Monday, March 29, 2010

रवींद्र जैन की रिपोर्ट पर बवाल क्यों?


Monday, 29 March 2010 11:26

अरशद अली खान

भड़ास4मीडिया - विविध .

विशेषाधिकार हनन की आड़ में प्रेस का गला घोटने का प्रयास : मध्य प्रदेश विधानसभा द्वारा विशेषाधिकार कानून का उपयोग सच बोलने वालों की अवाज़ को दबाने के लिए किया जा रहा है। ऐसी ही एक कोशिश गत 24 मार्च को विधान सभा के बजट सत्र में की गयी। राजधानी भोपाल के धाकड़ पत्रकार रवींद्र जैन ने भोपाल से प्रकाशित एक दैनिक समाचार पत्र में जब विधायकों की करतूत को लेकर समाचार पत्र के मुख्य पृष्ठ पर खबर छापी तो पूरे प्रदेश में सनसनी फैल गयी। जनता के सामने नंगे हो चुके विधायक सदन में उक्त समाचार पत्र के विरूद्ध विशेषाधिकार ले आए।

वैसे ही मध्य प्रदेश में सच बोलने वाले पत्रकारो का आभाव है, यदाकदा कोई पत्रकार सच कहने का साहस या हिम्मत दिखाता है तो उसे कानून का डर दिखा कर इसी तराह से दबाने का प्रयास किया जाता है। ओर तो ओर इस मामले में चोर- चोर मौसेरे भाई की तर्ज पर पक्ष और विपक्ष एक साथ खड़े नजर आए, क्योंकि इस फर्जीवाड़े में वह भी शामिल हैं। इधर पत्रकार रवींद्र जैन का कहना है कि उनके द्वारा प्रकाशित समाचार अक्षरशः सही है, और उसके पर्याप्त प्रमाण उनके पास है फिर भी यदि विधायको को समाचार की सत्यता पर संदेह है तो वह न्यायालय जाऐं, सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाऐगा।

क्या लिखा था अखबार ने : 19 मार्च के अखबार के मुख्य पृष्ठ पर ''मिस्टर विधायक यह चोरी है'' शीर्षक से प्रकाशित समाचार में रवींद्र जैन ने लिखा था- ''प्रदेश के विधायक धड़ल्ले से विधानसभा सचिवालय में फर्जी यात्रा देयक लगाकर राज्य सरकार को करोड़ों रूपये का चूना लगा रहे हैं,लेकिन सब कुछ जानते हुए इस फर्जीवाड़े को रोकने की हिम्मत किसी में नहीं है। 100 से अधिक विधायक विधानसभा सत्र के दौरान भोपाल आने-जाने की यात्रा ट्रेन से करते हैं और उसी तिथि में अपने वाहन से आने-जाने का फर्जी देयक बनाकर विधानसभा सचिवालय से सड़क मार्ग से आने का भुगतान ले लेते हैं।'' अखबार ने विधानसभा सचिवालय की भूमिका को संदिग्ध बताते हुए लिखा है कि ”इस संबंध में विधानसभा सचिवालय की भूमिका भी संदिग्ध है। नियमों में स्पष्ट लिखा है कि विधायक के निजी वाहन पर ही यात्रा भत्ते की पात्रता है,ऐसे में सचिवालय बिना जांच किए कैसे यात्रा भत्ते का भुगतान कर रहा है?''

अखबार का दावा है कि उसने सूचना के अधिकार के तहत विधानसभा सचिवालय से यह जानकारी लेकर इस फर्जीवाड़े को उजागर किया है। अच्छा होता पवित्र सदन में खबर की सत्यता को परखने के लिए चर्चा करायी जाती एवं समिति गठित करके मामले की जांच कराने के आदेश दिए जाते, लेकिन एसा ना करके, खबर छापने वाले अखबार के विरूद्ध ही विशेषाधिकार हनन कें नाम पर प्रेस को दबाने का प्रयास किया गया है जो न्याय संगत नही है।

Thursday, March 25, 2010


                                           हरी साड़ी पहने विधानसभा पर प्रदर्शन करती गृहमंत्री की पत्नि राधा गुप्ता




                     राधा  गुप्ता को गिरफ्तार जैसे ही पुलिस वाहन में बिठाया गया, उन्होंने नारेबाजी तेज कर दी।


मप्र के गृहमंत्री की पत्नी गिरफ्तार

रवीन्द्र जैन

भोपाल। मध्यप्रदेश के गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता की पत्नि राधा गुप्ता ने गुरुवार को मप्र सरकार के खिलाफ विधानसभा पर प्रदर्शन किया और धारा 144 तोड़कर गिरफ्तारी भी दी। राधा गुप्ता मप्र विद्युत मंडल की कर्मचारी हैं। उन्होंने राज्य के कर्मचारियों की मांगों को लेकर भारतीय मजदूर संघ ने इस प्रदर्शन का आयोजन किया था। मजेदार बात यह है कि - जिस समय गृहमंत्री की पत्नी विधानसभा के बाहर गिरफ्तारी दे रहीं थी, उस समय गृहमंत्री गुप्ता विधानसभा के अंदर आतंकवादी एवं संगठित अपराध को रोकने के लिए लाए गए नए विधेयक पर विपक्ष के गुस्से का सामना कर रहे थे। विपक्ष ने सदन में इस अधिनियम की प्रतियां फाड़कर अपने गुस्से का इजहार किया था।

Wednesday, March 17, 2010

लोकायुक्त-सूचना आयुक्त का समझौता हाईकोर्ट में पेश


हाईकोर्ट ने शपथ पत्र के आवेदन का प्रारूप मांगा

रवींद्र जैन 

भोपाल। आखिर मध्यप्रदेश के लोकायुक्त एवं मुख्य सूचना आयुक्त के बीच ढाई वर्ष से चल रहा विवाद बुधवार को थम गया। राज्य के महाधिवक्ता ऋषभदास जैन ने दोनों के बीच हुए समझौते के प्रपोजल की प्रति हाईकोर्ट में पेश कर दी। हाईकोर्ट ने इस समझौते के संबंध में दोनों की ओर से शपथ पत्र के प्रारुप में आवेदन देने के निर्देश देते हुए अगली सुनवाई दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दी है।

मप्र में मुख्य सूचना आयुक्त पीपी तिवारी एवं राज्य के तत्कालीन लोकायुक्त रिपुसूदन दयाल के बीच 27 अगस्त 2007 को उस समय विवाद हो गया था, जब पीपी तिवारी लोकायुक्त संगठन द्वारा सूचना के अधिकार के तहत एक प्रकरण में निर्णय सुनाने जा रहे थे तथा लोकायुक्त दयाल उनके घर पहुंच गए। तिवारी ने अपने निर्णय में लिखा कि दयाल उन्हें प्रभावित करने के उद्देश्य से तिवारी के घर पहुंचे थे। इसके बाद इन दोनों के बीच हुआ विवाद एमपी नगर थाने होता हुआ, मप्र हाईकोर्ट पहुंच गया।

