Tuesday, May 11, 2010

उज्जैन में खोद डाली क्षिप्रा नदी

जिला न्यायाधीश की रिपोर्ट कोर्ट में पेश









रवीन्द्र जैन

इंदौर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के निर्देश पर उज्जैन के जिला एव सत्र न्यायाधीश की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट में पेश कर दी है। इस रिपोर्ट की कॉपी राज एक्सप्रेस के पास मौजूद है। रिपोर्ट में राज एक्सप्रेस की उस खबर की पुष्टि होती है, जिसमें कहा था कि ईंट माफिया ने उज्जैन में क्षिप्रा नदी को इस कदर खोद डाला है कि यह नदी कभी भी अपना बहाव बदल सकती है।

हिन्दुओं के लिए आस्था का केन्द्र क्षिप्रा नदी पर आए संकट को लेकर राज्य सरकार अभी भी सोई हुई है। उज्जैन में भाजपा नेता अशोक प्रजापति और उनके समर्थकों ने नदी को बुरी तरह खोद डाला है। उज्जैन शहर में ही सात किलोमीटर क्षेत्र में नदी के किनारों से मिट्टी खेद खेद कर ईंटे बनाई जा रही हैं। नदी के किनारे इस कदर खेद दिए गए हैं कि नदी का बहाव बदल सकता है। इसके अलावा इन ईंट भट्टों के कारण नदी में प्रदूषण की गंभीर स्थिति बन गई है। हिन्दुओं के पवित्र नगर उज्जैन में क्षिप्रा नदी को बचाने के लिए एक मुसलमान बाकिर अली पिछले कई वर्षों से हाईकोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं। अली की याचिका पर हाईकोर्ट की इंदौर बैंच ने उज्जैन जिला एवं सत्र न्यायाधीश गिरीश कुमार शर्मा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था, जिसमें उज्जैन के कलेक्टर, मप्र विद्युम मंडल के मुख्य अभियंता, जिला पंचायत अध्यक्ष, डेडिया गांव के सरपंच के अलावा याचिकाकर्ता बाकिर अली को शामिल किया गया था।

इस कमेटी ने उज्जैन शहर के आसपास ग्राम डेडिया ङ्क्षमडिया से लेकर कालिया देह तक का भ्रमण करके क्षिप्रा के किनारों की दुर्दशा का विवरण अपनी रिपोर्ट में किया है। रिपोर्ट पर उज्जैन के कलेक्टर के हस्ताक्षर भी हैं जिन पर क्षिप्रा को प्रदूषण से बचाने की जिम्मेदारी है। रिपोर्ट में कुल 12 बिन्दुओं पर मत दिया गया है।

1 - ग्राम डेडिया मिंडिया से लेकर कलिया देह तक क्षिप्रा नदी के किनारे तथा सड़क के किनारे ईंट के भट्टे संचालित होना पाए गए, जो कई स्थानों पर सड़क के दोनों किनारों तथा क्षिप्रा नदी के दोनों किनारों पर संचालित होना पाए गए, जिनके संबंध में चित्र भी खिंचवाए गए हैं और वीडियो भी कराई गई है।

2 - निरीक्षक के दौरान यह पाया गया कि कोयले की चूरी तथा राख, जो छूने में पाउडर जैसी थी, खुली हुई दशा में पाई गई, जो पैदल चलने मात्र से भी उडती थी, इससे बनने वाली काले रंग की ईंट तथा साधारण मिट्टी से बनी हुई पीली ईंट निर्माणाधीन पाई गईं।

3 - खान नदी जो क्षिप्रा नदी में मिलती है, इसके किनारे पंप लगाकर पाइप डालकर पानी लिया जाना पाया गया। यहां पर भी पदी के किनारे मिट्टी से कटाव के कारण किनारे के पेड़ जड़ से नदी की आरे गिरे हुए पाए गए तथा 200 मीटर के अंदर ईंट भट्टे पाए गए।

4 - उज्जैन-इंदौर के बीच निर्माणाधीन फोर लेन सड़क से लगे हुए ईंट भट्टे संचालित होना पाया

गया, जहां इस सड़क और इसके सामान्तर कुछ दूरी पर बहती हुई क्षिप्रा नदी के दूसरे छोर पर नदी किनारे ईंट भट्टे दिखाई दिए।

 5 - फोर लेन सड़क के दूसरे किनारे पर भी 2-3 ईंट भट्टे मौजूद होना पाए गए, जहां ईंट के ढेर तथा राख मौजूद होना पाया गया। इस सड़क और इसके समानान्तर कुछ दूरी पर बहती हुई क्षिप्रा नदी के दूसरे छोर पर नदी किनारे ईंट भट्टे दिखाई दिए।

