संयुक्त सचिव जीवेश नंदन, पर्यटन सचिव आलोक सिन्हा, फैजाबाद के जिलाधिकारी आरएन श्रीवास्तव तथा अपर जिलाधिकारी उमेश चंद्र तिवारी न्यायालय में तलब।

7 जनवरी 1993 : राव सरकार ने विवादित स्थल के पास 67 एकड़ जमीन का अधिगृहण किया। रामकथा पार्क बनाने की योजना। सुप्रीम कोर्ट ने अधिग्रहण को उचित मानते हुए कहा कि न्यास की 43 एकड़ जमीन भी अविवादित है।

5 अक्टूबर 1993 : विशेष सत्र न्यायालय ने 40 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर करने का आदेश दिया।

24 अक्टूबर 1994 : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के जमीन अधिग्रहण के फैसले को उचित बताया और कहा कि वह इस जमीन की देखरेख का काम ट्रस्टों को सौंप सकती है।

1998 : केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में राजग सरकार का गठन। अटलबिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने, लालकृष्ण आडवाणी गृहमंत्री। विहिप तथा साधुओं ने राममंदिर आंदोलन धीमा चलाने का फैसला लिया।

10 जून 1998 : प्रधानमंत्री वाजपेयी ने लिब्रहान आयोग की समयावधि बढ़ाने की घोषणा की।

17 दिसम्बर 1998 : केंद्रीय गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने बाबरी मस्जिद गिराने की कार्रवाई को शर्मनाक बताते हुए माफी माँगी।

25 अक्टूबर 1998 : मंदिर निर्माण के लिए पत्थर तराशने के लिए कार्यशाला खोली।

27 जुलाई 2000 : लिब्रहान आयोग ने कल्याणसिंह को पेश करने के लिए जमानती वारंट जारी किया।
18-21 जनवरी 2001 : प्रयाग में कुंभ मेले के दौरान


धर्म संसद की बैठक में 12 मार्च 2002 से राम मंदिर निर्माण शुरू करने का फैसला।

17 अक्टूबर 2001 : विहिप नेता अशोक सिंघल जबरिया रामलला का दर्शन करने पहुँचे। विवाद गहराया पर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं।

27 जनवरी 2002 : अदालती आदेश के बावजूद विहिप का मंदिर बनाने का ऐलान। प्रधानमंत्री कार्यालय मंख शत्रुघ्नसिंह के नेतृत्व में अयोध्या सेल का दोबारा गठन। विहिप नेताओं की प्रधानमंत्री से वार्ता, पर कोई आश्वासन नहीं मिला।

फरवरी 2002 : उप्र भाजपा ने अपने चुनाव घोषणापत्र में मंदिर निर्माण की प्रतिबद्धता से खुद को अलग किया। 15 हजार कारसेवक अयोध्या पहुँचे।

16 फरवरी 2002 : प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने कहा कि दोनों पक्षों ने अगर अपना रुख यथावत रखा तो विवाद निपटाने का एकमात्र रास्ता अदालती फैसला ही होगा।

27 फरवरी 2002 : गोधरा (गुजरात) में अयोध्या से कारसेवा कर लौट रहे रामसेवकों की ट्रेन में जलने से मौत के चलते गुजरात में भारी दंगा और हिंसा।

5 मार्च 2002 : विहिप और न्यास ने अदालती आदेश मानने की घोषणा की।

6 मार्च 2002 : केंद्र सरकार ने अयोध्या मामले की जल्दी सुनवाई के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

13 मार्च 2002 : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिग्रहीत भूमि पर कोई गतिविधि नहीं होगी।

23 जून 2002 : विहिप ने अदालती आदेशों को मानने से मना किया, जबकि बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने कहा आदेश मानेंगे।

5 मार्च 2003 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित स्थल की असलियत जानने के लिए खुदाई का आदेश दिया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने खुदाई शुरू कराई।

22 जनवरी 2003 : लिब्रहान आयोग ने साक्ष्य दर्ज करने का कार्य पूरा किया।

22 अगस्त 2003 : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने खुदाई की रिपोर्ट सौंपी।

2 सितंबर 2003 : लिब्रहान आयोग ने कल्याणसिंह को गैर जमानती वारंट जारी किया।

30 जून 2009 : जस्टिस (सेवानिवृत्त) मनमोहनसिंह लिब्रहान ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह तथा केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिंदाबरम को 900 पेज की अयोध्या की जाँच रिपोर्ट सौंपी। आयोग ने 399 बार सुनवाई की, उसका 48 बार विस्तार हुआ आठ करोड रुपए से अधिक की राशि खर्च हुई। रिपोर्ट देने में 16 साल 7 माह लगा।

22 नवंबर 2009 : लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट लीक होने पर संसद में भारी हंगामा।