प्रदेश के नए लोकायुक्त जस्टिस पीपी नावलेकर ने इस विवाद को समाप्त करने की पहल करते हुए पीपी तिवारी से चर्चा की। राज एक्सप्रेस ने सबसे पहले खबर दे दी थी कि - इन दोनों के बीच हाईकोर्ट के बाहर समझौते के प्रयास किए जा रहे हैं। बुधवार को जबलपुर हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सयैद रफत आलम एवं जस्टिस आलोक अराधे की युगल पीठ में राज्य के महाधिवक्ता ऋषभदास जैन ने दोनों के बीच हुए समझौते के प्रपोजल की प्रति सौंपी तो हाईकोर्ट ने इसे शपथ पत्र के साथ आवेदन के प्रारुप में पेश करने के निर्देश दिए। इस मामले में अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी।

- इस संबंध में बुधवार को हमने दोनों के बीच हुए समझौते का प्रपोजल हाईकोर्ट में पेश किया। हाईकोर्ट ने इसे शपथ पत्र के साथ आवेदन के प्रारुप में देने को कहा है। अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी।
ऋषभदास जैन, महाधिवक्ता मप्र
मप्र में 5 साल में 6 लाख शिशुओं की अकाल मौत

भूख के मुंहाने पर मध्यप्रदेश, शिशु बचाने में रुचि नहीं















रवीन्द्र जैन

भोपाल। यह खबर कमजोर दिल वाले न पड़े क्योंकि कि यह खबर आपको हिलाकर रख सकती है। मध्यप्रदेश में पिछले पांच साल में लगभग छह लाख बच्चे कुपोषण और बीमारियों से मर गए, लेकिन राज्य सरकार पर इसका कोई असर नहीं हुआ है। सबसे दर्दनाक पहलु यह है कि इन शिशुओं को बचाने के लिए विधानसभा ने जो बजट सरकार को दिया था वह भी सरकार ने खर्च नहीं किया। मप्र में शिशु मृत्यु दर देश में सबसे अधिक है और इंटरनेशनल फूड रिसर्च इंस्टीटय़ूट की रिपोर्ट कहती है कि मध्यप्रदेश भूख के मुंहाने पर खड़ा है।

मप्र में बच्चे भूख व कुपोषण से मर रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में शिशु रोग विशेषज्ञों के आधे से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। गर्भवती महिलाओं के लिए आने वाले केन्द्र व राज्य के बजट पर अफसरों और दलालों की गिद्ध दृष्टि लगी हुई है। महिला एवं बाल विकास विभाग की प्रमुख सचिव के बिस्तरों से आयकर विभाग करोड़ों रुपए बरामद कर रहा है। कुपोषण एवं गंभीर बीमारियों से पीडि़त बच्चों के लिए आवंटित बजट को राज्य सरकार खर्च नहीं करना चाहती और नतीजे सामने हैं - पांच साल में लगभग छह लाख बच्चों की मौत। मौत का यह आंकड़ा केवल उन बच्चों का है जो अपना पहला जन्मदिन भी नहीं मना सके, यानि एक वर्ष से कम उम्र में ही मौत के शिकार हो गए। एक से चार वर्ष बच्चों की बात की जाए तो प्रति हजार बच्चों पर 94 बच्चे भी कुपोषण व बीमारियों के कारण मौत के शिकार हो रहे हैं। यह आंकड़े किसी को भी विचलित कर सकते हैं। लेकिन राज्य सरकार जबरन अपनी योजनाओं का ढोल पीटने में लगी हुई है।

विधानसभा में दो जबाव : मप्र के हेल्थ मिनिस्टर अनूप मिश्रा ने पिछले दिनों कांग्रेस के महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा के प्रश्र के जबाव में बताया कि 1 अप्रेल 2005 से 31 मार्च 2009 तक पिछले चार साल में मप्र में कुपोषण एवं उससे होने वाली बीमारियों के कारण 1 लाख 22 हजार 422 शिशुओं की मौत हुई है। स्वास्थ मंत्री ने इन मौतों का जिलेवार ब्यौरा भी दिया है। लेकिन क्या यह आंकड़े सही है? क्योंकि राज्य के स्वास्थ मंत्री ने स्वीकर किया है कि मप्र में प्रति एक हजार बच्चों के जन्म लेने पर 70 शिशुओं की मौत हो जाती है। यानि मप्र में शिशु मृत्यु दर 70 है, जो कि पूरे देश में सबसे अधिक है। स्वास्थ मंत्री के इस दावे को सही माना जाए तो मप्र में 1 मार्च 2005 से 1 जनवरी 2010 तक 5 लाख 91 हजार 204 बच्चों की मौत हो चुकी है। क्योंकि सरकारी आंकड़ों के अनुसार उक्त अवधि में 84 लाख 45 हजार 806 प्रसव हुए हैं।

बच्चों की मौत के कारण : मप्र में शिशु रोग विशेषज्ञों के कुल 437 पद स्वीकृत हैं, लेकिन वर्तमान में 278 पद रिक्त पड़े हैं। इसी प्रकार स्त्री रोग विशेषज्ञों के कुल 582 पद स्वीकृत हैं, लेकिन 437 पद खाली पड़े हैं। तय है कि डाक्टरों एवं उपचार के अभाव में शिशु बीमारियों व मौत के शिकार हो रहे हैं।

बजट व्यय नहीं : मप्र में शिशुओं बचाने के लिए राज्य विधानसभा ने वर्ष 2005-06 में 11.13 करोड़ रुपए का बजट दिया था, लेकिन राज्य सरकार केवल 27.65 लाख रुपए ही व्यय कर पाई। इसी प्रकार वर्ष 2006-07 में 14.26 करोड़ मंजूर किए थे, लेकिन 4.15 करोड़ ही खर्च हुए। वर्ष 2007-08 में 10.79 करोड़ का बजट स्वीकृत हुआ लेकिन सरकार ने केवल 4.45 करोड़ ही व्यय किए।

जबरदस्त भ्रष्टाचार : मप्र में महिला एवं बाल विकास विभाग को इन बच्चों को बचाने के लिए महिलाओं एवं बच्चों को पोषण आहार के लिए जो बजट 2001 में 22 करोड़ रुपए मिलता था, वह बढ़कर 348 करोड़ तक पहुंच गया है, लेकिन इस विभाग में भ्रष्टाचार किस कदर हावी है, यह पिछले दिनों आयकर विभाग के छापे के दौरान देखने मिला। इस विभाग की प्रमुख सचिव टीनू जोशी के घर से तीन करोड़ रुपए नगद बरामद किए गए। महिला एवं बच्चों के पोषण आहार के बजट पर दलालों की तीखी नजर रहती है। बेशक सरकार ने पोषण आहार का काम मप्र एग्रो इंडस्टी को सौंपा है ,लेकिन वहां भी दलाल पहुंच गए हैं और उन्होंने एग्रो से मिलकर यही राशि हड़पने की कवायद शुरू कर दी है।