6 - नदी के किनारे संचालित होने वाले ईंट भट्टों में से दो- एक भट्टों के पास से गुजरने पर ईंट पकाने की तीव्र गंध आ रही थी।

7 - क्षिप्रा नदी के किनारे कुछ जगहों पर सांचे का इस्तेमाल कर कच्ची ईंट बनाने के लिए भूमि को समतल किया गया था, जिसके लिए क्षिप्रा नदी के किनारे समतल की गई मिट्टी से भराव किया गया था।

8 - क्षिप्रा नदी के किनारे बने हुए रिहायसी मकानों की ओर ईंट भट्टों से उड़ता हुआ धुंआ जाता हुआ देख गया।

9 - क्षिप्रा नदी के किनारे खेत कटे हुए पाए गए, जो वहां से मिट्टी खोदने के कारण खड़े आकार में काटे हुए थे, जिससे इन खेतों के पड़ोस के खेतों की मिट्टी बारिश में बहकर क्षिप्रा नदी में डलेगी, तब तक जब तक कि निकाली गई मिट्टी से बना गढ्ढा भर नहीं जाता।

10 - क्षिप्रा नदी के किनारे दो मोटर पानी में रखी हुईं पाई गईं, जो पाइप लाईन से जुड़ी हुईं थीं, और बिजली कनेक्शन लगा हुआ था। निरीक्षण के दौरान भी मोटरों के काफी दूर डायरेक्ट बिजली के तार डले हुए पाए गए।

11 - निरीक्षण के दौरान सड़क से 50 फीट की दूरी तक ईंट भट्टों का संचालन होना पाया गया, जो संचालन प्रस्तुत चित्रों के अनुसार कई जगहों पर दोनों आरे संचालित होना पाया गया।

12 - निरीक्षण के दौरान चिमनी वाले ईंट भट्टे क्षिप्रा नदी के किनारे शहर के नजदीक संचालित होना पाया गया।



इनका कहना है :



क्षिप्रा नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए कई वर्षों से होईकोर्ट में लड़ रहे बाकीर अली का कहना है कि हिन्दुओं की पार्टी होने का दम भरने वाली भाजपा को मेरा साथ देना चाहिए था, लेकिन उसके नेता ही प्रतिदिन लाखों रुपए कमाने के लालच में क्षिप्रा नदी के महत्व को भूल गए। जिला जज की रिपेार्ट के आधार पर अब हाईकोर्ट कुछ भी निर्णय लें, लेकिन मैं पहली लड़ाई जीत गया हूं।



कैसे खोद डाली क्षिप्रा नदी :

भाजपा नेता व पूर्व सांसद सत्यनारायण जटिया के खास समर्थक अशोक प्रजापति को मप्र सरकार ने मालवा माटी बोर्ड का चेयरमेन बनाया है। उन्होंने पैसे के लालच में नदी किनारे पांच सौ से ज्यादा ईंट भट्टे बनवाकर प्रतिदिन हजारों ईंटे नदी किनारे बनाना शुरू कर दिया। इससे नदी में प्रदूषण बढ़ गया। उज्जैन से ईंटे इंदौर सहित प्रदेश के कई हिस्सों में जाती हैं।
SANT SUDHANSHU MAHARAJ KA INDORE ME MILA ASHIRVAAD
RAVINDRA JAIN








Thursday, May 6, 2010

पत्रिका को नाले में फेंका

इंदौर में स्थिति तनावपूर्ण







रवीन्द्र जैन

इंदौर। राजस्थान पत्रिका के मप्र संस्करण पत्रिका का इंदौर संस्करण पिछले तीन दिनों से नहीं बंट पा रहा है। इंदौर में हॉकरों के विवाद के चलते यह स्थिति बनी है। यद्यपि पत्रिका के प्रबंधन का मानना है कि - उनके साथ राज्य के ताकतवर मंत्री कैलाश विजयर्गीय के समर्थक यह सब कर रहे हैं। 6 मई को इंदौर के कई क्षेत्रों में पत्रिका के बंड़लों को नाले में फेंक दिया गया एवं पत्रिका बांटने निकले हॉकरों व बंडल लेकर जा रहे वाहन के चालक के साथ भी मारपीट की खबरें हैं।