24 नवंबर 2009 : संसद में केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिंदबरम ने लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट तथा 13 पृष्ठ की एटीआर पेश की। सरकार ने कहा, दोषियों को सजा मिलेगी।

Tuesday, September 14, 2010

आंगनवाडिय़ों में अंडा देने पर बवाल

मंत्रिमंडल में जबरदस्त मतभेद, आज होगा निर्णय




रवीन्द्र जैन

भोपाल। मप्र की लगभग चौहत्तर हजार आंगनवाडिय़ों में 2 अक्टूबर से अंडा देने के प्रस्ताव को लेकर मप्र के मंत्रियों में ही जबरदस्त मतभेद सामने आ गए हैं। एक ओर महिला बाल विकास मंत्री रजंना बघेल सहित कुछ मंत्रियों का मानना है कि - गंभीर कुपोषित बच्चों को अंडा देने से उनका जीवन बचाया जा सकता है, दूसरी ओर ऐसे मंत्रियों की संख्या ज्यादा है जो अंडे को मांसाहार मानते हुए किसी भी हाल में आंगवाडियों में इसके वितरण के खिलाफ हैं और खुलकर इसका विरोध भी कर रहे हैं। इस संबंध में महत्वपूर्ण फैसला बुधवार को होने की संभावना है।

राज्य सरकार 2 अक्टूबर को गांधी जयंती से मप्र में अटल बाल आरोग्य एवं पोषण मिशन योजना प्रारंभ करने जा रही है। राज्य महिला एवं विकास की वेबसाइट पर इस योजना के प्रारुप के बारे में लोगों से विचार मांगे गए हैं। योजना के प्रारुप में लिखा है कि प्रदेश की आंगनवाडियों में कुपोषित बच्चों को अंडे दिए जाएं। बताते हैं कि - यह प्रस्ताव विभागीय मंत्री रंजना बघेल का है। इस संबंध में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य के पांच मंत्रियों की एक उपसमिति का गठन किया है जो सभी मुद्दों पर विचार करके निर्णय लेगा कि प्रदेश की आंगनवाडियों में अंडे दिए जाएं या नहीं? उपसमिति में शामिल दो मंत्री गोपाल भार्गव एवं अर्चना चिटनिस अंडे देने के सख्त खिलाफ हैं। जबकि उपसमिति के सदस्य विजय शाह व रंजना बघेल ने इसके पक्ष में हैं। बुधवार को इस संबंध में दोपहर में मंत्रालय में इस उपसमिति की बैठक आयोजित की गई है। बैठक के पहले ही गोपाल भार्गव ने राज एक्सप्रेस से कहा कि - मप्र की स्थिति केरल, तमिलनाडू व आंध्राप्रदेश से भिन्न है, जहां के लोग इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।

इस संबंध में भोजन का अधिकार नामक एनजीओ से जुड़ी सामाजिक रौली शिवहरे का कहना है कि - मप्र में सबसे ज्यादा कुपोषण आदिवासी क्षेत्रों में जहां पहले से ही मांसाहार किया जाता है। उनके बच्चों को बचाने के लिए अंडा एकमात्र ऐसा तत्व है जिसमें एनर्जी सबसे ज्यादा होता है। रोली का कहना है कि - कुपोषित बच्चों को बचाने के लिए एनीमल प्रोटीन अंडे अथवा दूध से ही संभव है। चूंकि शुद्ध दूध मिलना संभव नहीं है, इसलिए एक ही उपाय है कि बच्चों की जान बचाने के लिए उन्हें अंडे दिए जाएं। गोपाल भार्गव का कहना है कि अंडे देने के बजाय सोयावीन से बने बिस्कुट, केले अथवा ऐसे ही विकल्प पर विचार करना उचित होगा। एक अन्य मंत्री जयंत मलैया का कहना है कि - अंडा शाकाहारी हो ही नहीं सकता और सरकार अपने यहां से मांसाहार वितरण करे, यह उचित नहीं है।

इनका कहना है :

शिवराज सिंह चौहान की सरकार में आंगनवाडियों में अंडों का वितरण संभव ही नहीं है। यदि ऐसा हुआ तो अनर्थ हो जाएगा।

- जैनमुनि तरूणसागर जी महाराज

2 अक्टूबर को गांधी जयंती है जिसे संयुक्त राष्ट्रसंघ ने भी विश्व अहिंसा दिवस के रुप में मनाने की घोषणा की है, इस दिन से मप्र में हिंसा के प्रतीक अंडे का वितरण करना महात्मा गांधी के सिद्धांतों से मजाक है।

- विश्वेन्द्र मेहता, पूर्व विधानसभा सचिव



फैक्ट फाइल

मार्च 2010 के आंकड़े

- मप्र में कुल स्वीकृत आंगनवाडियां - 77109

- मप्र में कुल संचालित आंगनवाडियां - 74993

- मप्र में 0 से 6 वर्ष तक के कुल बच्चे - 9066553

- मप्र में जिन बच्चों को पोषण आहार दिया जा रहा है

0 से 3 वर्ष तक के - 3223167

3 से 6 वर्ष तक के - 2981504

Sunday, September 12, 2010

माता पिता के साथ स्कूल जाते बुद्धि के देवता ....