Tuesday, March 16, 2010

अपना वेतन स्वयं बढ़ाएंगे विधायक

सरकार पर 11 करोड़ का भार बढ़ेगा












रवीन्द्र जैन

भोपाल। मध्यप्रदेश के विधायक अगले कुछ दिनों में अपना वेतन 35 हजार से बढ़ाकर 55 हजार कर लेंगे। इसी के साथ वे सासंदों के वेतन की बराबरी पर आ जाएंगे। विधायकों का वेतन एवं पूर्व विधायकों की पेंशन बढऩे से सरकार के खजाने पर लगभग 11 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष का अतिरिक्त भार बढऩे की संभावना है। प्रदेश के 231 में से एकमात्र विधायक डा. गोविन्द सिंह ने इस वेतनवृद्घि का विरोध करते हुए सभी विधायकों को आम आदमी की तरह जीने की अपील की है। जबकि ज्यादातर विधायक वेतनवृद्घि के पक्ष में हैं।

मध्यप्रदेश में लगभग 25 माह बाद फिर से विधायकों के वेतन भत्तों को बढ़ाने की तैयारी है। इसके पहले 3 अक्टूबर 2007 को राज्य के विधायकों के वेतन भत्ते एवं पूर्व विधायकों की पेंशन बढ़ाने का निर्णय लिया गया था। मप्र के विधायकों के वेतन भत्ते बढ़ाने पर विचार करने के लिए विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया था। इसी वर्ष जनवरी में इस कमेटी ने लोकसभा, राज्यसभा एवं देश की लगभग सभी विधानसभा में सासंदों व विधायकों को मिलने वाले वेतन भत्तों की जानकारी मंगाकर उसका अध्ययन करने के बाद मप्र क विधायकों क वेतन भत्ते 35000 से बढ़ाकर 55000 करने एवं पूर्व विधायकों की पेंशन 9000 से बढ़ाकर 15 हजार करने की अनुशंसा की थी। बताया जाता हैै कि राज्य के वित्त विभाग ने इस अनुशंसा को स्वीकार कर लिया है। उम्मीद की जा रही है कि विधानसभा के इसी सत्र में विधायकों के वेतन भत्ते बढ़ाने का प्रस्ताव रखा जाएगा। जाहिर है कि अपना वेतन बढ़ाने के मुद्दे पर सभी दलों के विधायक एक हो जाएंगे।

11 करोड़ का भार : विधायकों क वेतन भत्ते बढ़ाने एवं पूर्व विधायकों की पेंशन बढ़ाने से राज्य सरकार के खजाने पर लगभग 11 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष का अतिरिक्त भार बढऩे की संभावना है।

विरोध भी : कांग्रेस के विधायक डा. गोविन्द सिंह ने विधायकों के वेतन भत्ते बढ़ाने के प्रस्ताव का विरोध शुरू कर दिया है। डा. सिंह का कहना है कि सभी विधायक यदि सादगी का जीवन जिएं तो हर महिने 35000 हजार रुपए कम नहीं हैं। उन्होंने कहा कि मप्र गरीब प्रदेश है और विधायकों को सेवा का भाव रखना चाहिए न कि सुविधाएं लेने का।

हर विधायक अमीर नहीं है : दूसरी ओर कांग्रेस के विधायक चौधरी राकेश सिंह का कहना है कि मप्र के 60 प्रतिशत विधायक गरीब हैं तथा अभी जो वेतन मिल रहा है उससे पूर्ति नहीं होती। उन्होंने वेतन भत्ते बढ़ाने के प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा कि - बिना वेतन भत्ते बढ़ाए विधायक अपने क्षेत्र में भ्रमण भी नहीं कर सकता, क्योंकि डीजल बहुत महंगा हो गया है।

स्वार्थी हो गए हैं विधायक : मप्र विधानसभा के पूर्व सचिव विश्वेन्द्र मेहता का कहना है कि विधायकों का वेतन बढ़ाने के बजाय उन्हें केवल मंहगाई भत्ता बढ़ाकर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अब विधायकों में सेवा की भावना के बजाय स्वार्थ की भावना ही दिखती है। विधायक बनने के बाद से ही वे अपने लिए प्लाट, मकान आवंटित कराने एवं सुविधाएं बटोरने के चक्कर में लग जाते हैं। जिस सेवा के उद्देश्य से वे विधायक बने हैं, वह भावना तो कहीं दिखती ही नहीं है।



वर्तमान में मप्र के विधायकों के वेतन भत्ते

वेतन                                 : 9000
निर्वाचन क्षेत्र भत्ता         : 12000
टेलीफोन भत्ता                 : 7000
लेखन एवं डाक भत्ता     : 2000
अर्दली भत्ता                       : 2000
चिकित्सा भत्ता                : 3000
कुल वेतन                        : 35000



विधायकों के प्रस्तावित वेतन भत्ते : 55000

पूर्व विधायकों को पेंशन व भत्ते वर्तमान में : 9000
पूर्व विधायकों को प्रस्तावित वेतन भत्ते : 15000

सांसदों के वेतन भत्ते

राज्यसभा : 57000
लोकसभा : 56000

अन्य राज्यों में विधायकों के वेतन भत्ते

छत्तीसगढ़                  : 28500
हिमाचल प्रदेश        : 55000
गुजरात                     : 31000
राजस्थान                : 29000
दिल्ली                     : 16000
तमिलनाडू               : 20000
केरल                       : 15300
उत्तरप्रदेश                : 30000
बिहार                      : 22000
हरियाणा                 : 55500
कर्नाटक                  : 44000
पंजाब                      : 25000
आंध्राप्रदेश               : 43000
झारखंड़                  : 26800
पश्चिम बंगाल        :   8000
मिजोरम                 : 21000
त्रिपुरा                     : 17300
आसाम                    : 32300
उड़ीसा                     : 21950
यह अधिकारी सब पर भारी