दूसरी ओर इंदौर के हॉकरों की यूनियन न्यू देवी अहिल्या हॉकर संघ के अध्यक्ष विनोद जैन एवं महामंत्री नरेश यादव का आरोप है कि पत्रिका के गुंड़े उनके साथियों के साथ मारपीट कर रहे हैं और जबरदस्ती कर रहे हैं। इन नेताओं ने 7 मई को इंदौर में पत्रकारवार्ता का आयोजन किया है, जिसमें वे अपनी अगली रणनीति का खुलासा करेंगे।
खोद डाली क्षिप्रा नदी











पवित्र शहर को लूटने पर उतारू दो भाजपा नेता


क्षिप्रा नदी को बचाने आगे आया एक मुसलमान

रवीन्द्र जैन

उज्जैन। ऐसा लगता है मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने महाकाल के शहर उज्जैन को पवित्र नगर घोषित करने के बाद अपनी ही पार्टी के दो नेताओं को इसे लूटने और बर्वाद करने का जिम्मा भी सौंप दिया है। मोहन यादव ने जहां उज्जैन विकास प्राधिकरण को अपनी जागीर की तरह निचौड़ा वहीं अशोक प्रजापति और उनकी टीम इस शहर के चारों ओर सात किलोमीटर क्षेत्र में क्षिप्रा नदी के किनारों को खोदने में लगी है। उज्जैन शहर में बहने वाली पवित्र क्षिप्रा नदी के किनारों को इस कदर खोद डाला है कि - अब कभी भी नदी अपना वहाब बदल सकती है। सबसे सुखद बात यह है कि इस पवित्र नदी को बचाने एक मुसलमान व्यक्ति सामने आया है और वह पिछले कई वर्षों से मप्र उच्च न्यायालय में यह लड़ाई लड़ रहा है। दूसरी ओर राज्य सरकार ने क्षिप्रा के दुश्मन अशोक प्रजापति को मालवा माटी बोर्ड का अध्यक्ष बनाकर राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया है।

उज्जैन में राज्य सरकार ने गरीब कुम्हारों की ईंटें बनाने की अनुमति दी थी। मालवा की माटी से वर्तन व अन्य सामान बनाने की कला को विकसित करने के लिए राज्य सरकार ने पिछले वर्ष मालवा माटी बोर्ड का गठन कर भाजपा सांसद सत्यनारायण जटिया के कहने पर उनके समर्थक अशोक प्रजापति को इस बोर्ड का अध्यक्ष अनाकर राज्यमंत्री का दर्जा दिया है। अशोक प्रजापति ने सत्ता के मद में चूर होकर क्षिप्रा नदी से ही खिलवाड़ करना शुरू कर दिया है। नदी के किनारे पच्चीस से पचास फीट तक खोदे जा चुके हैं। यहां नियम विरूद्ध ढंग से बड़ी चिमनी लगाकर प्रतिदिन लाखों ईंटें बनाने व पकाने का काम हो रहा है। जिस नदी के किनारे दो सौ मीटर तक कोई कार्य नहीं किया जा सकता है, वहां पांच सौ से अधिक ईंट भट्टे बना गए हैं। प्रजापति गरीब लोगों के नाम बनाए इन ईंट भट्टों से जमकर वसूली कर रहे हैं। जो व्यक्ति प्रजापति को रकम नहीं देते उन्हें दूसरे दिन ही जिला प्रशासन से नोटिस जारी हो जाते हैं।



मुसलमान आगे आया : पवित्र क्षिप्रा नदी को बचाने बोहरा समाज के एक मुस्लिम व्यक्ति बाकिर अली सामने आए हैं। उन्होंने नदी को बचाने के लिए मप्र उच्च न्यायालय की शरण ली है। अली का कहना है कि - ईंट भट्टों के कारण नदी प्रदूषित हो रही है। इसके अलावा नदी के किनारों पर की जा रही खुदाई के कारण क्षिप्रा नदी का वहाब कभी भी बदल सकता है। नदी किनारे बने पांच सौ से अधिक ईंट भट्टों में लगने वाले कोयले की राख नागदा की मिलों से लाई जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार मिलों को यह राख अपने खर्चें पर ईंट भट्टों तक पहुंचा होती है। यह राख किसी भी पानी के स्त्रोत के आसपास नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह राख उड़कर यदि पानी में मिल जाए तो पानी पीने वाले के फेफड़े खराब कर सकती है। अली का कहना है कि क्षिप्रा नदी में आसपास से यह राख उड़ कर नदी की सतह पर जम रही है। जिस कारण नदी में पलने वाली मछलियों को ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही और मछलियों मर रहीं हैं।