यह चित्र राज एक्सप्रेस के फोटोग्राफर आनंद शिवरे ने 11 सितम्बर 2010 को इंदौर में लगी गणेश जी की एक झांकी से लिया है।

Saturday, September 11, 2010

प्रमुख सचिव पर 420 दर्ज करो

कार्रवाई हुई तो एके पयासी हो सकते हैं गिरफ्तार


रवीन्द्र जैन

भोपाल। मप्र विधानसभा के प्रमुख सचिव आनंदकुमार पयासी के खिलाफ भोपाल के दो थानों में शिकायत दर्ज कर उनके खिलाफ धारा 420 के तहत प्रकरण दर्ज करने की मांग की गई है। भोपाल के दो सामाजिक कार्यकर्ता संजय नायक व धनराज सिंह ने जहांगीरबाद थाने में की गई शिकायत में पयासी पर कूटरचित दस्तावेतों के आधार पर नौकरी करने एवं बाग मुगालिया थाने में शिक्षा की फर्जी डिग्रियां हासिल करने का आरोप लगाया गया है। शिकायत पर कार्रवाई हुई तो एके पयासी कभी भी गिरफ्तार किए जा सकते हैं।

थाना बागमुगालिया में की गई शिकायत में आरोप लगाया है कि पयासी की पीएचडी की तीनों डिग्रियां फर्जी हैं। जबकि उन्होंने इन फर्जी डिग्रियों के आधार पर स्वयं को डा. एके पयासी लिखना शुरू किया और विधानसभा सचिवालय से दो वेतन वृद्धियां प्राप्त कर ली हैं। शिकायतकर्ताओं ने इसके कई प्रमाण संलग्र करते हुए दावा किया है, इससे संबंधित कुछ नस्तियां विश्वविद्यालय से गायब कर दी गईं हैं। पयासी की हायर सेकेन्ड्री की मार्कशीट को लेकर भी आज तक भ्रम की स्थिति बनी हुई है। उन्होंने बार बार मांगने पर भी अभी तक अपनी उक्त मार्कशीट सचिवालय को उपलब्ध नहीं कराई है। स्वयं स्पीकर पयासी को कई बार मार्कशीट उपलब्ध कराने के निर्देश दे चुके हैं, ताकि मार्कशीब्ट के आधर पर उनकी सेवा निवृत्ति की तिथि तय की जा सके, लेकिन पयासी ने उक्त मार्कशीट उपलब्ध नहीं कराई है। पयासी की एलएलबी की डिग्री को लेकर भी भ्रम की स्थिति है, क्योंकि उनकी एलएलनबी की उिग््राी के अनुसार उन्होंने 1971 से 1975 तक सतना के कॉलेज से नियमित छात्र के रुप में एलएलबी की पढ़ाई की, जबकि इसी अवधि में उनके द्वारा सीधी जिले सिंहावल के सरकारी स्कूल में शिक्षक रुप में भी नौकरी की है। सिंहावल व सताना में दो सौ किलोमीटर का अंतर है।

भोपाल के जहांगीराबाद थाने में की गई शिकायत में कहा गया है कि - पयासी का लगभग पूरा सेवाकाल कूटरचित दस्तावजों पर आधारित है। लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर विधानसभा में सबसे जिम्मेदार पद पर बैठे पयासी ने अपने पद का दुरूपयोग करके अधिकांश स्थानों से रिकार्ड गायब करा दिया है। फिर भी सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त किए गई दस्तावजों से जाहिर होता है कि पयासी ने नगर पंचायत के सीएमओ के पद से रीवा नगर निगम में उपायुक्त का पद पाने के लिए कूटरचित दस्तावजों का सहारा लिया है। रीवा नगर निगम के जिस संकल्प के आधार पर उन्होंने अपनी सेवाएं नगर निगम में उपायुक्त के पद संविलियन कराईं वह संकल्प कूटरचित है, यह दस्तावेज लोक सेवा आयोग को दिया गया था। बाद में जब पयासी को पता चला कि संविलियन का अधिकार केवल राज्य सरकार को है तो उन्होंने एक और कूटरचित दस्तावेज तैयार कर लिया। नगर निगम रीवा ने इस फर्जी कार्रवाई को रद्द करने पीएससी को चार पत्र लिखे हैं, लेकिन शातिर दिगमा पयासी ने यह पत्र रीवा नगर निगम ही नहीं पहुंचने दिए। पयासी रायपुर व भोपाल नगर निगम में उपायुक्त रहे, लेकिन उनकी सांठगांठ की इससे ही अंदाज लगाया जा सकता है कि बिना सेवा पुस्कित प्राप्त किए पयासी इन नगर निगमों से मनचाहा वेतन प्राप्त करते रहे। बाद में उन्होंने अपना संविलियन विधानसभा में उप सचिव के रुप में कराया और अपने शातिर दिमाग से बिना किसी योग्यता के प्रमुख सचिव के पद तक पहुंच गए।