रवीन्द जैन

भोपाल। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की सरकार में नौ अधिकारी ऐसे हैं जिन्हें आप शिवराज के नवरत्न कह सकते हैं। शिवराज सिंह की सरकार में सबसे ज्यादा ताकतवर अधिकारी इकबाल सिंह बैंस हैं जिनके बिना राज्य सरकार में पत्ता भी नहीं हिल सकता। पूर्व मुख्यसचिव राकेश साहनी बेशक रिटायर हो गए हैं, लेकिन राज्य सरकार में अभी भी उनकी ही तूती बोल रही है। यह बात दूसरी है कि भाजपा व संघ के नेता उन्हें पसंद नहीं करते। प्रदेश के नए मुख्यसचिव अवनि वैश्य बेशक शिवराज सिंह की पसंद हैं, लेकिन वे अभी तक पूर्व मुख्यसचिव राकेश साहनी की परछाई से बाहर नहीं निकल पाए हैं। श्री वैश्य ने जिस तरह कुर्सी पर बैठते ही मप्र के दौरे किए तथा भ्रष्टïाचार के खिलाफ श्ंाखनाद किया है, उससे न केवल उनकी छवि सख्त अफसर के रूप में बनी है, बल्कि भ्रष्टाचार से जूझ रहे प्रदेश की जनता को उनसे उम्मीद भी जगी हंै। मुख्यमंत्री के रणनीतिकार के रूप में पहचान बनाने वाले मप्र के जनसंपर्क आयुक्त मनोज श्रीवास्तव पिछले कुछ दिनों से बेवजह विवादों के कारण दु:खी हैं। उन्हें जिस तरह संघ के कहने पर संस्कृति विभाग से हटाया गया, वह उन्हें नागवार गुजरा है। चर्चा है कि मनोज श्रीवास्तव केन्द्र में जाने की तैयारी कर रहे हैं। इन सबके बाद भी मनोज श्रीवास्तव मुख्यमंत्री के खास सलाहकार बने हुए हैं। मुख्यमंत्री के सचिव अनुराग जैन को शांत अफसर माना जाता है, लेकिन आजकल वे मुख्यमंत्री के आंख-कान की तरह काम कर रहे हैं। प्रदेश में अफसरों की पदस्थापना में मुख्यमंत्री उनसे सलाह लेते हैं। मप्र में ताकतवर अफसरों में मो. सुलेमान, एसके मिश्रा, अरुण पांडे को भी माना जाता है, लेकिन इनके बारे में एक ही चर्चा है कि यह मुख्यमंत्री के नाम पर कंबल ओढ़कर घी पी रहे हैं। इंदौर कलेक्टर राकेश श्रीवास्तव के मुख्यमंत्री से पारिवारिक रिश्ते हैं। हर सुख दुख में सबसे पहले पहुंचने वाले राकेश श्रीवास्तव पदोन्नति के बाद भी ठप्पे से इंदौर में जमे हुए हैं।



इकबाल सिंह बैंस, प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री

मप्र के सबसे ताकतवर आईएएस अफसर

मुख्यमंत्री के सबसे नजदीक

इनके बिना सरकार में पत्ता नहीं हिलता

मुख्यमंत्री के ही खास लोग बन गए हैं दुश्मन



राकेश साहनी, अध्यक्ष मप्र विद्युत मंडल बोर्ड

मुख्यसचिव के रुप में सबसे विवादास्पद

सेवा निवृत्ति के बाद भी सरकार में दखल

केबिनेट मंत्री का दर्जा देने का विरोध जारी

संघ, भाजपा व मीडिया के सीधे निशाने पर



अवनि वैश्य, मुख्यसचिव

मप्र के नए मुख्यसचिव, शिवराज की पसंद

कुर्सी पर बैठते ही करेप्शन के खिलाफ शंखनाद

राकेश साहनी की परछाई से मुक्त नहीं

भाजपा सहित सभी को उनसे बहुत सी उम्मीद हैं



मनोज श्रीवास्तव, आयुक्त जनसंपर्क

मुख्यमंत्री के नजदीकी अफसरों में शुमार

बेहद मेहनती और शिवराज के रणनीतिकार

संघ के विरोध के चलते संस्कृति विभाग छिना

बेवजह विवाद से दुखी, केन्द्र में जाने की तैयारी



अनुराग जैन, सचिव मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री सचिवालय के साइलेंट अफसर

मुख्यमंत्री के आंख, कान, नाक

मुख्यमंत्री सचिवालय में सुंदरलाल पटवा के प्रतिनिधि

अफसरों की पदस्थापना में मुख्यमंत्री के सलाहकार



मो. सुलेमान, एमडी, सड़क विकास निगम

पांच वर्षों से सड़क विकास निगम में जमे

अपनी दिल्ली मुम्बई यात्राओं को लेकर विवादास्पद

पड़ोसी जिले में भारी निवेश के आरोप

कई आईएएस अफसरों के ही निशाने पर



एसके मिश्रा, सचिव, मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री के सामने घुटने टेकने के कारण प्रसिद्घी

खनिज निगम के एमडी, करोड़ों कमाने के आरोप

मलाईदार विभाग के लिए कुछ भी करने को तैयार

अरविन्द जोशी की तरह बन सकते हैं सिरदर्द



अरुण पांडेय, आयुक्त आबकारी

ऊर्जा मंत्री राजेन्द्र शुक्ल के बहनोई

कद छोटा व पद बड़ा

सरकार को 150 करोड़ की चपत लगाई

शराब माफिया के साथ जुगलबंदी का आरोप



राकेश श्रीवास्तव, कलेक्टर इंदौर

मुख्यमंत्री से पारिवारिक रिश्ते

अपनी मनपंसद पोस्ंिटग कराने में माहिर

पदोन्नति के बाद भी इंदौर में पूरी ताकत से जमे हैं

सभी दलों के राजनेताओं व मीडिया से मधुर संबंध

Tuesday, March 9, 2010

लोकायुक्त व सूचना आयुक्त में सुलह के आसार

आज हाईकोर्ट में समझौते की संभावना






















रवीन्द्र जैन

इंदौर। मध्यप्रदेश की दो संवैधानिक शक्तियों के बीच पिछले ढाई वर्ष से चल रहा विवाद बुधवार को थमने की संभावना है। प्रदेश के नए लोकायुक्त जस्टिस पीपी नावलेकर ने राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त पीपी तिवारी से चल रहा विवाद को समाप्त करने की पहल की है। ढाई वर्ष पहले तत्कालीन लोकायुक्त जस्टिस रिपुसूदन दयाल एवं पीपी तिवारी का विवाद भोपाल के एमपी थाने होते हुए हाईकोर्ट तक पहुंच गया था। बुधवार को जबलपुर हाईकोर्ट में इस मुद्दे पर महत्वपूर्ण सुनवाई होना है।