संवाददाता ने जो देखा : इस संवाददाता ने स्वयं क्षिप्रा नदी के किनारे लगभग सात किलोमीटर घूमकर देखा कि ईंट भट्टों के कारण नदी बुरी तरह प्रदूषित हो रही है। नदी किनारे जगह जगह कोयले की राख के ढेर लगे हुए हैं। नदी के किनारे खोद डाले हैं। उज्जैन शहर के बाहर जाने वाले हर मार्ग पर ईंटों से भरे ट्रक दिखाई दे रहे थे। देवास, इंदौर यहां तक कि भोपाल तक उज्जैन की ईंटे सप्लाई की जा रहीं हैं।

प्रतिदिन लाखों ईंटें : उज्जैन शहर से प्रतिदिन लाखों ईंटें बनकर प्रदेश के कई जिलों में जा रहीं हैं। सबसे दुखद पहलू यह है कि - राज्य सरकार ने जिन गरीबों के कारण नदी किनारे ईंट बनाने की अनुमति दी थी उन्हें केवल 25 रुपए प्रति दो ईंटें बनाने के दिए जा रहे हैं। यानि गरीब कुम्हार अमीरों यहां नौकरी कर रहा है। उसे पर्याप्त मजदूरी भी नहीं मिल रही।

जिला जज को जांच का जिम्मा : मप्र उच्च न्यायालय की इंदौर ब्रांच ने अली की याचिका पर उज्जैन के जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अध्यक्षता में इन ईंट भट्टों की जांच करने कमेटी का गठन किया है। इस कमेटी में जिला जज के अलावा कलेक्टर उज्जैन, जिला पंचायत अध्यक्ष उज्जैन, सरपंच ग्राम पंचायत देहडिय़ा, मुख्य अभियंता मप्र विद्युत मंडल को शामिल किया था। इस कमेटी ने 25 फरवरी को स्वयं क्षिप्रा नदी की परिक्रमा करके ईंट भट्टों की हकीकत को अपनी आंखों से देखा है। इस भ्रमण के दौरान उज्जैन कलेक्टर अजादशत्रु श्रीवास्तव ईंट भट्टों के प्रदूषण परेशान होकर पूरे समय मुंह पर रुमाल रखे रहे। बताते हैं इस कमेटी ने ईंट भट्टों से क्षिप्रा नदी में हो रहे प्रदूषण को देखा व कोयले की राख से हो रहे नुक्सान का भी जायजा लिया। कमेटी ने नदी के किनारों की खुदाई और ईंट भट्टों द्वारा की जा रही बिजली चोरी को भी अपनी आंखों से देखा। जिला जज ने अपनी रिपोर्ट बंद लिफाफे में उच्च न्यायालय भेज दी है। ,


खबर मत छापों अपन बात कर लेते हैं : इस संबंध में जब राज एक्सप्रेस ने अशोक प्रजापति से चर्चा की तो उन्होंने कहा कि - प्लीज आप इस संबंध में खबर मत छापों अपन बैठकर बात कर लेते हैं। खबर छपने से पहले ही मोहन यादव का नुक्सान हो गया है। इस बार मेरा अकेले का नहीं बहुत से गरीबों का नुक्सान हो जाएगा। प्रजापति ने बताया कि वे स्वयं भी ईंट भट्टों को वैकल्पिक स्थान दिलाने का प्रयास कर रहे हैं।

पर्दें के पीछे जटिया : उज्जैन में ईंट भट्टों के धंधे के पीछे पूर्व सांसद सत्यनारायण जटिया का हाथ बताया जाता है। बताते हैं कि अशोक प्रजापति तो मोहरा है, असली खेल जटिया जी करते हैं। जटिया ने ही प्रजापति को मालवा माटी बोर्ड का अध्यक्ष बनवाया है। चर्चा तो यहां तक है कि जटिया के कई काम अशोक प्रजापति के नाम से ही चलते हैं। यहां तक उज्जैन में जिस मकान में जटिया रहते हैं वह भी अशोक प्रजापति के नाम से जटिया ने बनवाया है। बार बार फोन लगाने पर भी जटिया से बात नहीं हो पाई।
कैंसर से पीडि़त हैं जमुनादेवी





















रवीन्द्र जैन

भोपाल। नेता प्रतिपक्ष जमुनादेवी को कैंसर हो गया है। उनके उपचार को लेकर राज्य सरकार गंभीर बनी हुई है और पिछले छह महिने में उनका भोपाल, इंदौर व मुम्बई में उनके बेहतर इलाज पर सरकार ने अब तक लगभग बीस लाख रूपए व्यय कर दिए हैं। जमुनादेवी फिलहाल इंदौर के सीएचएल अपोलो अस्पताल में भर्ती हैं।