इनका कहना है :

जिले के दो थानों में पयासी के खिलाफ शिकायत प्राप्त हुई है। पुलिस इसकी जांच कर रही है। जांच के बाद नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।

शैलेन्द्र श्रीवास्तव, आईजी भोपाल

Friday, September 10, 2010

मध्यप्रदेश में अंकल जजों को लेकर महाभारत

गुटों में बंटे वकील व जज

रवीन्द्र जैन

भोपाल। मप्र में पिछले तीन दिन से अंकल जजों को हटाने की मांग जोर पकड़ती जा रही है। यदि मप्र बार कौंसिल की ग्वालियर शाखा की इस मांग पर कार्रवाई की गई तो देश भर में लगभग सौ हाईकोर्ट जजों को अपना बोरिया बिस्तर बांधना पड़ सकता है। दरअसल अंकल जज ऐसे जजों को नाम दिया गया है जो जिस कोर्ट में वर्षों वकालत करने के बाद उसी कोर्ट में जज बन जाते हैं। इन अदालतों में इन जजों के पुत्र, भाई व अन्य रिश्तेदार भी वकालत करते हैं। भारत के विधि आयोग ने देश के कानून मंत्री को सौंपी अपनी रिपोर्ट में ऐसे जजों को अंकल जज कहा है और इन्हें इन अदालतों से हटाने की सिफारिश भी की है।

आगे बढऩे से पहले भारत के विधि आयोग की 230 वीं रिपोर्ट पर नजर डाल लेते हैं। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एआर लक्ष्मनन की अध्यक्षता में तैयार यह रिपोर्ट 5 अगस्त 2009 को विधि मंत्री को सौंपी गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि - राज्यों के हाईकोटों में ऐसे जजों की नियुक्ति न की जाए जिन्होंने उसी कोर्ट में वर्षों तक वकालत की है और वर्तमान में उसी कोर्ट में उनके पुत्र व अन्य रिश्तेदार पे्रक्टिस कर रहे हैं। इनसे निष्पक्ष न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती। रिपोर्ट में कहा गया है कि - जहां वषो्रं तक काम करते हैं वहां मित्र व दुश्मन बनना स्वभाविक हैं। ऐसे में इन जजों को संबंधित कोर्ट से हटा देना चाहिए।

इस मुद्दे पर सबसे पहले मप्र हाईकोर्ट की ग्वालियर बैंच की बार एसोसिएशन ने पहल की और शुक्रवार को इसके अध्यक्ष प्रेमसिंह भदौरिया ने जबलपुर पहुंचकर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रफत आलम से मुलाकत मप्र हाईकोर्ट के ऐसे नौ जजों को हटाने की मांग कर डाली। भदौरिया ने अपने इस ज्ञापन की प्रति राष्ट्रपति एवं देश के काननू मंत्री व सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेजेत हुए विधि आयोग की रिपोर्ट को तत्काल लागू करने की मांग की है। भदौरिया ने अपने ज्ञापन में इन जजों के बारे में कई चौंकाने वाली जानकारियां भी दी हैं। उन्होंने ग्वालियर में पदस्थ हाईकोर्ट के एक जज के बारे में लिखा है कि - वे शाम को दफतर से फ्री होकर अपने पुत्र के उस कार्यालय में बैठते हैं, जो वह वकील के रुप में सुबह शाम अपने क्लाइंटों से मुलाकात करता है। भदौरिया ने अपने ज्ञापन में ज्ञापन में इन सभी नौ जजों के उन रिश्तेदारों के नामों को भी उल्लेख किया है, जो उसी कोर्ट में वकालत करते हैं और उन्हें प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रुप से जज का रिश्तेदार होने का लाभ भी मिलता है। ,