अपनी यादाश्त को ताजा कीजिए। वर्ष 2007 में मप्र के दो संवैधानिक पदों पर बैठीं दो प्रमुख हस्तियां राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त एवं लोकायुक्त आपस में झगड़ते हुए भोपाल के एमपी नगर थाने तक पंहुच गए थे। मामला 22 अगस्त 2007 को मुख्य सूचना आयुक्त द्वारा लोकायुक्त से जुड़े एक प्रकरण के फैसले से संबंधित था। पीपी तिवारी मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में एक प्रकरण में लोकायुक्त के खिलाफ निर्णय सुनाने वाले थे। यह निर्णय लोकायुक्त कार्यालय से जुड़ी सूचना से संबंधित था। तिवारी के फैसले के एक दिन पहले तत्कालीन लोकायुक्त रिपुसूदन दयाल उनके घर पहुंच गए तथा उन्होंने तिवारी को लोकायुक्त संगठन के विरूद्घ फैसला न सुनाने के लिए कहा। तिवारी ने 22 अगस्त को अपने फैसले की नोटशीट पर इस बात का भी उल्लेख कर दिया कि - रिपुसूदन दयाल उन्हें प्रभावित करने के उद्देश्य से उनके घर आए थे।

इस घटना के बाद रिपुसूदन दयाल ने तिवारी के खिलाफ लोकायुक्त संगठन की विशेष पुलिस स्थापना में यह कहते हुए अपराधिक प्रकरण कायम करा दिया कि - तिवारी ने फैसले के बाद नोटशीट पर उनके विरुद्घ टिप्पणी लिखी है। लोकायुक्त की इस शिकायत के बाद पीपी तिवारी के एमपी नगर थाने में लोकायुक्त के खिलाफ फैसले को प्रभावित करने के लिए दबाव बनाने का प्रकरण दर्ज करा दिया। बाद में इन दोनों का विवाद हाईकोर्ट तक पहुंच गया। हाईकोर्ट में यह मामला अभी तक लंबित हे। इस बीच प्रदेश में नए लोकायुक्त के रुप में जस्टिस पीपी नावलेकर की नियुक्ति हो गई। बताते हैं कि नावलेकर ने इस विवाद को सुलझाने की पहल की है।

तिवारी को शर्त मंजूर नहीं : सूत्रों के अनुसार पीपी नावलेकर ने पीपी तिवारी से सौजन्य मुलाकात कर इस विवाद को समाप्त करने की पहल करते हुए तिवारी के सामने प्रस्ताव रखा कि लोकायुक्त संगठन को सूचना के अधिकार से बाहर रखा जाएं, लेकिन तिवारी ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि - यह संभव नहीं है। तिवारी का तर्क है कि भारत सरकार ने केवल तीन को सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर रखा है। पहला - सुरक्षा, दूसरा - गुप्तचर संस्थाएं एवं तीसरा - न्यायिक प्रकरण। उन्होंने कहा कि लोकायुक्त संगठन इन तीनों की परिधि में नहीं आता इसलिए उसे सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर रखना संभव नहीं है।

सुनवाई आज : जबलपुर हाईकोर्ट में बुधवार को इन दोनों के मामले की सुनवाई होना है। बताया जाता है कि पीपी नावलेकर कोर्ट के बाहर समझौते के पक्ष में हैं और उन्होंने अपने वकील को इस संबंध में निर्देश भी दे दिए हैं।
आईएएस की सम्पत्ति का ब्यौरा हाजिर है

वेतन से ज्यादा किराए से कमाई हैं लवलीन कक्कड














रवीन्द्र जैन

इंदौर । लीजिए लंबी प्रतीक्षा के बाद मप्र के आईएएस अधिकारियों ने सम्पत्ति का ब्यौरा सार्वजानिक करना शुरू कर दिया है। सोमवार को मप्र सरकार की वेबसाइड पर प्रदेश के 288 आईएएस में केवल नौ आईएएस अधिकारियों की सम्पत्ति का ब्यौरा डाला गया है। सम्पत्तियों के ब्यौरे में सबसे चौंकाने वाली जानकारी आईएएस अधिकारी लवलीन कक्कड़ ने दी है। उन्होंने भोपाल के शाहपुरा स्थित अपने मकान की कीमत 5 लाख 24 हजार रुपए बताई है और इस मकान से उन्हें प्रतिवर्ष 2 लाख से अधिक किराए के रुप में प्राप्त हो रहे हैं। लवलीन कक्कउ लगभग सवा करोड़ की सम्पत्ति मयाके से मिली है। वे हर साल किराए 8 लाख रुपए मकानों के किराए से ही कमाती हैं।

मप्र के मुख्य सूचना आयुक्त पीपी तिवारी के आदेश एवं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देश पर राज्य के आईएएस अधिकारियों ने अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा विभाग की वेबसाइड पर डालना शुरू कर दिया है। वैसे सभी अधिकारियों को 1 अप्रेल तक अनिवार्य रूप से अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा वेबसाइड पर डालना है। सोमवार को मप्र की सामान्य प्रशासन विभाग की वेबसाइड पर नौ अफसरों की अचल सम्पत्ति की जानकारी अफसरों के हस्ताक्षरों सहित जारी की गई है। सबसे चौंकाने वाली जानकारी सामाजिक न्याय विभाग की प्रमुख सचिव लवलीन कक्कड ने दी है। 22 फरवरी को उन्होंने अपनी 1 जनवरी 2010 तक की सम्पत्ति का खुलासा किया है। उन्होंने भोपाल के शाहपुरा में एक प्लाट मात्र 59266 रुपए में खरीदना बताया है। इसके निर्माण पर उन्होंने 4 लाख 65 हजार रुपए व्यय किए हैं। इस कमान की वर्तमान कीमत मेडम ने 5 लाख 24 हजार रुपए बताई है। यह मकान लवलीन कक्कड एवं उनके आईएएस पति मुकेश कक्कड ने अपनी बचत राशि से बनवाया है तथा उक्त मकान दोनों के संयुक्त नाम से हैं। लवलीन कक्कड ने बताया है कि इस मकान से होने वाली वार्षिक आय में उनका हिस्सा 2 लाख 376 रुपए मिलता है। अभी मुकेश कक्कड की सम्पत्ति का ब्यौरा आना बाकी है, देखना है कि इस सवा पांच रुपए के मकान से उनके हिस्सें में कितनी आय होती है।

मायके से मिला सवा करोड़ : लवलीन कक्कड की जानकारी के अनुसार उनके पास दिल्ली में दो अपार्टमेंट हैं जिसकी कीमत कमश: 70 लाख एवं 50 लाख रुपए है। श्रीमती कक्कड के अनुसार यह सम्पत्ति उनके एवं बेटी के नाम से है तथा उन्हें यह सम्पत्ति माता पिता एवं भाई की सम्पत्ति के सेलटमेंट से मिली है। कक्कड ने बताया है कि दिल्ली स्थित शांति निकेतन वाला अपार्टमेंट से उन्हें छह लाख रुपए सालाना की आय होती है।

आभा पर कुछ नहीं, जब्बार पर मां की कृपा : मप्र की वरिष्ठï आईएएस अधिकारी आभा अष्ठïाना के नाम पूरे देश में एक इंच भूमि नहीं है। ऐसा उन्होंने अपने सम्पत्ति के ब्यौरे में लिखा है। जबकि जब्बार ढांकवाला पर मां की कृपा हुई है। एकमात्र पुत्र होने क कारण मां के देहांत क बादे उन्हें रायपुर में लगभग 70 लाख रुपए की सम्पत्ति मिली है। जिससे उन्हें 2 लाख रुपए सालाना की आय होती है।