नेता प्रतिपक्ष जमुनादेवी पिछले कई दिनों से बीमार हैं। वे अपनी बीमारी के बारे में ज्यादा किसी को बताना भी नहीं चाहतीं। लेकिन उनके परिवारिक सूत्रों ने उन्हें कैंसर होने की पुष्टि कर दी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उनके बेहतर इलाज को लेकर चिन्तित हैं। उन्होंने इंदौर के बॉम्बे अस्पताल में लगभग 7 लाख रुपए व मुम्बई के लीलावती अस्पताल में लगभग 13 लाख रुपए उनके इलाज में अभी तक शासन की ओर से व्यय किए हैं। पिछले दिनों जमुनादेवी उपचार के लिए चुपचाप भोपाल के हमीदिया अस्पताल में भर्ती हो गईं। जैसे ही मुख्यमंत्री को पता लगा वे उन्हें देखने पहुंच गए। बुआ जी नहीं चाहती थी कि उनकी बीमारी के बारे में किसी को पता चले, क्योंकि जैसे ही उनकी बीमारी की बात होती है, उनकी ही पार्टी के लोग उन्हें नेता प्रतिपक्ष पद से हटाने की मुहिम शुरू कर देते हैं। मुख्यमंत्री के निर्देश पर बुआ जी को उपचार के लिए इंदौर भेजा गया, जहां बॉम्बे अस्पताल में उनका इलाज किया गया।

पिछले विधानसभा सत्र के दौरान जमुनादेवी फिर से बीमार हुईं तो उन्हें उपचार के लिए मुम्बई रवाना किया गया। वे लंबे समय से मुम्बई के लीलावती अस्पताल में अपना उपचार करा रहीं थीं। इस दौरान उनका आपरेशन भी किया गया। इसी बीच मुख्यमंत्री चौहान ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की रणनीति बनाई तो उन्हें बुआ जी की याद आई और फौरन मुख्यमंत्री सचिवालय से सचिव एसके मिश्रा को बुआ जी की सेवा में मुम्बई भेजा गया। बताते हैं कि मिश्रा ने लीलावती अस्पताल में बुआ जी के इलाज के रुप में लगभग 13 लाख रुपए का भुगतान किया। राज्य सरकार के विमान से बुआजी को इंदौर लाया गया है। इंदौर में पहले बुआ जी ने अपनी डॉक्टर पुत्री हेमलता ढांड के सरकारी निवास पर आराम किया, लेकिन तकलीफ बढऩे पर उन्हें सीएचएल अपोलो में भर्ती किया गया है।
जेलखाने हैं या कत्लखाने





















मप्र की जेलों में 6 साल में 532 बंदियों की मौत



भ्रष्टाचार में डूबे हैं जेल अफसर


कैदियों को न भोजन मिलता है और न ही दवाएं

रवीन्द्र जैन

भोपाल। मध्यप्रदेश के लिए यह चौंकाने वाली जानकारी है कि पिछले छह वर्षों में राज्य की 121 जेलों में 532 से अधिक कैदियों की मौत हो चुकी है। मौत के इतने बड़े आंकड़े का एकमात्र कारण मप्र की जेलों में व्याप्त भ्रष्टाचार, डाक्टरों की कमी और उपचार का अभाव है। पिछले कई वर्षों में मप्र में एक भी कैदी को सजाएं मौत नहीं हुई, लेकिन जेल विभाग की लापरवाही के चलते छह वर्षों में इतनी बड़ी संख्या में कैदी मारे गए हैं। इंदौर,जबलपुर और भोपाल की जेलें तो कैदियों के लिए कत्लगाह साबित हो रहीं हैं। यहीं कारण है कि इस दौरान 135 बार कैदियों के जेल तोड़कर भागने का प्रयास किया और सौ से अधिक कैदी अभी फरार हैं। मप्र में जेलों की हकीकत को सामने लाने के लिए राज एक्सप्रेस ने सूचना के अधिकार के तहत बमुश्किल यह जानकरी जुटाई है।