खास बात यह है कि भदौरिया की इस मुहिम को पूरे प्रदेश में वकीलों एवं मीडिया का जबरदस्त समर्थन मिल रहा है। पिछले तीन से जबलपुर, ग्वालियर एवं इंदौर हाईकोर्ट में इस मुद्दे पर जबरदस्त बहस छिड़ गई है। इस मुद्दे जजों व वकीलों के गुट भी बन गए हैंञ जो जज गृह नगर में पदस्थ नहीं हैं, वे न केवल इस मुहिम को समर्थन कर रहे हैं, बल्कि पर्दे के पीछे से इस मुहिम को हवा भी दे रहे हैं। वहीं दूसरी ओर इस मुहिम से जो जज प्रभावित हो सकते हैं, वे अपने समर्थक वकीलों के जरिए इस मुहिम को ठण्डा करने एवं मुहिम की हवा निकालने में लग गए हैं। सबकी नजर मप्र के मुख्य न्यायाधीश के निर्णय पर टिकी हुई है। ऐसा माना जा रहा है कि बेशक सभी जजों को एक साथ नहीं बदला जा सकता, लेकिन कुछ विवादस्पद जजों को कुछ दिनों में गृह नगर से हटाया जा सकता है।

अपनी मुहिम के पक्ष में भदौरिया का कहना है कि - पूरे प्रदेश के किसी भी थाने में पुलिस के एक अदने से आरक्षक को भी गृह नगर के थाने में इसलिए नहीं रखा जाता, क्योंकि गृहनगर में रहकर वह अपने कत्र्तव्य के साथ न्याय नहीं कर सकता। तो फिर यही नियम जजों पर लागू क्यों नहीं किया जा सकता?

Monday, September 6, 2010



न्यायमूर्ति पीयूष माथुर के त्यागपत्र से उठे सवाल


विधि आयोग की रिपोर्ट पर एक बार फिर तेज हुई बहस-क्या हाईकोर्ट जज को गृहनगर में पदस्थ रहना चाहिए?



कौशल मुदगल

ग्वालियर। क्या हाईकोर्ट जज की पदस्थापना उनके गृहनगर या ऐसे स्थान पर होना चाहिए, जहां उन्होंने वकालात की प्रैक्टिस की हो? मप्र हाईकोर्ट की ग्वालियर बैंच के जज पीयूष माथुर द्वारा सेवाकाल पूर्ण करने से बारह वर्ष पहले ही पद से त्यागपत्र देने के बाद न्यायिक जगत में इस प्रकार के कई सवाल खड़े हो गए हैं। बेशक श्री माथुर ने अपने त्यागपत्र के संबंध में सार्वजनिक रुप से कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन उनके शुभचिन्तक व नजदीकी लोगों का कहना है कि पारिवारिक कारणों क चलते श्री माथुर अपने गृह नगर इंदौर में पदस्थापना चाहते थे। जिसके लिए उन्होंने निर्धारित सेटअप को स्थानातंरण आवेदन भी दिया था, लेकिन उन्हें इंदौर में पदस्थ नहीं किया गया तो उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया।

इस त्यागपत्र से न्यायिक जगत में सवाल उठ गया है कि क्या हाईकोर्ट के जजों को उनके उस गृह नगर पदस्थ किया जाना चाहिए, जहां उन्होंने वर्षों से वकालत की हो और जहां उनके अनेक दोस्त व विरोधी रहते हो? यहां बता दें कि माथुर ने 17 फरवरी 1984 से 14 अक्टूबर 2009 तक इंदौर हाईकोर्ट में पे्रक्टिस की है। संभावत: इसीलिए उनकी पदस्थापना इंदौर नहीं हो पा रही थी। लेकिन मप्र में क्या यह नियम अन्य न्यायाधीशों पर भी लागू हो सकेगा? मप्र में पहले भी इस मुद्दे पर बहस छिड़ चुकी है। इस बहाने भारत के विधि आयोग की ताजा रिपोर्ट पर भी फिर ये चर्चा तेज हो गई है जिसमें ऐसे जजों को अंकल जज कहा गया है, लेकिन इस रिपोर्ट को लागू नहीं किया गया। जिसे वरिष्ठ अभिभाषक गलत भी मान रहे हैं।

आयोग के सुझाव : भारत के विधि आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एआर लक्ष्मनन ने 5 अगस्त 2009 को देश के कानून मंत्री को सौंपी अपनी 230 वीं रिपोर्ट में स्पष्ट व निष्पक्ष न्याय के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर जो मापदंड अपनाने का सुझाव दिया है उसमें उन्होंने किसी भी जज को ऐसे कोर्ट में पदस्थ न करने की सलाह दी है जहां संबंधित जजों ने स्वयं वर्षों तक प्रेक्टिस की हो अथवा वहां उनके रिश्तेदार प्रेक्टिस करते हों। मप्र में लगभग एक दर्जन न्यायाधीश ऐसे हैं जो उसी कोर्ट में पदस्थ हैं जहां उन्होंने वर्षों तक प्रे्रक्टिस की है और जहां वे पदस्थ हैं, वहीं उनके पुत्र, भाई पिता व मित्र आदि पे्रक्टिस कर रहे हैं।

दो तरह के जज : मप्र में दो तरह के जज हैं। एक वे जो उसी कोर्ट में पदस्थ हैं, जहां उन्होंने वर्षों प्रेक्टिस की है और वर्तमान में उसी कोर्ट में उनके पुत्र व अन्य रिश्तेदार प्रेक्टिस करते हैं। दूसरे वे हैं जिन्हें गृह नगर में पदस्थ करने के आमंत्रण मिले, लेकिन उन्होंने उक्त आमंत्रण को ठुकराकर अन्य नगर में काम करना पसंद करके निष्पक्षता का उदाहरण प्रस्तुत किया है।

इनका कहना है..........