वैसे जब्बार ढांकवाला ने भी अपनी मेहनत से भोपाल में हाउसिंग बोर्ड से 30 लाख रुपए का मकान खरीदा है। उनका एक मकान भोपाल की सबसे शानदार कॉलेानी रिवेरा टाउन में भी बन रहा है।

अजय तिर्की : आईएएस अधिकारी अजय तिर्की के पास एकमात्र सम्पत्ति भोपाल के कटारा हिल्स पर हाउसिंग बोर्ड से खरीदा प्लाट है जो उन्होंने अपनी पत्नी मंजू तिर्की के नाम से खरीदा है। इस प्लाट की वर्तमान कीमत लगभग 7 लाख रुपए है।

एके दास : 1978 बेंच के आईएएस अधिकारी एके दास के पास उड़ीसा में उड़ीसा हाउसिंग बोर्ड से खरीदा गया एक डूपलेक्स है, जो उन्होंने 1 लाख 64 हजार रुपए में खरीदा था। इसकी वर्तमान कीमत साढ़े सात लाख रुपए है। इस मकान से उन्हें 55200 रुपए की वार्षिक आय होती है।

डा. अमर सिंह : पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के समय में पूरे मप्र को चलाने वाले आईएएस अधिकारी डा. अमरसिंह के पास एकमात्र सम्पत्ति भोपाल में है जिसकी कीमत उन्होंने 63 लाख 40 हजार रुपए बताई है इस सम्पत्ति से सिंह को प्रतिवर्ष 4 लाख 51 हजार रुपए वार्षिक की आय होती है।

जीपी सिंघल : मप्र के प्रमुख सचिव वित्त जीपी सिंघल के पास उज्जैन के हामूखेडा गांव में 70 हजार रुपए कीमत की कृषि भूमि है। भोपाल के बाग मुगालिया में उनके पास दो भूखंड है जिसकी कीमत क्रमश: डेढ़ लाख व सवा लाख रुपए है। उन्होंने मप्र हाउसिंग बोर्ड से 1 लाख 80 हजार रुपए का भूखंड भी खरीदा है। वित्त विभाग के प्रमुख सचिव को अपनी सम्पत्ति की वर्तमान कीमत की जानकारी नहीं है। ऐसा उन्होंने स्वयं लिखा है।

प्रभाकर बंसोड : वरिष्ठ आईएएस अधिकारी प्रभाकर बंसोड के पास महाराष्टï्र के नगापुर में अचल सम्पत्ति है। उनका एक मकान लगभग 30 लाख है तथा दूसरा उन्होंने 6 लाख 17 हजार में खरीदा है।

प्रभांशु कमल : प्रभांशु कमल ने वर्ष 1998 में लखनऊ में 3 लाख रुपए में जो मकान खरीदा था उससे उन्हें किराए के रुप में 29 हजार रुपए प्रतिवर्ष की आय होती है। प्रभांशु कमल ने भोपाल के चूना भट्टïी क्षेत्र में 18 लाख 90 हजार रुपए में एक मकान खरीदा है।

Monday, March 8, 2010

36 आईएएस अफसरों की सम्पत्ति इंदौर में ?

अब शहर में बंट रहा है चर्चित पर्चा, एक बिल्डर्स निशाने पर

रवीन्द्र जैन



इंदौर। मध्यप्रदेश के 133 आईएएस अधिकारियों के चरित्र एवं सम्पत्ति को लेकर भोपाल में बांआ जा रहा चर्चित पर्चा अब इंदौर भी पंहुच गया है। इस पर्चें में प्रदेश के 36 आईएएस अधिकारियों की सम्पत्ति इंदौर में होने का दावा किया गया है। इसके अलावा तीन आईएएस अधिकारियों अवैध कमाई एक बिल्डर्स के जरिए इंदौर में लगाने का उल्लेख किया गया है। जिन अफसरों की सम्पत्ति इंदौर में बताई जा रही है उनमें से कई इंदौर में कलेक्टर व अन्य महत्वपूर्ण पदों पर रहे चुके हैं।

मप्र के वरिष्ठï आईएएस अधिकारी अरविन्द जोशी के घर आयकर छापे में से तीन करोड़ रुपए से अधिक जप्त होने के बाद मप्र के आईएएस अधिकारियों की गुटबाजी चरम पर आ गई है। इस गुटबाजी का नतीजा है कि भोपाल में 133 आईएएस अधिकारियों के बारे में नौ पेज का पर्चा बांटा जा रहा है। बताया जाता है कि भोपाल के बाद अब यह पर्चा इंदौर पहुंच गया है और अधिकारी एक दूसरे से मांगकर पर्चे में अपना नाम खोज रहे हैं। गैर आइएएस अधिकारी पर्चा पढ़कर आइएएस केडर के मजे ले रहे हैं। इस पर्चें में 133 आइएएस अधिकारियों को तीन वर्गों में बांटा गया है। भ्रष्टï, महाभ्रष्टï एवं चरित्रहीन। इसके अलावा कई अफसरों की सम्पत्ति कहां कहां निवेश की गई है? इसका उल्लेख भी पर्चें में किया गया है। राज्य के 36 आइ एएस अधिकारियों की सम्पत्ति इंदौर में भी बताई जा रही है।

भ्रष्टïाचार के आरोप में निलंबित किए गए आइएएस अधिकारी अरविन्द जोशी एवं केपी राही की सम्पत्ति भी इंदौर में बताई जा रही है। इसके अलावा मप्र के एक पूर्व मुख्य सचिव की सम्पत्ति इंदौर में होने का दावा किया जा रहा है। पिछले दिनों राज्य सरकार ने जिस आइएएस अधिकारी के पुराने कारनामों की जांच ईओडब्ल्यू को सौंपने का निर्णय लिया है, उसके बारे में पर्चे में बताया गया है कि उन्होंने इंदौर के एक बिल्डर्स के माध्यम से अपनी सम्पत्ति का निवेश किया है। पर्चें में मुख्यमंत्री सचिवालय में पदस्थ एक वरिष्ठï आइएएस अधिकारी की सम्पत्ति भी इंदौर में बताई गई है। पिछले साल से सड़क महकमें में जमे रहने का रिकार्ड बनाने वाले एक चर्चित अफसर की भी सम्पत्ति भी इंदौर में बताई जा रही है। इस अफसर के बारे में चर्चा है कि वे मप्र के अगले अरविन्द जोशी बन सकते हैं। वर्तमान में राज्य के छह जिलों में पदस्थ कलेक्टरों की सम्पत्ति इंदौर में होने का दावा किया गया है।