मौतों का वर्षवार आंकड़ा

वर्ष 2004 - 67

वर्ष 2005 - 98

वर्ष 2006 - 65

वर्ष 2007 - 92

वर्ष 2008 - 110

वर्ष 2009 - 83

वर्ष 2010 फरवरी तक - 17

स्वास्थ के नाम पर मजाक : मप्र की जेलों में कैदियों के स्वास्थ के नाम पर मजाक बना रखा है। प्रदेश की 121 जेलों में कैद 33 हजार से अधिक कैदियों के स्वास्थ के लिए केवल 24 नियमित चिकित्सक रखे गए हैं। इनमें 17 मेडीकल ऑफिसर में से 15 ही पद भरे हैं और 7 असिस्टेंड सर्जन पदस्थ हैं। इनके अलावा अधिकांश जेलों में पार्टटाइम डाक्टरों की नियुक्तियां की गईं है जो किसी न किसी के प्रभाव व सिफारिश रखे जाते हैं। इन चिकित्सकों की कैदियों के उपचार को लेकर कोई जिम्मेदारी नहीं है। जेलों में महिला कैदियों के लिए एकमात्र स्त्री रोग विशेषज्ञ का पद स्वीकृत है, लेकिन वह भी रिक्त पड़ा है। जेलों में पार्टटाइम चिकित्सकों की लंबी चौड़ी फौज बताई है, लेकिन इसके बाद भी इतनी बड़ी संख्या में कैदियों की मौत के लिए कौन जिम्मेदार है? जेलों में 74 कंपाउन्डरों में से मात्र 28 पदस्थ हैं और 24 मेल नर्स में से केवल 14 ही कार्यरत हैं।

पैसे से मिलता है इलाज : जेलों में बिना पैसे के कुछ नहीं होता। परिजनों से मुलाकात करना हो अथवा अपना उपचार करना हो घर से पैसे मंगवाने पड़ते हैं। यहां कि जेल में भरपेट भोजन के लिए कैदियों को घर से पैसे मंगवाकर देने पड़ते हैं। पैसे के लाजल में जेल अधिकारी अच्छे खासे कैदी को उपचार के लिए जेल से बाहर भेज देते हैं, लेकिन यदि रिश्वत न मिले तो गंभीर बीमार कैदी भी जेल की सलाखों के पीछे ही घुट-घुट कर दम तोड़ देता है।

जेल अफसरों के दावे : जेल विभाग की वेबसाइड पर दावा किया गया है कि मप्र की जेलों में कैदियों को सुबह नाश्ता, दोपहर व शाम को भोजन एवं चाय दी जाती है। इसके अलावा रविवार को सभी कैदियों को भोजन के साथ हलुआ दिया जाता है। लेकिन वास्तविकता से इससे कोसों दूर है।

जेल अफसरों पर आरोप : मप्र जेलों के अफसरों पर कई गंभीर आरोप होने के बाद भी उनके विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं होती। सूत्रों के अनुसार पिछले दिनों मंत्रालय के अधिकारी ने भारी रिश्वत लेकर एक जेल अधीक्षक के खिलाफ चल रहीं 7 विभागीय जांचों को एकसाथ समाप्त करके उन्हें डीआईजी के पद पर पदस्थ कराया है। जेल में अतिरिक्त महानिरीक्षक का पद आज तक लोक सेवा आयोग से स्वीकृत नहीं है। लेकिन फिर भी इस पद पर एके खरे को पदोन्नति दी गई है।
मप्र में राष्ट्रपति शासन के लिए प्रतिवेदन मांगा

महेन्द्र विश्वकर्मा

भोपाल। मध्यप्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने जैसे हालात कतई नहीं है, लेकिन फिर भी राजभवन के एक उपसचिव ने राज्यपाल के निर्देश का हवाला देते हुए मप्र के मुख्यसचिव अवनि वैश्य से कांग्रेस के विधायक डा. गोविन्द सिंह के ज्ञापन के आधार पर राष्ट्रपति शासन लगाने के विषय में प्रतिवेदन देने को कहा है।

कांग्रेस विधायक डा. गोविन्द सिंह ने पिछले सप्ताह राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंपकर मप्र में कानून व्यवस्था व भ्रष्टाचार पर अंकुश न पाने का आरोप लगाते हुए शिवराज सिंह चौहान की सरकार को भंग करके राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की थी। राज्यपाल के उप सचिव शैलेन्द्र कियावत ने 26 अप्रेल को प्रदेश के मुख्य सचिव अवनि वैश्य को पत्र लिखकर डा. सिंह द्वारा लगाए आरोप के बारे में संबंधित विभागों से तथ्यपरक प्रतिवेदन प्राप्त कर राजभवन को उपलब्ध कराने को कहा है ताकि इस संबंध में महामहिम को अवगत कराया जा सके। सूत्रों के अनुसार विपक्ष के नेता ऐसी मांग करते रहते हैं, लेकिन इस तरह प्रतिवेदन नहीं मांगा जाता।