'' प्रदेश की हाईकोर्ट बैंचों में जजों की पदस्थापना मप्र हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधिपति द्वारा की जाती है और विधि आयोग की रिपोर्ट लागू नहीं की गई है। उसकी सिफारिशें लागू होने के बाद व्यवस्था बदल सकती है।

-रामेश्वर नीखरा, अध्यक्ष, स्टेट बार कौंसिल





'' न्यायालयों में स्थानीय जजों की पदस्थापना नहीं होना चाहिए। इस संबंध में विधि आयोग की सिफारिश पर गौर कर उन्हें जल्द से जल्द लागू किया जाए, ताकि न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल न उठ सकें।

-प्रेमसिंह भदौरिया, अध्यक्ष, मप्र उच्च न्यायालय अभिभाषक संघ, ग्वालियर



गृहनगर में पदस्थापना..

न्यायमूर्ति श्री अजित सिंह : 18 अक्टूबर 1979 से जबलपुर हाईकोर्ट में प्रेक्टिस प्रारंभ की। 21 मार्च 2003 को स्थाई न्यायाधीश बने, वर्तमान में जबलुपर में ही पदस्थ।
न्यायमूर्ति श्री राजेन्द्र मेनन : 21 अगस्त 1981 से जबलपुर हाईकोर्ट में प्रेक्टिस प्रारंभ की। 21 मार्च 2003 को स्थाई न्यायाधीश बने, वर्तमान में जबलुपर में ही पदस्थ।
न्यायमूर्ति श्री आरके गुप्ता : 6 दिसम्बर 1971 से जबलपुर हाईकोर्ट में प्रेक्टिस प्रारंभ की। 2 फरवरी 2007 को स्थाई न्यायाधीश बने, वर्तमान में जबलुपर में ही पदस्थ।
न्यायमूर्ति श्री आरएस झा : 20 सितम्बर 1986 से जबलपुर हाईकोर्ट में प्रेक्टिस प्रारंभ की। 2 फरवरी 2007 को स्थाई न्यायाधीश बने, वर्तमान में जबलुपर में ही पदस्थ।
न्यायमूर्ति श्री संजय यादव : 25 अगस्त 1986 से जबलपुर हाईकोर्ट में प्रेक्टिस प्रारंभ की। 2 मार्च 2007 को अतिरिक्त न्यायाधीश बने, वर्तमान में जबलुपर में ही पदस्थ।
न्यायमूर्ति श्री आलोक अराधे : 12 जुलाई 1988 से जबलपुर हाईकोर्ट में प्रेक्टिस प्रारंभ की। 29 दिसम्बर 2009 को अतिरिक्त न्यायाधीश बने, वर्तमान में जबलुपर में ही पदस्थ।
न्यायमूर्ति श्री एसएस केमकर : 11 अगस्त 1979 से इंदौर हाईकोर्ट बैंच में प्रेक्टिस प्रारंभ की। 19 जनवरी 2004 से स्थाई न्यायाधीश बने, वर्तमान में इंदौर बैंच में ही पदस्थ।
न्यायमूर्ति श्रीमती एसआर वाघमरे : 6 अगस्त 1981 से इंदौर हाईकोर्ट बैंच में प्रेक्टिस प्रारंभ की। 11 अक्टूबर 2004 से स्थाई न्यायाधीश बनी, वर्तमान में इंदौर बैंच में ही पदस्थ।
न्यायमूर्ति श्री एके श्रीवास्तव : 19 जुलाई 1976 से ग्वालियर हाईकोर्ट बैंच में प्रेक्टिस प्रारंभ की। 8 सितम्बर 2003 से स्थाई न्यायाधीश बने, वर्तमान में ग्वालियर बैंच में ही पदस्थ।
न्यायमूर्ति श्री अभय एम नाइक : 1972 से ग्वालियर हाईकोर्ट बैंच में प्रेक्टिस प्रारंभ की। 25 नवम्बर 2005 से स्थाई न्यायाधीश बने, वर्तमान में ग्वालियर बैंच में ही पदस्थ।



इन जजों ने गृहनगर ठुकराया :