बताया जाता है कि मुख्यसचिव अवनि वैस ने इस पर्चें की जांच की बात कही है। यह पर्चा आयकर विभाग व लोकायुक्त संगठन के हाथ में भी पंहुच गया है। पर्चें में दिए तथ्यों की पड़ताल लोग अपने अपने तरीके से कर रहे हैं। इंदौर में आइएएस अफसरों के आलीशान बंगलों, बेनामी सम्पत्तियों, फार्म हाउसों पर निगरानी शुरू हो गई है।

Thursday, March 4, 2010

योगीराज के 85 बैंक खाते, 27 एटीएम कार्ड

बैंक खातों में तीस करोड़ का किया लेनदेन




जब अवैध तरीके से पैसा आता है तो बुराईयां भी साथ लाता है। योगीराज शर्मा नाम के ही योगी हैं, उनके बारे में चर्चा है कि वे स्वास्थ संचालक बनते ही भोगीराज शर्मा बन गए थे। मलेशिया में उनका एक विदेशी महिला के साथ रोमांटिक मूड में फोटो स्वास्थ विभाग में चर्चा का विषय बना हुआ है।


रवीन्द्र जैन

भोपाल। मध्यप्रदेश में लंबे समय स्वास्थ संचालक रहे योगीराज शर्मा एवं उनके परिजनों के 85 बैंक खाते आयकर विभाग को मिल चुके हैं। इन खातों में तीस करोड़ से अधिक का लेनदेन किया हुआ है। यह खुलासा आयकर विभाग ने मप्र के मुख्यसचिव को सौंपी अपनी गोपनीय रिपोर्ट में किया है। आयकर विभाग की रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि योगीराज शर्मा एवं उनके परिजनों के पास से आयकर विभाग ने 27 एटीएम कार्ड जप्त किए हैं। 85 बैंक खातों सूची एवं जप्त एटीएम कार्ड के पंचनामे की प्रति राज एक्सप्रेस के पास मौजूद है।

पहले योगीराज के बैंक खातों की बात की जाए। भारतीय स्टेट बैंक की सुल्तानिया रोड़ ब्रांच में ही 17 बैंक खाते मिले हैं। योगीराज शर्मा ने चालाकी से अपने ही कुछ खाते वाय.आर.शर्मा के नाम से खोले हैं। एक ही बैंक में एक ही व्यक्ति के दो नाम से कई बचत खाते संचालित हो रहे थे। इसके अलावा इस बैंक में शर्मा ने अपनी बिटिया गुडिय़ा जिसके बारे में बताया जाता है कि उसका जन्म से मानसिक विकास नहीं हो पाया है, के नाम से कई खाते खोले गए हैं। यह बेटी हस्ताक्षर भी नहीं कर सकती, इसलिए लगभग 30 वर्ष की बेटी के बैंक खाते में शर्मा का भी नाम शामिल किया गया है। आयकर विभाग को मिले कुल 85 बैंक खातों में से 36 बैंक खाते योगीराज शर्मा एवं उनके दूसरे नाम वाय.आर. शर्मा के नाम से मिले हैं। बैंकों में शर्मा ने अपनी कंपनी गजानंद डिस्टीब्यूटर एण्ड डवलपर प्रा.लि.,श्री विघ्रेश वेयरहाउस एण्ड डिस्टीब्यूटर प्रा.लि, के नाम से मिले हैं।

27 एटीएम कार्ड : आयकर विभाग ने योगीराज शर्मा के निवास से कुल 27 एटीएम कार्ड बरामद किए हैं। इनका बकायदा पंचनामा भी बनाया गया है। आयकर विभाग की रिपोर्ट के अनुसार योगीराज शर्मा के नाम से 12 एटीएम कार्ड मिले हैं। उनकी पत्नि शशि शर्मा के नाम से 7 उनके पुत्र गौरव शर्मा के नाम से 7 एवं राम दुलारी के नाम से 1 एटीएम कार्ड मिला है।

रेडिएशन इमेज कम्युनिकेशन : आयकर विभाग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि रेडिएशन इमेज कम्युनिकेशन के पांच बैंक खातों जो कि क्रमश: कृष्णा मर्केटाईल बैंक मप्र नगर, आईडीबीआई बैंक न्यू मार्केट, यूनियन बैंक मालवीय नगर, पंजाब नेशनल बैंक हबीबगंज, बैंक ऑफ राजस्थान टीटी नगर की पड़ताल की जा रही है। इसके अलावा ग्लोबल इंटरप्राईजेज मीनाक्षी मार्केट की पड़ताल की जा रही है। आयकर विभाग ने संकेत दिया है कि ग्लोबल इंटरप्राईजेज के योगेश पटेरिया ही रेडिएशन इमेज कम्युनिकेशन के बैंक खातों का संचालन करते हैं। योगेश पटेरिया के योगीराज शर्मा के पुत्र गौरव शर्मा के साथ घनिष्ठ मित्रता है। गौरव रेडिएशन इमेज कम्युनिकेशन के एमपर नगर आफिस का उपयोग मिलने जुलने वालों के लिए करता है।

दवाओं की खरीदी व कमीशन के दस्तावेज : आयकर विभाग ने अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि उसने योगीराज शर्मा के निवास से दवाओं व मेडीकल उपकरणों की खरीदी संबंधी आदेशों की प्रतियां, सप्लायरों के नाम व कमीशन की राशि के उल्लेख संबंधी दस्तावेज भी जप्त किए हैं जिनकी जांच की जा रही है। इसके अलावा सप्लायरों के साथ योगीराज शर्मा के हिस्से एवं हस्ताक्षर की हुई चेक बुकें भी बरामद की गईं हैं।

सरकारी धन का दुरूपयोग : आयकर विभाग की रिपोर्ट ने यह भी खुलासा किया है कि योगीराज शर्मा ने सरकारी धन का उपयोग अपनी पत्नि एवं पुत्र की बेनामी कंपनियों में किया है। बैंक ऑफ बडौदा की हबीबगंज ब्रांच में चार लोगों के नाम से तीन महिने में खाते खोले गए जिसमें 16.40 लाख रुपए जमा किए गए। यह खाते सुनील कुमार देशमुख, महेन्द्र सूर्यवंशी, प्रवीण जयवडे, एवं रंजीत प्रजापति के नाम से खोले गए हैं। इनकी जांच की जा रही है। इस राशि का उपयोग शर्मा के परिजनों की कंपनी में किया गया है।

सोना चंादी : आयकर विभाग के अनुसार शर्मा के घर से छापे में लगभग 8 लाख रुपए का सोना एवं पौने दो लाख रुपए की चांदी बरामद की गई है। इसके अलावा कई एनएससी एवं बॉण्ड बरामद किए हैं।