मैं चेक करके बताऊंगा : इस संबंध में जब राजभवन में उपचसिव शैलेन्द्र कियावत से चर्चा की तो पहले तो उन्होंने कहा कि - ऐसा पत्र पहले कभी गया होगा, लेकिन जब उन्हें बताया कि यह पत्र 26 अप्रेल को उनके हस्ताक्षर से लिखा गया तो उन्होंने कहा कि - मैं चेक करके बता सकंूगा।

सिंह का चेकअप होना चाहिए : इस संबंध में मप्र के संसदीय कार्यमंत्री नरोत्तम मिश्रा का कहना है कि मप्र में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बेहतर सरकार काम कर रही है। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रित तरीके से चुनी गई सरकार को भंग करने की मांग करने वाले कांग्रेस विधायक डा. गोविन्द सिंह का मेडीकल चेकअप होना चाहिए

राज्यपाल का आभार : दूसरी ओर कांग्रेस विधायक डा. गोविन्द सिंह ने उनके ज्ञापन पर राज्य सरकार से प्रतिवेदन मांगे जाने पर राज्यपाल का आभार व्यक्त किया है। उनका कहना है कि रिपोर्ट आने के बाद राज्यपाल को भ्रष्ट सरकार के बारे में सख्त कदम उठाने चाहिए। डा. सिंह ने कहा कि जहां तक उनके मेडीकल चेकअप की बात है तो डा. नरोत्तम मिश्रा का धन्यवाद जिन्होंने उनके स्वास्थ की चिन्ता की है।


रेत के मुद्दे पर हाईकोर्ट में सुनवाई आज

राज्य सरकार हुई सक्रिय, दिल्ली से वकील बुलाया

रवीन्द्र जैन

भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार भारी चिन्तित है कि कही मप्र की नदियों से अंधाधुंध रेत निकासी पर मप्र हाईकोर्ट का ग्रहण न लग जाए? मप्र खनिज विकास निगम के प्रबंध संचालक एसके मिश्रा इस मामले में एकदम सक्रिय हो गए हैं और दिल्ली से एक बड़े वकील को बुला लिया गया है। इस मामले की सुनवाई गुरुवार को मप्र के मुख्य न्यायाधीश करेंगे।

भोपाल के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अजय दुबे ने जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका दर्ज कर मध्यप्रदेश की नदियों से 50 हैक्टैयर तक के क्षेत्र में रेत निकासी से पहले पर्यावरण प्राधिकरण से अनुमति लेने का आग्रह किया है। अभी तक मप्र में ऐसी व्यवस्था नहीं है।

परेशानी का कारण : दरअसल सरकार इसलिए भी परेशान है कि दुबे की पिछली याचिका, जिसमें उन्होंने पर्यावरण विभाग की बिना अनुमति से चल रहीं खदानों पर रोकने की मांग की थी, को सरकार ने हल्के में लिया था और उनकी याचिका पर हाईकोर्ट ने ऐसी सभी खदानों पर रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट के उस निर्णय से मप्र में कई दिनों तक सड़क निर्माण के कार्य बंद हो गए थे जो खदानों से पत्थर लाकर सड़क बनाने में लगे थे। दुबे ने अब हाईकोर्ट से आग्रह किया है कि राज्य की नदियों से हो रही अंधाधुंध रेत निकासी पर रोक लगाने के लिए इस कार्य के लिए भी पर्यावरण प्राधिकरण की अनुमति आवश्यक की जाए।

वर्तमान व्यवस्था : मप्र हाईकोर्ट के आदेश दिनांक 2 जुलाई 2008 के बाद खनिज निगम ने रेत की खदानों पर भी रोक लगा दी थी। लेकिन बाद में परीक्षण के बाद खनिज निगम ने पाया कि रेत खदानों के लिए पर्यावरण निवारण मंडल की अनुमति की आवश्यकता नहीं है। इसके बाद निगम ने 18 जुलाई 2008 को रेत की खदानें फिर से प्रारंभ की दी थीं। लेकिन इसी बीच मप्र हाईकोर्ट ने एम अली की यािचका पर सुनवाई करते हुए 19 फरवरी 2009 को आदेश दिया कि - रेत की ऐसी खदानें जिनका रकबा 5 हैक्टेयर से अधिक है वहां बिना शासन की विशिष्ठ अनुमति के खनन कार्य नहीं हो सकेगा। इस आदेश के संबंध में खनिज निगम ने हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखा तो हाईकोर्ट ने 26 मार्च 2009 को आदेश दिया कि - उन्हीं रेत खदानों को शुरू किया जाए जो दो माह में संबंधित सक्षम प्राधिकारी के समक्ष पर्यावरण्रीय अनुमति के लिए आवेदन कर दें।