न्यायमूर्ति श्री केके लाहौटी : 14 अक्टूबर 1974 से गुना जिला न्यायालय में प्रेक्टिस प्रारंभ की। 1988 में ग्वालियर हाईकोर्ट बैंच में एडीशनल एडवोकेट जनरल के रुप में पदस्थ हुए। 1 अप्रेल 2002 से स्थाई न्यायाधीश बने, वर्तमान में जबलपुर में पदस्थ।
न्यायमूर्ति श्री जेके माहेश्वरी : 22 नवम्बर 1985 से ग्वालियर हाईकोर्ट बैंच में प्रेक्टिस प्रारंभ की। 25 नवम्बर 2008 से स्थाई न्यायाधीश बने, वर्तमान में जबलपुर में पदस्थ।
न्यायमूर्ति श्री एसएल कोचर : 6 दिसम्बर 1973 से जबलपुर हाईकोर्ट में प्रेक्टिस प्रारंभ की। 1 अप्रेल 2002 से स्थाई न्यायाधीश बने, वर्तमान में इंदौर बैंच में पदस्थ हैं।
न्यायमूर्ति श्री एनके मोदी : 27 नवम्बर 1973 से ग्वालियर हाईकोर्ट बैंच में प्रेक्टिस प्रारंभ की। 11 अक्टूबर 2004 से स्थाई न्यायाधीश बने, वर्तमान में इंदौर बैंच में पदस्थ।
न्यायमूर्ति श्री पीके जायसवाल : 4 अगस्त 1981 से जबलपुर हाईकोर्ट में प्रेक्टिस प्रारंभ की। 11 अक्टूबर 2004 से स्थाई न्यायाधीश बने, वर्तमान में इंदौर बैंच में पदस्थ।
न्यायमूर्ति श्री सतीशचंद शर्मा : 1 सितम्बर 1984 से जबलपुर हाईकोर्ट में प्रेक्टिस प्रारंभ की। 15 जनवरी 2010 से स्थाई न्यायाधीश बने, वर्तमान में इंदौर बैंच में पदस्थ हैं।
न्यायमूर्ति श्री प्रकाश श्रीवास्तव : 2 फरवरी 87 से सुप्रीम कोर्ट में प्रेक्टिस प्रारंभ की। 15 जनवरी 2010 से स्थाई न्यायाधीश बने, वर्तमान में इंदौर बैंच में पदस्थ।
न्यायमूर्ति श्री एसके गंगेले : 31 अक्टूबर 80 से जबलपुर हाईकोर्ट में प्रेक्टिस प्रारंभ की। 11 अक्टूबर 2004 से स्थाई न्यायाधीश बने, वर्तमान में ग्वालियर बैंच में पदस्थ।

Thursday, September 2, 2010

चोर नेताओं ने अखबार पर हमला बोला





आलोक तोमर

डेटलाइन इंडिया

नई दिल्ली, 1 सितंबर - अगर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने न्याय किया और मध्य प्रदेश विधानसभा के अपने रिकॉर्ड पर कार्रवाई की तो प्रदेश के बहुत सारे विधायक जालसाजी के आरोप में जेल में नजर आएंगे। उन सबने फर्जी यात्रा बिल दे कर बहुत बेशर्मी से कुल मिला कर करोड़ों रुपए के यात्रा भत्ते की चोरी की है। यह खुलासा जिस अखबार ने किया है उसे विधायकों के कोप से बचने के लिए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की शरण लेनी पड़ी है।


देश में पहली बार किसी अखबार ने इतनी हिम्मत की है। हालांकि ऐसा नहीं कि लोकसभा और दूसरे राज्यों की विधानसभाओं में ऐसा होने के संकेत नहीं मिले हो लेकिन मध्य प्रदेश विधानसभा में एक अखबार ने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए फर्जी यात्रा बिलों और दूसरे तरीकों से विधायकों की लाखों रुपए की चोरी पकड़ी और जवाब मांगा। निर्वाचित जनप्रतिनिधि जैसे हमेशा देश और उसके पैसे को बाप का माल समझते है वैसे ही यहां भी किया गया।


मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से प्रकाशित राज एक्सप्रेस के संपादक पर विधानसभा का विशेषाधिकार हनन करने का नोटिस थमा दिया गया। चोरी चकारी करना हमारे विधायकों का शायद जन्म सिद्व अधिकार हो और वही उनका विशेषाधिकार हो। मगर तथ्य सामने थे। एक ही विधायक एक समय में विधानसभा में भी था, अपने चुनाव क्षेत्र में भी था, दिल्ली या मुंबई में भी था और रेल, जहाज और टेक्सी से एक साथ चल रहा था। ऐसे अवतारी नेताओं के पास जवाब था नहीं और आम तौर पर क्षेत्रीय अखबार डर जाते हैं, विधायकों के दुर्भाग्य से राज एक्सप्रेस के मालिक अरुण सेहलोत और संपादक रवींद्र जैन ने बेईमानों से पंजा लड़ाने की ठान ली।


ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई अखबार पूरी विधानसभा के खिलाफ उसकी चोरियां पकड़वाने के लिए उच्च न्यायालय में गया है। अभी वह नाटक नौटंकी होनी बाकी है जिसमें यह तय किया जाएगा कि जनता के प्रतिनिधि बड़े है या अदालत का जज। न्याय प्रक्रिया और विधायिका के बीच एक नैतिक सवाल पर लड़ाई हो सकती है मगर यहां तो विधायक की हैसियत से नहीं बल्कि सरकारी पैसे के चोरों की हैसियत से इन लोगों से सवाल किया गया है और चोरों के पास जवाब कभी नहीं होता।


अरुण सेहलोत और रवींद्र जैन ने मई और जून के महीने में मध्य प्रदेश विधानसभा के कुछ विधायकों द्वारा मिले विशेषाधिकार हनन के नोटिस और इसके बाद इन नोटिसों को विशेषाधिकार समिति को भेजे जाने की सूचना जुलाई में आई। राज एक्सप्रेस ने सवाल किया है कि क्या संविधान की धारा 194 के तहत नेक इरादे से और जनहित में विधायकों द्वारा सरकारी पैसा हजम करने की खबर जनता को देना गलत है? क्या इस सूचना का विधानसभा की कार्रवाई से कोई रिश्ता है? उच्च न्यायालय में दी गई याचिका में सवाल यह भी किया गया है कि क्या विधानसभा के विशेषाधिकार नोटिस की, विधायकों की बेईमानी के साफ सरकारी प्रमाणों के बावजूद संविधान की धारा 226 के तहत समीक्षा की जा सकती है?


सवाल तो यह भी है क्या विधानसभा अपने ही रिकॉर्ड से इनकार कर सकती है और अपनी ही द्वारा दी गई सूचनाआें को गलत साबित कर सकती है? कुल मिला कर सवाल यह है कि जिन्हें हम वोट देते हैं क्या उनके कुकर्मों पर सवाल भी नहीं उठा सकते? राज एक्सप्रेस ने सीधे सवाल किया है कि आखिर विधायकों के वेतन भत्ता नियमों को किस हद तक तोड़ा गया है और यह अपराध है या नहीं? अगर यह अपराध है तो अपराधी सफाई देने की बजाय आरोप लगाने पर कैसे तुल गए? विधानसभा के अध्यक्ष ईश्वर दास रोहाणी को भी सवाल उठता ही है और अदालत में उन्हें भी पार्टी बनाया गया है और पूछा गया है कि बजाय विधायकों के खिलाफ दिए गए सबूतों की जांच करने के उन्होंने अखबार को कैसे जारी होने दिया?

इसके अलावा नोटिस का जवाब देने के लिए जिस और रिकॉर्ड की जरूरत थी, वह देने से इनकार कर दिया गया और सीधे मामला विधायकों ने अपनी ही एक अदालत में पहुंचा दिया। विशेषाधिकार समिति के अध्यक्ष और विधायक गिरीश गौतम न्यायमूर्ति की हैसियत में जरूर है मगर अखबार में तो चोरों की सूची में उनका भी नाम लिखा है। उन्होंने भी विधानसभा से गलत और फर्जी तरीकों से भत्ते लिए हैं। अखबार ने संविधान की ही धारा 19/1 और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का हवाला देते हुए जनहित में अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल उठाया है और पूछा है कि हमारे जनप्रतिनिधि किसके प्रति जवाबदेह है?

विधानसभा के अपने नियमों पर भी अगर कोई विधायक विधानसभा के आठ किलोमीटर के दायरे में रहता है तो उसे कोई यात्रा भत्ता नहीं मिलता। आखिर विधायकों को भी छह रुपए प्रति किलोमीटर के हिसाब से मिलता हैं। यहां तो कमाल यह हुआ कि एक ही विधायक एक ही जगह से एक ही जगह की यात्रा करता है और उसके बिल में हजारों रुपए का फर्क होता है। इसे कहते है चोरी और सीनाजोरी।

अखबार को सूचना के अधिकार के तहत बताया गया कि भोपाल के लोकल विधायकों ने भी दबा कर यात्रा भत्ता वसूले है। वे एक साथ रेल, जहाज और बस से भी यात्रा करने की प्रतिभा रखते हैं तो मध्य प्रदेश इतना पिछड़ा हुआ क्यों हैं? इस प्रतिभा का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जा रहा? होना तो ये चाहिए कि जिस तरह की जानकारी मध्य प्रदेश विधानसभा के माननीय विधायकों के बारे में सार्वजनिक हुई हैं उसके बारे में संसद और देश की सभी विधानसभाओं में जांच होनी चाहिए तो यह खेल अरबों रुपए के घोटाले का हो जाएगा।