ऐसे घरों में पहुंचा सरकारी धन : आयकर विभाग ने एक चार्ट के माध्यम से समझाने का प्रयास किया कि किस तरह सरकारी धन योगीराज शर्मा एवं उनके परिजनों की कंपनियों तक पंहुचा। इस चार्ट के अनुसार मप्र स्वास्थ विभाग का धन रेडिएशन इमेज कम्युनिकेशन के बैंक खातों में जमा हुआ। वहां से यह राशि बैंक ऑफ बडौदा के हबीबगंज के खाते में जमा होता था। वहां से यह धन शर्मा के परिजनों की कंपनी श्री विघ्रेश वेयरहाउस एण्ड डिस्टीब्यूटर प्रा.लि. एवं गजानन डिस्टीब्यूटर के नाम से जमा हुई है।

Wednesday, March 3, 2010

चौदह आईएएस हो सकते हैं बेनकाब

चौदह आईएएस हो सकते हैं बेनकाब

तीन साल से एक ही पद पर जमे अफसरों को हटाने का दबाव

रवीन्द्र जैन

भोपाल। मध्यप्रदेश में आयकर विभाग बीमा एजेन्टों के माध्यम से आईएएस अधिकारियों की अवैध कमाई को बीमा कंपनियों में लगाने के मामले की जांच सीबीआई को सौंपने पर विचार कर रहा है। यदि ऐसा हुआ तो मध्यप्रदेश्या के लगभग चौदह आईएएस अधिकारियों के चेहरे से नकाब हट सकता है। इसके अलावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर उन आईएएस अधिकारियों को हटाने का दबाव बढ़ता जा रहाप है जो मप्र में पिछले तीन साल से ज्यादा समय से एक ही पद पर जमे हुए हैं।

मप्र में भ्रष्टाचार को लेकर आयकर विभाग फंूक फंूककर कदम रख रहा है। आयकर विभाग के अधिकारी जानते हैं कि आईएएस अधिकारी अरविन्द जोशी के घर पर पड़े आयकर छापे के बाद राज्य के अधिकांश भ्रष्ट अधिकारी सतर्क हो गए हैं। ऐसे में भ्रष्ट अधिकारियों पर शिकंजा कंसने और उनकी अवैध कमाई का पता लगाने के लिए आयकर विभाग सीबीआई को पत्र लिखने के बारे में विचार कर रहा है। सूत्रों का दावा है कि मप्र में अरविन्द जोशी के अलावा लगभग चौदह आईएएस अधिकारियों ने भी अपनी अवैध कमाई को आईसीआईसीआई बैंक की बीमा कंपनी में निवेश किया है। यदि यह मामला सीबीआई को सौंपा जाता है तो कई अफसरों की काली कमाई का ही पता नहीं लगेगा, बल्कि उन्होंने किस किस विभाग में क्या क्या गोलमाल किया है? इससे भी पर्दा उठ सकता है

एक दर्जन पर गिरेगी गाज : मप्र में तीन वर्षों से अधिक समय तक एक ही स्थान पद जमे लगभग एक दर्जन आईएएस अधिकारी भी निशाने पर आ गए हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर इन अधिकारियों को मलाईदार कुर्सियों से हटाने के लिए विपक्ष की ओर से ही नहीं स्वयं की पार्टी की ओर से भी दबाव बढ़ता जा रहा है। इनमें तीन अधिकारी मुख्यमंत्री सचिवालय में ही पदस्थ हैं। इसके अलावा सबसे लंबे समय तक मलाईदार कुर्सीै पर जमे मप्र सड़क विकास निगम के एमडी मो. सुलेमान कईयों के निशाने पर आ गए हैं। इस कुर्सी को मलाईदार माना जाता है। इसके अलावा इन अफसरों को हटाने के लिए भी मुख्यमंत्री पर दबाव है -

नाम पद कब से पदस्थ हैं

1 - प्रभुदयाल मीणा प्रमुख सचिव लोक निर्माण 8 मार्च 2007

2 - कंचन जैन एमडी, मप्र मत्स्य निगम 11 जुलाई 2006

3 - इकबाल सिंह बैंस प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री सचिवालय 10 दिसम्बर 2005

4 - विनोद सेमवाल महानिरीक्षक पंजीयन 30 जून 2006

5 - मनेाज श्रीवास्तव आयुक्त जनसंपर्क 6 फरवरी 2006

6 - प्रवीण गर्ग एमडी, मप्र उद्योग विकास निगम 10 अप्रेल 2006

7 - अनुराग जैन सचिव मुख्यमंत्री सचिवालय 6 दिसम्बर 2005

8 - मो सुलेमान एमडी, मप्र सड़क विकास निगम 27 दिसम्बर 2004

9 - रघुवीर श्रीवास्तव एमडी, आदिवासी वित्त विकास निगम 1 अगस्त 2006

10 - श्रीमती सूरज दामोर अतिरिक्त आयुक्त वाणिज्यकर, इंदौर 17 जुलाई 2006

11 - गोविन्द प्रसाद श्रीवास्तव सचिव, राजस्व मंडल 17 अगस्त 2006

12 - राजेश मिश्रा सचिव, राज्य पिछडा वर्ग आयोग 25 जनवरी 2007



इनके अलावा कुछ आईएएस अधिकारी कुछ माहों में अपने पद तीन वर्ष पूरे करने वाले हैं उनमें प्रमुख सचिव नगरीय प्रशासन विभाग राघव चंद्रा, उद्योग आयुक्त दीपक खांडेकर, राज्यपाल के प्रमुख सचिव केके सिंह, आयुक्त सैरी कल्चर एमके सिंह, राजगढ़ कलेक्टर शिवानंद दुबे, शाजापुर कलेक्टर राजेन्द्र शर्मा एवं रतलाम कलेक्टर महेन्द्र ज्ञानी आदि शामिल हैं।

कौन ज्यादा भ्रष्ट : मंत्रालय में अब यह सवाल पूछा जाने लगा है कि मप्र में कौन से आईएएस ज्यादा भ्रष्ट हैं? सीघी भर्ती के अथवा प्रमोटी? हकीकत में मप्र में लोकायुक्त ने पिछले दिनों जितने आईएएस अधिकारियों के खिलाफ जांच शुरू की है उनमें सीघी भर्ती के आईएएस अधिकारियों की संख्या अधिक है। इसके अलावा मुख्यमंत्री ने भ्रष्टाचार के आरोप में जिन पांच आईएएस को निलंबित किया है उनमें भी तीन सीधी भर्ती के अधिकारी शामिल हैं। पिछले दो साल में आयकर विभाग ने जिन दो तीन आईएएस अधिकारियों के घर छापे मारे हैं, वे तीनों राजश्ेा राजौरा, अरविन्द जोशी एवं टीनू जोशी सीधी भर्ती के आईएएस अधिकारी हैं।