दिल्ली से वकील बुलाए : सूत्रों के अनुसार 6 मई को मप्र हाईकोर्ट में राज्य सरकार का पक्ष रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता विपलप शर्मा को बुलाया गया है। बताते हैं कि शर्मा खनिज निगम के एमडी एसके मिश्रा के रिश्तेदार भी हैं।

केन्द्र सरकार ने दिया शपथ पत्र : इधर इस संबंध्ण में केन्द्र सरकार ने भी स्पष्ट कर दिया है कि गौण खनिज जैसा कुछ नहीं होता। केन्द्र के अनुसार खनिज एक ही होता है और जहां भी खनन का कार्य हो रहा हो वहां पर्यावरण प्राधिकरण की अनुमति आवश्यक है।

प्राधिकरण का गठन : केन्द्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने सभी राज्यों में राज्य स्तरीय
पर्यावरण प्रभाव निर्धारण प्राधिकरण का गठन किया है। इस प्राधिकरण द्वारा राज्य में प्रस्तावित 50 हेक्टेयर तक के खनन प्रकरणों को पूर्व पर्यावरणीय अनुमति प्रदान की जाती है। प्राधिकरण के तत्तकालीन सदस्य सचिव मनोज गोविल ने 14 दिसम्बर 2009 को मप्र खनिज विकास निगम के प्रबंध संचालक एसके मिश्रा को पत्र लिखकर स्पष्ट कहा था कि - रेत की खदानों के मामले में लीज दो वर्ष के लिए दी जाती है व इस अवधि में से काफी समय पूर्व पर्यावरणीय अनुमति लेने में व्यतीत हो जाता है। ऐसे में रेत खदान की लीज देने से पहले ही कलेक्टर द्वारा पूर्व पर्यावरणीय अनुमति प्राप्त करने की कार्यवाही की जाए।

परेशान हैं एमडी : मप्र खनिज विकास निगम के प्रबंध संचालक एसके मिश्रा दुबे की याचिका से भारी परेशान हैं। वे कहते हैं कि - ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता ही राज्य के विकास में रोडा अटकाते हैं। मुख्यमंत्री के सचिव का भी कार्य देख रहे मिश्रा खनिज कानून की पुस्तकों को अपनी टेबिल पर रखे हुए और बताते हैं कि - रेत निकासी से भला पर्यावरण को नुक्सान कैसे हो सकता है?

नदी बचाने का सही अभियान है : दूसरी ओर इस लड़ाई को हाईकोर्ट में लडऩे वाले सामाजिक कार्यकर्ता अजय दुबे का कहना है कि - अजय दुबे का दावा है कि वे मप्र में नदियों के बचाने के नाम पर ढोंग के खिलाफ यह छोटी सी लड़ाई सरकार में बैइक लोग वास्तव में नदियों को बचाने के लिए चिन्तित है तो उन्हें मेरा साथ देना चाहिए। दुबे का कहना है कि नदियों से अंधाधुंध रेत निकासी पर रोक लगना जरूरी है।
पचौरी ने दलितों को मंदिर में प्रवेश कराया














रवीन्द्र जैन

भोपाल। मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुरेश पचौरी गुरूवार को सीहोर जिले के जैत गांव पहुंचे औा उन्होंने गांव के दलितों के साथ वहां के मंदिर में प्रवेश किया। यह गांव मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का है और आरोप है कि यहां के मंदिर में दलितों को प्रवेश नहीं करने दिया जाता है।

एक अंग्रेजी समचार पत्र में खबर छपने के बाद पचौरी मीडिया को साथ लेकर जैत पहुंचे। उन्होंने गांव के दलितों को एकत्रित किया और गांव के मध्य स्थित मंदिर में प्रवेश किया। पचौरी के साथ मंदिर में प्रवेश करते समय दलितों के चेहरे पर मुस्कान थी। पचौरी ने जैत के दलितों को भरोसा दिलाया कि - कांग्रेस पार्टी दलितों के साथ है। उन्होंने कहा कि भविष्य में यदि दलितों को मंदिर में प्रवेश से रोका गया तो कांग्रेस पार्टी जैत से ही प्रदेश स्तरीय आन्दोलन की शुरूआत करेंगी।

पचौरी ने जैत से लौटने के बाद राज एक्सप्रेस से कहा कि - मुख्यमंत्री के गृहगांव में जब यह स्थिति है तो पूरे मप्र में दलितों के साथ कैसा व्यवहार हो रहा है इससे अंदाज लग सकता है।